24-07-2021, 06:19 PM
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" राजकुमार विजयवर्मन कहाँ हैं ? ". महाराजा नंदवर्मन ने पूछा.
सभाकक्ष में सभी कोई मौजूद थें, महाराजा नंदवर्मन, महारानी वैदेही, राजकुमारी अवंतिका, राजकुमार देववर्मन और उनकी पत्नि चित्रांगदा. परिवारजनों को छोड़ कर और किसी को भी वहाँ उपस्थित रहने की आज्ञा नहीं थी, दास दासी को भी बाहर भेज दिया गया था. पुरोहित जी अपनी बात शुरू करने के लिए बस राजकुमार विजयवर्मन की प्रतीक्षा कर रहें थें.
महाराजा नंदवर्मन अभी विजयवर्मन को बुलाने के लिए किसी को भेजनें की सोच ही रहें थें, की उन्होंने कक्ष में तेज़ कदमो से प्रवेश किया.
" विलम्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ... ". कहते हुए विजयवर्मन ने अपना स्थान ग्रहण कर लिया .
अवंतिका ने सबसे नज़रें चुरा कर उन्हें देखा.
चित्रांगदा ने मन ही मन मुस्कुराते हुए उन्हें सिर से लेकर पांव तक एक बार निहारा.
देववर्मन ने उन्हें द्वेषपूर्ण तीरछी नज़रों से घूरा.
परन्तु विजयवर्मन ने किसी को ना देखा और ना ही उनपर ध्यान दिया.
" आज्ञा हो तो सभा शुरू की जाये महाराज... ". पुरोहित जी ने कहा.
" अवश्य पुरोहित जी... ". महाराजा नंदवर्मन बोलें, फिर सबकी ओर देखते हुए उन्होंने कहना शुरू किया. " जैसा की आप सबों को ज्ञात है की राजकुमारी अवंतिका का ब्याह मरूराज्य नरेश हर्षपाल से तय हो चुका है. महाराजा हर्षपाल ने स्वयं स्वीकार किया है की हमारे राज्य से रिश्ता जोड़ना उनके लिए अपार सौभाग्य की बात होगी. वहीँ दूसरी ओर इस सम्बन्ध से हमारे राज्य का गौरव और मर्यादा तो बढ़ेगी ही, साथ ही हमारे राज्य की शक्ति में भी अपार बढ़ोतरी होगी. परन्तु... ". महाराजा नंदवर्मन एक क्षण के लिए रुकें, पुरोहित जी की ओर देखा, और फिर कहा. " परन्तु पुरोहित जी ने हमें एक अत्यंत अदभुत बात बताई है, जो की हमारी चिंता और दुविधा का कारण है. एक ऐसी विचित्र बात जो की हमने ना कभी सुनी ना कभी देखी है. और उसी बात पर विचार विमर्श करने के लिए हमने आप सबों को यहाँ आने का कष्ट दिया है. "
महारानी वैदेही ने महाराज के रुकते ही पुरोहित जी से कहा.
" पुरोहित जी, हम चाहते हैं की आप ही वो बात हम सभी को बतायें... ".
विजयवर्मन, देववर्मन, चित्रांगदा और अवंतिका, सबके चेहरे पर कौतुहल साफ झलक रहा था, सभी की नज़रें अब पुरोहित जी पर टिकी हुई थी, तो पुरोहित जी ने कहना शुरू किया.
" जैसा की महाराज ने कहा, ये एक अदभुत बात है, मगर ऐसा कुछ भी नहीं जो पंडितों और पुरोहितों को ज्ञात ना हो. ये बात और है की ऐसा देखने में बहुत ही कम मिलता है ! "
" पहेलियाँ ना बुझाईये पुरोहित जी, स्पष्ट कहिये की आखिर बात क्या है. " देववर्मन ने अधीर होते हुए कहा.
" अवश्य राजकुमार... ". पुरोहित जी मुस्कुराये, फिर कहा . " राजकुमारी में एक दोष है... ".
" दोष ??? तनिक संभल कर बोलिये पुरोहित जी... आप हमारी छोटी राजकुमारी के बारे में बात कर रहें हैं ! ". चित्रांगदा ने बीच में ही टोका.
" कुलवधु चित्रांगदा... पुरोहित जी को अपनी बात समाप्त तो करने दीजिये. ". महाराजा नंदवर्मन ने चित्रांगदा को देखते हुए कहा, तो उसने विनम्रता से अपनी नज़रें झुका ली.
पुरोहित जी ने आगे कहा.
" मुझे ये दुखद बात राजकुमारी की कुंडली देखकर पता चली. इसे मरणमान्यवर दोष कहते हैं. ये एक अत्यंत शक्तिशाली और जटिल दोष है... ".
सभी ध्यान से सुनने लगें.
" जिस कन्या में ये दोष होता है, अगर उस कन्या का विवाह किसी पुरुष से हो जाये, तो अत्यंत कम समय में उस पुरुष के प्राण जाना सुनिश्चित है ! "
इतना कहकर पुरोहित जी इस बार स्वयं ही रुक गएँ, और वहाँ मौजूद परिवार के लोगों के प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करने लगें. सबसे पहले देववर्मन की ओर से प्रश्न आया.
" यानि आप कह रहें हैं की हमारी बहन का विवाह नहीं हो सकता ? ".
" बिलकुल सटीक राजकुमार... ". पुरोहित जी ने कहा.
" और इसका उपाय... मेरा तात्पर्य है की कोई पूजा पाठ ? ". चित्रांगदा ने पूछा.
" नहीं बहुरानी... ".
अवंतिका और विजयवर्मन चुप रहें.
" परन्तु हम ये कैसे मान लें की आप जो कुछ भी कह रहें हैं वो सत्य है ? ". देववर्मन ने क्षोभ भरे स्वर में कहते हुए विजयवर्मन की ओर देखा.
" मैं झूठ नहीं बोलता राजकुमार... ". पुरोहित जी मुस्कुराये.
देववर्मन की गलती समझते ही महारानी वैदेही ने तुरंत कहा.
" नहीं नहीं पुरोहित जी, देववर्मन का ये मतलब कदापि नहीं था. वो शायद ये पूछना चाह रहें हैं की कुंडली देखने में अगर कोई गलती हुई हो या फिर इस दोष का तात्पर्य वैसा ना हो जैसा आपने बताया... ".
" आपको मेरे कथन पर विश्वास करने की कोई आवश्यकता नहीं राजकुमार...परन्तु मैंने जो देखा है वो कोई भी झुठला नहीं सकता ! ". पुरोहित जी ने कहा.
चित्रांगदा उठ खड़ी हुई और अवंतिका के समीप जाकर उसके कंधे पर सांत्वनापूर्वक अपने दोनों हाथ रखते हुए बोली.
" कृपया अब आप ही इस दोष का निवारण निकालिये पुरोहित जी... ".
" इसका कोई हल नहीं है बहुरानी... ". पुरोहित जी ने कहा, फिर थोड़ा रूककर सोचते हुए बोलें. " सिवाय एक उपाय के ! "
" तो फिर जल्दी बताइये ना पुरोहित जी... ". देववर्मन की ख़ुशी वापस लौट आई.
अवंतिका और विजयवर्मन भली भांति जानते थें की इस वक़्त देववर्मन के मन में क्या चल रहा है.
पुरोहित जी ने महाराजा और महारानी की ओर देखा, मानो की अपनी अगली बात कहने की आज्ञा मांग रहें हों. महाराजा नंदवर्मन ने धीरे से अपना सिर हिलाकर स्वीकृति दे दी. ऐसा लग रहा था की पुरोहित जी जो बात बताने वाले थें, वो बात महाराजा और महारानी को पहले से ही ज्ञात था, और उसी बात पर विचार विमर्श करने के लिए परिवारजनों की ये सभा बुलाई गई थी !
पुरोहित जी ने अपने एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा.
" अगर कन्या का प्रथम विवाह उसके अपने ही भाई से हो जाये तो ये दोष अमान्य होकर टल सकता है !!! ".
देववर्मन और चित्रांगदा को जैसे सांप सूंघ गया हो. पहली बार विजयवर्मन और अवंतिका ने अपनी नज़रें उठाकर पुरोहित जी को देखा. महाराजा और महारानी चुप रहें.
" ये आप क्या कह रहें हैं पुरोहित जी ??? ". चित्रांगदा के मुँह से धीरे से निकला, जैसे की वो पुरोहित जी से नहीं, खुद अपने आप से ही ये प्रश्न पूछ रही हो.
" यही वो अदभुत और विचित्र बात है जिसके बारे में आप सबों की राय जानने हेतु आपलोगों को यहाँ बुलाया गया है, ना की अवंतिका के दोष वाली बात के लिए ! ". महाराजा नंदवर्मन ने स्पष्ट किया.
" तनिक ठहरिये पुरोहित जी... ". देववर्मन ने कहा. " तो अगर कन्या अपने ही भाई से विवाह कर ले तो फिर इस दोष का मतलब क्या रहा ??? ".
" मैंने कहा प्रथम विवाह !!! ". पुरोहित जी समझाते हुए बोलें. " यानि की दोष काटने के लिए किये जाने वाला विवाह, ना की संसार बसाने के लिए किये जाने वाला ! भाई बहन इस विवाह के बंधन में केवल मात्र सत्ताईस दिनों के लिए बंधे रहेंगे. अट्ठाईसवे दिन एक छोटी सी पूजा होगी, जिसके उपरांत उन दोनों का सम्बन्ध विच्छेद हो जायेगा, और फिर कन्या को पहले की भांति कुंवारी होने की मान्यता मिल जाएगी. उसका दोष सत प्रतिशत नष्ट हो जायेगा. फिर कन्या अपने मन चाहे वर या अपने माता पिता द्वारा तय किये गये पुरुष से विवाह कर सकती है !!! ".
पुरोहित जी की बात पूरी होते ही सभाकक्ष में चुप्पी छा गई. फिर कुछ देर बाद चित्रांगदा ने पूछा.
" और जिस कन्या का कोई भाई ही ना हो ??? ".
" अच्छा प्रश्न है बहुरानी... ". पुरोहित जी ने मुस्कुरा कर कहा. " फिर तो वो अभागन कन्या आजीवन कुंवारी ही रह जाएगी. कम से कम उसके दोष के बारे में जान कर तो कोई उससे विवाह करने को प्रस्तुत नहीं होगा. ".
" लेकिन अपना भाई ही क्यूँ पुरोहित जी ??? ". इस बार महाराजा नंदवर्मन ने पूछा.
" भाई बहन का रिश्ता पवित्र होता है महाराज. अगर उनमें किसी कारणवश विवाह हो भी जाये तो सामजिक तौर पर वो कभी भी मान्य नहीं हो सकता. कन्या का भाई भला उसका पति कैसे हो सकता है ? इस दोष वाली कन्या के प्रथम पति की मृत्यु तय है. परन्तु जब प्रथम पति उसका अपना भाई ही हो, तो वो सम्बन्ध तो वैसे भी अमान्य ही है, फिर किसकी और कैसी मृत्यु ??? "
" मैं आपका क्षमाप्रार्थी हूँ पुरोहित जी, मैंने आपके ज्ञान पर संदेह किया ! ". देववर्मन ने हाथ जोड़ कर मुस्कुराते हुए कहा, फिर विजयवर्मन की ओर देखा, और फिर अवंतिका की ओर, और ऊँचे स्वर में कहा. " अवंतिका की भलाई हेतु मैं उनसे विवाह करने को तैयार हूँ !!! ".
चित्रांगदा ने चौंकते हुए अपने पति को देखा, राजकुमार देववर्मन का चेहरा वासना और हवस से चमक रहा था.
" यानि आप सबों को ये प्रस्ताव मंजूर है ? ". पुरोहित जी ने पूछा.
" जी पुरोहित जी... ". महाराजा नंदवर्मन बोलें.
" हमने तो पहले ही इसकी स्वीकृति दे दी थी, बस बाकि सबों का मत जानना था ! ". महारानी वैदेही ने कहा.
" क्षमा कीजिये माते... परन्तु मुझे लगता है की ये जिसके भविष्य की बात है, उसकी इस बारे में राय सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है ! ". पहली बार विजयवर्मन ने अपना मुँह खोला, तो अवंतिका उनको देखने लगी.
" अवश्य ही राजकुमार... ". महाराजा नंदवर्मन ने कहा, फिर अवंतिका से पूछा. " बेटी अवंतिका, आप निःसंकोच होकर अपने मन की बात कह सकती हैं ! "
" दोष तो मेरा ही है ना पिताश्री... ". अवंतिका ने बिना नज़रें उठाये ही कहा. " मुझे आप बड़े जनों का कहा मानने में कोई आपत्ति नहीं ! ".
देववर्मन की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा, उन्होंने हँसते हुए चित्रांगदा की ओर देखा, तो उसने अपना मुँह फेर लिया.
" और हाँ राजकुमार देववर्मन... ". पुरोहित जी ने देववर्मन से कहा. " आप अवंतिका से विवाह नहीं कर सकतें !!! ".
अचानक से देववर्मन के चेहरे का रंग उड़ गया, उन्होंने मूर्ख की तरह सभाकक्ष में बैठे सभी लोगों को देखा, और फिर धीरे से पूछा.
" मतलब पुरोहित जी ??? ".
" आप पहले से ही विवाहित हैं राजकुमार... ".
" हाँ तो ??? अवंतिका के होने वाले पति मरूराज्य नरेश हर्षपाल की भी तो 23 पत्नियां हैं... फिर भी वो हमारी बहन से विवाह कर रहें हैं ! ". देववर्मन ने कहा. " और वैसे भी मैं ज्येष्ठ पुत्र हूँ... इस नाते हमारी बहन की सहायता करने का अधिकार केवल मात्र मेरा ही तो हुआ ना पुरोहित जी ? ".
" ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते आपका अनेक चीज़ो पर अधिकार हो सकता है राजकुमार...परन्तु इस सन्दर्भ में नहीं !!! विधि अनुसार कन्या का विवाह उसके कुंवारे भाई से होना होगा. " पुरोहित जी ने कहा, फिर विजयवर्मन की ओर दिखाकर बोलें. " राजकुमारी अवंतिका का प्रथम विवाह राजकुमार विजयवर्मन से होगा !!! ".
चित्रांगदा के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान दौड़ गई. देववर्मन का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा, गुस्से में उनके मुँह से शब्द नहीं निकले, फिर वो एकाएक खड़े हो गएँ, और अत्यंत ऊँचे स्वर में कहा.
" आप सबों की मति भ्रष्ट हो गई है ! अपने सगे भाई से विवाह ??? ये क्या मूर्खता है ? मैं इस घृणित प्रस्ताव का विरोध करता हूँ !!! ".
किसी ने भी देववर्मन की बात का कोई जवाब नहीं दिया.
" आप सभी इस पाप के भागी बनेंगे ! ". देववर्मन ने जब देखा की उनकी बात का किसी पर कोई असर नहीं पड़ा है, तो वो चिल्लाकर बोलें, और गुस्से से कांपते हुए सभाकक्ष से बाहर चले गएँ.
अपने पति के बाहर जाते ही चित्रांगदा ने राहत की एक ठंडी साँस ली और अवंतिका के कंधे को दबा कर उसे आस्वस्त किया.
कक्ष में कुछ देर की शांति के बाद महाराजा नंदवर्मन ने कहा.
" कल रात ही हमने ये समाचार मरूराज्य नरेश हर्षपाल को भिजवा दिया था. उन्होंने जवाब देने में काफ़ी शीघ्रता दिखाई. आज सुबह ही हमारा दूत वापस सन्देश लेकर आया है की उन्हें इस विधि से कोई आपत्ति नहीं. विधि के पूरा होते ही वो अवंतिका से विवाह करके उसे अपनी पत्नि के रूप में स्वीकार कर लेंगे !!! ".
" ये तो बहुत अच्छी बात है... ". चित्रांगदा ने नीचे झुककर अवंतिका की आँखों में आँखे डालकर कहा. मगर अवंतिका कुछ ना बोली.
" अवंतिका और विजयवर्मन के विवाह की तैयारी कीजिये महाराज. मैं स्वयं सारी प्रक्रिया पूरी करुंगा... चिंता ना करें ! ". पुरोहित जी ने महाराजा और महारानी की ओर देखते हुए कहा.
" धन्यवाद पुरोहित जी... ". महाराजा नंदवर्मन और महारानी वैदेही ने एक साथ हाथ जोड़कर कहा.
" अब तो खुश हो ना राजकुमारी अवंतिका ??? ". चित्रांगदा ने बहुत ही धीमे स्वर में अवंतिका की पीठ पर चिकोटी काटते हुए उसके कान में फुसफुसा कर कहा. अवंतिका मन ही मन मुस्कुरा उठी, पर अपनी भाभी को कोई जवाब नहीं दिया.
पुरोहित जी ने अब विजयवर्मन और अवंतिका को सम्बोधित करते हुए कहा.
" याद रखियेगा राजकुमार विजयवर्मन और राजकुमारी अवंतिका... ये विवाह केवल अवंतिका के मरणमान्यवर दोष को काटने का हथियार मात्र है. आप दोनों विवाह के उपरांत सत्ताईस दिनों तक पति पत्नि के रूप में एक साथ एक ही कक्ष में रहेंगे, परन्तु वैवाहिक सुख का उपभोग नहीं करेंगे. अगर आपने ऐसी कोई भी गलती की तो राजकुमार विजयवर्मन के प्राण भी जा सकते हैं, अगर आप सत्ताईस दिन से एक दिन भी ज़्यादा एक दूसरे के साथ पति पत्नि की तरह रहें, तो भी राजकुमार विजयवर्मन के प्राण जा सकतें हैं !!! इस बात का ध्यान रहे... ".
विजयवर्मन और अवंतिका ने विनम्रता से सिर हिला कर पुरोहित जी की बात को मानने और समझने की हामी भरी, और फिर एक साथ पुरोहित जी और महाराजा तथा महारानी के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लिया.
सभा भंग हुई.
जाते जाते विजयवर्मन और अवंतिका की नज़रें एक दूसरे से मिली, विजयवर्मन के चेहरे पर तो एक मुस्कान थी, परन्तु अवंतिका के सुंदर मुखड़े पर किसी कारणवश चिंता की काली छाया मंडरा रही थी !!!
" राजकुमार विजयवर्मन कहाँ हैं ? ". महाराजा नंदवर्मन ने पूछा.
सभाकक्ष में सभी कोई मौजूद थें, महाराजा नंदवर्मन, महारानी वैदेही, राजकुमारी अवंतिका, राजकुमार देववर्मन और उनकी पत्नि चित्रांगदा. परिवारजनों को छोड़ कर और किसी को भी वहाँ उपस्थित रहने की आज्ञा नहीं थी, दास दासी को भी बाहर भेज दिया गया था. पुरोहित जी अपनी बात शुरू करने के लिए बस राजकुमार विजयवर्मन की प्रतीक्षा कर रहें थें.
महाराजा नंदवर्मन अभी विजयवर्मन को बुलाने के लिए किसी को भेजनें की सोच ही रहें थें, की उन्होंने कक्ष में तेज़ कदमो से प्रवेश किया.
" विलम्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ... ". कहते हुए विजयवर्मन ने अपना स्थान ग्रहण कर लिया .
अवंतिका ने सबसे नज़रें चुरा कर उन्हें देखा.
चित्रांगदा ने मन ही मन मुस्कुराते हुए उन्हें सिर से लेकर पांव तक एक बार निहारा.
देववर्मन ने उन्हें द्वेषपूर्ण तीरछी नज़रों से घूरा.
परन्तु विजयवर्मन ने किसी को ना देखा और ना ही उनपर ध्यान दिया.
" आज्ञा हो तो सभा शुरू की जाये महाराज... ". पुरोहित जी ने कहा.
" अवश्य पुरोहित जी... ". महाराजा नंदवर्मन बोलें, फिर सबकी ओर देखते हुए उन्होंने कहना शुरू किया. " जैसा की आप सबों को ज्ञात है की राजकुमारी अवंतिका का ब्याह मरूराज्य नरेश हर्षपाल से तय हो चुका है. महाराजा हर्षपाल ने स्वयं स्वीकार किया है की हमारे राज्य से रिश्ता जोड़ना उनके लिए अपार सौभाग्य की बात होगी. वहीँ दूसरी ओर इस सम्बन्ध से हमारे राज्य का गौरव और मर्यादा तो बढ़ेगी ही, साथ ही हमारे राज्य की शक्ति में भी अपार बढ़ोतरी होगी. परन्तु... ". महाराजा नंदवर्मन एक क्षण के लिए रुकें, पुरोहित जी की ओर देखा, और फिर कहा. " परन्तु पुरोहित जी ने हमें एक अत्यंत अदभुत बात बताई है, जो की हमारी चिंता और दुविधा का कारण है. एक ऐसी विचित्र बात जो की हमने ना कभी सुनी ना कभी देखी है. और उसी बात पर विचार विमर्श करने के लिए हमने आप सबों को यहाँ आने का कष्ट दिया है. "
महारानी वैदेही ने महाराज के रुकते ही पुरोहित जी से कहा.
" पुरोहित जी, हम चाहते हैं की आप ही वो बात हम सभी को बतायें... ".
विजयवर्मन, देववर्मन, चित्रांगदा और अवंतिका, सबके चेहरे पर कौतुहल साफ झलक रहा था, सभी की नज़रें अब पुरोहित जी पर टिकी हुई थी, तो पुरोहित जी ने कहना शुरू किया.
" जैसा की महाराज ने कहा, ये एक अदभुत बात है, मगर ऐसा कुछ भी नहीं जो पंडितों और पुरोहितों को ज्ञात ना हो. ये बात और है की ऐसा देखने में बहुत ही कम मिलता है ! "
" पहेलियाँ ना बुझाईये पुरोहित जी, स्पष्ट कहिये की आखिर बात क्या है. " देववर्मन ने अधीर होते हुए कहा.
" अवश्य राजकुमार... ". पुरोहित जी मुस्कुराये, फिर कहा . " राजकुमारी में एक दोष है... ".
" दोष ??? तनिक संभल कर बोलिये पुरोहित जी... आप हमारी छोटी राजकुमारी के बारे में बात कर रहें हैं ! ". चित्रांगदा ने बीच में ही टोका.
" कुलवधु चित्रांगदा... पुरोहित जी को अपनी बात समाप्त तो करने दीजिये. ". महाराजा नंदवर्मन ने चित्रांगदा को देखते हुए कहा, तो उसने विनम्रता से अपनी नज़रें झुका ली.
पुरोहित जी ने आगे कहा.
" मुझे ये दुखद बात राजकुमारी की कुंडली देखकर पता चली. इसे मरणमान्यवर दोष कहते हैं. ये एक अत्यंत शक्तिशाली और जटिल दोष है... ".
सभी ध्यान से सुनने लगें.
" जिस कन्या में ये दोष होता है, अगर उस कन्या का विवाह किसी पुरुष से हो जाये, तो अत्यंत कम समय में उस पुरुष के प्राण जाना सुनिश्चित है ! "
इतना कहकर पुरोहित जी इस बार स्वयं ही रुक गएँ, और वहाँ मौजूद परिवार के लोगों के प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करने लगें. सबसे पहले देववर्मन की ओर से प्रश्न आया.
" यानि आप कह रहें हैं की हमारी बहन का विवाह नहीं हो सकता ? ".
" बिलकुल सटीक राजकुमार... ". पुरोहित जी ने कहा.
" और इसका उपाय... मेरा तात्पर्य है की कोई पूजा पाठ ? ". चित्रांगदा ने पूछा.
" नहीं बहुरानी... ".
अवंतिका और विजयवर्मन चुप रहें.
" परन्तु हम ये कैसे मान लें की आप जो कुछ भी कह रहें हैं वो सत्य है ? ". देववर्मन ने क्षोभ भरे स्वर में कहते हुए विजयवर्मन की ओर देखा.
" मैं झूठ नहीं बोलता राजकुमार... ". पुरोहित जी मुस्कुराये.
देववर्मन की गलती समझते ही महारानी वैदेही ने तुरंत कहा.
" नहीं नहीं पुरोहित जी, देववर्मन का ये मतलब कदापि नहीं था. वो शायद ये पूछना चाह रहें हैं की कुंडली देखने में अगर कोई गलती हुई हो या फिर इस दोष का तात्पर्य वैसा ना हो जैसा आपने बताया... ".
" आपको मेरे कथन पर विश्वास करने की कोई आवश्यकता नहीं राजकुमार...परन्तु मैंने जो देखा है वो कोई भी झुठला नहीं सकता ! ". पुरोहित जी ने कहा.
चित्रांगदा उठ खड़ी हुई और अवंतिका के समीप जाकर उसके कंधे पर सांत्वनापूर्वक अपने दोनों हाथ रखते हुए बोली.
" कृपया अब आप ही इस दोष का निवारण निकालिये पुरोहित जी... ".
" इसका कोई हल नहीं है बहुरानी... ". पुरोहित जी ने कहा, फिर थोड़ा रूककर सोचते हुए बोलें. " सिवाय एक उपाय के ! "
" तो फिर जल्दी बताइये ना पुरोहित जी... ". देववर्मन की ख़ुशी वापस लौट आई.
अवंतिका और विजयवर्मन भली भांति जानते थें की इस वक़्त देववर्मन के मन में क्या चल रहा है.
पुरोहित जी ने महाराजा और महारानी की ओर देखा, मानो की अपनी अगली बात कहने की आज्ञा मांग रहें हों. महाराजा नंदवर्मन ने धीरे से अपना सिर हिलाकर स्वीकृति दे दी. ऐसा लग रहा था की पुरोहित जी जो बात बताने वाले थें, वो बात महाराजा और महारानी को पहले से ही ज्ञात था, और उसी बात पर विचार विमर्श करने के लिए परिवारजनों की ये सभा बुलाई गई थी !
पुरोहित जी ने अपने एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा.
" अगर कन्या का प्रथम विवाह उसके अपने ही भाई से हो जाये तो ये दोष अमान्य होकर टल सकता है !!! ".
देववर्मन और चित्रांगदा को जैसे सांप सूंघ गया हो. पहली बार विजयवर्मन और अवंतिका ने अपनी नज़रें उठाकर पुरोहित जी को देखा. महाराजा और महारानी चुप रहें.
" ये आप क्या कह रहें हैं पुरोहित जी ??? ". चित्रांगदा के मुँह से धीरे से निकला, जैसे की वो पुरोहित जी से नहीं, खुद अपने आप से ही ये प्रश्न पूछ रही हो.
" यही वो अदभुत और विचित्र बात है जिसके बारे में आप सबों की राय जानने हेतु आपलोगों को यहाँ बुलाया गया है, ना की अवंतिका के दोष वाली बात के लिए ! ". महाराजा नंदवर्मन ने स्पष्ट किया.
" तनिक ठहरिये पुरोहित जी... ". देववर्मन ने कहा. " तो अगर कन्या अपने ही भाई से विवाह कर ले तो फिर इस दोष का मतलब क्या रहा ??? ".
" मैंने कहा प्रथम विवाह !!! ". पुरोहित जी समझाते हुए बोलें. " यानि की दोष काटने के लिए किये जाने वाला विवाह, ना की संसार बसाने के लिए किये जाने वाला ! भाई बहन इस विवाह के बंधन में केवल मात्र सत्ताईस दिनों के लिए बंधे रहेंगे. अट्ठाईसवे दिन एक छोटी सी पूजा होगी, जिसके उपरांत उन दोनों का सम्बन्ध विच्छेद हो जायेगा, और फिर कन्या को पहले की भांति कुंवारी होने की मान्यता मिल जाएगी. उसका दोष सत प्रतिशत नष्ट हो जायेगा. फिर कन्या अपने मन चाहे वर या अपने माता पिता द्वारा तय किये गये पुरुष से विवाह कर सकती है !!! ".
पुरोहित जी की बात पूरी होते ही सभाकक्ष में चुप्पी छा गई. फिर कुछ देर बाद चित्रांगदा ने पूछा.
" और जिस कन्या का कोई भाई ही ना हो ??? ".
" अच्छा प्रश्न है बहुरानी... ". पुरोहित जी ने मुस्कुरा कर कहा. " फिर तो वो अभागन कन्या आजीवन कुंवारी ही रह जाएगी. कम से कम उसके दोष के बारे में जान कर तो कोई उससे विवाह करने को प्रस्तुत नहीं होगा. ".
" लेकिन अपना भाई ही क्यूँ पुरोहित जी ??? ". इस बार महाराजा नंदवर्मन ने पूछा.
" भाई बहन का रिश्ता पवित्र होता है महाराज. अगर उनमें किसी कारणवश विवाह हो भी जाये तो सामजिक तौर पर वो कभी भी मान्य नहीं हो सकता. कन्या का भाई भला उसका पति कैसे हो सकता है ? इस दोष वाली कन्या के प्रथम पति की मृत्यु तय है. परन्तु जब प्रथम पति उसका अपना भाई ही हो, तो वो सम्बन्ध तो वैसे भी अमान्य ही है, फिर किसकी और कैसी मृत्यु ??? "
" मैं आपका क्षमाप्रार्थी हूँ पुरोहित जी, मैंने आपके ज्ञान पर संदेह किया ! ". देववर्मन ने हाथ जोड़ कर मुस्कुराते हुए कहा, फिर विजयवर्मन की ओर देखा, और फिर अवंतिका की ओर, और ऊँचे स्वर में कहा. " अवंतिका की भलाई हेतु मैं उनसे विवाह करने को तैयार हूँ !!! ".
चित्रांगदा ने चौंकते हुए अपने पति को देखा, राजकुमार देववर्मन का चेहरा वासना और हवस से चमक रहा था.
" यानि आप सबों को ये प्रस्ताव मंजूर है ? ". पुरोहित जी ने पूछा.
" जी पुरोहित जी... ". महाराजा नंदवर्मन बोलें.
" हमने तो पहले ही इसकी स्वीकृति दे दी थी, बस बाकि सबों का मत जानना था ! ". महारानी वैदेही ने कहा.
" क्षमा कीजिये माते... परन्तु मुझे लगता है की ये जिसके भविष्य की बात है, उसकी इस बारे में राय सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है ! ". पहली बार विजयवर्मन ने अपना मुँह खोला, तो अवंतिका उनको देखने लगी.
" अवश्य ही राजकुमार... ". महाराजा नंदवर्मन ने कहा, फिर अवंतिका से पूछा. " बेटी अवंतिका, आप निःसंकोच होकर अपने मन की बात कह सकती हैं ! "
" दोष तो मेरा ही है ना पिताश्री... ". अवंतिका ने बिना नज़रें उठाये ही कहा. " मुझे आप बड़े जनों का कहा मानने में कोई आपत्ति नहीं ! ".
देववर्मन की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा, उन्होंने हँसते हुए चित्रांगदा की ओर देखा, तो उसने अपना मुँह फेर लिया.
" और हाँ राजकुमार देववर्मन... ". पुरोहित जी ने देववर्मन से कहा. " आप अवंतिका से विवाह नहीं कर सकतें !!! ".
अचानक से देववर्मन के चेहरे का रंग उड़ गया, उन्होंने मूर्ख की तरह सभाकक्ष में बैठे सभी लोगों को देखा, और फिर धीरे से पूछा.
" मतलब पुरोहित जी ??? ".
" आप पहले से ही विवाहित हैं राजकुमार... ".
" हाँ तो ??? अवंतिका के होने वाले पति मरूराज्य नरेश हर्षपाल की भी तो 23 पत्नियां हैं... फिर भी वो हमारी बहन से विवाह कर रहें हैं ! ". देववर्मन ने कहा. " और वैसे भी मैं ज्येष्ठ पुत्र हूँ... इस नाते हमारी बहन की सहायता करने का अधिकार केवल मात्र मेरा ही तो हुआ ना पुरोहित जी ? ".
" ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते आपका अनेक चीज़ो पर अधिकार हो सकता है राजकुमार...परन्तु इस सन्दर्भ में नहीं !!! विधि अनुसार कन्या का विवाह उसके कुंवारे भाई से होना होगा. " पुरोहित जी ने कहा, फिर विजयवर्मन की ओर दिखाकर बोलें. " राजकुमारी अवंतिका का प्रथम विवाह राजकुमार विजयवर्मन से होगा !!! ".
चित्रांगदा के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान दौड़ गई. देववर्मन का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा, गुस्से में उनके मुँह से शब्द नहीं निकले, फिर वो एकाएक खड़े हो गएँ, और अत्यंत ऊँचे स्वर में कहा.
" आप सबों की मति भ्रष्ट हो गई है ! अपने सगे भाई से विवाह ??? ये क्या मूर्खता है ? मैं इस घृणित प्रस्ताव का विरोध करता हूँ !!! ".
किसी ने भी देववर्मन की बात का कोई जवाब नहीं दिया.
" आप सभी इस पाप के भागी बनेंगे ! ". देववर्मन ने जब देखा की उनकी बात का किसी पर कोई असर नहीं पड़ा है, तो वो चिल्लाकर बोलें, और गुस्से से कांपते हुए सभाकक्ष से बाहर चले गएँ.
अपने पति के बाहर जाते ही चित्रांगदा ने राहत की एक ठंडी साँस ली और अवंतिका के कंधे को दबा कर उसे आस्वस्त किया.
कक्ष में कुछ देर की शांति के बाद महाराजा नंदवर्मन ने कहा.
" कल रात ही हमने ये समाचार मरूराज्य नरेश हर्षपाल को भिजवा दिया था. उन्होंने जवाब देने में काफ़ी शीघ्रता दिखाई. आज सुबह ही हमारा दूत वापस सन्देश लेकर आया है की उन्हें इस विधि से कोई आपत्ति नहीं. विधि के पूरा होते ही वो अवंतिका से विवाह करके उसे अपनी पत्नि के रूप में स्वीकार कर लेंगे !!! ".
" ये तो बहुत अच्छी बात है... ". चित्रांगदा ने नीचे झुककर अवंतिका की आँखों में आँखे डालकर कहा. मगर अवंतिका कुछ ना बोली.
" अवंतिका और विजयवर्मन के विवाह की तैयारी कीजिये महाराज. मैं स्वयं सारी प्रक्रिया पूरी करुंगा... चिंता ना करें ! ". पुरोहित जी ने महाराजा और महारानी की ओर देखते हुए कहा.
" धन्यवाद पुरोहित जी... ". महाराजा नंदवर्मन और महारानी वैदेही ने एक साथ हाथ जोड़कर कहा.
" अब तो खुश हो ना राजकुमारी अवंतिका ??? ". चित्रांगदा ने बहुत ही धीमे स्वर में अवंतिका की पीठ पर चिकोटी काटते हुए उसके कान में फुसफुसा कर कहा. अवंतिका मन ही मन मुस्कुरा उठी, पर अपनी भाभी को कोई जवाब नहीं दिया.
पुरोहित जी ने अब विजयवर्मन और अवंतिका को सम्बोधित करते हुए कहा.
" याद रखियेगा राजकुमार विजयवर्मन और राजकुमारी अवंतिका... ये विवाह केवल अवंतिका के मरणमान्यवर दोष को काटने का हथियार मात्र है. आप दोनों विवाह के उपरांत सत्ताईस दिनों तक पति पत्नि के रूप में एक साथ एक ही कक्ष में रहेंगे, परन्तु वैवाहिक सुख का उपभोग नहीं करेंगे. अगर आपने ऐसी कोई भी गलती की तो राजकुमार विजयवर्मन के प्राण भी जा सकते हैं, अगर आप सत्ताईस दिन से एक दिन भी ज़्यादा एक दूसरे के साथ पति पत्नि की तरह रहें, तो भी राजकुमार विजयवर्मन के प्राण जा सकतें हैं !!! इस बात का ध्यान रहे... ".
विजयवर्मन और अवंतिका ने विनम्रता से सिर हिला कर पुरोहित जी की बात को मानने और समझने की हामी भरी, और फिर एक साथ पुरोहित जी और महाराजा तथा महारानी के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लिया.
सभा भंग हुई.
जाते जाते विजयवर्मन और अवंतिका की नज़रें एक दूसरे से मिली, विजयवर्मन के चेहरे पर तो एक मुस्कान थी, परन्तु अवंतिका के सुंदर मुखड़े पर किसी कारणवश चिंता की काली छाया मंडरा रही थी !!!