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मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam
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प्रथमत: कक्ष के द्वार पर टंगे परदे में एक साथ दो तीन तलवारें घुसी, फिर पूरा पर्दा ही फट कर चीथड़े चीथड़े होकर नीचे ज़मीन पर गिर पड़ा, इसके साथ ही परदे के चीथड़ों को अपने धूल धूसरित पैरों तले रौदते हुये एक साथ अनगिनत सैनिकों का एक पूरा जत्था ही कक्ष में वायु से भी तेज़ गति के साथ प्रवेश कर गया !!!

हर्षपाल के सैनिको के शरीर और तलवारों पर लगे खून के छींटे और धब्बे बता रहें थें कि बाहर उन्होंने मृत्यु का कैसा तांडव मचाया हुआ होगा !

इतने सारे सैनिकों को एक साथ कक्ष में प्रवेश करते देखकर अवंतिका और चित्रांगदा को भय से भी पहले साक्षात् मृत्यु के दर्शन हो गएँ. फेफड़ों में जितनी क्षमता थी, उतनी ताकत लगाकर दोनों एक साथ ज़ोर से चीख उठी, आँखे बंद कर ली, और एक दूसरे से लिपट पड़ी !!!

परन्तु अवंतिका के कक्ष में घुसपैठ करने वाले हर्षपाल के सैनिकों को ये ज्ञात नहीं था कि अंदर कोई साधारण सा सिपाही, कोई सैनिक, मंत्री, सेनापति, या राजा नहीं, वरन स्वयं विजयवर्मन उपस्थित हैं - वो विजयवर्मन जो वैसे तो मधुरभाषी हैं और कभी भी अनायास ही अपना स्वर ऊँचा करके बात भी नहीं करतें, परन्तु समय कि मांग हो तो अपने परिजनों कि रक्षा हेतु यमराज से भी भिड़ने से पीछे ना हटें, और इस समय स्पष्ट मायनों में अवंतिका और चित्रांगदा ही उनके परिजन थें !!!

अवंतिका और चित्रांगदा को जब अनुभूति हुई कि उनकी ओर आती हुई शत्रु सेना कि लहर अचानक से थम गई है, तो दोनों ने साहस करके अपनी आँखे धीरे धीरे खोली !

उनके सामने विजयवर्मन का भारी शरीर अभी भी अडिग खड़ा था. वो अपने स्थान से एक इंच तक नहीं हिले थें. रक्त से सनी उनकी तलवार हवा में उन्नत उठी हुई थी. उनके सामने ज़मीन पर तीस सैनिकों कि कटी फटी निर्जीव लाशें पड़ी हुई थीं. ये हर्षपाल के वो तीस सैनिक थें जिन्होंने कक्ष में प्रवेश करने के उपरांत उन तीनों कि ओर सबसे पहले बढ़ने का असीम साहस दिखाया था !!!

एक ही स्थान पर खड़े खड़े जब विजयवर्मन ने इतने सारे सैनिकों को पलक झपकते ही मौत के घाट उतार दिया, तो उन सैनिकों के पीछे घुसने वाले सैनिक खुद ब खुद ठिठक कर रुक गएँ ! भय से थर्राते हुये सैनिकों के तलवारों पर उनकी हाथों कि पकड़ ढीली पड़ने लगी. विस्मय से बाहर निकल आई उनकी आँखे कभी नीचे पड़े हुये उनके मरे हुये साथी सैनिकों को देखते, तो कभी सामने खड़े पुरुष को, जिसका नाम विजयवर्मन था !!!

हर्षपाल के ये सैनिक निडर थें या नहीं, ये तो समझ पाना कठिन था, परन्तु इतना तो स्पष्ट था कि वो वफ़ादार और स्वामीभक्त अवश्य ही थें, क्यूंकि अगर ऐसा ना होता तो फिर अपनी नियति ज्ञात होते हुये भी वो अपने सामने खड़ी मृत्यु के आलंगन को आगे कदम ना बढ़ाते ! उनकी मुट्ठीयों में थमी तलवार पर उनकी पकड़ फिर से जम गई, और सारे सैनिक एक साथ विजयवर्मन के ऊपर टूट पड़ें !!!

अवंतिका और चित्रांगदा ने पुनः अपनी आँखे बंद कर ली.

अगले कुछेक क्षणों तक अपने पैर ज़मीन पर एक ही जगह अडिग टिकाये हुये मात्र अपने हाथ और उसमें थमी तलवार को हवा में लहराते हुये विजयवर्मन अपनी ओर आ रहे हर्षपाल के सैनिकों को काटते रहें. उन्हें उनकी जगह से हटाना तो दूर, उन्हें अब तक कोई सैनिक स्पर्श भी ना कर पाया था. पूरे कक्ष कि ज़मीन सैनिकों कि लाशों और लाल रक्त कि छोटी सी नदी से भर गया !!!

एक के बाद एक सैनिकों का झुंड अंदर आता गया, परन्तु केवल अपनी मृत्यु से भेंट करने !

ना हिंसा, ना द्वेष, ना भय, ना घृणा, चेहरे पर कोई भी भाव लिए बिना विजयवर्मन शत्रु सेना का वध करतें गएँ !

बिजली से भी तेज़ गति से हवा में लहराती उनकी तलवार से और भी ना जाने कितने शत्रु धराशायी होतें, परन्तु तभी अचानक से विजयवर्मन कि कलाई एक मजबूत मुट्ठी कि जकड़ में आ गई, तो उनकी तलवार का वार रुक गया. इतने ताकतवर हाथ कि पकड़ आज तक विजयवर्मन ने महसूस नहीं कि थी. उनकी ओर बढ़ रहे सारे सैनिक भी रुक गएँ, तो विजयवर्मन ने सामने अपनी नज़रें उठाकर अपने इस सशक्त शत्रु को देखा.

क्रूर हर्षपाल से विजयवर्मन कि ये पहली मुलाक़ात थी !!!

सिर से लेकर पांव तक लोहे के कवच से सुसज्जित चौड़े शरीर वाले हर्षपाल ने विजयवर्मन कि आँखों में आँखे डालकर कहा.

" आप चाहें तो पूरा दिन हमारे सैनिकों का वध कर सकतें हैं राजकुमार, और हमें पूरा विश्वास है कि वो आपको हाथ तक ना लगा पाएंगे. परन्तु जब आपकी मृत्यु तय है तो फिर हम अपने वीर सैनिकों कि संख्या मात्र यूँ ही कम क्यूँ होने दें ??? ".

विजयवर्मन जब कुछ ना बोलें तो हर्षपाल ने धीरे से उनका हाथ और हाथ में थमी हुई तलवार को नीचे करते हुये कहा.

" अपना भाग्य स्वीकार करो राजकुमार ! हम वचन देते हैं कि इन स्त्रीयों को ना ही हम और ना ही कोई और स्पर्श करेगा !!! ".

स्त्रीयों को ना छूने वाली हर्षपाल कि बात मानकर विजयवर्मन थोड़े शांत हुये और उन्होंने अपनी तलवार नीचे कर ली.

" धन्यवाद राजकुमार... ". हर्षपाल ने मुस्कुराते हुये सिर झुकाकर कहा, और पीछे मुड़कर अपने सैनिकों को इशारा किया.

कपटी हर्षपाल कि चाल जब तक विजयवर्मन समझ पाते, तब तक देर हो चुकी थी !

हर्षपाल के पीछे से चार सैनिक निकल कर आगे बढ़ें, और दौड़ते हुये विजयवर्मन को पार करके अवंतिका और चित्रांगदा कि ओर लपकें !!!

अवंतिका और चित्रांगदा चीख पड़ी.

स्थिति का आकलन करते ही विजयवर्मन अत्यंत तीव्र गति से अपने पैरों पर पीछे मुड़े, और एक ही वार में झटके से अपनी तलवार चलाई !

अवंतिका और चित्रांगदा कि ओर बढ़ रहे चारों सैनिकों का एक एक हाथ उन दोनों को स्पर्श करने से पहले ही सूखी लकड़ी कि भांति कटकर ज़मीन पर गिर पड़ा, और चारों घायल लहूलुहान सैनिक वहीँ ज़मीन पर गिरकर छटपटाने लगें.

" अरे मूर्ख, पहले इसे पकड़ो ! ". हर्षपाल ने ज़ोर से चिल्लाते हुये विजयवर्मन कि ओर इशारा किया.

ध्यान भटक जाने कि वजह से विजयवर्मन इसके लिए तैयार ना थें. सैनिकों के एक पूरे झुंड ने उन्हें धर दबोचा तो उनके हाथ से उनकी तलवार छूटकर नीचे ज़मीन पर गिर गई. विजयवर्मन के काबू में आते ही कुछ सैनिकों ने अब अवंतिका और चित्रांगदा को भी पकड़ लिया, और तीनों को एक साथ हर्षपाल के सामने ला खड़ा किया !

" हमारे पिताश्री कहाँ हैं हर्षपाल ??? ". सैनिकों के हाथों बंधे खड़े विजयवर्मन ने शांत होकर पूछा.

" महाराज हर्षपाल कहो राजकुमार !!! अब हम ही आपके राजा हैं. मेरा तात्पर्य है कि जितनी देर भी आप जीवित हैं, उतनी देर तक तो अपने राज्य के इस नये राजा का सम्मान करें . और नंदवर्मन के बारे में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं ! हमें तो युद्धभूमि में जाने कि आवश्यकता ही नहीं पड़ी ! हाँ... आपकी माताश्री को अवश्य ही बंदी बना लिया गया है ! ". हर्षपाल ने हँसते हुये कहा.

" क्या चाहिए तुम्हें ??? ".

" आपको नहीं लगता कि हमसे ये प्रश्न करने का समय अब निकल चुका है राजकुमार ? ". हर्षपाल ने अवंतिका कि ओर देखते हुये ब्यंग किया.

तभी कक्ष में देववर्मन ने प्रवेश किया !

" भैया ??? कहाँ थें आप ??? ". अपने बड़े भाई को इस प्रकार सकुशल और जीवित देख ख़ुशी से विजयवर्मन चिल्ला उठें.

" लीजिये राजकुमार... आपके ज्येष्ठ भ्राता भी आ गएँ, अब उन्ही से सारा समाचार पूछ लीजिये ! " हर्षपाल ने कहा, फिर देववर्मन से बोलें " राजा नंदवर्मन जीवित हैं या... ".

" युद्धभूमि में उन्हें बंदी बना लिया गया है मित्र ! ". देववर्मन ने सिर झुकाकर हर्षपाल से कहा.

" भैया ??? आप... आप इस अधम के साथ ??? ". विजयवर्मन के तो मानो पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई हो.

अवंतिका और चित्रांगदा ने एक दूसरे को देखा तो चित्रांगदा ने अपनी नज़रें नीचे कर ली.

" और हाँ राजकुमार विजयवर्मन... हमने आपसे मिथ्या कहा था. " . हर्षपाल ने देववर्मन को अपने पास बुलाकर उनके कंधे पर हाथ रखते हुये विजयवर्मन से कहा. " इस राज्य के नये सम्राट हम नहीं, देववर्मन हैं !!! ".

देववर्मन ने सिर झुकाकर अपनी कृतज्ञता ज़ाहिर की.

" केवल मात्र एक राजसिंहासन के लिए ??? ". क्षोभ और घृणा से भरे विचलित स्वर में विजयवर्मन ने कहा.

" अपने ज्येष्ठ भ्राता को गलत ना समझिये राजकुमार... ". हर्षपाल ने अवंतिका की ओर इशारा करते हुये कहा. " ये सब राजसिंहासन की लालसा के फलस्वरुप नहीं, बल्कि इस निर्लज्ज स्त्री की वजह से हुआ है !!! ".

विजयवर्मन ने एक बार अवंतिका को देखा और फिर देववर्मन को.

हर्षपाल धीमे कदमो से चलते हुये अवंतिका के समीप जा खड़े हुये, और गर्दन घुमाकर पीछे खड़े देववर्मन से कहा.

" अत्यंत साधारण दिखने वाली इस स्त्री में ऐसा क्या है जो इसका अपना ही भाई इसका प्रेमी बन गया ??? ये जानने को हमारा ह्रदय व्याकुल हो रहा है मित्र देववर्मन. तनिक अपनी छोटी बहन के वस्त्र तो उतारिये !!! हमने राजकुमार विजयवर्मन को वचन दिया है की हम इन्हे स्पर्श नहीं करेंगे ! ".

" जैसी आपकी आज्ञा मित्र हर्षपाल ! ". कहते हुये देववर्मन आगे बढ़ें, फिर रुक गएँ, और बोलें. " वैसे क्षमा करें महाराज, परन्तु ये स्त्री अब अशुद्ध हो चुकी है. ये अब आपके किस काम की ??? ".

" सत्य वचन मित्र ! ". हर्षपाल ने सहमति जताई, फिर कुछ सोचकर बोलें. " परन्तु आप चाहें तो अपनी बहन को पाने की लालसा आज पूरी कर सकतें हैं... आपको भी इससे प्रेम था ना ??? ".

" प्रेम नहीं मित्र... एक समय था जब इस स्त्री के लिए मेरे मन में कामवासना की अग्नि सदैव ही मुझे उद्विग्न किया करती थी... दिन रात ! परन्तु अब इस स्त्री के लिए मेरे मन में केवल घृणा और द्वेष है ! ".

हर्षपाल ने बिना कुछ कहे अपना सिर हिलाकर देववर्मन की भावनाओं को समझने का संकेत दिया. अब वो धीरे धीरे चलते हुये चित्रांगदा के समीप पहुंचे और देववर्मन की ओर देखकर पूछा.

" और इस स्त्री के बारे में आपके क्या विचार हैं मित्र ? ".

" जैसा की मैंने कहा था महाराज, इसे अपनी दासी बनाकर इसका उद्धार करें !!! ". देववर्मन बोलें.

आंसुओं से भरी क्रोधित नज़रों से चित्रांगदा ने अपने पति देववर्मन को देखा, परन्तु कुछ बोली नहीं !

हर्षपाल अपना चेहरा चित्रांगदा के मुँह के एकदम समीप लेजाकर उसे ध्यान से देखते हुये बोलें.

" आपने मिथ्या कहा था मित्र देववर्मन... ".

" ये आप क्या कह रहें हैं मित्र ??? ". देववर्मन ने घबराकर पूछा.

" और नहीं तो क्या ? आपकी पत्नि अत्यंत सुंदर है, हमारी दासी बनने लायक तो बिल्कुल भी नहीं... ये तो इनका अपमान होगा ! ". हर्षपाल ने थोड़ा रुककर धीमे स्वर में कहा. " इन्हे तो हमारे राज्य की महानगरी के सबसे प्रसिद्ध वेश्यालय में स्थान मिलना चाहिए, ताकि हमारी नगरी के सारे नागरिक इनके रूप यौवन का समान रूप से भोग कर सकें !!! ".

" जैसा आप उचित समझें महाराज... आपका इसे जीवनदान देना ही काफ़ी है ! ". देववर्मन ने कहा.

देववर्मन की बात सुनकर हर्षपाल एकदम से ठहाका मारकर हँस पड़ें. वो स्वयं और उनके सैनिक भी इस बात से इतने प्रसन्न हुये की उन्हें चित्रांगदा कि अगली हरकत दिखाई ही नहीं दी.

चित्रांगदा ने पूरी शक्ति के साथ अपना दायां हाथ सैनिकों कि गिरफ्त से झटक कर छुड़ा लिया, और अपनी कमर में खोसा हुआ अपना छोटा सा चाकू बाहर निकाला, और हर्षपाल के चेहरे पर एक भरपूर वार किया !!!

अचानक से हुये इस हमले से तिलमिलाकर हर्षपाल ने तुरंत अपना चेहरा अपने हाथों से ढंक लिया और दर्द से चिल्लाते हुये लड़खड़ाकर पीछे हट गएँ.

सैनिकों ने वापस से चित्रांगदा को धर दबोचा और उनका खून से सना हुआ चाकू नीचे ज़मीन पर गिर पड़ा.

" आप ठीक तो हैं ना मित्र !!! ". घबराये हुये देववर्मन ने दौड़कर हर्षपाल को थाम लिया, और उनके हाथ उनके चेहरे पर से हटाते हुये उनका घाव देखा.

हर्षपाल के दाएं जबड़े और गाल से होते हुये चाकू का एक लम्बा, सीधा, गहरा चीरा उनकी नाक को पार करके ऊपर बाएँ तरफ उनके माथे तक गया था. पूरा चेहरा खून से लथपथ हो चुका था. बस उनकी बायीं आँख किसी प्रकार से बच गई थी.

" चलो ये भी अच्छा है मित्र... शरीर पर कोई घाव तो लगा. "
अपने आप को संभालते हुये हर्षपाल ने क्रूरता भरी हँसी हँसते हुये अपने रक्तरंजीत दोनों हाथों को वहाँ मौजूद सभी लोगों को दिखाते हुये कहा. " वर्ना लोग समझते कि हमने ये राज्य बिना किसी परिश्रम के छल कपट से जीता है !!! ".

" बहुत हुआ मित्र... ये खेल अब समाप्त हो ! ". देववर्मन ने अपनी तलवार म्यान से निकालते हुये अवंतिका और विजयवर्मन कि ओर संकेत करके कहा. " आज्ञा हो तो इन दोनों प्रेमीयों को ईश्वर के पास भेंज दूँ !!! ".

" अपने भाई बहन का वध करने के लिए आपको हमारे आदेश कि प्रतीक्षा करने कि कोई आवश्यकता नहीं मित्र देववर्मन... वैसे भी अब तो आप ही यहाँ के सम्राट हैं !!! ". हर्षपाल ने पास खड़े अपने एक सैनिक के वस्त्र पर अपने लहूलुहान हाथ पोछते हुये कहा.

देववर्मन अपनी तलवार लेकर आगे बढ़ें तो चित्रांगदा ने रोते हुये विनती कि.

" सबकुछ तो अब आपका ही है देववर्मन. बस इनके प्राण ना लीजिये ... इतनी घृणा क्यूँ ??? "

अपनी पत्नि कि बात अनसुनी कर देववर्मन आगे बढ़ें तो हर्षपाल ने उन्हें रोकते हुये कहा.

" मित्र... कम से कम इन्हे अपने चेहरे पर कौतुहल लेकर तो मृत्यु का आलिंगन ना करने दीजिये, आखिर ये आपके परिजन हैं. मरने से पूर्व इन्हे पूरा अधिकार है सच्चाई जानने का... ".

फिर अवंतिका और विजयवर्मन को देखते हुये बोलें.

" आपके राज्य कि सेना अत्यंत समर्थ है. हम तो क्या, कोई भी उन्हें सीधे युद्ध में पराजित नहीं कर सकता. आपके ज्येष्ठ भ्राता देववर्मन ने ना सिर्फ हमारी ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया, बल्कि हमारी मित्रता के पुरस्कार स्वरुप हमारे लिए राजमहल का गुप्त द्वार भी खोल दिया, ताकि हम और हमारी सेना अंदर प्रवेश कर सकें ! और देखिये... परिणाम आपके सामने है !!! "

अवंतिका और विजयवर्मन ने अविश्वास और घृणा से अपने भाई देववर्मन को एक नज़र देखा.

चित्रांगदा का चेहरा लज्जा और क्रोध से लाल हो गया, परन्तु उनके चेहरे के भाव बता रहें थें कि उन्हें ये बात जानकार कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ था.

देववर्मन ने हर्षपाल कि ओर देखकर एक बार सिर झुकाया.

" हम आपके ऋणी हैं मित्र देववर्मन ! ". कहते हुये हर्षपाल देववर्मन कि ओर बढ़ें. " हमें अपना आभार व्यक्त करने का मौका दीजिये ! ".

हर्षपाल कि बात सुनकर देववर्मन ने घमंड से अपनी गर्दन ऊपर कर ली, मानो उन्होंने कोई अत्यंत विशाल कार्य किया हो.

कक्ष में उपस्थित किसी भी व्यक्ति के कुछ समझ पाने से पहले ही हर्षपाल ने म्यान से अपनी तलवार निकाली और बाघ कि सी तेज़ गति से देववर्मन कि गर्दन पर वार कर दिया !!!

अपने ऊपर हुये इस आकस्मिक हमले से देववर्मन संभल ना पाएं और अपने पीठ और सिर के बल ज़मीन पर गिर पड़ें. उनकी गर्दन में गहरा घाव हुआ था, परन्तु सिर धड़ से अलग नहीं हुआ था. देववर्मन अपने दोनों हाथों से अपनी गर्दन का घाव दबाकर रक्त रोकने का असफल प्रयास करने लगें. उनके हाथों कि पकड़ से होते हुये खून का फव्वारा ऊपर कि ओर छूटने लगा, और उनके शरीर को भींगोते हुये पूरे ज़मीन पर फ़ैलने लगा !

" भैया !!! ". विजयवर्मन के मुँह से निकला.

अवंतिका और चित्रांगदा एक साथ चीख पड़ी और अपनी आँखे बंद कर ली !

अपनी खून से सनी तलवार ज़मीन पर घिसटते हुये हर्षपाल धीमे कदमो से चलते हुये घायल देववर्मन के करीब पहुँचे, और उनके पास बैठ गएँ.

" हर्ष... हर्षपाल !!! आखिर क्यूँ ??? ". अटकती हुई साँसों को किसी प्रकार काबू में करके देववर्मन ने फटी आँखों से हर्षपाल को देखते हुये पूछा.

" मन में कोई बैर ना रखियेगा मित्र देववर्मन... हो सके तो हमें क्षमा कर दीजियेगा ! ". हर्षपाल ने दुखी सा मुँह बनाते हुये कहा. " परन्तु हम आप पर भरोसा नहीं कर सकतें. जो व्यक्ति अपने परिवार, अपने राज्य का ना हुआ, वो भला हमारा क्या होता !!! ".

देववर्मन को वहीँ ज़मीन पर मरता हुआ छोड़कर हर्षपाल उठें, और विजयवर्मन के पास जाकर कहा.

" यानि हमने सत्य ही कहा था राजकुमार. अब लगता है इस राज्य का कारोभार हमें ही संभालना पड़ेगा !!! ". फिर ज़मीन पर घायल पड़े देववर्मन कि ओर उंगली दिखाकर बोलें. " और देखिये, राजा होने का प्रथम कर्तव्य भी हमने पूरा कर दिया, इस राजद्रोही को सजा देकर ! ".

" महाराज... महाराज... क्षमा महाराज... ". दर्द से छटपटाते देववर्मन के समीप खड़े एक सैनिक ने कहा. " ये तो अभी भी जीवित है ! ".

" पता है राजकुमार... लोग हमें दयालु राजा कहकर क्यूँ बुलाते हैं ??? ". हर्षपाल ने अपने उस सैनिक कि ओर देखा, और फिर विजयवर्मन कि आँखों में देखते हुये कहा. " क्यूंकि हम अपने शत्रु को सदैव एक ही बार में समाप्त कर देतें हैं, उसे तड़पाते नहीं ! ".

हर्षपाल चलकर ज़मीन पर गिरे पड़े असहाय देववर्मन के समीप गएँ, और उन्हें एक नज़र देखा. देववर्मन ने अभी तक अपने हाथ अपनी गर्दन से नहीं हटाए थें, खून का बहना ज़ारी था. मृत्यु के भय से उनकी आँखे बाहर निकल आई थीं और उनके मुँह से ऐसी आवाज़े निकल रहीं थीं, मानो उनके गले में कुछ फंसा हुआ हो.

हर्षपाल ने मुड़कर एक एक नज़र चित्रांगदा, विजयवर्मन, और अवंतिका को देखा, और फिर दोनों हाथों से अपनी तलवार हवा में अपने सिर के ऊपर तक उठाकर तलवार का नुकिला मुँह देववर्मन कि दाई आँख में घोप कर उनकी जीवनलीला एक ही बार में समाप्त कर दी !!!

अवंतिका और विजयवर्मन ने अपना अपना चेहरा तुरंत दूसरी ओर घुमा लिया, परन्तु चित्रांगदा चेहरे पर बिना कोई भाव लिए ये निर्मम दृश्य देखती रही !!!

मृत देववर्मन के रक्त के छीटों से सने हर्षपाल ने देववर्मन के आँख से अपनी तलवार खींचकर बाहर निकाली, और वापस से आकर अवंतिका और विजयवर्मन के सामने खड़े हो गएँ, और कहा.

" इच्छा तो हमारी बहुत हो रही है कि या तो हम पहले बहन का वध करें और भाई को देखने दें, या फिर भाई को मौत के घाट उतारें तो बहन देखे ! परन्तु अगर हमने ऐसा किया तो हमारी दयावान सम्राट कि छवि धूमिल हो जाएगी. और फिर हम इतने कठोर भी तो नहीं... ".

हर्षपाल कि बात बीच में ही काटकर चित्रांगदा ज़ोर से रोते गिड़गिड़ाते हुये चिल्ला पड़ी.

" ऐसा अनर्थ ना करो... इन्हे जीवनदान दे दो हर्षपाल ! मैं आजीवन अपनी इच्छा से आपकी दासी, आपकी नगरवेश्या बनकर रहूंगी... परन्तु इन्हे छोड़ दो... ये दोनों अभी के अभी ये राज्य छोड़कर चले जायेंगे... ऐसा ना करो हर्षपाल !!! ".

" अपने ऊपर आने वाले संकट के बारे में सोचो चित्रांगदा... ". हर्षपाल ने मुस्कुराते हुये चित्रांगदा कि ओर देखकर कहा. " दो दिनों बाद तुम खुद पछताओगी कि हमने तुम्हें जीवित क्यूँ रखा !!! ".

फिर हर्षपाल ने वापस से अवंतिका और विजयवर्मन कि ओर मुड़कर कहा.

" तो हमने ये तय किया है कि आप दोनों को हम एक साथ मृत्यु प्रदान करेंगे, ताकि ना भाई को बहन का और ना ही बहन को भाई का कष्ट देखना पड़े ! इतना तो हम कर ही सकतें हैं !!! ".

अवंतिका और विजयवर्मन को पकड़ रखे सैनिकों को हर्षपाल ने संकेत दिया, तो सैनिकों ने तुरंत दोनों को धकेल कर ज़मीन पर उनके घुटनों के बल गिराकर बैठा दिया !

" हर्षपाल... मेरी विनती है तुमसे... इन्हे मत मारो... इन्हे मारकर तुम्हें क्या मिलेगा ??? क्या तुम्हारे अपमान का प्रतिशोध अभी भी पूरा नहीं हुआ ??? ". चित्रांगदा ने रोते बिलखते हुये अवंतिका और विजयवर्मन को बचाने का अंतिम प्रयास किया.

परन्तु अवंतिका और विजयवर्मन को पता था कि चित्रांगदा कि गुहार सुनने वाला अब वहाँ कोई ना था, वो बेचारी तो बस खुद को दिलासा दे रही थी कि उसने अपनी असहाय ननद और देवर के प्राण बचाने का हर संभव प्रयास किया !

" मुझे क्षमा कर दीजिये भाभी... ". विजयवर्मन ने गर्दन घुमाकर चित्रांगदा को देखते हुये कहा. " मैं आपकी रक्षा नहीं कर सका !!! ".

कोई और उपाय ना देखकर हार चुकी चित्रांगदा फफक फफक कर रो पड़ी !

" हमारा साथ बस यहीं तक का था भाभी... ". आँसुओ से डबडबाती आँखों से मुश्किल से अपनी भाभी को अंतिम बार निहारते हुये अवंतिका ने कहा. " मैं ईश्वर से प्राथना करुँगी कि अगले जनम में हम दोनों सगी बहनों के रूप में जन्म लें !!! "

चित्रांगदा ने सुबकते सुबकते अपने आंसुओं को किसी प्रकार रोककर सिर हिलाकर अवंतिका कि बात पर स्वीकृती ज़ाहिर कि.

हर्षपाल ने कुछ सोचकर चित्रांगदा को पकड़ रखे सैनिकों को इशारा किया, तो उनमें से एक सैनिक ने नीचे ज़मीन पर चित्रांगदा का गिरा हुआ चाकू अपने पैर से ठोकर मारकर वहाँ से दूर सरका दिया. हर्षपाल ने ऐसा इसलिए करवाया था कि कहीं चित्रांगदा आवेश में आकर आत्महत्या कि चेष्टा ना करे !!!

हर्षपाल का अगला संकेत अवंतिका और विजयवर्मन को पकड़ रखे सैनिकों के लिए था. आदेश मानकर उन सैनिकों ने अवंतिका और विजयवर्मन के दोनों हाथ उनके पीठ पर मोड़ कर उन्हें सख़्ती से जकड़ लिया और उन्हें उनकी गर्दन झुकाने पर विवश कर दिया !

" अगर कोई अंतिम इच्छा हो तो बताने का यही उचित समय है !!! ". हर्षपाल ने अपनी उंगलियों से अपनी तलवार कि धार कि जाँच करते हुये कहा.

" तुमसे क्या मांगना हर्षपाल... ". विजयवर्मन ने अपनी नज़रें ऊपर उठाकर हर्षपाल को देखते हुये व्यंग्य से मुस्कुराकर कहा. " अब तो हम साक्षात् ईश्वर से मिलने वाले हैं !!! ".

चाकू से कटे हुये रक्तरंजीत घाव वाले हर्षपाल के चेहरे पर एक तीरछी मुस्कुराहट खेल गई. अवंतिका और विजयवर्मन के बगल में आकर उसने अपनी तलवार ऊपर उठा ली और इस भांति तैयार होकर खड़ा हो गया कि एक ही वार में दोनों भाई बहन के सिर उनके धड़ से अलग हो जायें !

चित्रांगदा ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमाकर अपने कंधे में छुपा लिया.

पास पास घुटनों के बल बैठे अवंतिका और विजयवर्मन ने अंतिम बार अपनी गर्दन घुमाकर एक दूसरे को देखा !

अवंतिका के चेहरे पर एक संतोष का भाव था, क्यूंकि उसे पता था कि मृत्यु के उस पार वो फिर से विजयवर्मन से मिलने वाली है - उन्हें कभी कोई अलग नहीं कर सकता !!!

परन्तु विजयवर्मन का चेहरा निडर लेकिन चिंताग्रस्त लग रहा था, क्यूंकि वो जानते थें कि मृत्यु के परे वाली दुनिया एक मिथ्या है , बस खुद को सांत्वना देने का एक जरिया मात्र - और वो दोनों इस एकमात्र जीवन में अब हमेशा हमेशा के लिए एक दूसरे से बिछड़ने वाले हैं !!!
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RE: मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam - by usaiha2 - 24-07-2021, 06:42 PM



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