24-07-2021, 06:20 PM
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राजकुमार विजयवर्मन और राजकुमारी अवंतिका के विवाह की तिथि बारह दिन बाद तय हुई. इस दौरान पुरोहित जी के बताये नियमानुसार इन बारह दिनों तक दोनों भाई बहन को एक दूसरे से मिलने या उनके निकट तक जाने की अनुमति नहीं थी, ऐसा अगर किसी कारणवश हो जाये तो वो बहुत बड़ा अपशकुन होगा, और सारी विधि वृथा हो जाएगी. यही नहीं, अगर दोनों ने एक दूसरे को देख भी लिया, तो फिर ये विवाह नहीं होगा, फलस्वरुप, अवंतिका का दोष निवारण नहीं हो पायेगा और उसे आजीवन कुंवारी ही रहना पड़ेगा. विवाह का दिन आने तक अवंतिका को प्रत्येक दिन हल्दी लगाई जाती थी और उसे दूध से नहलाया जाता था.
विजयवर्मन ने पहले की भांति हर रात अपनी भाभी चित्रांगदा को चोदने के लिए अपने बड़े भाई देववर्मन के शयनकक्ष में जाना छोड़ दिया. देववर्मन ने उन्हें आने के लिए बुलावा भी भेजा, मगर विजयवर्मन ने साफ इंकार कर दिया. ऐसा आज तक नहीं हुआ था की देववर्मन कुछ बोले और विजयवर्मन उनकी आज्ञा का पालन ना करें - परन्तु अब देववर्मन को अपने भाई में आ रहा परिवर्तन स्पष्ट दिख रहा था. ईर्ष्या और द्वेष की अग्नि में जल रहे देववर्मन ने अपने कक्ष से बाहर निकलना बंद कर दिया, यहाँ तक की महाराजा और महारानी तक से भी बात करना छोड़ दिया. बस हर वक़्त अपने कक्ष में बैठे मदिरा में डूबे रहने लगें.
दूसरी ओर चित्रांगदा अब अधिकतर समय अवंतिका के साथ उसकी सहेली की तरह रहने लगी, उसे हल्दी लगाने, मेहंदी लगाने और स्नान कराने में वो बाकि दासीयों के साथ ही रहा करती थी.
विजयवर्मन तो अपनी बहन के साथ विवाह होने की प्रतीक्षा में दिन गिन रहें थें , परन्तु अवंतिका का हाल इसके बिल्कुल ही विपरीत था, उन्हें समझ नहीं आ रहा था की उन्हें खुश होना चाहिए या दुखी - पुरोहित जी के वैवाहिक सुख से परहेज करने के विचित्र शर्त ने उन्हें असमंजस में डाल दिया था !
आखिर विवाह की घड़ी निकट आ ही गई.
अवंतिका और विजयवर्मन का विवाह राजमहल में ही अवस्थित कुलदेवता के मंदिर में बिना किसी धूम धाम के मात्र परिवारजनों की उपस्थिति में और स्वयं पुरोहित जी की देख रेख में पूरे विधि विधान से संपन्न हुआ. ये विवाह कम, और किसी पूजा पाठ का आयोजन ज़्यादा लग रहा रहा था. देववर्मन विवाह में उपस्थित नहीं थें.
सुहागरात के लिए एक बड़े से भव्य शयनकक्ष को मुख्य रूप से सजाया गया था.
विवाह के उपरांत अवंतिका की कुछ खास दासीयां और चित्रांगदा उन्हें और विजयवर्मन को सुहागकक्ष तक ले आई. द्वार पर पहुँच कर दासीयां वर वधु से हँसी ठिठोली करने लगीं. राजमहल में सभी को विजयवर्मन और अवंतिका के प्रेम प्रसंगों के बारे में पता था, सिवाय महाराजा और महारानी के. यही कारण था की इस विवाह से अवंतिका की सभी दासीयां अत्यंत प्रसन्न थीं, परन्तु विवाह के कठोर नियम और शर्त वहाँ उस वक़्त मौजूद लोगों में से केवल मात्र विजयवर्मन, अवंतिका, और चित्रांगदा को ही मालूम थें !
" हमारी राजकुमारी बहुत कोमल हैं... अपने कठोर हाथ उनसे दूर ही रखियेगा राजकुमार ! ". एक दासी ने कहा.
" और नहीं तो क्या, नहाने के पानी में अगर गुलाब के फूलों की मात्रा तनिक अधिक हो जाये, तो राजकुमारी के अंग छिल जाते हैं ! ". तो दूसरी दासी बोली.
" मुझे नहीं लगता की राजकुमार पूरी रात सिर्फ मीठी मीठी बातें करके ही कटायेंगे ! ". और एक दासी बोली.
" अब तो सुबह राजकुमारी के स्नान के समय ही पता चलेगा की उनके किस किस अंग में क्या क्या और कितनी क्षति हुई है ! ". चौथी दासी ने कहा.
सभी दासीयां खिलखिला कर हँसने लगीं.
" निर्लज्ज लड़कियों... अब भागो यहाँ से. राजकुमार और राजकुमारी के विश्राम का समय हो चला है ! ". चित्रांगदा ने दासीयों को डांट डपट लगाई.
" हमें तो नहीं लगता की राजकुमार और राजकुमारी जी पूरी रात सिर्फ विश्राम करेंगे ! ". फिर से किसी दासी ने कहा तो सभी दासीयां हँस पड़ी.
" देवर जी... इन ढीठ लड़कियों को कुछ उपहार दे दीजिये, वर्ना ये लोग यहाँ से जायेंगी नहीं और आपको ऐसे ही तंग करती रहेंगी ! ". चित्रांगदा ने विजयवर्मन से कहा.
विजयवर्मन ने अपने शरीर से कुछ आभूषण और मोतीयों की मालायें उतार कर दासीयों को भेंट दी, तो वो सभी हँसती खिलखिलाती वहाँ से चली गई.
विजयवर्मन और अवंतिका अब जब अंदर प्रवेश करने को आगे बढे तो चित्रांगदा ने उन्हें रोका.
" अरे अरे... ये क्या ? नववधु का सुहागकक्ष में अपने पैरों पर चल कर जाना अशुभ माना जाता है. चलिए देवर जी, अवंतिका को अपनी गोद में उठाइये ! "
विजयवर्मन ने अवंतिका को देखा तो वो लजा गई.
" जैसी भाभी जी की आज्ञा... ". विजयवर्मन ने मुस्कुराते हुए कहा, और अपनी बहन को अपने मजबूत बाहों में उठाकर कक्ष की दहलीज पार करके अंदर दाखिल हो गएँ.
सुहागसेज को गुलाब और अन्य कई सारे फूलों से इस कदर सजाया गया था की बिस्तर की चादर तनिक भी नज़र नहीं आ रही थी और ऐसा प्रतीत हो रहा था की मानो पूरा बिछावन फूलों से ही निर्मित हो. पूरा कक्ष इत्र की खुशबु से सुगंधित हो पड़ा था.
" और भी कोई सेवा हो तो बता दीजिये भाभी जी... ". विजयवर्मन ने अवंतिका को बिस्तर पर उतारते हुए मज़ाक में कहा.
" नहीं... बस... आभारी हैं हम दोनों आपके. ". चित्रांगदा ने हँसते हुए कहा, फिर बिस्तर पर बैठी अवंतिका के कान में अपने होंठ सटाकर एकदम धीमे स्वर में बुदबुदाते हुए बोली. " मुझे पता है की आप दोनों इस घड़ी का शायद स्वप्न में बरसों से प्रतीक्षा कर रहें होंगे, परन्तु बहक मत जाइएगा... पुरोहित जी के वचन याद हैं ना ??? ".
अवंतिका ने घूँघट में धीरे से सिर हिला दिया. चित्रांगदा अब उसे छोड़ चल कर विजयवर्मन के पास आई और उनसे कहा.
" वैसे आप चाहें तो आज की रात मैं यहीं रुक जाती हूँ देवर जी... अवंतिका की ना सही, आपकी सुहागरात तो मन जाएगी !!! ".
" आपका ह्रदय बहुत विशाल है भाभी जी... परन्तु मुझे लगता है की आज की रात भैया देववर्मन को आपकी अधिक आवश्यकता पड़ेगी ! ". विजयवर्मन ने हँसते हुए कहा और चित्रांगदा को उनके कंधो से पकड़ कर दरवाज़े तक ले गएँ, और बोलें. " भैया को हम दोनों का प्रणाम कहियेगा भाभी जी ! ".
" प्रेम में अपने प्राण ना गवां बैठियेगा राजकुमार !!! ". चित्रांगदा ने अपना हाथ विजयवर्मन की छाती पर रख कर उन्हें हल्का सा धक्का दिया और मुस्कुराते हुए कक्ष से बाहर जाते हुए दरवाज़ा बंद कर गई.
राजकुमार विजयवर्मन और राजकुमारी अवंतिका के विवाह की तिथि बारह दिन बाद तय हुई. इस दौरान पुरोहित जी के बताये नियमानुसार इन बारह दिनों तक दोनों भाई बहन को एक दूसरे से मिलने या उनके निकट तक जाने की अनुमति नहीं थी, ऐसा अगर किसी कारणवश हो जाये तो वो बहुत बड़ा अपशकुन होगा, और सारी विधि वृथा हो जाएगी. यही नहीं, अगर दोनों ने एक दूसरे को देख भी लिया, तो फिर ये विवाह नहीं होगा, फलस्वरुप, अवंतिका का दोष निवारण नहीं हो पायेगा और उसे आजीवन कुंवारी ही रहना पड़ेगा. विवाह का दिन आने तक अवंतिका को प्रत्येक दिन हल्दी लगाई जाती थी और उसे दूध से नहलाया जाता था.
विजयवर्मन ने पहले की भांति हर रात अपनी भाभी चित्रांगदा को चोदने के लिए अपने बड़े भाई देववर्मन के शयनकक्ष में जाना छोड़ दिया. देववर्मन ने उन्हें आने के लिए बुलावा भी भेजा, मगर विजयवर्मन ने साफ इंकार कर दिया. ऐसा आज तक नहीं हुआ था की देववर्मन कुछ बोले और विजयवर्मन उनकी आज्ञा का पालन ना करें - परन्तु अब देववर्मन को अपने भाई में आ रहा परिवर्तन स्पष्ट दिख रहा था. ईर्ष्या और द्वेष की अग्नि में जल रहे देववर्मन ने अपने कक्ष से बाहर निकलना बंद कर दिया, यहाँ तक की महाराजा और महारानी तक से भी बात करना छोड़ दिया. बस हर वक़्त अपने कक्ष में बैठे मदिरा में डूबे रहने लगें.
दूसरी ओर चित्रांगदा अब अधिकतर समय अवंतिका के साथ उसकी सहेली की तरह रहने लगी, उसे हल्दी लगाने, मेहंदी लगाने और स्नान कराने में वो बाकि दासीयों के साथ ही रहा करती थी.
विजयवर्मन तो अपनी बहन के साथ विवाह होने की प्रतीक्षा में दिन गिन रहें थें , परन्तु अवंतिका का हाल इसके बिल्कुल ही विपरीत था, उन्हें समझ नहीं आ रहा था की उन्हें खुश होना चाहिए या दुखी - पुरोहित जी के वैवाहिक सुख से परहेज करने के विचित्र शर्त ने उन्हें असमंजस में डाल दिया था !
आखिर विवाह की घड़ी निकट आ ही गई.
अवंतिका और विजयवर्मन का विवाह राजमहल में ही अवस्थित कुलदेवता के मंदिर में बिना किसी धूम धाम के मात्र परिवारजनों की उपस्थिति में और स्वयं पुरोहित जी की देख रेख में पूरे विधि विधान से संपन्न हुआ. ये विवाह कम, और किसी पूजा पाठ का आयोजन ज़्यादा लग रहा रहा था. देववर्मन विवाह में उपस्थित नहीं थें.
सुहागरात के लिए एक बड़े से भव्य शयनकक्ष को मुख्य रूप से सजाया गया था.
विवाह के उपरांत अवंतिका की कुछ खास दासीयां और चित्रांगदा उन्हें और विजयवर्मन को सुहागकक्ष तक ले आई. द्वार पर पहुँच कर दासीयां वर वधु से हँसी ठिठोली करने लगीं. राजमहल में सभी को विजयवर्मन और अवंतिका के प्रेम प्रसंगों के बारे में पता था, सिवाय महाराजा और महारानी के. यही कारण था की इस विवाह से अवंतिका की सभी दासीयां अत्यंत प्रसन्न थीं, परन्तु विवाह के कठोर नियम और शर्त वहाँ उस वक़्त मौजूद लोगों में से केवल मात्र विजयवर्मन, अवंतिका, और चित्रांगदा को ही मालूम थें !
" हमारी राजकुमारी बहुत कोमल हैं... अपने कठोर हाथ उनसे दूर ही रखियेगा राजकुमार ! ". एक दासी ने कहा.
" और नहीं तो क्या, नहाने के पानी में अगर गुलाब के फूलों की मात्रा तनिक अधिक हो जाये, तो राजकुमारी के अंग छिल जाते हैं ! ". तो दूसरी दासी बोली.
" मुझे नहीं लगता की राजकुमार पूरी रात सिर्फ मीठी मीठी बातें करके ही कटायेंगे ! ". और एक दासी बोली.
" अब तो सुबह राजकुमारी के स्नान के समय ही पता चलेगा की उनके किस किस अंग में क्या क्या और कितनी क्षति हुई है ! ". चौथी दासी ने कहा.
सभी दासीयां खिलखिला कर हँसने लगीं.
" निर्लज्ज लड़कियों... अब भागो यहाँ से. राजकुमार और राजकुमारी के विश्राम का समय हो चला है ! ". चित्रांगदा ने दासीयों को डांट डपट लगाई.
" हमें तो नहीं लगता की राजकुमार और राजकुमारी जी पूरी रात सिर्फ विश्राम करेंगे ! ". फिर से किसी दासी ने कहा तो सभी दासीयां हँस पड़ी.
" देवर जी... इन ढीठ लड़कियों को कुछ उपहार दे दीजिये, वर्ना ये लोग यहाँ से जायेंगी नहीं और आपको ऐसे ही तंग करती रहेंगी ! ". चित्रांगदा ने विजयवर्मन से कहा.
विजयवर्मन ने अपने शरीर से कुछ आभूषण और मोतीयों की मालायें उतार कर दासीयों को भेंट दी, तो वो सभी हँसती खिलखिलाती वहाँ से चली गई.
विजयवर्मन और अवंतिका अब जब अंदर प्रवेश करने को आगे बढे तो चित्रांगदा ने उन्हें रोका.
" अरे अरे... ये क्या ? नववधु का सुहागकक्ष में अपने पैरों पर चल कर जाना अशुभ माना जाता है. चलिए देवर जी, अवंतिका को अपनी गोद में उठाइये ! "
विजयवर्मन ने अवंतिका को देखा तो वो लजा गई.
" जैसी भाभी जी की आज्ञा... ". विजयवर्मन ने मुस्कुराते हुए कहा, और अपनी बहन को अपने मजबूत बाहों में उठाकर कक्ष की दहलीज पार करके अंदर दाखिल हो गएँ.
सुहागसेज को गुलाब और अन्य कई सारे फूलों से इस कदर सजाया गया था की बिस्तर की चादर तनिक भी नज़र नहीं आ रही थी और ऐसा प्रतीत हो रहा था की मानो पूरा बिछावन फूलों से ही निर्मित हो. पूरा कक्ष इत्र की खुशबु से सुगंधित हो पड़ा था.
" और भी कोई सेवा हो तो बता दीजिये भाभी जी... ". विजयवर्मन ने अवंतिका को बिस्तर पर उतारते हुए मज़ाक में कहा.
" नहीं... बस... आभारी हैं हम दोनों आपके. ". चित्रांगदा ने हँसते हुए कहा, फिर बिस्तर पर बैठी अवंतिका के कान में अपने होंठ सटाकर एकदम धीमे स्वर में बुदबुदाते हुए बोली. " मुझे पता है की आप दोनों इस घड़ी का शायद स्वप्न में बरसों से प्रतीक्षा कर रहें होंगे, परन्तु बहक मत जाइएगा... पुरोहित जी के वचन याद हैं ना ??? ".
अवंतिका ने घूँघट में धीरे से सिर हिला दिया. चित्रांगदा अब उसे छोड़ चल कर विजयवर्मन के पास आई और उनसे कहा.
" वैसे आप चाहें तो आज की रात मैं यहीं रुक जाती हूँ देवर जी... अवंतिका की ना सही, आपकी सुहागरात तो मन जाएगी !!! ".
" आपका ह्रदय बहुत विशाल है भाभी जी... परन्तु मुझे लगता है की आज की रात भैया देववर्मन को आपकी अधिक आवश्यकता पड़ेगी ! ". विजयवर्मन ने हँसते हुए कहा और चित्रांगदा को उनके कंधो से पकड़ कर दरवाज़े तक ले गएँ, और बोलें. " भैया को हम दोनों का प्रणाम कहियेगा भाभी जी ! ".
" प्रेम में अपने प्राण ना गवां बैठियेगा राजकुमार !!! ". चित्रांगदा ने अपना हाथ विजयवर्मन की छाती पर रख कर उन्हें हल्का सा धक्का दिया और मुस्कुराते हुए कक्ष से बाहर जाते हुए दरवाज़ा बंद कर गई.