23-07-2021, 06:51 PM
निर्मला अधूरी जिंदगी जी रही थी उसे वह दिन याद आ गया जब वह अशोक से शादी करके पहली बार इस घर में आई थी। लड़कियों के मन में शादी को लेकर जिस तरह के अरमान होते हैं, वही सब अरमान निर्मला के मन में भी था। वह भी अपने मन में सपना संजोए हुई थी कि उसका पति पढ़ा-लिखा और समझदार हो जो उस से बेहद प्यार करे, उस को सम्मान दे उसकी इज्जत करें उसकी जरूरतों का ख्याल रखें। जोकी निर्मला खुद ग्रेजुएट थी। समझदार चतुर और बेहद संस्कारी लड़की थी।
संस्कार तो उसे विरासत में मिली थी क्योंकि उसके माता पिता दोनों सरकारी कॉलेज में शिक्षक शिक्षिका के पद पर थे। उन्होंने निर्मला को भी अपनी ही तरह पढ़ा-लिखा कर ग्रेजुएट करके एकदम संस्कारी लड़की बनाए हुए थे। निर्मला भी अपने माता पिता के राहे कदम पर चलते हुए कभी भी समाज में ऐसा कोई काम नहीं कि जिसे उसके माता पिता की नजरें शर्म से नीचे झुक जाए। वह भी ससुराल में कॉलेज में शिक्षिका की पदवी पर थी। देसी वह खुद ही दूसरे बच्चों को भी वैसा ही संस्कार दे दी थी और हमेशा शिक्षण को ही ज्यादा महत्व देती थी।
अशोक से शादी करने के बाद उसे लगने लगा था कि उसके सारे सपने पूरे हो गए हैं। और ठीक वैसा ही था अशोक भी उससे बेहद प्यार करता था उसकी जरूरतों का ख्याल रखता था उसको इज्जत देता था।
निर्मला भी बेहद खुश थी वह अपने पति को बेहद प्यार करती थी। शादी के 1 साल बीतते ही निर्मला गर्भवती हो गई,, और उसने एक सुंदर से बच्चे को जन्म दि, जिससे दोनों की खुशी दुगनी हो गई। बच्चे के जन्म के बाद धीरे-धीरे अशोक अपने बिजनेस को बढ़ाने में लग गया।
वह अपनी पत्नी निर्मला पर कम ध्यान देने लगा अधिकतर समय वह घर से बाहर ही रहने लगा लेकिन इसे भी निर्मला को कोई एतराज नहीं था वह अपने पति अशोक से बेहद खुश थी लेकिन धीरे-धीरे अशोक के रवैया में बदलाव आने लगा,, शादी के तीन साल बाद ही अशोक का व्यवहार निर्मला की तरफ बेहद रूखा हो गया। धीरे-धीरे वहां उसकी इज्जत करना बंद कर दिया और उसे बार-बार बेइज्जत कर देता था।
निर्मला बार-बार अशोक को समझाने की कोशिश करती रहती कि आखिरकार वह ऐसा क्यों कर रहा है उसका स्वभाव इतना ज्यादा चिड़चिड़ा होने लगा। लेकिन अशोक को समझाना निर्मला के लिए बेकार सीधा धीरे धीरे निर्मला को भी समझ में आ गया कि आखिरकार अशोक का व्यवहार उसके साथ इस तरह से क्यों बदल गया।
अशोक जिस तरह से बिस्तर में एक औरत के साथ प्यार करना चाहता था उस तरह से खुलकर निर्मला कभी भी अशोक के साथ बिस्तर पर पेश ना हो सकी।
फिर भी एक जिम्मेदार पत्नी होने के नाते वह अपनी कमी को दूर करने की पूरी कोशिश करते हुए वह बिस्तर पर अशोक के साथ प्यार करने की पूरी कोशिश की लेकिन वह नाकाम रही,, लाख चाहने के बाद भी वह बिस्तर में दूसरी औरतों की तरह खुलकर अपने पति से प्यार न कर सकी क्योंकि ऐसा करने में उसके संस्कार उसकीे शर्म बाधा बन जाती थी।
धीरे धीरे करके आज शादी के 20 साल गुजर जाने के बाद भी हालात वही के वही थे जबकि वह दोनों की दूरियां और ज्यादा बढ़ने लगी थी निर्मला तो हमेशा इसी प्रयास में लगी रहती थी कि वह अपने पति को पूरी तरह से संतुष्ट करके उसे खुश कर सके, लेकिन हर बार उसे नाकामी ही प्राप्त होती थी।
अब हाल यह हो गया था कि दोनों का रिश्ता बस बिस्तर पर 5 मिनट के लिए ही होता था वह भी जब कभी अशोक का मन होता था तभी वह अपनी प्यास बुझाने के लिए इसी तरह से निर्मला के ऊपर चढ़कर उसको दर्द देता हुआ, बेदर्दी बनकर हवस मिटा लेता था। निर्मला इसी तरह से रोती बिलखती अपनी किस्मत को कोसते हुए अशोक का हर दर्द सह रही थी।
आधुनिक युग में जीते हुए भी वहां अपने रीति-रिवाज अपनी मर्यादा अपनी शर्मो-हया को कभी भी त्याग नहीं कर पाई थी। निर्मला के पास मौज शोख का हर सामान सुविधा मौजूद था, पैसे की कोई कमी नहीं थी। बस कमी थी तो प्यार की जिसके लिए वह 20 साल से तरस रही थी।
निर्मला को बिस्तर पर लेटे लेटे ही 7 बज गए । उसे इस बात का एहसास तब हुआ जब 7:00 का अलार्म बजने लगा।
वह झट से बिस्तर पर से उठते हुए अपने गांऊन को नीचे की तरफ सरकाई, तभी उसकी नजर नीचे फर्श पड़ी ऊसकी पैंटी पर पड़ी जिसे वह उठाकर अपनी गोरी गोरी टांगों में डालकर धीरे धीरे ऊपर की तरफ उठा कर कमर में अटका ली ।
वह धीरे धीरे चलते हुए दरवाजे के पास आई और दरवाजा खोलकर कमरे से बाहर निकल गई।
उसे पता था कि अशोक अभी जोगिंग के लिए गया होगा, अशोक को ऑफिस 10 बजे जाना होता था इसलिए नाश्ता तैयार करने की कोई जल्दबाजी नहीं थी, तो वह नहाने के लिए बाथरूम में चली गई ।
संस्कार तो उसे विरासत में मिली थी क्योंकि उसके माता पिता दोनों सरकारी कॉलेज में शिक्षक शिक्षिका के पद पर थे। उन्होंने निर्मला को भी अपनी ही तरह पढ़ा-लिखा कर ग्रेजुएट करके एकदम संस्कारी लड़की बनाए हुए थे। निर्मला भी अपने माता पिता के राहे कदम पर चलते हुए कभी भी समाज में ऐसा कोई काम नहीं कि जिसे उसके माता पिता की नजरें शर्म से नीचे झुक जाए। वह भी ससुराल में कॉलेज में शिक्षिका की पदवी पर थी। देसी वह खुद ही दूसरे बच्चों को भी वैसा ही संस्कार दे दी थी और हमेशा शिक्षण को ही ज्यादा महत्व देती थी।
अशोक से शादी करने के बाद उसे लगने लगा था कि उसके सारे सपने पूरे हो गए हैं। और ठीक वैसा ही था अशोक भी उससे बेहद प्यार करता था उसकी जरूरतों का ख्याल रखता था उसको इज्जत देता था।
निर्मला भी बेहद खुश थी वह अपने पति को बेहद प्यार करती थी। शादी के 1 साल बीतते ही निर्मला गर्भवती हो गई,, और उसने एक सुंदर से बच्चे को जन्म दि, जिससे दोनों की खुशी दुगनी हो गई। बच्चे के जन्म के बाद धीरे-धीरे अशोक अपने बिजनेस को बढ़ाने में लग गया।
वह अपनी पत्नी निर्मला पर कम ध्यान देने लगा अधिकतर समय वह घर से बाहर ही रहने लगा लेकिन इसे भी निर्मला को कोई एतराज नहीं था वह अपने पति अशोक से बेहद खुश थी लेकिन धीरे-धीरे अशोक के रवैया में बदलाव आने लगा,, शादी के तीन साल बाद ही अशोक का व्यवहार निर्मला की तरफ बेहद रूखा हो गया। धीरे-धीरे वहां उसकी इज्जत करना बंद कर दिया और उसे बार-बार बेइज्जत कर देता था।
निर्मला बार-बार अशोक को समझाने की कोशिश करती रहती कि आखिरकार वह ऐसा क्यों कर रहा है उसका स्वभाव इतना ज्यादा चिड़चिड़ा होने लगा। लेकिन अशोक को समझाना निर्मला के लिए बेकार सीधा धीरे धीरे निर्मला को भी समझ में आ गया कि आखिरकार अशोक का व्यवहार उसके साथ इस तरह से क्यों बदल गया।
अशोक जिस तरह से बिस्तर में एक औरत के साथ प्यार करना चाहता था उस तरह से खुलकर निर्मला कभी भी अशोक के साथ बिस्तर पर पेश ना हो सकी।
फिर भी एक जिम्मेदार पत्नी होने के नाते वह अपनी कमी को दूर करने की पूरी कोशिश करते हुए वह बिस्तर पर अशोक के साथ प्यार करने की पूरी कोशिश की लेकिन वह नाकाम रही,, लाख चाहने के बाद भी वह बिस्तर में दूसरी औरतों की तरह खुलकर अपने पति से प्यार न कर सकी क्योंकि ऐसा करने में उसके संस्कार उसकीे शर्म बाधा बन जाती थी।
धीरे धीरे करके आज शादी के 20 साल गुजर जाने के बाद भी हालात वही के वही थे जबकि वह दोनों की दूरियां और ज्यादा बढ़ने लगी थी निर्मला तो हमेशा इसी प्रयास में लगी रहती थी कि वह अपने पति को पूरी तरह से संतुष्ट करके उसे खुश कर सके, लेकिन हर बार उसे नाकामी ही प्राप्त होती थी।
अब हाल यह हो गया था कि दोनों का रिश्ता बस बिस्तर पर 5 मिनट के लिए ही होता था वह भी जब कभी अशोक का मन होता था तभी वह अपनी प्यास बुझाने के लिए इसी तरह से निर्मला के ऊपर चढ़कर उसको दर्द देता हुआ, बेदर्दी बनकर हवस मिटा लेता था। निर्मला इसी तरह से रोती बिलखती अपनी किस्मत को कोसते हुए अशोक का हर दर्द सह रही थी।
आधुनिक युग में जीते हुए भी वहां अपने रीति-रिवाज अपनी मर्यादा अपनी शर्मो-हया को कभी भी त्याग नहीं कर पाई थी। निर्मला के पास मौज शोख का हर सामान सुविधा मौजूद था, पैसे की कोई कमी नहीं थी। बस कमी थी तो प्यार की जिसके लिए वह 20 साल से तरस रही थी।
निर्मला को बिस्तर पर लेटे लेटे ही 7 बज गए । उसे इस बात का एहसास तब हुआ जब 7:00 का अलार्म बजने लगा।
वह झट से बिस्तर पर से उठते हुए अपने गांऊन को नीचे की तरफ सरकाई, तभी उसकी नजर नीचे फर्श पड़ी ऊसकी पैंटी पर पड़ी जिसे वह उठाकर अपनी गोरी गोरी टांगों में डालकर धीरे धीरे ऊपर की तरफ उठा कर कमर में अटका ली ।
वह धीरे धीरे चलते हुए दरवाजे के पास आई और दरवाजा खोलकर कमरे से बाहर निकल गई।
उसे पता था कि अशोक अभी जोगिंग के लिए गया होगा, अशोक को ऑफिस 10 बजे जाना होता था इसलिए नाश्ता तैयार करने की कोई जल्दबाजी नहीं थी, तो वह नहाने के लिए बाथरूम में चली गई ।