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मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam
अंदर से दरवाज़े की कुंडी लगाकर विजयवर्मन वापस कक्ष में आ गएँ और जाकर सुहागसेज पर अवंतिका के बगल में बैठ गएँ.

" ना जाने कितने दिन हो गएँ आपका मुखड़ा देखे हुए अवंतिका... आज्ञा हो तो घूँघट उठा कर एक बार देख लूं ? ".

" भाभी जी का प्रस्ताव ठुकराते हुए तो अत्यंत कष्ट हुआ होगा ना राजकुमार ? ". अवंतिका ने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा.

अवंतिका की बात पर विजयवर्मन हँस पड़े.

" ईर्ष्या हो रही है ? हो भी क्यूँ ना ... स्वाभाविक है. अब आप केवल मेरी बहन ही नहीं, पत्नि भी हैं ! ". कहते हुए विजयवर्मन ने अवंतिका का घूँघट ऊपर उठा दिया.

घूँघट के ऊपर उठते ही अवंतिका की आँखे चौंधिया गईं, उसने झट से अपनी आँखे बंद कर ली, और फिर कुछ क्षण रुक कर एकदम धीरे धीरे वापस से अपनी आँखे खोली, तो देखा की उसके भैया - पति उसके सामने हीरे की एक बड़ी सी चमकदार अंगूठी थामे बैठे हुए हैं.

" इतना निर्लज्ज नहीं हूँ मैं कि आपको बिना कोई उपहार भेंट किये आपका चेहरा देखता ! ". विजयवर्मन बोलें, तो अवंतिका ने मुस्कुरा कर अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.

" वैसे चिंता ना कीजिये अवंतिका... आपका चुम्बन लेने के लिए मेरे पास और एक दूसरा उपहार भी है ! ". अवंतिका कि उंगली में अंगूठी पहनाते हुए विजयवर्मन ने कहा, और अपना चेहरा आगे बढ़ा दिया.

परन्तु अवंतिका ने अपनी हथेली विजयवर्मन के होंठों पर रखकर उन्हें रोका, और बोली.

" नहीं भैया... हमें ये सब नहीं करना चाहिए ! "

" क्यूँ अवंतिका ? ".

" मुझे आपके प्राणो का भय है... ".

विजयवर्मन मुस्कुरा दियें, और अपनी उंगली से अवंतिका कि ठुड्डी ऊपर करके उनका चेहरा उठाया, और उनकी आँखों में देखते हुए बोलें.

" अट्ठाईसवे दिन तो वैसे भी मेरे प्राण निकल ही जायेंगे, जब आप मुझसे अलग हो जाएंगी राजकुमार... फिर आज मृत्यु का आलिंगन क्यूँ करूँ ??? मृत्यु को मेरी प्रतीक्षा करने दीजिये... ".

" आप ये सब कैसे कर लेते हैं भैया... भय नहीं लगता आपको ??? ". अवंतिका ने कहा, उनकी बात पूरी होते होते विजयवर्मन ने आगे बढ़कर अपने होंठ उनके होंठों से सटा दियें. कुछ पल के बाद जब दोनों के होंठ अलग हुए तो अवंतिका कि आँखों में आंसू आ चुके थें. उन्होंने विजयवर्मन का चेहरा अपने हाथ से सहलाते हुए कहा. " मैं आपसे दूर चली जाउंगी तो क्या, आप सकुशल रहेंगे, यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात होगी ! "

" एक बार सोच कर देखिये अवंतिका.... ". विजयवर्मन ने कहा. " हम दोनों तो प्रायः अलग हो ही चुके थें कि नियति ने ये अदभुत खेल खेला. क्या आपको नहीं लगता कि ये अपने आपमें कोई साधारण बात नहीं. हमें एक मौका मिला है संग रहने का और अपने प्रेम को पवित्र साबित करने का. और फिर पुरोहित जी ईश्वर तो नहीं जो उनका हरेक वचन सत्य हो !!! ".

अवंतिका कि आँखों में इतनी देर से रुके आंसू अनायास ही छलक पड़े और उनके गालों पर बह चलें. वो बिस्तर पर से अचानक उठी और नीचे उतरकर खड़ी हो गई. विजयवर्मन मुड़ कर उन्हें अचंभित नज़रों से देखकर ये समझने का प्रयास करने लगें कि उनके मन में क्या चल रहा है और वो क्या करना चाहती हैं !

[Image: IMG-20200722-030448.jpg]

अवंतिका एकटक विजयवर्मन को देखती रही और फिर उनके ऊपर से अपनी नज़रें हटाए बिना अपने कान कि बालीयों को खोलने लगीं. कान कि बालीयों के बाद नाक के नथ कि बारी आई, फिर मांगटीका, और फिर मंगलसूत्र और गले का बेशकीमती हार - एक एक करके अवंतिका ने अपने सारे गहने और आभूषण अपने शरीर से अलग कर दियें !

अपनी बहन - पत्नि कि मंशा समझते ही विजयवर्मन अब आराम से बिस्तर पर बैठ गएँ और उनकी हर एक हरकत को बारीकी से निहारने लगें.

इस दौरान अवंतिका ने एक क्षण के लिए भी विजयवर्मन कि आँखों में देखना बंद नहीं किया था. अब वो अपने शादी का लाल जोड़ा उतारने लगी - उन्होंने पहले अपना ब्लाउज़ खोला और फिर अंदर पहनी महीन कपड़े से बनी अंगिया खोल कर अपनी चूचियों को रिहाई दिलाई, फिर अपने घाघरे के नाड़े को हल्का सा ढीला किया तो उनका घाघरा सरसरा कर उनकी पतली कमर का साथ छोड़ कर नीचे सरकते हुए उनके पैरों पर गिर पड़ा. घाघरा खुलते ही विजयवर्मन कि नज़र सीधे अवंतिका कि नाभी के नीचे उनकी दोनों जाँघों के बीच गई, परन्तु उन्हें निराशा ही हाथ लगी - अवंतिका ने अपनी कमर में सोने कि एक मोटी सी करधनी पहन रखी थी, जिससे झूलते हुए सफ़ेद चमकीले झालरदार मोतीयों ने उनकी चूत को इस कदर ढंक रखा था मानो उसकी पहरेदारी कर रहें हो. कुछ भी देख पाना संभव नहीं था और विजयवर्मन को अफ़सोस हो रहा था काश सुहागकक्ष में कुछेक ज़्यादा दीये और मोमबत्तीयां जली हुई होतीं !

ना चाहते हुए भी विजयवर्मन को उस रात अपनी भाभी द्वारा दिए गये अवंतिका के शारीरिक वर्णन कि बात याद आ गई -

(( उनकी सुराहीदार गर्दन नीचे छोटे कंधो से होती हुई उनकी छाती तक पहुँचती है, जहाँ उनके कसे हुए वक्ष सदैव ऊपर कि ओर ही उठे हुए रहते हैं. ऊँचे वक्षस्थल नीचे की ओर पतली लचकदार कमर में परिवर्तित हो गई है. उनकी नाभी गोल नहीं, बल्कि एक लम्बी संकरी छोटी सी लकीर मात्र है. उनकी नाभी से होते हुए उनका पेट नीचे ढलान से मुड़ कर उनकी योनि में जाकर विलीन हो जाता है, और पीछे की ओर विशालकाय, मगर गोल और सुडॉल नितंब में बदल कर बाहर की ओर पुनः निकल पड़ता है. उनकी कोमल मांसल जांघे आपस में हमेशा सटी हुई रहती हैं और इसी कारणवश अगर वो आपके सामने आकर पूर्णतः नंगी भी खड़ी हो जायें, तो उनकी योनि उनकी जंघा के बीच इस भांति छुप जाती है की उसके दर्शन हो पाना दुर्लभ है ))

नग्नावस्था में अवंतिका बिल्कुल वैसी ही दिख रही थी, जैसा कि चित्रांगदा ने वर्नित किया था !!!

अवंतिका जो अब तक विजयवर्मन से नज़रें मिलाये खड़ी थी, अपने वस्त्रहीन शरीर पर उनकी नज़रों कि कटाक्ष से विचलित होने लगी, और लज्जा से अपनी नज़रें झुका ली. कलाईयों में कांच कि चूड़ियों, कमर में करधनी, और पैरों में सोने कि पायल के सिवाय वो अब पूर्णत: नग्न अवस्था में थी ! उन्होंने अपने घाघरे से अपने पैर निकाल कर उसे वहीँ ज़मीन पर छोड़ दिया, और धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए वापस बिस्तर पर आ चढ़ी. सुहागसेज पर चढ़ते समय और अपने भैया - पति के समीप बैठते समय अवंतिका ने इस बात का पूरा ध्यान रखा था कि उसकी नंगी चूत ना दिख जाये !

विजयवर्मन समझ गएँ कि उनकी नवविवाहिता बहन - पत्नि उन्हें तंग करने के उद्धेश्य से ऐसा कर रही है. अपनी बहन कि शरारत पर उन्हें हँसी तो बहुत आ रही थी, परन्तु उन्होंने अपनी हँसी पर काबू रखा, और अवंतिका का हाथ अपने हाथों में लेकर धीरे से बोलें.

" मुझे अपनी योनि के दर्शन नहीं कराईयेगा अवंतिका ??? ".

अपने भाई के मुँह से " योनि " शब्द सुनकर अवंतिका लजा गई, उसके गोरे गालों पर लाली छा गई, और उसकी झुकी हुई पलकें डबडबाने लगीं.

पर विजयवर्मन अपनी बहन को मनाने से कहाँ रुकने वालें थें, उन्होंने अवंतिका का हाथ चूम लिया और फिर से कहा.

" मेरे संयम कि और परीक्षा ना लीजिये राजकुमारी... विनती है मेरी ! ".

" अच्छा भैया... अब समझी मैं. आपकी अधीरता बता रही है कि मेरे साथ सहवास करने हेतु ये सारा कुछ था ! ". अवंतिका ने मुँह बनाते हुए कहा. " अभी अभी तो पवित्र प्रेम कि बातें कर रहें थें ना !!! ".

जवाब में विजयवर्मन कुछ नहीं बोलें.

उन्होंने चुपचाप अवंतिका के दोनों पाँव अपने हाथ में लेकर थोड़ा सा ऊपर उठाया, और नीचे झुक कर उन्हें चूम लिया. अवंतिका अभी ये समझने कि चेष्टा कर ही रही थी कि वो क्या करने वालें हैं, कि उन्होंने ऐसा कुछ किया कि जिसकी उसने कल्पना भी नहीं कि थी - अवंतिका के पाँव अपने एक हाथ में थामे अपने दूसरे हाथ से विजयवर्मन ने अपनी रेशमी धोती से हठात अपना लण्ड बाहर निकाल लिया !!!

" हाय भैया !!! ये क्या ??? ".

अपने भैया - पति का लण्ड इस तरह से अनायास ही एकदम सामने देखकर अवंतिका चिंहुक उठी, शर्म के मारे उसने झट से अपने दोनों हाथों से अपनी आँखे और अपना चेहरा छुपा लिया. तब से वो अपने भाई को इतना परेशान कर रही थी - अब उसकी खैर नहीं. उसे पता था कि अब क्या होने वाला है !!!

परन्तु विजयवर्मन के मन में तो कुछ और ही चल रहा था !

लज्जा से अपने हाथों में अपना मुँह छुपाये अवंतिका अपने भाई के अगले कदम कि प्रतीक्षा करने लगी. उसकी साँसे अनियमित होकर तेज़ चलने लगीं तो उसकी गोल चूचियाँ उसकी छाती पर ऊपर - नीचे ऊपर - नीचे होने लगीं. खुद को अपने भाई के हाथों समर्पण कर देने के सिवाय अब अवंतिका के पास और कोई चारा नहीं बचा था.

अवंतिका कि गहरी चल रही साँसे अचानक से अब रुक गई और उसके दिल कि धड़कन बढ़ गई. आँखे बंद होने के कारण उन्हें कुछ दिखाई तो नहीं दे रहा था, परन्तु वो कल्पना कर सकती थीं कि उनके भाई अभी क्या कर रहें होंगे. अब तक तो शायद उन्होंने अपनी धोती उतार दी होगी, और अब उसकी ओर बढ़ रहें होंगे !!!

ठीक तभी अवंतिका ने अपने पैरों पर कोई गरम गरम सा लस्सेदार गाढ़ा तरल पदार्थ गिरता हुआ महसूस किया ! अचंभित होकर डरते डरते उसने अपने हाथ अपने चेहरे से हटाए, और नीचे देखा तो दंग रह गई !

उनके दोनों पाँव अभी भी विजयवर्मन के हाथ में थें, समीप ही बैठे विजयवर्मन कि धोती से बाहर निकला उनका लण्ड अवंतिका के पाँव पर लुढ़का पड़ा बुरी तरह से फड़क रहा था, और पाँव और पाँव के पायल पूरी तरह से उनके लण्ड से अभी अभी निकले वीर्य से सराबोर भींगे सने पड़े थें !!!

" लीजिये... मैंने आपके चरणों में अपना वीर्यपात कर दिया राजकुमारी. अब मेरा लिंग सहवास के लायक नहीं रहा ! अब आपको मुझसे घबराने कि कोई आवश्यकता नहीं !!! ". विजयवर्मन ने बड़ी ही सावधानी से अपना झड़ा हुआ लण्ड अपने हाथ में पकड़ कर अवंतिका के पाँव से नीचे उतारा, उसके लाल मोटे सुपाड़े से वीर्य कि एक पतली सी धार चू कर नीचे चादर पर गिर पड़ी . " अब तो आपको मेरे प्रेम पर संदेह नहीं ना अवंतिका ??? ".

" ये आपने क्या कर डाला राजकुमार ??? ". अवंतिका ने विजयवर्मन का ढीला पड़ चुका लण्ड आगे बढ़कर अपने हाथ में लेते हुए अफ़सोस जताते हुए कहा. " मैं तो बस आपसे यूँ ही हठ कर रही थी !!! ".

अपने भैया के इस बलिदान से अवंतिका गदगद हो उठी. उसने उनके होंठ चूम लियें, उनका हाथ पकड़ कर अपने जाँघ पर रखा, और फिर उनकी आँखों में आँखे डाल कर सख़्त स्वर में बोली.

" मुझे अब किसी भी बात का भय नहीं रहा भैया. परन्तु एक बात स्मरण रखियेगा...अगर मेरे दोष कि वजह से आपको कुछ भी हुआ, तो मैं भी अपने प्राण त्याग दूंगी !!! "
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RE: मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam - by usaiha2 - 24-07-2021, 06:22 PM



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