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मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam
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सुबह औरतों के स्नानागार में जब दासीयां अवंतिका को नहलाने के लिए उनके वस्त्र उतारने लगीं तो उनकी नज़रें सबसे पहले राजकुमारी कि चूत पर गई. चूत को सही सलामत पाकर उन सभी का मुँह उतर गया.

" ये क्या राजकुमारी जी... हम तो आपसे यूँ ही ठिठोली कर रहीं थीं, आपने क्या कल रात राजकुमार को सचमुच में अपने स्पर्श से वंचित रखा ??? ". एक दासी ने पूछा.

" तुम्हें क्यूँ बताऊँ ? ". अवंतिका ने झूठा अहंकार दिखाते हुए मुस्कुरा कर कहा, और नंगी होकर पानी में उतरने लगी.

" और नहीं तो क्या... ". दूसरी दासी ने सबको बताते हुए कहा. " प्रातःकाल ज़ब मैं राजकुमारी के सुहागकक्ष में बिछावन बदलने गई तो देखा कि सुहागसेज के सारे फूल ज्यों के त्यों पड़े हुए हैं और चादर भी मैली नहीं हुई !!! ".

" तुमलोग कुछ ज़्यादा ही वाचाल होती जा रही हो, प्राणो का भय नहीं रहा क्या ? ". चित्रांगदा, जो कि पहले से ही पानी में डूबी नहा रही थी, ने ऊँचे स्वर में गुस्से से कहा तो सारी दासीयां एक दूसरे को देखते हुए एकदम से चुप हो गईं.

चित्रांगदा पानी में तैरते हुए अवंतिका के समीप आई और धीरे से कहा, ताकि सिर्फ वही सुन सके.

" आपने सही निर्णय लिया राजकुमारी... ".

अवंतिका ने आँखे उठा कर चित्रांगदा को एक नज़र देखा, हल्की सी मुस्कुराई, परन्तु कुछ बोली नहीं...



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उस दिन के पश्चात् प्रतिदिन रात्रि को सोने से पहले विजयवर्मन मूठ मार कर अपना वीर्य अपनी बहन - पत्नि अवंतिका के कदमो में अर्पित कर देतें, ताकि उनकी चोदने कि लालसा समाप्त हो जाये. फिर दोनों पति पत्नि नग्न अवस्था में एक दूसरे कि बाहों में लिपट कर सो जातें. पूर्णत: नंगी होने के बावजूद भी अवंतिका कभी भी अपनी करधनी नहीं उतारती, विजयवर्मन ने अभी तक उनकी चूत कि एक हल्की सी झलक मात्र भी नहीं देखी थी, अवंतिका को भय था कि उसकी चूत देखने के बाद राजकुमार शायद अपना धैर्य खो बैठें. विजयवर्मन भी इस बात को भली भांति समझते थें, और इसलिए उन्होंने भी कभी किसी प्रकार कि ज़िद नहीं कि. उनका ये व्यवहार और रवैया देखकर अवंतिका के ह्रदय में उनके लिए प्रेम और सम्मान कि भावना और भी बढ़ गई थी !

इसी प्रकार धीरे धीरे सात दिन कैसे ब्यतीत हो गएँ, पता ही ना चला.

आठवी रात्रि को जब विजयवर्मन अपने वस्त्र खोल कर बिस्तर पर आएं और अपना लण्ड हाथ में थामे वीर्यस्खलन कि तैयारी करने लगें, तो अवंतिका ने अचानक से उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोका, और बोली.

" राजकुमार... मुझे और पाप कि भागी ना बनाइये ! ".

" ये आप क्या कह रहीं हैं राजकुमारी ? ". विजयवर्मन ने उन्हें आश्चर्य से घूरते हुए पूछा.

" ठीक ही तो कह रही हूँ राजकुमार. आप मेरे भाई और प्रेमी बाद में हैं, परन्तु अब सबसे पहले आप मेरे पति, मेरे प्राणनाथ हैं. फिर आप जैसे तेजस्वी पुरुष का वीर्य प्रतिदिन इस प्रकार नष्ट करवाना मुझ जैसी एक साधारण स्त्री को शोभा नहीं देता !!! ".

" मेरा कामरस व्यर्थ कहाँ हो रहा हैं अवंतिका... मैं तो उन्हें आपके चरणों में समर्पित करता हूँ, जैसे कोई पुजारी किसी देवी को श्रद्धांजलि देता है, ताकि उससे कभी कोई भूल ना हो जाये ! "

" मैं एक सामान्य स्त्री हूँ भैया... देवीतुल्य नहीं ! आपने मेरे पैरों पर स्खलित होकर मुझे जो सम्मान प्रदान किया है, उसका ऋण मैं आजीवन चुका नहीं पाऊँगी ! ".

विजयवर्मन ने एक नज़र नीचे अपने हाथ में थामे हुए लण्ड को देखा, जो कि तन कर खड़ा हो चुका था, और फिर अवंतिका को देखा, उनके चेहरे पर झलकता कौतुहल देखकर अवंतिका उनके मन के सवाल को समझ गई, और आदरपूर्वक बोली.

" पुरुष के वीर्य का स्थान स्त्री कि योनि में होता है भैया. मैं आपको अपनी योनि तो प्रदान नहीं कर सकती परन्तु ऐसा कुछ ज़रूर कर सकती हूँ कि आपके पुरुषार्थ का भी अनुचित अपमान ना हो ! "

विजयवर्मन के चेहरे का प्रश्नचिन्ह और भी गहरा हो गया, अवंतिका ने अपने दोनों हाथ उनके सामने ऐसे रखा जैसे कोई प्रशाद ग्रहण करता हो, और उनकी आँखों में देखकर कहा.

" आप मेरे हाथों में वीर्यस्खलन कीजिये भैया... ".

" जैसी मेरी धर्मपत्नि कि इच्छा ! ". कहते हुए विजयवर्मन ने आगे बढ़कर अवंतिका को चूम लिया, और फिर अपने घुटनों के बल खड़े होकर उनकी हथेलीयों के ऊपर अपना लण्ड हिलाने लगें.

अवंतिका ने सीधे बैठते हुए अपनी चूचियाँ ऊपर उठा ली, ताकि उनके स्तन देखकर राजकुमार को अपना वीर्य गिराने में सुविधा हो. जल्दी ही विजयवर्मन के लण्ड का सुपाड़ा फूल कर लाल हो गया, उन्होंने अपने दूसरे हाथ से अवंतिका के कंधे को पकड़ कर सहारा लिया, ताकि चरमोत्कर्ष कि इस घड़ी में वो गिर ना जायें, और उनके लण्ड ने ढेर सारा गाढ़ा लस्सेदार वीर्य उगल दिया. अवंतिका ने पूरी कोशिश कि की उनकी छोटी छोटी हथेलीयों में सारा का सारा वीर्य इकठ्ठा हो जाये, और बड़ी ही मुश्किल से उन्होंने वीर्य की एक बूंद मात्र को भी अपनी नन्ही हथेलीयों से बाहर छलकने से रोका. जब विजयवर्मन ने लण्ड का सारा का सारा रस झटक झटक कर झाड़ दिया, तो अवंतिका ने ऊपर नज़रें उठाकर उन्हें देखा, मुस्कुराई, अपनी हथेलीयों में जमा वीर्य को अपने माथे चढ़ाया, फिर अपने होंठों से लगाया, और एक ही घूंट में पूरा वीर्य पी गई !!!

" ये क्या किया आपने अवंतिका ??? ". अचंभित होकर विजयवर्मन ने पूछा.

" आपकी पत्नि होने का केवल मात्र एक छोटा सा कर्तव्य निभाया, भैया !!! ". अवंतिका ने अपनी हथेलीयों में लगे हुए बचे खुचे वीर्य को अपने माथे पर सिर के बालों में पोतते हुए कहा.

प्रेमभावना से सराबोर हो चुके विजयवर्मन के मुँह से एक शब्द भी ना निकल पाया, उन्होंने अवंतिका के कंधे पकड़ कर उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया और खुद भी उनके बगल में लेट गएँ. अवंतिका ने राजकुमार का झड़ा हुआ ढीला पड़ चुका लण्ड अपने हाथ में पकड़ कर अपनी नाभी पर रख लिया और उन्हें अपने बाहों में भरकर सो गई !!!

उस दिन के बाद से अवंतिका ने फिर कभी विजयवर्मन को उनका कामरस अपने पैरों पर नष्ट नहीं करने दिया, अब हर रात विजयवर्मन उन्हें अपना वीर्य पिलाते...

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RE: मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam - by usaiha2 - 24-07-2021, 06:27 PM



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