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मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam
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" मुझे आज्ञा दीजिये राजा ऋषभनंदन... ". महाराज नंदवर्मन ने कहा. " हम आपका आभार कैसे व्यक्त करें ? ".

दूसरे दिन महाराज नंदवर्मन ने अपने कक्ष में एक सभा बुलाई, जिसमें उनके अलावा, महारानी वैदेही, राजकुमारी अवंतिका, राजकुमार विजयवर्मन, चित्रांगदा, और स्वयं राजा ऋषभनंदन तथा उनके सेनापति कीर्तिमान शामिल थें.

" आपको मेरा आभार प्रकट करने कि कोई आवश्यकता नहीं राजन... ". राजा ऋषभनंदन नम्र स्वर में बोलें. " परन्तु अगर आप चाहते ही हैं, तो मैं आपको आज्ञा तो कदापि नहीं दे सकता, हाँ, अवश्य ही एक विनती करने कि इच्छा रखता हूँ ! ".

" निसंकोच कहें राजा ऋषभनंदन... ".

" राजन... आपके राजपुरोहित के कथनानुसार तो अब तक राजकुमार विजयवर्मन कि मृत्यु हो जानी चाहिए थी. परन्तु आपने स्वयं ही देख लिया है कि उनका कथन मिथ्या प्रमाणित हो चुका है... ". राजा ऋषभनंदन ने कहना शुरू किया. " राजकुमार विजयवर्मन अभी भी सकुशल हैं... इससे ईश्वर कि इच्छा सिद्ध नहीं होती तो क्या होता है, आप ही उत्तर दीजिये ! मैं नहीं कहता कि इन दोनों का कोई दोष नहीं... अवश्य ही हमारे समाज में भाई बहन का ऐसा सम्बन्ध अमान्य है. परन्तु इनका प्रेम सम्बन्ध अनूठा और पवित्र है, क्यूंकि स्वयं ईश्वर ने इन्हे जीवनदान देकर इनके प्रेम को सहमति प्रदान कि है राजन ! ऐसे में हम तुच्छ मनुष्य होते ही कौन हैं इनके जीवन का निर्णय लेने वाले ??? ".

" आप कहना क्या चाहते हैं राजा ऋषभनंदन... ". महाराज नंदवर्मन ने अवंतिका और विजयवर्मन कि ओर देखा, और फिर राजा ऋषभनंदन से बोलें. " स्पष्ट कहिये ! ".

" अवश्य ही राजन... ". राजा ऋषभनंदन ने सिर झुकाकर कहा. " मेरी केवल इतनी ही विनती है कि इन्हे इतनी बड़ी सजा ना दीजिये. इनका देशनिकाला स्थगित कर इन्हे पुनः अपने पुत्र तथा पुत्री के रूप में स्वीकार कर इनके विवाह को मान्यता प्रदान कीजिये, और इन्हे राजमहल में रहने कि अनुमति दीजिये !!! ".

" मुझे ये देख अत्यंत प्रसन्नता हुई राजा ऋषभनंदन, कि आप मेरे पुत्र और पुत्री कि कुशलता चाहतें हैं... ". महाराज नंदवर्मन ने गंभीर स्वर में कहा. " परन्तु आप जो मांग रहें हैं, वो संभव नहीं ! मेरा न्यायिक निर्णय अटल है !!! ".

" तनिक सोचिये राजन... ". राजा ऋषभनंदन नरम स्वर में बोलें. " आपके ज्येष्ठ पुत्र ने क्या किया !!! तुलनात्मक स्वरुप उसके सामने तो आपके इस छोटे पुत्र का दोष कुछ भी नहीं. आपने इन्हे युद्धभूमि में भी जाने कि आज्ञा नहीं दी. वरन इन्होने आपकी आज्ञा ना होते हुये भी हर्षपाल के सैनिकों से राजमहल के अंदर रहकर अकेले युद्ध करके अपने प्राणो कि चिंता ना करते हुये राज्य को बचाने का हर संभव प्रयास भी किया ! तनिक तो विवेक से काम लीजिये राजन... ".

" मुझे अपने निर्णय का कोई दुख नहीं राजा ऋषभनंदन... ". महाराज नंदवर्मन ने कहा. " परन्तु फिर भी मैं आपसे क्षमाप्रार्थी हूँ ! ".

" तो क्या यही आपका अंतिम निर्णय है राजन ??? ". राजा ऋषभनंदन ने पूछा.

महाराज नंदवर्मन ने महारानी वैदेही को देखा, और फिर बोलें.

" हमने इन्हें अपनी संतान कहलाने के अधिकार से मुक्त कर दिया है राजन... ".

" महारानी... आप तो एक माँ हैं... ". राजा ऋषभनंदन ने महारानी वैदेही से कहा. " आप तो इतनी कठोर ना बनिए. राजन को समझाइये... ".

महारानी वैदेही ने अवंतिका और विजयवर्मन को एक नज़र देखा, फिर बिना कोई उत्तर दिए अपना सिर नीचे झुका लिया.

राजा ऋषभनंदन समझ गएँ कि उनकी गुहार का यहाँ कोई मूल्य नहीं. उन्होंने अपनी पुत्री चित्रांगदा को, और फिर अवंतिका और विजयवर्मन को देखा, और महाराज नंदवर्मन से बोलें.

" जैसी आपकी इच्छा. फिर मैं अपनी पुत्री सहित राजकुमारी अवंतिका और राजकुमार विजयवर्मन को अपने राज्य ले जाने कि आज्ञा चाहूंगा !!! ".

" आप ऐसा नहीं कर सकतें राजा ऋषभनंदन... ". महाराज नंदवर्मन ने कहा. " आप अपनी पुत्री को अवश्य ले जाइये... परन्तु अवंतिका और विजयवर्मन को ले जाने कि आज्ञा देने में मैं असमर्थ हूँ ! "

" क्या मैं इसका पर्याय जान सकता हूँ राजन ??? ". राजा ऋषभनंदन ने पूछा.

" इन्हे देशनिकाला मिला है... ".

" सत्य है... यानि इन्हे इस राज्य से निष्कासित किया जा रहा है. परन्तु ये कहाँ जायेंगे, इसका निर्णय आपके हाथों में नहीं है राजन ! और फिर आपने इन्हे देशनिकाला कि सजा सुनाई है, अज्ञातवास कि नहीं !!! ".

" ये नियम के विरुद्ध है राजा ऋषभनंदन... ". महाराज नंदवर्मन का स्वर अनायास ही कठोर हो गया.

" नियम ??? ". राजा ऋषभनंदन मुस्कुरायें, अपने सेनापति कीर्तिमान कि ओर देखा, और फिर महाराज नंदवर्मन से कहा. " क्षमा कीजिये राजन, परन्तु नियम कि सुनें तो आपको तो हर्षपाल ने बंदी बना लिया था, आपकी सेना परास्त हो चुकी थी, आपके ज्येष्ठ पुत्र का वध करके हर्षपाल खुद को यहाँ का सम्राट घोषित कर चुका था. ऐसी परिस्थिति में हमने आपके राज्य को बचाया. आपके राज्य में हमारी सेना अभी भी भरी पड़ी है. ये राज्य अब आपका नहीं रहा राजन ! मैं चाहूँ तो आपको अपने अधीन कर स्वयं को एकाधिकारी सम्राट घोषित कर सकता हूँ !!! ".

" अपनी सीम ना लाँघीये राजा ऋषभनंदन ! ". कहते हुये महाराज नंदवर्मन अपने सिंहासन से उठ खड़े हुये.

ये देख सेनापति कीर्तिमान तुरंत अपनी म्यान से अपनी तलवार निकालते हुये आगे बढ़ें, तो राजा ऋषभनंदन ने उन्हें रोक लिया, और महाराज नंदवर्मन को देखते हुये मुस्कुराकर सख़्त स्वर में बोलें.

" ये बात सर्वदा स्मरण रखियेगा राजन, कि आपका राजसिंहासन छिन चुका था ! ".

महाराज नंदवर्मन चुपचाप से अपने सिंहासन पर पुनः बैठ गएँ.

" मै, कुम्भिकनरेश ऋषभनंदन, आपको आपका राज्य वापस सौंपता हूँ !!! ".

कहते हुये राजा ऋषभनंदन ने एक नज़र महाराज नंदवर्मन और महारानी वैदेही को देखा, और फिर अवंतिका, विजयवर्मन, और चित्रांगदा पर हल्की सी तीव्र दृष्टि दौड़ाकर तेज़ कदमो के साथ कक्ष से बाहर चलें गएँ. सेनापति कीर्तिमान ने अपनी तलवार पुनः अपने म्यान में रख ली, महाराज नंदवर्मन को एक बार देखा, और फिर वो भी अपने राजा के पीछे पीछे बाहर निकल गएँ...


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कुम्भिक राज्य में अवंतिका, विजयवर्मन, और चित्रांगदा का भव्य स्वागत किया गया, जब वो विजयी राजा ऋषभनंदन और उनकी सम्पूर्ण सेना के साथ वापस लौटें.

अवंतिका, विजयवर्मन, तथा चित्रांगदा अब यहीं राजमहल में रहने लगें.

कुछ दिनों के उपरांत एक उचित समय देख राजा ऋषभनंदन ने तीनों को किसी विशिष्ट विषय पर विचार विमर्श करने हेतु अपने कक्ष में आमंत्रित किया, और विजयवर्मन को सम्बोधित करते हुये बोलें.

" राजकुमार विजयवर्मन... मेरी आपसे एक प्रार्थना थी ! ".

" आप मुझे आज्ञा देंगे तो अधिक उचित होगा महाराज... ". विजयवर्मन ने विनम्रता से सिर झुकाकर कहा.

" राजकुमार... मैं अपनी पुत्री को इस प्रकार आजीवन विधवा नहीं देख सकता. ". राजा ऋषभनंदन ने चित्रांगदा कि ओर देखकर कहा. " मुझे अत्यधिक प्रसन्नता होगी अगर आप मेरी पुत्री चित्रांगदा को अपनी पत्नि के रूप में स्वीकार करें ! ".

" पिताश्री !!! ". अपने पिता के इस आकस्मिक प्रस्ताव पर चित्रांगदा ने चौंकते हुये अवंतिका कि ओर एक बार देख कर कहा. " ये आप क्या कह रहें हैं ??? ".

" पुत्री... तुम्हें इस अवस्था में देखते रहने कि मेरी विवशता कि पराकाष्ठा का आकलन मेरे सिवाय किसी और कि क्षमता के परे है !!! ".

" महाराज... ये मेरा सौभाग्य होगा कि मैं भाभी चित्रांगदा से विवाह करूँ ! ". विजयवर्मन ने अवंतिका और चित्रांगदा को देखा, फिर बोलें. " परन्तु मैं केवल अवंतिका से प्रेम करता हूँ. इस जीवन में उनके सिवाय मैं किसी और को अपने ह्रदय में स्थान नहीं दे सकता ! मैं सादर क्षमाप्रार्थी हूँ... ".

राजा ऋषभनंदन अपने हाथ बांधे कुछ सोचते हुये धीरे धीरे टहलने लगें.

" भैया... ये ना भूलिए कि आज आप, मैं, और हमारा प्रेम केवल मात्र भाभी और उनके पिताश्री कि वजह से जीवित है ! ". राजा ऋषभनंदन का मनोभाव आँकते हुये अवंतिका ने कहा. " ऐसे में हमारा क्या कर्त्तव्य है ये आपसे सटीक भला कौन जनता है ? हमें भी उनकी भावनाओ कि उपेक्षा नहीं करनी चाहिए ! ".

" नहीं अवंतिका... ". चित्रांगदा ने अवंतिका के कंधे पर हाथ रखकर उन्हें रोका. " राजकुमार और आप हमारे ऋणी नहीं !!! ".

" चित्रांगदा सही कह रही है... ". राजा ऋषभनंदन ने रुकते हुये विजयवर्मन से कहा. " आपका निर्णय किसी भी प्रकार के उपकार से प्रभावित नहीं होना चाहिए राजकुमार . ".

विजयवर्मन चुपचाप खड़े कुछ सोचने लगें.

राजा ऋषभनंदन टहलते हुये चित्रांगदा के समीप जा खड़े हुये, और पीछे मुड़कर विजयवर्मन को देखते हुये बोलें.

" वैसे ये सत्य है कि मेरी विनती स्वार्थमुक्त नहीं ! पर्याय ये है राजकुमार, कि चित्रांगदा के सिवाय मेरी और कोई संतान नहीं. जब तक वो आपके राजपरिवार कि कुलवधु थी, तो मुझे इस विषय में सोचने कि आवश्यकता नहीं पड़ी . परन्तु अब जब वो पुनः मेरी पुत्री के रूप में वापस मेरे परिवार का एक अंग बन गई है, तो मैं चाहता हूँ कि... ". राजा ऋषभनंदन थोड़ा रुकें, फिर कहा. " मैं चाहता हूँ कि वो हमें हमारे राज्य का उत्तराधिकारी दे !!! ".

" और फिर प्रेम तो विवाह के पूर्व भी हो सकता है ना भैया ??? ". अवंतिका ने चित्रांगदा को उनके कंधो से प्यार से पकड़ते हुये विजयवर्मन से कहा.

" ठीक है महाराज... ". विजयवर्मन ने चिंतित स्वर में कहा. " मुझे थोड़ा सोचने का अवकाश दीजिये ! ".

" अवश्य... अवश्य राजकुमार !!! ". आशा कि हल्की सी किरण मात्र से प्रसन्नचित होते हुये राजा ऋषभनंदन बोलें...


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RE: मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam - by usaiha2 - 24-07-2021, 06:47 PM



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