24-07-2021, 06:41 PM
" क्या हुआ सुमन ? तू इतनी घबराई हुई क्यूँ है ??? ". अवंतिका ने पूछा.
" बहुत बुरी खबर है राजकुमारी जी... ". कहकर दासी फिर रुक गई और हाँफने लगी.
" अरे बोल भी... ". चित्रांगदा ने झिड़क लगाई.
" राजकुमारी के मंगेतर राजा हर्षपाल ने हमारे राज्य पर आक्रमण कर दिया है !!! ".
ये खबर सुनते ही अवंतिका और चित्रांगदा एक क्षण के लिए जड़ हो गएँ.
" अब आप समझीं राजकुमारी, मैं क्यूँ कह रही थी कि आप दोनों का यहाँ रहना उचित नहीं ? ". चित्रांगदा धीरे से बोली.
" हर्षपाल ने आक्रमण कर दिया ??? परन्तु क्यूँ ? ". अवंतिका ने दासी को और फिर चित्रांगदा को देखते हुये कहा.
" प्रतिशोध... ". चित्रांगदा बोली.
" परन्तु उन्हें ये सब पता कैसे चला ? ". अवंतिका ने प्रश्न किया.
चित्रांगदा कुछ सोचकर चुप रही, परन्तु उनका चेहरा देखकर लग रहा था कि शायद वो सब कुछ समझ गईं हों.
" सावधान ! महाराजा नंदवर्मन पधार रहें हैं... ". तभी कक्ष के बाहर से आवाज़ आई.
अवंतिका और चित्रांगदा घबराकर सैया पर से उठ खड़े हुये और अपने शरीर के वस्त्र ठीक करने लगें.
अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित राजा नंदवर्मन ने कक्ष में तेज़ी से प्रवेश किया तो अवंतिका और चित्रांगदा ने एक साथ उनका अभिवादन किया.
" महाराज कि जय हो... ".
राजा नंदवर्मन ने अवंतिका कि ओर देखा तक नहीं, और उन दोनों के अभिनन्दन का उत्तर दिए बिना ही चित्रांगदा को सम्बोधित करते हुये बोलें.
" कुलवधु चित्रांगदा... राज्य पर संकट आन पड़ी है... परन्तु चिंता कि कोई बात नहीं. आप दोनों यहाँ सुरक्षित है, बाहर आपकी सुरक्षा हेतु मैंने कुछ सैनिकों को खड़े रहने का आदेश दे दिया है. कक्ष से बाहर निकलने कि कोई आवश्यकता नहीं ! ".
इतना कहकर राजा नंदवर्मन जाने के लिए मुड़े ही थें कि कक्ष में विजयवर्मन ने लगभग दौड़ते हुये प्रवेश किया और महाराज से बोलें.
" महाराज कि जय हो ! क्या मुझे युद्ध में जाने कि आज्ञा है ? ".
" ये युद्ध किसकी वजह से हो रहा है राजकुमार ??? जो राजा हमारे यहाँ बारात लेकर आने वाले थें , आज वो राजमहल के बाहर अनगिनत सैनिक लिए धमक पड़ा है !!! ". राजा नंदवर्मन ने क्रोधित स्वर में कहा.
विजयवर्मन चुप हो गएँ .
" उचित होगा कि आप भी यहाँ इसी कक्ष में स्त्रीयों के साथ रहें... हमारे सैनिक बाहर हैं, आप भी सुरक्षित रहेंगे ! ". कहते हुये राजा नंदवर्मन मुड़कर जाने लगें, फिर कक्ष के द्वार को पार करने से पहले रुकें और कहा. " मेरा ज्येष्ठ पुत्र देववर्मन है हमारी सहायता करने के लिए !!! ".
राजा नंदवर्मन के कक्ष से बाहर जाते ही विजयवर्मन धीमे कदमो से चलते हुये अवंतिका और चित्रांगदा के समीप पहुँच खड़े हुये. अपने पिताश्री के कहे शब्दों से वो अत्यंत अपमानित महसूस कर रहें थें, परन्तु फिर उन्होंने खुद को संभाला, और हँसते हुये बोलें.
" चलो ये भी सटीक ही है... महाराज मुझे दो वीर तेजस्वीनी स्त्रीयों कि देख रेख में छोड़ गएँ हैं, अब भला मुझे क्या चिंता हो सकती है ! ".
" हमारी हँसी उड़ाने कि आवश्यकता नहीं देवर जी... ". चित्रांगदा ने मुँह बनाते हुये कहा.
" क्षमा कीजिये भाभी... मेरी ऐसी मंसा कतई ना थी ! मैं तो सिर्फ इतना जानना चाहता था कि आप दोनों ने कभी अपने हाथों में तलवार उठाई भी है या नहीं ??? ". मुँह दबाकर हँसते हुये विजयवर्मन बोलें.
" तलवार कि क्या आवश्यकता राजकुमार... ". चित्रांगदा ने अपनी कमर में खोंसी हुई एक चाकू बाहर निकालते हुये कहा. " ये है ना मेरे पास ! ".
चाकू के आकार को देखकर विजयवर्मन और अपनी हँसी दबा नहीं पाएं, तो उनके साथ अवंतिका भी ज़ोर से खिलखिला कर हँस पड़ी.
" राजकुमारी ??? आप भी ??? मैंने सोचा हम सहेलियां हैं ! ". चित्रांगदा ने झूठा गुस्सा दिखाते हुये अवंतिका से कहा.
अवंतिका ने तुरंत आगे बढ़कर अपनी भाभी को गले से लगा लिया.
" आप सदैव इसे अपने साथ रखती हैं भाभी ? ". विजयवर्मन ने अपनी हँसी रोकते हुये पूछा.
" और नहीं तो क्या... ना जाने कब दरकार पड़ जाये ! ".
" परन्तु इससे क्या होगा ??? ".
" बड़े बड़े राजाओ कि भांति, भले ही मैं हज़ारों लाखों सैनिको को ना मार गिरा पाउँ, परन्तु कम से कम उस प्रथम व्यक्ति कि जीवनलीला तो अवश्य ही इस चाकू से समाप्त कर सकती हूँ जो मुझे छूने का दुस्साहस करेगा !!! ".
विजयवर्मन मुस्कुराते हुये आगे बढ़ें और अवंतिका तथा चित्रांगदा को उनके कंधो से पकड़ कर सैया पर बैठाते हुये अस्वासन भरे स्वर में बोलें.
" आप दोनों चिंतित ना हों... हर्षपाल कि सेना कभी भी राजमहल के मुख्यद्वार तक नहीं पहुँच पायेगी. "
" ये तो होना ही था... हर्षपाल भला चुप कैसे बैठता ? ". चित्रांगदा ने मन ही मन कुछ सोचते हुये धीरे से कहा.
" हमारे साथ तनिक बैठिये ना भैया... ". अवंतिका ने विजयवर्मन का हाथ पकड़कर उन्हें सैया पर खींचते हुये कहा.
" अरे राजकुमारी... आप देवर जी को अभी भी भैया कहकर ही सम्बोधित करतीं हैं ??? अब तो वो आपके पति हैं ना ? ". चित्रांगदा अपने ख्यालों से बाहर आई और मुस्कुराते हुये बोली.
" हम हमेशा से भाई बहन थें, और रहेंगे भाभी. ये विवाह तो बस हमें समाज कि नज़रों में एक साथ प्रेमी प्रेमिका कि भांति रहने देने के लिए साधन मात्र है ! ". विजयवर्मन अपनी बहन और भाभी के मध्य सैया पर बैठते हुये बोलें.
" वैसे आप अवंतिका को लेकर जायेंगे कहाँ राजकुमार ? ". चित्रांगदा ने पूछा.
" पता नहीं भाभी... ".
" आने वाले दिन अत्यंत कठिन गुजरने वालें हैं राजकुमार... ".
" हाँ भाभी... मुझे ज्ञात है ! ".
बातचीत के दौरान विजयवर्मन ने गौर किया कि उनकी भाभी चित्रांगदा अंदर ही अंदर कुछ सोच रहीं हैं, ये हर्षपाल के आक्रमण कि बात को लेकर उत्पन्न हुई चिंता नहीं, बल्कि कुछ और ही था.
" बड़ी देर से देख रहा हूँ भाभी... कुछ तो है जिसने आपको विचलित कर रखा है... हमें ना बताइयेगा ? ". विजयवर्मन ने अंततः पूछ ही लिया .
" राजकुमार... मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही, आखिर हर्षपाल ने हमपर आक्रमण क्यूँ किया ? ". चित्रांगदा ने अपना गहन चिंतन ज़ाहिर किया .
" अपने अपमान का प्रतिशोध लेने हेतु... स्पष्ट है भाभी ! ". विजयवर्मन बोलें.
" अपमान का प्रतिशोध तो मैं समझी राजकुमार... परन्तु उन्हें वो सब कैसे पता चला जो कि यहाँ हमारे राजमहल में हुआ ??? ".
" आपका क्या तात्पर्य है भाभी ? ".
" अर्थ ये है राजकुमार, कि महाराज ने तो आपकी और अवंतिका के प्रेम प्रसंग और हर्षपाल से अवंतिका का विवाह टूट जाने के बारे में उन्हें कोई सन्देश नहीं भेजा ! फिर उन्हें ये सब ज्ञात कैसे हुआ, जो उन्होंने इतनी जल्दी हमपर आक्रमण कि योजना भी बना डाली ??? ".
" गुप्तचर... भाभी ! हर राज्य में उस राज्य के खास व्यक्तियों के अपने गुप्तचर होतें हैं, फिर हर्षपाल तो स्वयं ही राजा हैं, उनके गुप्तचरों कि निपुणता का आकलन आप कर भी नहीं सकतीं ! ".
" और ये गुप्तचर भी तो कोई व्यक्ति ही होगा ना ? ".
" अवश्य ही व्यक्ति होगा... ".
" वही तो राजकुमार... आखिर यह व्यक्ति फिर कौन हो सकता है ??? ".
" कोई भी हो सकता है भाभी... धोबी से लेकर दास दासी, पहरेदार और सैनिक, सिपाही, मंत्री तक कोई भी ! अनुमान लगा पाना कठिन ही क्यूँ, असंभव भी है ! ".
" परन्तु एक बात सोचिये देवर जी... जो कुछ भी हुआ वो किसी आम सभा में नहीं हुआ था, उस दिन सभा में केवल परिवार के लोग और पुरोहित जी ही तो थें !!! और फिर हर्षपाल हमसे इस बात पर विचार विमर्श भी तो कर सकतें थें ना, सीधे आक्रमण ही क्यूँ ??? ".
विजयवर्मन मुस्कुराये, फिर चित्रांगदा के हाथ को पकड़कर उनकी मुट्ठी में थमी उनके चाकू को वापस से उनकी कमर से लिपटे घाघरे में खोस दिया, और वार्तालाप को बदलने के उदेश्य से बोलें.
" राजनीती कि ये सारी बातें महाराज और सेनापति पर छोड़ दीजिये भाभी... आप तो बस इस बात कि चिंता कीजिये कि आप और अवंतिका मिलकर कैसे मेरी सुरक्षा करेंगी ! स्मरण रहे, कि महाराज मुझे यहाँ कक्ष में आप दोनों कि निगरानी में छोड़कर युद्ध के लिए गएँ हैं. "
इसपर अवंतिका भी ठिठोली करती हुई बीच में बोल पड़ी.
" पता है भैया... भाभी कह रहीं थीं कि हमारे जाने के उपरांत उन्हें आपकी बहुत याद आएगी... मुख्य रूप से रात्रि को सोने के समय !!! ".
" नहीं नहीं राजकुमार...मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा... सच्ची ! ". चित्रांगदा घबराकर बोली, फिर अवंतिका कि बाँह पर चिकोटी काटते हुये कहा. " विवाह के उपरांत आप कुछ अधिक ही लज्जाहीन हो गईं हैं राजकुमारी !!! ".
" अच्छा... मैं लज्जाहीन हो गई हूँ ??? ". अवंतिका ने हँसते हुये कहा.
" और नहीं तो क्या राजकुमारी ? और याद रखिये, अभी आपके अंग का घाव भरा नहीं है, आगे भी मेरी आवश्यकता पड़ेगी आपको ! ". शैतानी मुस्कान के साथ चित्रांगदा ने कहा.
चित्रांगदा का स्पष्ट इशारा उसकी घायल योनि कि ओर है, ये बात समझ में आते ही अवंतिका बुरी तरह से झेंप गई, और शर्म से उनके गालों में खून चढ़ गया.
" किस अंग का घाव अवंतिका ??? आप आहात हैं क्या... कहाँ चोट लगी है... दिखाइए ! ". विजयवर्मन ने घबराकर अवंतिका से पूछा.
लज्जा से मुरझाई हुई अवंतिका ने चित्रांगदा को आँखों ही आँखों में इशारा करके निवेदन किया कि वो विजयवर्मन को उनकी फटी हुई चूत के बारे में कुछ ना बतायें, और फिर विजयवर्मन से बहाना करते हुये बोली.
" कुछ नहीं भैया... वो बस मेरे पैर में हल्की सी मोच आ गई थी !!! ".
विजयवर्मन ने राहत कि एक ठंडी साँस ली, और फिर चित्रांगदा कि ओर मुड़कर उनके चेहरे को अपने हाथों में लिया, और उनके ललाट पर एक चुम्बन जड़ते हुये प्यार से बोलें.
" अवंतिका सत्य कह रही थी भाभी... मुझे आपकी बहुत याद आएगी. आपका स्थान मेरे जीवन में सदैव महत्वपूर्ण रहेगा, परन्तु इस जन्म में मैं अवंतिका के अलावा और किसी से प्रेम नहीं कर पाउँगा !!! "..............................
अवंतिका, विजयवर्मन और चित्रांगदा इसी प्रकार काफ़ी देर तक आपस में बातचीत और हँसी ठिठोली करतें रहें. वे तीनों युद्ध कि ओर से निश्चिन्त थें, क्यूंकि उन्हें पता था कि इस युद्ध का परिणाम क्या होने वाला है. वे तो बस अब हर्षपाल के पराजय और राजा नंदवर्मन कि जीत का समाचार सुनने भर कि प्रतीक्षा कर रहें थें !.............................................
करीब दो घंटे के पश्चात् अचानक से कक्ष में एक सैनिक घुस आया और अवंतिका, विजयवर्मन तथा चित्रांगदा को वार्तालाप में मग्न पाकर क्षमा मांगते हुये घबराकर बोला.
" क्षमा कीजिये... एक अत्यंत अशुभ समाचार है !!! ".
" क्या हुआ सैनिक ??? ". विजयवर्मन ने पूछा.
" हर्षपाल और उसके सैनिक हमारे राजमहल में घुस आएं हैं ! ".
" राजमहल के अंदर ??? ". विजयवर्मन उठ खड़े हुये. " और महाराज ??? ".
" महाराज तो रणभूमि में हैं, उन्हें ज्ञात नहीं ! ".
" और भैया देववर्मन ??? ".
" उन्हें किसी से नहीं देखा राजकुमार... ".
" माताश्री ??? ".
" उनके कक्ष में... उनके कक्ष में हर्षपाल के सैनिक घुस चुके हैं ! ".
" ये तुम क्या बोल रहे हो सैनिक ? ". विजयवर्मन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अनायास ही ये क्या हुआ.
" हमारी अधिकतर सेना तो अभी भी युद्धभूमि में है. महल के अंदर हुये इस विश्वासघाती हमले के लिए यहाँ अवस्थित सेना तैयार नहीं थी राजकुमार. शत्रु ने पीछे से आक्रमण किया. शत्रु कि सेना हमारे सैनिकों को मौत के घाट उतारती हुई पूरे महल में फ़ैल रही है !!! ". सैनिक ने एक ही साँस में पूरी बात बताई.
तभी चित्रांगदा उठ खड़ी हुई और सैनिक से पूछा.
" शत्रु कि सेना राजमहल के अंदर कैसे पहुँची सैनिक ??? ".
" किसी ने... ". भय से काँपते हुये सैनिक ने कहा. " किसी ने अंदर से राजमहल का गुप्तद्वार खोल दिया है देवी !!! ".
चित्रांगदा के होंठ विस्मय से खुले के खुले ही रह गएँ, और उनसे दूसरा कोई शब्द ना निकला !
अवंतिका भी घबराकर उठ खड़ी हुई.
किसी अनिष्ट कि आशंका से विजयवर्मन सोच में पड़ गएँ.
" इस कक्ष के बाहर द्वार पर हम कुछेक सैनिक अभी भी हैं राजकुमार. महाराज कि आज्ञा थी कि हम यहाँ से किसी भी मूल्य पर ना हटें. जब तक हममें से एक सैनिक भी जीवित रहेगा, ना ही हर्षपाल और ना ही उसका कोई सैनिक इस कक्ष में प्रवेश करने का दुस्साहस कर पायेगा !!! ". सैनिक ने कहा, और सिर झुका कर आज्ञा लेते हुये कक्ष से बाहर चला गया.
" ये क्या अमंगल हो गया भैया ??? ". अवंतिका ने काँपती आवाज़ में कहा और चित्रांगदा से लिपट कर खड़ी हो गई.
" सोचिये मत राजकुमार...आपलोग यहाँ से चले जाइये... अभी समय है ! ". चित्रांगदा ने कहा.
" और भाभी आप ??? ". विजयवर्मन ने पूछा.
चित्रांगदा कि आँखों से आंसुओ कि धारा बह निकली, उन्होंने अपनी कमर में खोसा हुआ अपना छोटा सा चाकू बाहर निकाला, और लड़खड़ाते हुये स्वर में जबरन हल्के से मुस्कुराते हुये बोली.
" ये है ना मेरे पास राजकुमार !!! ".
" विपत्ति कि इस घड़ी में मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा भाभी ! ". क्रोध से काँपती आवाज़ में विजयवर्मन ने कहा.
" हठ ना कीजिये राजकुमार... अवंतिका को लेकर चले जाइये. हर्षपाल आप दोनों के लिए ही आया है !!! ". चित्रांगदा लगभग रोते रोते बोली.
" भैया ठीक कह रहें हैं भाभी... हम आपको एकांत छोड़कर नहीं जायेंगे ! ". अवंतिका ने कहा.
" मैं आप दोनों से बड़ी हूँ ... इस राज्य कि कुलवधु ! ये मेरी आज्ञा है !!! मेरी आज्ञा का उल्लंघन करके आप दोनों को मेरा इस भांति अपमान करने का कोई अधिकार नहीं !!! ". चित्रांगदा ने अपने आंसू पोछते हुये सख़्त स्वर में कहा.
" आपकी आज्ञा का पालन हम अवश्य ही करेंगे भाभी... ". विजयवर्मन बोलें. " परन्तु आज नहीं !!! ".
चित्रांगदा हार चुकी थी, उन्होंने अवंतिका को गले से लगा लिया, तो दोनों एक दूसरे से लिपट कर रोने लगीं.
बाहर सैनिकों के कोलाहाल और तलवारों के आपस में टकराने से उत्पन्न झनझनाहट कि ध्वनि से विजयवर्मन समझ गएँ कि हर्षपाल के सैनिक द्वार तक पहुँच चुके हैं. बाहर से आने वाली चीख पुकार उनके अपने ही सैनिकों कि थी, ये पहचानते उन्हें देर ना लगी. वो समझ गएँ कि कक्ष के द्वार का रास्ता रोके खड़े उनके निष्ठावान सैनिक एक एक करके वीरगति को प्राप्त हो रहें हैं !!!
कक्ष के द्वार पर टंगे ज़रीदार परदे ने बाहर चल रही निर्मम निर्दयता को अब तक ढँक रखा था, परन्तु ऐसा अब ज़्यादा देर तक रहने वाला नहीं था !
विजयवर्मन को पता था कि एक पूरी सेना के विरुद्ध वो अकेले ना ही स्वयं कि रक्षा कर पाएंगे, और ना ही कक्ष में उपस्थित दोनों स्त्रीयों कि !!!
मृत्यु तो तय है !!!
परन्तु वो हैं तो पुष्पनगरी के राजनिष्ट छोटे राजकुमार ही ना !!! यूँ ही भयभीत कैसे हो जायें, यूँ ही पराजय कैसे स्वीकार कर लें !!!
निर्णय हो चुका था !!!
विजयवर्मन ने अपनी म्यान से अपनी तलवार बाहर निकाली और अवंतिका तथा चित्रांगदा को अपने पीछे हो लेने का इशारा किया.
अत्यंत धारदार चमकती हुई तलवार को अपनी सख़्त मुट्ठी में थामे, अपनी चौड़े छाती से लेकर अपने उन्नत सिर के ऊपर तक उठाये, अवंतिका और चित्रांगदा को अपने बलशाली शरीर के पीछे लगभग पूर्णत: छुपाये, विजयवर्मन कक्ष के द्वार कि ओर नज़र गड़ाये क्रूर हर्षपाल और उसके सैनिकों के अंदर प्रवेश करने कि प्रतीक्षा करने लगें !!!
" बहुत बुरी खबर है राजकुमारी जी... ". कहकर दासी फिर रुक गई और हाँफने लगी.
" अरे बोल भी... ". चित्रांगदा ने झिड़क लगाई.
" राजकुमारी के मंगेतर राजा हर्षपाल ने हमारे राज्य पर आक्रमण कर दिया है !!! ".
ये खबर सुनते ही अवंतिका और चित्रांगदा एक क्षण के लिए जड़ हो गएँ.
" अब आप समझीं राजकुमारी, मैं क्यूँ कह रही थी कि आप दोनों का यहाँ रहना उचित नहीं ? ". चित्रांगदा धीरे से बोली.
" हर्षपाल ने आक्रमण कर दिया ??? परन्तु क्यूँ ? ". अवंतिका ने दासी को और फिर चित्रांगदा को देखते हुये कहा.
" प्रतिशोध... ". चित्रांगदा बोली.
" परन्तु उन्हें ये सब पता कैसे चला ? ". अवंतिका ने प्रश्न किया.
चित्रांगदा कुछ सोचकर चुप रही, परन्तु उनका चेहरा देखकर लग रहा था कि शायद वो सब कुछ समझ गईं हों.
" सावधान ! महाराजा नंदवर्मन पधार रहें हैं... ". तभी कक्ष के बाहर से आवाज़ आई.
अवंतिका और चित्रांगदा घबराकर सैया पर से उठ खड़े हुये और अपने शरीर के वस्त्र ठीक करने लगें.
अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित राजा नंदवर्मन ने कक्ष में तेज़ी से प्रवेश किया तो अवंतिका और चित्रांगदा ने एक साथ उनका अभिवादन किया.
" महाराज कि जय हो... ".
राजा नंदवर्मन ने अवंतिका कि ओर देखा तक नहीं, और उन दोनों के अभिनन्दन का उत्तर दिए बिना ही चित्रांगदा को सम्बोधित करते हुये बोलें.
" कुलवधु चित्रांगदा... राज्य पर संकट आन पड़ी है... परन्तु चिंता कि कोई बात नहीं. आप दोनों यहाँ सुरक्षित है, बाहर आपकी सुरक्षा हेतु मैंने कुछ सैनिकों को खड़े रहने का आदेश दे दिया है. कक्ष से बाहर निकलने कि कोई आवश्यकता नहीं ! ".
इतना कहकर राजा नंदवर्मन जाने के लिए मुड़े ही थें कि कक्ष में विजयवर्मन ने लगभग दौड़ते हुये प्रवेश किया और महाराज से बोलें.
" महाराज कि जय हो ! क्या मुझे युद्ध में जाने कि आज्ञा है ? ".
" ये युद्ध किसकी वजह से हो रहा है राजकुमार ??? जो राजा हमारे यहाँ बारात लेकर आने वाले थें , आज वो राजमहल के बाहर अनगिनत सैनिक लिए धमक पड़ा है !!! ". राजा नंदवर्मन ने क्रोधित स्वर में कहा.
विजयवर्मन चुप हो गएँ .
" उचित होगा कि आप भी यहाँ इसी कक्ष में स्त्रीयों के साथ रहें... हमारे सैनिक बाहर हैं, आप भी सुरक्षित रहेंगे ! ". कहते हुये राजा नंदवर्मन मुड़कर जाने लगें, फिर कक्ष के द्वार को पार करने से पहले रुकें और कहा. " मेरा ज्येष्ठ पुत्र देववर्मन है हमारी सहायता करने के लिए !!! ".
राजा नंदवर्मन के कक्ष से बाहर जाते ही विजयवर्मन धीमे कदमो से चलते हुये अवंतिका और चित्रांगदा के समीप पहुँच खड़े हुये. अपने पिताश्री के कहे शब्दों से वो अत्यंत अपमानित महसूस कर रहें थें, परन्तु फिर उन्होंने खुद को संभाला, और हँसते हुये बोलें.
" चलो ये भी सटीक ही है... महाराज मुझे दो वीर तेजस्वीनी स्त्रीयों कि देख रेख में छोड़ गएँ हैं, अब भला मुझे क्या चिंता हो सकती है ! ".
" हमारी हँसी उड़ाने कि आवश्यकता नहीं देवर जी... ". चित्रांगदा ने मुँह बनाते हुये कहा.
" क्षमा कीजिये भाभी... मेरी ऐसी मंसा कतई ना थी ! मैं तो सिर्फ इतना जानना चाहता था कि आप दोनों ने कभी अपने हाथों में तलवार उठाई भी है या नहीं ??? ". मुँह दबाकर हँसते हुये विजयवर्मन बोलें.
" तलवार कि क्या आवश्यकता राजकुमार... ". चित्रांगदा ने अपनी कमर में खोंसी हुई एक चाकू बाहर निकालते हुये कहा. " ये है ना मेरे पास ! ".
चाकू के आकार को देखकर विजयवर्मन और अपनी हँसी दबा नहीं पाएं, तो उनके साथ अवंतिका भी ज़ोर से खिलखिला कर हँस पड़ी.
" राजकुमारी ??? आप भी ??? मैंने सोचा हम सहेलियां हैं ! ". चित्रांगदा ने झूठा गुस्सा दिखाते हुये अवंतिका से कहा.
अवंतिका ने तुरंत आगे बढ़कर अपनी भाभी को गले से लगा लिया.
" आप सदैव इसे अपने साथ रखती हैं भाभी ? ". विजयवर्मन ने अपनी हँसी रोकते हुये पूछा.
" और नहीं तो क्या... ना जाने कब दरकार पड़ जाये ! ".
" परन्तु इससे क्या होगा ??? ".
" बड़े बड़े राजाओ कि भांति, भले ही मैं हज़ारों लाखों सैनिको को ना मार गिरा पाउँ, परन्तु कम से कम उस प्रथम व्यक्ति कि जीवनलीला तो अवश्य ही इस चाकू से समाप्त कर सकती हूँ जो मुझे छूने का दुस्साहस करेगा !!! ".
विजयवर्मन मुस्कुराते हुये आगे बढ़ें और अवंतिका तथा चित्रांगदा को उनके कंधो से पकड़ कर सैया पर बैठाते हुये अस्वासन भरे स्वर में बोलें.
" आप दोनों चिंतित ना हों... हर्षपाल कि सेना कभी भी राजमहल के मुख्यद्वार तक नहीं पहुँच पायेगी. "
" ये तो होना ही था... हर्षपाल भला चुप कैसे बैठता ? ". चित्रांगदा ने मन ही मन कुछ सोचते हुये धीरे से कहा.
" हमारे साथ तनिक बैठिये ना भैया... ". अवंतिका ने विजयवर्मन का हाथ पकड़कर उन्हें सैया पर खींचते हुये कहा.
" अरे राजकुमारी... आप देवर जी को अभी भी भैया कहकर ही सम्बोधित करतीं हैं ??? अब तो वो आपके पति हैं ना ? ". चित्रांगदा अपने ख्यालों से बाहर आई और मुस्कुराते हुये बोली.
" हम हमेशा से भाई बहन थें, और रहेंगे भाभी. ये विवाह तो बस हमें समाज कि नज़रों में एक साथ प्रेमी प्रेमिका कि भांति रहने देने के लिए साधन मात्र है ! ". विजयवर्मन अपनी बहन और भाभी के मध्य सैया पर बैठते हुये बोलें.
" वैसे आप अवंतिका को लेकर जायेंगे कहाँ राजकुमार ? ". चित्रांगदा ने पूछा.
" पता नहीं भाभी... ".
" आने वाले दिन अत्यंत कठिन गुजरने वालें हैं राजकुमार... ".
" हाँ भाभी... मुझे ज्ञात है ! ".
बातचीत के दौरान विजयवर्मन ने गौर किया कि उनकी भाभी चित्रांगदा अंदर ही अंदर कुछ सोच रहीं हैं, ये हर्षपाल के आक्रमण कि बात को लेकर उत्पन्न हुई चिंता नहीं, बल्कि कुछ और ही था.
" बड़ी देर से देख रहा हूँ भाभी... कुछ तो है जिसने आपको विचलित कर रखा है... हमें ना बताइयेगा ? ". विजयवर्मन ने अंततः पूछ ही लिया .
" राजकुमार... मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही, आखिर हर्षपाल ने हमपर आक्रमण क्यूँ किया ? ". चित्रांगदा ने अपना गहन चिंतन ज़ाहिर किया .
" अपने अपमान का प्रतिशोध लेने हेतु... स्पष्ट है भाभी ! ". विजयवर्मन बोलें.
" अपमान का प्रतिशोध तो मैं समझी राजकुमार... परन्तु उन्हें वो सब कैसे पता चला जो कि यहाँ हमारे राजमहल में हुआ ??? ".
" आपका क्या तात्पर्य है भाभी ? ".
" अर्थ ये है राजकुमार, कि महाराज ने तो आपकी और अवंतिका के प्रेम प्रसंग और हर्षपाल से अवंतिका का विवाह टूट जाने के बारे में उन्हें कोई सन्देश नहीं भेजा ! फिर उन्हें ये सब ज्ञात कैसे हुआ, जो उन्होंने इतनी जल्दी हमपर आक्रमण कि योजना भी बना डाली ??? ".
" गुप्तचर... भाभी ! हर राज्य में उस राज्य के खास व्यक्तियों के अपने गुप्तचर होतें हैं, फिर हर्षपाल तो स्वयं ही राजा हैं, उनके गुप्तचरों कि निपुणता का आकलन आप कर भी नहीं सकतीं ! ".
" और ये गुप्तचर भी तो कोई व्यक्ति ही होगा ना ? ".
" अवश्य ही व्यक्ति होगा... ".
" वही तो राजकुमार... आखिर यह व्यक्ति फिर कौन हो सकता है ??? ".
" कोई भी हो सकता है भाभी... धोबी से लेकर दास दासी, पहरेदार और सैनिक, सिपाही, मंत्री तक कोई भी ! अनुमान लगा पाना कठिन ही क्यूँ, असंभव भी है ! ".
" परन्तु एक बात सोचिये देवर जी... जो कुछ भी हुआ वो किसी आम सभा में नहीं हुआ था, उस दिन सभा में केवल परिवार के लोग और पुरोहित जी ही तो थें !!! और फिर हर्षपाल हमसे इस बात पर विचार विमर्श भी तो कर सकतें थें ना, सीधे आक्रमण ही क्यूँ ??? ".
विजयवर्मन मुस्कुराये, फिर चित्रांगदा के हाथ को पकड़कर उनकी मुट्ठी में थमी उनके चाकू को वापस से उनकी कमर से लिपटे घाघरे में खोस दिया, और वार्तालाप को बदलने के उदेश्य से बोलें.
" राजनीती कि ये सारी बातें महाराज और सेनापति पर छोड़ दीजिये भाभी... आप तो बस इस बात कि चिंता कीजिये कि आप और अवंतिका मिलकर कैसे मेरी सुरक्षा करेंगी ! स्मरण रहे, कि महाराज मुझे यहाँ कक्ष में आप दोनों कि निगरानी में छोड़कर युद्ध के लिए गएँ हैं. "
इसपर अवंतिका भी ठिठोली करती हुई बीच में बोल पड़ी.
" पता है भैया... भाभी कह रहीं थीं कि हमारे जाने के उपरांत उन्हें आपकी बहुत याद आएगी... मुख्य रूप से रात्रि को सोने के समय !!! ".
" नहीं नहीं राजकुमार...मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा... सच्ची ! ". चित्रांगदा घबराकर बोली, फिर अवंतिका कि बाँह पर चिकोटी काटते हुये कहा. " विवाह के उपरांत आप कुछ अधिक ही लज्जाहीन हो गईं हैं राजकुमारी !!! ".
" अच्छा... मैं लज्जाहीन हो गई हूँ ??? ". अवंतिका ने हँसते हुये कहा.
" और नहीं तो क्या राजकुमारी ? और याद रखिये, अभी आपके अंग का घाव भरा नहीं है, आगे भी मेरी आवश्यकता पड़ेगी आपको ! ". शैतानी मुस्कान के साथ चित्रांगदा ने कहा.
चित्रांगदा का स्पष्ट इशारा उसकी घायल योनि कि ओर है, ये बात समझ में आते ही अवंतिका बुरी तरह से झेंप गई, और शर्म से उनके गालों में खून चढ़ गया.
" किस अंग का घाव अवंतिका ??? आप आहात हैं क्या... कहाँ चोट लगी है... दिखाइए ! ". विजयवर्मन ने घबराकर अवंतिका से पूछा.
लज्जा से मुरझाई हुई अवंतिका ने चित्रांगदा को आँखों ही आँखों में इशारा करके निवेदन किया कि वो विजयवर्मन को उनकी फटी हुई चूत के बारे में कुछ ना बतायें, और फिर विजयवर्मन से बहाना करते हुये बोली.
" कुछ नहीं भैया... वो बस मेरे पैर में हल्की सी मोच आ गई थी !!! ".
विजयवर्मन ने राहत कि एक ठंडी साँस ली, और फिर चित्रांगदा कि ओर मुड़कर उनके चेहरे को अपने हाथों में लिया, और उनके ललाट पर एक चुम्बन जड़ते हुये प्यार से बोलें.
" अवंतिका सत्य कह रही थी भाभी... मुझे आपकी बहुत याद आएगी. आपका स्थान मेरे जीवन में सदैव महत्वपूर्ण रहेगा, परन्तु इस जन्म में मैं अवंतिका के अलावा और किसी से प्रेम नहीं कर पाउँगा !!! "..............................
अवंतिका, विजयवर्मन और चित्रांगदा इसी प्रकार काफ़ी देर तक आपस में बातचीत और हँसी ठिठोली करतें रहें. वे तीनों युद्ध कि ओर से निश्चिन्त थें, क्यूंकि उन्हें पता था कि इस युद्ध का परिणाम क्या होने वाला है. वे तो बस अब हर्षपाल के पराजय और राजा नंदवर्मन कि जीत का समाचार सुनने भर कि प्रतीक्षा कर रहें थें !.............................................
करीब दो घंटे के पश्चात् अचानक से कक्ष में एक सैनिक घुस आया और अवंतिका, विजयवर्मन तथा चित्रांगदा को वार्तालाप में मग्न पाकर क्षमा मांगते हुये घबराकर बोला.
" क्षमा कीजिये... एक अत्यंत अशुभ समाचार है !!! ".
" क्या हुआ सैनिक ??? ". विजयवर्मन ने पूछा.
" हर्षपाल और उसके सैनिक हमारे राजमहल में घुस आएं हैं ! ".
" राजमहल के अंदर ??? ". विजयवर्मन उठ खड़े हुये. " और महाराज ??? ".
" महाराज तो रणभूमि में हैं, उन्हें ज्ञात नहीं ! ".
" और भैया देववर्मन ??? ".
" उन्हें किसी से नहीं देखा राजकुमार... ".
" माताश्री ??? ".
" उनके कक्ष में... उनके कक्ष में हर्षपाल के सैनिक घुस चुके हैं ! ".
" ये तुम क्या बोल रहे हो सैनिक ? ". विजयवर्मन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अनायास ही ये क्या हुआ.
" हमारी अधिकतर सेना तो अभी भी युद्धभूमि में है. महल के अंदर हुये इस विश्वासघाती हमले के लिए यहाँ अवस्थित सेना तैयार नहीं थी राजकुमार. शत्रु ने पीछे से आक्रमण किया. शत्रु कि सेना हमारे सैनिकों को मौत के घाट उतारती हुई पूरे महल में फ़ैल रही है !!! ". सैनिक ने एक ही साँस में पूरी बात बताई.
तभी चित्रांगदा उठ खड़ी हुई और सैनिक से पूछा.
" शत्रु कि सेना राजमहल के अंदर कैसे पहुँची सैनिक ??? ".
" किसी ने... ". भय से काँपते हुये सैनिक ने कहा. " किसी ने अंदर से राजमहल का गुप्तद्वार खोल दिया है देवी !!! ".
चित्रांगदा के होंठ विस्मय से खुले के खुले ही रह गएँ, और उनसे दूसरा कोई शब्द ना निकला !
अवंतिका भी घबराकर उठ खड़ी हुई.
किसी अनिष्ट कि आशंका से विजयवर्मन सोच में पड़ गएँ.
" इस कक्ष के बाहर द्वार पर हम कुछेक सैनिक अभी भी हैं राजकुमार. महाराज कि आज्ञा थी कि हम यहाँ से किसी भी मूल्य पर ना हटें. जब तक हममें से एक सैनिक भी जीवित रहेगा, ना ही हर्षपाल और ना ही उसका कोई सैनिक इस कक्ष में प्रवेश करने का दुस्साहस कर पायेगा !!! ". सैनिक ने कहा, और सिर झुका कर आज्ञा लेते हुये कक्ष से बाहर चला गया.
" ये क्या अमंगल हो गया भैया ??? ". अवंतिका ने काँपती आवाज़ में कहा और चित्रांगदा से लिपट कर खड़ी हो गई.
" सोचिये मत राजकुमार...आपलोग यहाँ से चले जाइये... अभी समय है ! ". चित्रांगदा ने कहा.
" और भाभी आप ??? ". विजयवर्मन ने पूछा.
चित्रांगदा कि आँखों से आंसुओ कि धारा बह निकली, उन्होंने अपनी कमर में खोसा हुआ अपना छोटा सा चाकू बाहर निकाला, और लड़खड़ाते हुये स्वर में जबरन हल्के से मुस्कुराते हुये बोली.
" ये है ना मेरे पास राजकुमार !!! ".
" विपत्ति कि इस घड़ी में मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा भाभी ! ". क्रोध से काँपती आवाज़ में विजयवर्मन ने कहा.
" हठ ना कीजिये राजकुमार... अवंतिका को लेकर चले जाइये. हर्षपाल आप दोनों के लिए ही आया है !!! ". चित्रांगदा लगभग रोते रोते बोली.
" भैया ठीक कह रहें हैं भाभी... हम आपको एकांत छोड़कर नहीं जायेंगे ! ". अवंतिका ने कहा.
" मैं आप दोनों से बड़ी हूँ ... इस राज्य कि कुलवधु ! ये मेरी आज्ञा है !!! मेरी आज्ञा का उल्लंघन करके आप दोनों को मेरा इस भांति अपमान करने का कोई अधिकार नहीं !!! ". चित्रांगदा ने अपने आंसू पोछते हुये सख़्त स्वर में कहा.
" आपकी आज्ञा का पालन हम अवश्य ही करेंगे भाभी... ". विजयवर्मन बोलें. " परन्तु आज नहीं !!! ".
चित्रांगदा हार चुकी थी, उन्होंने अवंतिका को गले से लगा लिया, तो दोनों एक दूसरे से लिपट कर रोने लगीं.
बाहर सैनिकों के कोलाहाल और तलवारों के आपस में टकराने से उत्पन्न झनझनाहट कि ध्वनि से विजयवर्मन समझ गएँ कि हर्षपाल के सैनिक द्वार तक पहुँच चुके हैं. बाहर से आने वाली चीख पुकार उनके अपने ही सैनिकों कि थी, ये पहचानते उन्हें देर ना लगी. वो समझ गएँ कि कक्ष के द्वार का रास्ता रोके खड़े उनके निष्ठावान सैनिक एक एक करके वीरगति को प्राप्त हो रहें हैं !!!
कक्ष के द्वार पर टंगे ज़रीदार परदे ने बाहर चल रही निर्मम निर्दयता को अब तक ढँक रखा था, परन्तु ऐसा अब ज़्यादा देर तक रहने वाला नहीं था !
विजयवर्मन को पता था कि एक पूरी सेना के विरुद्ध वो अकेले ना ही स्वयं कि रक्षा कर पाएंगे, और ना ही कक्ष में उपस्थित दोनों स्त्रीयों कि !!!
मृत्यु तो तय है !!!
परन्तु वो हैं तो पुष्पनगरी के राजनिष्ट छोटे राजकुमार ही ना !!! यूँ ही भयभीत कैसे हो जायें, यूँ ही पराजय कैसे स्वीकार कर लें !!!
निर्णय हो चुका था !!!
विजयवर्मन ने अपनी म्यान से अपनी तलवार बाहर निकाली और अवंतिका तथा चित्रांगदा को अपने पीछे हो लेने का इशारा किया.
अत्यंत धारदार चमकती हुई तलवार को अपनी सख़्त मुट्ठी में थामे, अपनी चौड़े छाती से लेकर अपने उन्नत सिर के ऊपर तक उठाये, अवंतिका और चित्रांगदा को अपने बलशाली शरीर के पीछे लगभग पूर्णत: छुपाये, विजयवर्मन कक्ष के द्वार कि ओर नज़र गड़ाये क्रूर हर्षपाल और उसके सैनिकों के अंदर प्रवेश करने कि प्रतीक्षा करने लगें !!!