24-07-2021, 06:53 PM
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" आइये... ". विजयवर्मन ने दोनों को प्रेमपूर्वक उठाया, और शय्या पर उनके साथ चढ़ गएँ.
अवंतिका और चित्रांगदा ने एक साथ मिलकर विजयवर्मन के ऊपरी वस्त्र और उनकी राजसी धोती खोल दी. विजयवर्मन के टांगों के बीच झूलते उनके लण्ड को दोनों स्त्रीयों ने हाथ से सहलाया, तो उसमें धीरे धीरे अकड़न आने लगी. अवंतिका ने चित्रांगदा के कंधे पर हाथ रखकर उसे लेटने का संकेत दिया, तो चित्रांगदा समझ गई कि इस शुभरात्रि का प्रथमचोदन उसे ही मिलने वाला था !!!
अपनी साँसे थामे चित्रांगदा बिछावन पर लेट गई, तो अवंतिका ने मुस्कुराकर विजयवर्मन को उनके ऊपर चढ़ने का संकेत दिया. एक आज्ञाकारी प्रेमी तथा पति कि भांति बिना कुछ कहे विजयवर्मन अपनी भाभी - पत्नि के ऊपर आ गएँ. जब वो चित्रांगदा के बदन पर चढ़ रहें थें तो अवंतिका और चित्रांगदा ने देखा कि उनका लण्ड अब तन कर पूरी तरह से ठनक गया था और उनके अंडकोष फूल कर कठोर हो गएँ थें. ये इस बात का संकेत था कि वीर्य से लबालब भरा उनका लण्ड किसी भी समय उबल पड़ने ही वाला था !
विजयवर्मन ने अपने लण्ड का सुपाड़ा खोलने के लिए अपना लण्ड चित्रांगदा कि नरम जाँघों पर घिसना प्रारम्भ किया, तो दो तीन बार के घर्षण के उपरांत ही उनके लण्ड के मुँह कि चमड़ी उलट कर पीछे खिसक गई, फलस्वरुप मोटा चिकना लाल सुपाड़ा बाहर को निकल आया. नरम लिंग - मुंड के स्पर्श का एहसास अपनी मांसल जंघा पर होते ही चित्रांगदा ने तकिये पर से अपना सिर उठाकर नीचे अपनी जाँघों के मध्य झाँका, तो उनका मुँह खुला का खुला ही रह गया - उन्होंने पहले ना जाने कितनी दफा अपने देवर के लण्ड का ना सिर्फ दर्शन किया था, बल्कि अपनी चूत कि अनंत गहराईयों में उसे आश्रय भी दिया था, परन्तु आज उनका लण्ड एकदम नवीन और अद्वितीय लग रहा था, और मुसीबत कि बात तो ये थी कि, पहले से कहीं अधिक तगड़ा और विशालकाय प्रतीत हो रहा था !
विजयवर्मन ने नीचे झुककर चित्रांगदा के होंठों पर अपने होंठ रख दियें, और अपने लण्ड को बिना हाथ लगाये अपनी कमर धीरे धीरे हिलाते हुये उसकी चूत का छेद खोजने लगें. अपने देवर - पति कि मदद करने के लिए चित्रांगदा ने अपनी कमर ऊपर कि ओर हल्की सी उचकाई, तो उसकी चूत का छेद एकदम से लण्ड के नुकिले चिकने मुँह से जा सटा. योनिछिद्र के मिलते ही विजयवर्मन ने एक तेज़ और सख़्त झटका लगाकर अपने लण्ड का सुपाड़ा चूत के अंदर घुसेड़ दिया. दर्द से बिलबिलाई चित्रांगदा चिल्ला भी ना पाई, क्यूंकि विजयवर्मन ने पहले ही उनके होंठों को अपने मुँह से कैद कर रखा था, बेचारी बस थोड़ी सी छटपटाकर रह गई. परन्तु विजयवर्मन इतने पर ही नहीं रुकेंगे, इससे पहले कि चित्रांगदा अपनी चूत में उनके लण्ड के सुपाड़े के लिए ठीक से जगह बना पाती, विजयवर्मन ने अपनी कमर का दूसरा मजबूत झटका मारा, और पूरे का पूरा मोटा लण्ड अपनी भाभी - पत्नि कि संकरी चूत में जबरन ठूस दिया !
चित्रांगदा ने एक हाथ से विजयवर्मन कि पीठ पर अपनी गोरी उंगलियों का लम्बा नाख़ून गोद दिया, तो दूसरे हाथ से पास ही अधलेटी अवंतिका के कंधे को ज़ोर से पकड़ लिया. अवंतिका ने मुस्कुराते हुये चित्रांगदा के हाथ को अपने दोनों हाथों में ले लिया, और उसे दबाते हुये चुदाई कि पीड़ा सहने के लिए उन्हें सांत्वना देने लगी !
वर्षों से जिसे इतना चाहा और मन ही मन प्रेम किया, आज उसके साथ मिलन पूर्ण हुआ, क्यूंकि ये मिलन मन का था, तन का मिलन तो कई बार हो ही चुका था, परन्तु मन के प्रथम मिलन का जादू कुछ ऐसा था कि तन का ये हज़ारवा मिलन भी अब प्रथम मिलन कि तरह लुभावन लगने लगा !
भावनाओ के अतिउद्वेग के कारण चित्रांगदा कि आँखों से जहाँ आंसू छलक पड़ें, वहीँ ठीक उसी समय उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया ! अपनी भाभी - पत्नि कि बच्चेदानी से निकले पानी के छीटों को अपने लण्ड पर महसूस करते ही विजयवर्मन भी अपना नियंत्रण खो बैठें, और कस कर दो धक्के लगाकर चित्रांगदा कि चूत को अपने वीर्य से भर दिया !
विजयवर्मन के होंठ चित्रांगदा के होंठों से अलग हो गएँ, और उनका सिर लुढ़ककर तकिये पर चित्रांगदा के चेहरे के समीप गिर पड़ा, जिस ओर अवंतिका लेटी हुई थी. अचानक से हुये इस वीर्यपात कि वजह से उनका पूरा शरीर बुरी तरह से काँपने लगा. उनकी बहन और भाभी एक साथ उनकी पीठ और कमर को सहलाते हुये उन्हें शांत करने कि चेष्टा करने लगीं. कुछ क्षणो उपरांत जब उनकी साँसे थोड़ी नियमित हुई, तो वो चित्रांगदा के शरीर पर से उठने लगें, परन्तु अवंतिका ने अपने हाथ से उनकी कमर पकड़ ली, और मुस्कुराते हुये चित्रांगदा कि ओर देखकर बोली.
" अभी नहीं भैया... चित्रांगदा भाभी ने अभी आपको आज्ञा नहीं दी है !!! ".
एक स्त्री होने के नाते अवंतिका को पता था कि चित्रांगदा का योनिरस भले ही एक बार निकल गया हो, परन्तु उन्हें अभी तक चरमसुख प्राप्त नहीं हुआ था ! चित्रांगदा ने आंसुओं से भींगी अपनी पलकें उठाकर अवंतिका कि आँखों में देखा, तो उन्हें समझ आ गया कि अवंतिका ये बात जानती है, और यही सोचकर मारे शर्म के उनका गोरा चेहरा लाल पड़ गया, और वो लजाते लजाते बोलीं.
" नहीं नहीं देवर जी... ऐसी तो कोई बात नहीं !!! ".
अवंतिका ने मुस्कुराते हुये अपनी उंगलियां चित्रांगदा के होंठों पर रखकर उसे चुप रहने का संकेत दिया, और अपने दूसरे हाथ से अपनी एक चूची पकड़कर विजयवर्मन के गाल से सटा दी. अवंतिका कि इस हरकत से विजयवर्मन को अनायास ही स्मरण हो आया कि उनकी बहन के स्तन से तो किसी माँ बनी स्त्री कि भांति दूध निकलता है, और पिछली बार कैसे अपनी बहन का शक्तिवर्धक दूध पीने के पश्चात् उन्होंने उसे पूरी रात बिना थके चोदा था !
विजयवर्मन ने अपनी गर्दन ऊपर उठाकर एक बार अवंतिका को देखा, धीमे से मुस्कुराये, उसकी गुलाबी चूचुक को पहले एक बार चूमा, फिर अपने झड़े हुये लण्ड को चित्रांगदा कि चूत से बाहर निकाले बिना ही उसके ऊपर चढ़े चढ़े, अपनी बहन - पत्नि कि गोल लाल चूचुक को अपने मुँह में भरकर चूसते हुये मुँह के अंदर टानने लगें.
" सससससससससस... आअह्ह्ह भैया !!! ".
अवंतिका सिसक उठी, उसकी आँखें खुद ब खुद बंद हो गईं, और उसकी नरम चूची से गाढ़ा गरम दूध निकल पड़ा !!!
एक ओर तो अपने दुधारू स्तन से विजयवर्मन को दूध पिलाते हुये अवंतिका अपनी एक नंगी टांग को उनके ऊपर चढ़ाकर उनकी कमर, गांड़, और जाँघों को घिसते रगड़ते हुये उन्हें उत्तेजित करने का प्रयास करने लगी, तो दूसरी ओर अपने हाथ से चित्रांगदा के गालों पर से उसके आंसू पोछते हुये उसे बहलाने संभालने और ढांढस बंधाने लगीं. कभी कुंवारी, नादान, तथा अपरिपक्व रह चुकी अवंतिका आज पूर्णरूपेण पूर्ण विकसित स्त्री बनी अपने पति और उनकी दूसरी पत्नि, दोनों, कि कामेच्छा को नियंत्रित करने में लगी पड़ी थी !!!
अवंतिका कि एक चूची का अभी आधा दूध तक भी समाप्त ना हुआ था कि विजयवर्मन के लण्ड कि नसों में वापस से रक्त संचार होने लगा. अपनी चूत में अपने देवर - पति के लण्ड को फूलता हुआ महसूस करते ही चित्रांगदा ने अवंतिका कि ओर देखा, तो अपनी भाभी के प्रसन्नचित चेहरे का भाव समझ चुकी अवंतिका ने मुस्कुराकर धीरे से अपना सिर हिलाया, और फिर विजयवर्मन के सिर के लंबे केश अपने हाथ कि मुट्ठी में पकड़कर उन्हें ज़ोर से पीछे धकेलते हुये अपनी चूची उनके मुँह से खींच कर बाहर निकाल ली !
होंठों पर ताज़ा सफ़ेद दूध लगे, आश्चर्यचकित आँखों से अपनी बहन - पत्नि को देखते हुये विजयवर्मन समझ नहीं पाएं कि अवंतिका ने उनके स्तनपान के आनंद में ऐसे भला विघ्न क्यूँ डाला, और बिना कुछ कहे या पूछे वापस से वो अवंतिका कि चूची कि ओर लपक पड़े, तो अवंतिका ने खिलखिलाकर शरारती हँसी हँसते हुये अपने दोनों हाथों कि हथेलीयों से अपनी दोनों चूचियों को ढंक लिया !!!
" बस भैया... और नहीं !!! ".
ब्याकुल विजयवर्मन भला कहाँ सुनने मानने वालें थें, उन्हें तो अपनी बहन का मीठा दूध मुँह लग चुका था, सो वो अवंतिका कि चूचियों को छिपाये उनके हाथों को ही चूमते चाटते हुये उनकी चूचियों को वापस से स्वतंत्र करने कि मूक मांग करने लगें !
बड़ी ही सहूलियत से अपने स्तन अपने हाथों में छुपाये अवंतिका ने अपना दायां पांव चित्रांगदा और विजयवर्मन के आपस में चिपके हुये पेट के बीच में डालकर नीचे चित्रांगदा कि चूत में घुसे विजयवर्मन के लण्ड को अपने पैर कि उंगलियों से टटोल कर देखा - लण्ड बिल्कुल सख़्त खड़ा हो चुका था !!!
" और दूध पीने नहीं मिलेगा भैया... इतना दूध पर्याप्त था आपके लिंग को पुनः निद्रा से जगाने के लिए !!! ". अपने भैया - पति के लण्ड के कड़ेपन कि भली भांति जाँच परख करने के उपरांत अवंतिका ने अपना पांव वापस से बाहर निकालते हुये कहा. " चलिए... भाभी कि योनि को और प्रतीक्षा मत करवाईये ! ".
अपनी बहन का रवैया देखकर विजयवर्मन समझ गएँ कि अगर उन्होंने चित्रांगदा को खुश नहीं किया, तो आज अवंतिका भी उन्हें अपनी योनि छूने तक नहीं देगी ! वैसे इसमें विजयवर्मन को कोई आपत्ति तो थी नहीं, मसलन चित्रांगदा को चोदे उन्हें ना जाने कितने दिन हो भी गएँ थें. और फिर अपनी सगी भाभी को उनके पतिदेव के सामने अनिच्छा से चोदने और उसी भाभी को अपनी अर्धांगिनी बनाकर प्रेम से चोदने में तो काफ़ी अंतर भी था ना !!!
विजयवर्मन ने आगे बढ़कर पहले अवंतिका के गाल पर एक चुम्बन जड़ दिया, फिर चित्रांगदा के ललाट को चूमा, और फिर धीरे धीरे उसकी जाँघों के बीच अपनी कमर हिलाने लगें. चित्रांगदा ने बिस्तर पर लेटे लेटे अपनी नंगी टांगें फ़ैला कर खोल ली, ताकि लिंगदेव योनिदेवी कि गुहा में आसानी से अपने मन मुताबिक अंदर बाहर खुलकर विचरण कर सकें.
विजयवर्मन ने मैथुनक्रिया कि गति तनिक बढ़ाई, तो लिंग और योनि के घर्षण से आनंदविभोर हुई चित्रांगदा ने अपनी आँखें मूंद ली और उन्हें अपनी बांहों में भरकर अपने हाथों से उनकी पीठ को सहलाने खरोचने लगी.
अंततः आज विजयवर्मन अपनी भाभी - पत्नि के साथ प्रेम भरा सहवास कर रहें थें, ये देखकर उल्लासित अवंतिका उनके कंधे और सिर को प्यार से सहला सहलाकर उन्हें चोदने के लिए उत्साहित करने लगी !
विजयवर्मन अब पूरी तरह से चित्रांगदा से लिपटकर उनकी चूचियों को अपने चौड़े छाती से दबाते मसलते रगड़ते हुये उन्हें पेलने लगें. अपनी भाभी कि धीमी सिसकियों, भैया कि तेज़ चलती साँसों , और लण्ड चूत के मिलन कि फच फच, गच गच कि मादक ध्वनि से अवंतिका मदमस्त होने लगी. उसका एक हाथ अपने आप उसकी नाभी और पेट से होता हुआ उसकी गदराई जाँघों के बीच सरक गया. उसने अपनी आँखें बंद कर ली और अपनी चूत को मसलने, रगड़ने लगी, फिर अपनी घनी झांटो को परे कर एक उंगली भीतर डाल कर अंदर बाहर अंदर बाहर करने लगी. कुछ क्षण पश्चात् जब अवंतिका ने अपनी आँखें खोली तो उन्होंने चित्रांगदा को चोद रहे विजयवर्मन को खुद को ताड़ते हुये पाया !
अवंतिका एकदम से लजा गई - उसके भैया - पति ने उसे रंगे हाथों हस्तमैथुन करते हुये जो पकड़ लिया था ! शर्माते हुये अवंतिका ने अपनी उंगली अपनी चूत से बाहर निकाल ली, तो विजयवर्मन उसकी योनिरस से गीली हो चुकी उंगली कि ओर ललचाई नज़रों से देखने लगें. विजयवर्मन कि मन:स्थिति समझते हुये अवंतिका अपनी वो उंगली उनके नाक के समीप ले गई, तो विजयवर्मन ने एक लंबी गहरी साँस लेकर चूत - मलाई कि गंध को सूंघा. मुस्कुराते हुये अवंतिका अपनी उंगली उनके होंठों पर फेरने लगी, तो विजयवर्मन ने अपने होंठ खोल दियें. अवंतिका ने अपनी उंगली उनके मुँह में डाल दी, विजयवर्मन आँखें बंद करके अवंतिका कि उंगली में लगा नमकीन योनिरस का स्वाद चखने लगें !!!
अवंतिका ने विजयवर्मन के कंधे को चूमा और फिर अपनी दाई टांग उनके ऊपर चढ़ा दी. अब चित्रांगदा के ऊपर चढ़े विजयवर्मन जहाँ उसे चोद रहें थें तो वहीँ अवंतिका अपनी एक टांग विजयवर्मन के कमर से लपेटे अपनी नंगी चूत उनके शरीर से घिस रही थी.
दो दो स्त्रीयों के मध्य फंसे विजयवर्मन के लिए अब ये सब असहनीय हो रहा था. जल्द ही उनकी सारी शालीनता जाती रही ! उन्होंने एक हाथ से चित्रांगदा कि बायीं चूची को पकड़ा और दूसरे हाथ से उसके सिर के लंबे केश, और अपनी पूरी शक्ति लगाकर उसकी चूत रौंदने लगें !
विजयवर्मन के भारी और बलिष्ठ शरीर के नीचे दबी पड़ी असहाय चित्रांगदा के लिए बिना हिले डूले बस टांगें पसारे उनके चोदन - थपेड़ों को सहते रहने के सिवाय और कोई चारा ना था !!!
जल्द ही चित्रांगदा और अवंतिका, दोनों का पानी गिरना शुरू हो गया. दोनों स्त्रीयां एक साथ अपने प्रेमी विजयवर्मन को बेतहाशा चूमने चाटने लगीं. चूत घिसते घिसते अपने ऊपर नियंत्रण खोकर अवंतिका ने विजयवर्मन के कमर पर ही पानी छोड़ दिया था और उनके शरीर से लिपट कर उनकी पीठ पर अपने दाँत गड़ा दियें. चित्रांगदा पुनः अपना बदन ऐंठते हुये कराहने लगी, उसका फिर से पानी निकलने वाला था ! विजयवर्मन ने अपना मुँह चित्रांगदा की गर्दन में छुपा लिया, और तेज़ी से उसे चोदने लगें ! विजयवर्मन के तीव्र चोदनक्रिया से अवंतिका समझ गई कि उनका वीर्य अब निकल जायेगा ! विजयवर्मन के झड़ने से पहले अवंतिका उनका लण्ड एक बार अपनी चूत में लेना चाहती थी, क्यूंकि ये विजयवर्मन का द्वितीय बार वीर्यस्खलन होने जा रहा था, और इसके बाद चोदने के लिए शायद उनका लण्ड खड़ा ही ना हो !!!
स्त्री व्यवहार जनित स्वार्थ के वशीभूत हो अवंतिका ने बिना किसी चेतावनी के अचानक से विजयवर्मन को चित्रांगदा के शरीर पर से धकेल दिया. विजयवर्मन इसके लिए बिल्कुल भी तैयार ना थें, उनका लण्ड छिटककर चित्रांगदा कि चूत से बाहर निकल आया और वो चित्रांगदा के बगल में ही सैया पर अपने पीठ के बल पलटकर जा गिरें. गनीमत ये थी कि चित्रांगदा का पानी विजयवर्मन से अलग होने के पहले ही निकल चुका था, सो वो वहीँ अपनी जाँघों के बीच अपनी चूत दबाये पेट के बल लेटकर तकिये में मुँह छुपाये झड़ने कि वजह से बदन में आये कंपन से उबरने कि चेष्टा करने लगी !
चित्रांगदा के शरीर को लाँघ कर अवंतिका अत्यंत चपलता से विजयवर्मन के खड़े लण्ड कि ओर लपकी, और अपनी टांगें चढ़ाकर उनके ऊपर बैठ गई. परन्तु तब तक देर हो चुकी थी !!!
दरअसल, अवंतिका ने विजयवर्मन को ठीक ऐसे समय पर चित्रांगदा के बदन से अलग किया था जब वो झड़ने के एकदम निकट थें. और अब अवंतिका जैसे ही उनके ऊपर चढ़ी, उनका खड़ा लण्ड उनके अपने पेट पर ही ज़ोर ज़ोर से फड़कते हुये वीर्य कि पिचकारी छोड़ने लगा. अवंतिका कामोत्तेजना के ऐसे मोड़ पर थी कि अब उसे अपने भैया - पति का माल गिर जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता था - उसे तो बस अब हर हाल में पूरज़ोर चुदना था !
विजयवर्मन के लण्ड से अभी वीर्य उबल ही रहा था कि अवंतिका ने उनका लण्ड अपनी मुट्ठी में पकड़कर अपनी जाँघों के मध्य घुसा लिया, अपनी गांड़ थोड़ी सी ऊपर उठाई, और फिर वापस से उनकी गोद में बैठ गई. सख़्त खड़ा झड़ता हुआ लण्ड अवंतिका के शरीर के भार के नीचे दबकर एकबारगी उसकी चूत के छेद को फ़ैलाता हुआ जड़ तक अंदर प्रवेश कर गया !!!
" अवंतिका... आअह्ह्हहहहहहह... मेरा लिंग !!! ". विजयवर्मन बिस्तर कि चादर को अपनी दोनों मुट्ठीयों में कसकर भींचते हुये अटकती हुई आवाज़ में गुर्रायें.
अवंतिका कि पनियाई हुई चूत कि कसी हुई छेद के अंदर घुसते ही विजयवर्मन के लण्ड को वो आराम मिला कि उनका बाकि का बचा खुचा वीर्य भी अंदर ही निकल पड़ा !
परन्तु अवंतिका कहाँ रुकने वाली थी !!!
विजयवर्मन के आहिस्ते आहिस्ते ढीले पड़ रहे लण्ड को अपनी चूत कि गहराईयों में ठूंसे हुये अवंतिका उनकी गोद में बैठे बैठे अपनी गांड़ ऊपर नीचे ऊपर नीचे करते हुये उन्हें चोदने लगी !
दो दो बार वीर्यपात हो जाने के कारणवश विजयवर्मन का लण्ड अब सिकुड़कर छोटा होने लगा था, उनके अंडकोष दुखने लगें थें. इससे पहले कि उनका लण्ड पूरी तरह से ढीला पड़कर अवंतिका कि चूत से फिसलकर बाहर निकल जाये, अवंतिका वापस से उनके लण्ड में पहले जैसा ना सही, परन्तु चोदने लायक तनाव लाना चाहती थी. अतः वो विजयवर्मन कि चौड़ी छाती पर लोटकर उनके चुचूक को अपने दाँत से काटने लगी !!!
पीड़ा से कराहते विजयवर्मन अभी छटपटा ही रहें थें कि चित्रांगदा ने उनके समीप आकर उनके मुँह में अपना स्तन दे दिया. चित्रांगदा अपने चरमोत्कर्ष से उबरकर अब शांत हो चुकी थी.
" राजकुमार के प्राण ही ना ले लीजियेगा अवंतिका... ". चित्रांगदा ने विजयवर्मन को अपनी चूची चूसाते हुये हँसकर कहा. " इन्हे अभी तो आजीवन हमारा इसी भांति साथ देना है !!! ".
विजयवर्मन के सीने पर अपने दाँत गड़ाना छोड़ अवंतिका भी हँस पड़ी और बोली.
" यौनक्रीड़ा के समय किसी पुरुष के प्राण जाते मैंने तो नहीं सुना है भाभी !!! ".
कुछ देर पहले जब विजयवर्मन चित्रांगदा को चोद रहें थें तो अवंतिका ने उसकी काफ़ी सहायता कि थी, सो अब चित्रांगदा कि बारी थी अवंतिका का ये एहसान चुकाने कि !
विजयवर्मन के मुँह में अपना स्तन दिए हुये चित्रांगदा उनकी बालों से भरी छाती को सहलाने लगी. इससे विजयवर्मन को कुछ हद तक आराम मिला, और वो किसी प्रकार अपने ऊपर बैठी अवंतिका कि चूत में अपना झड़ा हुआ लण्ड डाले यौन - मैदान में डटे रहें !
चित्रांगदा कि चूचियों से अवंतिका के स्तनों जैसा दूध भले ही ना निकल रहा हो, परन्तु चित्रांगदा कि चूची भी अवंतिका के वक्ष से कम मीठी और स्वादिष्ट ना थी. बारी बारी से विजयवर्मन चित्रांगदा कि दोनों चूचियों को लपक लपक कर मुँह में भरकर पीते चूसते रहें. जल्द ही उनका खाली हो चुका अंडकोष फिर से कसने लगा, और लण्ड का सुपाड़ा फूल गया !!!
विजयवर्मन के लण्ड में हल्का सा तनाव महसूस करते ही अवंतिका का चेहरा प्रसन्नता से खिल गया और वो ख़ुशी से चहकते हुये उनकी गोद में और भी ज़ोर ज़ोर से अपने चूतड़ पटकने लगी.
कामोत्तेजना फिर से वापस आ गई तो विजयवर्मन अब बड़े ही चाव से चित्रांगदा का दूध पीने लगें. गोद में बैठी अवंतिका के चूतड़ों कि हर एक थपेड़ से विजयवर्मन का लण्ड थोड़ा थोड़ा करके तनता गया, और फिर एक समय ऐसा आया जब उनका लण्ड पूर्ण रूप से ठनक कर खड़ा हुआ अवंतिका कि नाजुक बूर को भेदने लगा !!!
इधर चित्रांगदा अपनी नंगी जाँघों को आपस में धीरे धीरे घिसते हुये उनके बीच अवस्थित अपनी बूर को मलने लगी. चित्रांगदा को इस प्रकार उत्तेजित होता देख अवंतिका ने विजयवर्मन का एक हाथ पकड़कर चित्रांगदा कि टांगों के बीच घुसा दिया, और हँसकर बोली.
" ये हाथ केवल धनुष वाण और तलवार के उपयोग के लिए ही तो नहीं है ना भैया ??? ".
संकेत समझते ही विजयवर्मन ने अपने कठोर हाथ से चित्रांगदा कि चूत को दबाना सहलाना शुरू कर दिया, और फिर मुँह में भरे चित्रांगदा कि चूची के चुचूक को जैसे ही उन्होंने अपने दाँत से काटा, चित्रांगदा चिंहुक उठी.
" अअअअअ...मममम.... ससससस... हाय देवर जी !!! ".
चित्रांगदा का बदन अकड़ गया और उसकी बूर ने विजयवर्मन के हाथ में ही ढेर सारा पानी छोड़ दिया !
विजयवर्मन ने चित्रांगदा कि चूची को अपने मुँह से बाहर निकाल दिया और अपने ऊपर बैठी अवंतिका के घुटनों को सहलाने लगें. अवंतिका समझ गई कि उसके भैया - पति अब फिर से झड़ने वाले हैं !
विजयवर्मन कि गोद में जल्दी जल्दी चार पाँच बार उछल उछल कर अवंतिका ने झट से अपनी गांड़ थोड़ी सी ऊपर उठाई, तो उनका खड़ा लण्ड फिसल कर बाहर निकल आया. अपनी लंबी नरम उंगलियों को विजयवर्मन के लण्ड के गुलाबी सुपाड़े के चारों ओर लपेटकर अवंतिका ज़ोर ज़ोर से उनका हस्तमैथुन करने लगी !
विजयवर्मन कि आँखों कि पलकें उलट गईं और उनके पूरे शरीर में एक अजीब सी सनसनी दौड़ गई, उनका शरीर कड़ा पड़ गया, और उनके लण्ड से गाढ़े वीर्य का फव्वारा फूट पड़ा.
" हाय !!! ". विजयवर्मन का इतना उत्तेजना भरा चरमसुख देखकर चित्रांगदा हँस पड़ी.
अवंतिका कि जाँघे, पेट, नाभी, चूचियाँ, सभी, विजयवर्मन के वीर्य से भींग गएँ, वीर्य के कुछ छींटे तो उसके गर्दन और गालों तक भी जा छिटके थें ! विजयवर्मन के लण्ड को अपने हाथों से मसल मसल कर अपने बदन पर मन भर के झड़वाने के उपरांत अवंतिका हँसते हुये अपनी मुट्ठी में पकड़ा लण्ड चित्रांगदा कि ओर मोड़ कर बाकि का वीर्य चित्रांगदा के पूरे बदन पर छिड़कने लगी !
दोनों स्त्रीयां हँसती खिलखिलाती अपने पतिदेव के खड़े लण्ड के साथ खेलती उनके वीर्य से स्नान करतीं रहीं, और विजयवर्मन शय्या पर लेटे लेटे स्खलन का आनंद भोगते हुये छटपटाते रहें !!!
ये क्रीड़ा करीबन दस मिनट तक चली, जब तक कि अवंतिका और चित्रांगदा ने एक साथ विजयवर्मन का लण्ड अपनी मुट्ठीयों में पकड़ उसे निचोड़ निचोड़ कर वीर्य कि अंतिम बूंद तक भी बाहर ना निकाल ली !
अंततः विजयवर्मन अतिउत्तेजना के कारण बेहोश हो गएँ !!!
ना जाने कितने देर तक वो होश में नहीं थें, ये विजयवर्मन को याद नहीं, परन्तु जब पुनः उनकी आँख खुली तो उन्होंने अभी भी खुद को बिछावन पर नंगा लेटा हुआ पाया. हैरानी कि बात ये थी कि उनका लण्ड अभी भी पहले कि भांति ही खड़ा था, उसके तनाव में रत्ती भर भी कमी ना आई थी. उनके लाल सुपाड़े से वीर्य कि एक आखरी धार निकलकर बहते हुये उनके पेट पर गिर रही थी. पास ही बिस्तर पर पूर्ण नग्न अवस्था में अवंतिका और चित्रांगदा एक दूसरे के सामने अपनी टांगें खोले बैठी एक दूसरे को अपनी चूत दिखाते हुये धीमे स्वर में कुछ बातें करते हुये हँस रहीं थीं. विजयवर्मन ने तकिये पर से अपनी गर्दन उठाकर देखा - अवंतिका और चित्रांगदा कि फ़ैली हुई जाँघों के मध्य उन दोनों कि बूर पूरी तरह से फट चुकी थी. शायद दोनों स्त्रीयां इसी सम्बन्ध में बातचीत कर रही होंगी !!!
" अरे देवर जी... आप उठ गएँ ??? ". विजयवर्मन को होश में आया देख चित्रांगदा अपनी फटी हुई बूर को अपने हाथ से ढंकते हुये बोली.
" हम दोनों भी अब सोने ही जा रहें थें... बहुत रात्रि हो चुकी है भैया !!! ". अवंतिका ने भी अपनी टांगें आपस में सटाकर अपनी फटी हुई चूत छुपा ली.
" क्यूँ ??? और क्रीड़ा नहीं करनी ??? ". शरारती मुस्कान के साथ विजयवर्मन ने उठकर बैठते हुये कहा. " बहुत सताया आज आप दोनों ने मुझे !!! ".
विजयवर्मन कि ये बात सुनते ही अवंतिका और चित्रांगदा कि नज़र उनके खड़े लण्ड पर गई तो दोनों को उनकी शरारती मंसा समझते देर ना लगी !
" भैया नहीं !!! ". हँसते हुये अवंतिका बिस्तर पर उनसे दूर भागी.
परन्तु विजयवर्मन अत्यंत फुर्ती के साथ झपटकर चित्रांगदा को दबोचने में कामयाब हो गएँ. चित्रांगदा हँसते खिलखिलाते हुये उनके चंगुल से स्वयं को स्वतंत्र करने कि विफल चेष्टा करने लगी. बड़ी ही मजबूती से अपना एक हाथ चित्रांगदा कि पतली छरहरी कमर से लपेटे विजयवर्मन उसे शय्या पर से लगभग घसीटकर उठाते हुये नीचे ज़मीन पर ले गएँ.
" देवर जी बस... और मत करिये... ". चित्रांगदा हँसते हुये गिड़गिड़ाने लगी. " मेरी योनि कि दशा तो देखिये एक बार !!! ".
ज़मीन पर खड़े विजयवर्मन ने मुस्कुराते हुये अपने दोनों हाथों से चित्रांगदा के कूल्हे पकड़कर उसे ऊपर उठाया और अपनी गोद में बैठा लिया. अपनी कमर थोड़ी सी आगे ऊपर कि ओर करके उन्होंने चित्रांगदा कि कमर को ढीला छोड़ दिया तो चित्रांगदा कि गांड़ सरककर नीचे आ गिरी, और विजयवर्मन का खड़ा लण्ड उसकी फटी हुई बूर में सरसराकर घुस गया !
" हाय देवर जी.... आअह्ह्ह सससससससससस !!! ".
अपनी भाभी - पत्नि को अपनी गोद में उठाये, उसे चूमते हुये विजयवर्मन ज़मीन पर खड़े खड़े उसे चोदने लगें. शुरू में तो चित्रांगदा ने उनकी गोद से उतर भागने कि बहुत कोशिश कि, परन्तु विजयवर्मन के बलशाली बाहों कि पकड़ ही कुछ ऐसी थी कि वो पूर्णतः असफल रही. थक हारकर, आखिरकार विजयवर्मन के कंधों पर अपनी बाहों से सहारा लिए, अपनी टांगें उनके कमर से लपेटे, वो उनकी गोद में ऊपर नीचे उछलते हुये चुदवाने लगी !!!
प्रारम्भ में अवंतिका शय्या पर बैठी दूर से ही दोनों कि यौनक्रीड़ा देखती रही, और इस भय से उनके समीप नहीं गई कि कहीं चित्रांगदा कि तरह विजयवर्मन उसे भी जबरदस्ती पकड़कर चोद ना दें ! परन्तु कुछ समय पश्चात् किसी तरह साहस जुटाकर वो बिस्तर से उठी, और दोनों के पास जाकर खड़ी हो गई !
अवंतिका को पास खड़ा देखकर विजयवर्मन ने आगे बढ़कर उसे चूम लिया, और फिर से चित्रांगदा को चोदने में व्यस्त हो गएँ . अवंतिका विजयवर्मन कि पीठ, कन्धा, और कमर सहलाते हुये उन्हें चित्रांगदा भाभी को पेलते हुये देखती रही !
चित्रांगदा कि कांख में अपना मुँह घुसाए, उसकी सुगंध लेते, चूमते चाटते हुये, विजयवर्मन उसे बिना रुके गोद में उठाये चोदते रहें. करीब चालीस मिनट बाद उनके अंडकोष में वीर्य के बुलबुले बनने शुरू हो गएँ. इस दौरान चित्रांगदा अनगिनत असंख्य बार झड़ चुकी थी. उसकी चूत से निकला पानी उसकी खुद कि जाँघों को भींगाता हुआ विजयवर्मन के नंगे पैरों से बहते हुये नीचे ज़मीन पर फ़ैल रहा था.
इधर विजयवर्मन के अंडकोष में दबाव बढ़ते ही वीर्य उनके लण्ड से फफककर चित्रांगदा कि बच्चेदानी में भरने लगा !
चित्रांगदा अपना सिर पीछे कि ओर झटकते हुये अपने चूतड़ उचकाने लगी - उसका फिर से पानी गिर रहा था !
कुछ देर तक विजयवर्मन के शरीर से चिपके पड़े पड़े झड़ते रहने के बाद चित्रांगदा उनकी गोद से उतर गई, और किसी तरह लड़खड़ाते हुये चलकर शय्या तक पहुँची, परन्तु ऊपर चढने से पहले ही वहीँ ज़मीन पर बिस्तर के पास मूर्छीत होकर गिर पड़ी !!!
अवंतिका ने पीछे मुड़कर एक नज़र बेहोश पड़ी चित्रांगदा को देखा, फिर चुपचाप विजयवर्मन से लिपट पड़ी. कुछ देर तक एक दूसरे के आलिंगन में रहकर चुम्मा चाटी करने के पश्चात् विजयवर्मन अवंतिका कि जाँघों के बीच हाथ घुसाकर उसकी झांटदार बूर को कुरेदने लगें. इशारा समझकर अवंतिका ने ख़ुशी ख़ुशी अपनी मर्ज़ी से अपनी टांगें खोल दी. विजयवर्मन ने अपनी कमर थोड़ी नीचे झुकाकर अपना आधा खड़ा झड़ा हुआ लण्ड उसकी चूत में डाल दिया, और उसे धीरे धीरे चोदने लगें.
काफ़ी देर तक एक दूसरे से लिपटे खड़े खड़े सम्भोग करते रहने के बाद अवंतिका का पानी गिर गया. विजयवर्मन के लण्ड में तनाव तो आ गया था, परन्तु वो इतनी बार झड़ चुके थें कि इस बार उनका माल नहीं निकला. दूसरी ओर चूत से कुछ अधिक ही कामरस निकल जाने कि वजह से अवंतिका कि हालत भी अब ख़राब होने लगी थी.
" अब बस भी करिये भैया... ". अवंतिका ने हाँफते हुये अपनी गांड़ पीछे करके विजयवर्मन के लण्ड को अपनी चूत से बाहर निकाल फेंका.
विजयवर्मन को डर था कि कहीं चित्रांगदा कि तरह ही अवंतिका भी अत्यधिक चुदाई के कारण बेहोश ना हो जाये, तो उन्होंने भी उसे और चोदने कि ज़िद नहीं कि.
चित्रांगदा अब भी बेसुध पड़ी हुई थी. अवंतिका ने उनके मुँह पर पानी के छींटे मार कर उन्हें होश में लाया, और फिर विजयवर्मन के साथ मिलकर उन्हें उठाकर शय्या पर लिटा दिया.
अपनी दोनों पत्नियों को अगल बगल सुलाए, लेटे लेटे विजयवर्मन कुछ घड़ी उनसे इधर उधर कि बातें करतें रहें. अवंतिका और चित्रांगदा उनका बेचैन लण्ड सहला सहला कर उन्हें शांत करने लगीं. परन्तु जब लण्ड शांत होने कि बजाय और भी सख्त होकर फड़कने लगा, तो विजयवर्मन ने दोनों को फिर से एक बार चोदने कि इच्छा ज़ाहिर कि. परन्तु अवंतिका और चित्रांगदा ने मना कर दिया. दोनों बेचारीयों का बूर सूज कर लाल हो गया था, मानो शरीर का सारा रक्त उनके जननांगों में ही आ जमा हो ! चोदने के लिए व्याकुल हुये पड़े विजयवर्मन को जब कुछ ना सुझा, तो वो दोनों स्त्रीयों को गुदामैथुन करने के लिए बहलाने मनाने लगें. गांड़ के उस छोटे से छिद्र में इतना बड़ा मोटा लिंग प्रवेश कराने के विचार मात्र से ही अवंतिका और चित्रांगदा के बदन में सिहरन दौड़ गई, तो बहरहाल दोनों ने विजयवर्मन का ये प्रस्ताव हँसकर टाल दिया !!!
विजयवर्मन समझ गएँ कि अब उन्हें अशांत खड़ा लण्ड लिए ही सोना पड़ेगा !
भोर होने ही वाली थी, आखिरकार जब कोई तिकड़म काम ना आया तो विजयवर्मन ने अपनी ज़िद छोड़ ही दी, और तीनों उसी भांति नंगे एक दूसरे कि बाहों में लिपटे चिपके पड़े गहरी निद्रा में थककर सो गएँ.
उस दिन के बाद से प्रत्येक रात्रि अवंतिका और चित्रांगदा कि जुगलबंदी विजयवर्मन का लण्ड पूरी पूरी रात खड़ा रखती !!!
दोनों स्त्रीयां बिना किसी द्वेष या ईर्ष्या भाव के एक साथ मिल जुल कर अपने एकमात्र पतिदेव से सारी सारी रात चुदवाती. तीनों एक ही साथ एक ही शय्या पर एक ही कक्ष में सोते. केवल जब अवंतिका रजस्वला होती तो पाँच दिनों के लिए अलग कक्ष में सोती, तो सिर्फ चित्रांगदा और विजयवर्मन एक साथ होतें.
और ठीक उसी प्रकार जब चित्रांगदा का रज निकल रहा होता तो वो भी अलग कक्ष में अकेले सोया करती, और तब अवंतिका और विजयवर्मन एक साथ रात बिताते. इस तरह एक प्रकार से हर महीने विजयवर्मन को अपनी बहन और भाभी के साथ कम से कम पाँच दिन एकांत में बिताने का मौका भी मिल जाया करता था !!!...
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दो वर्षो के अंतराल में अवंतिका ने एक पुत्र को जन्म दिया, और चित्रांगदा ने एक साथ एक पुत्र तथा पुत्री को !
औपचारिकता के नाते ये समाचार महाराज नंदवर्मन तथा महारानी वैदेही को भी पहुँचाया गया, परन्तु उनकी ओर से कोई उत्तर ना आने पर ये बात स्पष्ट हो गई थी कि उन्होंने पूर्ण रूपेण अपने संतानो, अवंतिका और विजयवर्मन का परित्याग कर दिया था. जैसे जैसे समय पलायन करता गया, मानसिक भावनात्मक कष्ट के साथ ही सही, अवंतिका और विजयवर्मन ने ये तथ्य स्वीकार कर लिया !!!
इस दौरान वीर विजयवर्मन ने राजा ऋषभनंदन को उनके अनेकों अभियानों में प्रत्यक्ष रूप से सेना का नेतृत्व करते हुये राज्यविस्तार में उनकी सहायता कि. आगे चलकर उन्ही के प्रयासों से जीते हुये राजा ऋषभनंदन के अधीन राज्यों में से एक विशाल राज्य के राजसिंहासन पर राजकुमार विजयवर्मन सम्राट के रूप में विराजमान हुये, और अपनी दोनों पत्नियों, अवंतिका तथा चित्रांगदा, और दोनों पुत्रों और एक पुत्री के साथ रहने लगें !
अवंतिका ने विजयवर्मन को " भैया " बोलना नहीं छोड़ा, तो विजयवर्मन भी चित्रांगदा को " भाभी " कहकर ही सम्बोधित करते रहें. जीवन के इतने सारे उतार चढ़ाव से गुजरने के पश्चात् भी अपने मूल पारिवारिक संबंधों को स्मरण रखने का इससे उचित तरीका तथा सटीक उदाहरण और क्या हो सकता है !
ऐसे प्रेम प्रसंगों का वर्णन इतिहास में कम ही मिलता है... अनूठे और सफल प्रेम प्रसंगों का !!!
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