15-04-2019, 08:31 PM
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पच्चीसवीं फुहार
![[Image: paddy-fields-2.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/29/paddy-fields-2.jpg)
चारों ओर हरी चुनरी की तरह फैले धान के खेत, खेतों में काम कर रही औरतों के रोपनी गाने की मीठी-मीठी आवाजें, कहीं नाचते अपनी प्रेयसी को रिझाते मोर,
![[Image: mango-grove-5.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/29/mango-grove-5.jpg)
जगह-जगह आमों से लदी अमराई, और उनपर पड़े झूले।
हम लोग थोड़ी देर में उसी रास्ते पर थे जिधर से सुबह मैं आई थी।
एक ओर मेरी उंचाई से भी दूने गन्ने के घने खेत और दूसरी ओर गझिन अरहर,
![[Image: Sugarcane-crushing-could-face-delay.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/29/Sugarcane-crushing-could-face-delay.jpg)
दिन में भी कोई न दिखायी दे और अब तो बादल घने हो गए थे।
बंसती ने शरारत से मेरे उभारों की ओर देखा और मुझे बात एकदम समझ में आ गई।
जो चोली वो ढूँढ़ के मेरे लिए लाई थी, वो काफी घिसी हुई थी, इसलिए सब कुछ झलक रहा था लेकिन उससे भी बढ़कर अगर मजाक-मजाक में भी किसी ने उंगली से भी उसे खिंच दिया तो बस- “चरर्र…” फट के हाथ में आ जाती।
![[Image: Geeta-bcfc7830101b88acde98f3ebb2d5c69c.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/29/Geeta-bcfc7830101b88acde98f3ebb2d5c69c.jpg)
तब तक बसंती ने बोला-
“एक मिनट रुको जरा, मुझे ज़रा जोर से ‘आ रही’ है…”
‘आ तो’ मुझे भी रही थी। लेकिन यहाँ कहाँ खुले में?
पर बसंती सोचने का मौका दे तो न… और धम्म से उसने खींचकर मुझे भी अपने बगल में बैठा लिया जहाँ मेड़ थोड़ी ऊँची थी, सामने अरहर के घने खेत थे, उसने साड़ी उठाकर कमर में लपेट ली और उसकी देखा देखी मैं भी।
बस, बसंती ने तेज धार के साथ, छुर्र-छुर्र और फिर मोटी धार, पीले रंग की…
मैं भी शुरू हो गई, लेकिन मारे शर्म के मेरी आँखें बंद थीं।
पर बसंती आँखें बंद कहाँ रहने देती, और उसने मेरा सिर मोड़कर सीधे अपनी जाँघों के बीच से निकालकर उठते हुए बोली-
“तुम सोच रही होगी कि भौजी ने एतना ढेर सारा खारा शरबत बेकार कर दिया, लेकिन चलो कल भिन्सारे से बिना नागा, झांटों के छन्ने से छना खारा शरबत…”
और साड़ी ठीक करते-करते उसने अपनी तरजनी अपनी भीगी गीली बुर पे रगड़ी और सीधे मेरे होंठ पे लगा दी, और कहा-
“चला तब तक तनी स्वादे चख ला…”
लेकिन मेरी निगाह कहीं और अटकी थी। जहाँ हम लोग बैठे थे, वहीं ठीक बगल में एक पतली मेड़ सी पगडण्डी थी, जहाँ पहले मुझे अंदर गन्ने के खेत के रास्ते में एक लड़का दिखा था और फिर चन्दा मुझे छोड़कर उधर चल दी थी। सुबह उधर जो दूर 10-12 मिट्टी के घर दिखे थे वो अभी भी हल्के से दिख रहे थे। मैं पूछ बैठी-
“बसंती भौजी, आई रास्ता कहाँ जा रहा है?”
बसंती पहले तो खिलखिलाती रही फिर अपने ढंग से बोली-
“अरे बहुत तोहरे चूत में चींटा काटत हाउ, चला एक दिन तोहैं ए रास्ता पे भी घुमाय लाइब। अरे इहै रास्ता तो हौ भरौटी क…”
“धत्त…”
मैं जोर से बोली, लेकिन मैं सोच रही थी की इसका मतलब सुबह चन्दा उधर ही।
थोड़ी देर में हम लोग अमराई में पहुँच गए। और काफी अंदर जाने के बाद जहां पेड़ बहुत गझिन हो गए थे वहां झूला पड़ा था, (वही जगह जहां भाभी के गाँव में सबसे पहल मैंने झूला झूला था और इसी झूले पे रात के अँधेरे में, तेज बारिश में अजय ने मेरी सील तोड़ी थी।) बादल और घने हो गए थे, हल्का अँधेरा सा हो गया था, हवा भी हल्की-हल्की चल रही थी, बस लग रहा था की अब बारिश हुई तब बारिश हुई।
![[Image: rain-clouds-4.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/29/rain-clouds-4.jpg)
कामिनी भाभी, चम्पा भाभी, पूरबी पहले ही पहुँच गई थीं। और हम लोगों के साथ गाँव की एक दो और लड़कियां भी आ गई थीं।
![[Image: paddy-fields-2.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/29/paddy-fields-2.jpg)
चारों ओर हरी चुनरी की तरह फैले धान के खेत, खेतों में काम कर रही औरतों के रोपनी गाने की मीठी-मीठी आवाजें, कहीं नाचते अपनी प्रेयसी को रिझाते मोर,
![[Image: mango-grove-5.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/29/mango-grove-5.jpg)
जगह-जगह आमों से लदी अमराई, और उनपर पड़े झूले।
हम लोग थोड़ी देर में उसी रास्ते पर थे जिधर से सुबह मैं आई थी।
एक ओर मेरी उंचाई से भी दूने गन्ने के घने खेत और दूसरी ओर गझिन अरहर,
![[Image: Sugarcane-crushing-could-face-delay.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/29/Sugarcane-crushing-could-face-delay.jpg)
दिन में भी कोई न दिखायी दे और अब तो बादल घने हो गए थे।
बंसती ने शरारत से मेरे उभारों की ओर देखा और मुझे बात एकदम समझ में आ गई।
जो चोली वो ढूँढ़ के मेरे लिए लाई थी, वो काफी घिसी हुई थी, इसलिए सब कुछ झलक रहा था लेकिन उससे भी बढ़कर अगर मजाक-मजाक में भी किसी ने उंगली से भी उसे खिंच दिया तो बस- “चरर्र…” फट के हाथ में आ जाती।
![[Image: Geeta-bcfc7830101b88acde98f3ebb2d5c69c.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/29/Geeta-bcfc7830101b88acde98f3ebb2d5c69c.jpg)
तब तक बसंती ने बोला-
“एक मिनट रुको जरा, मुझे ज़रा जोर से ‘आ रही’ है…”
‘आ तो’ मुझे भी रही थी। लेकिन यहाँ कहाँ खुले में?
पर बसंती सोचने का मौका दे तो न… और धम्म से उसने खींचकर मुझे भी अपने बगल में बैठा लिया जहाँ मेड़ थोड़ी ऊँची थी, सामने अरहर के घने खेत थे, उसने साड़ी उठाकर कमर में लपेट ली और उसकी देखा देखी मैं भी।
बस, बसंती ने तेज धार के साथ, छुर्र-छुर्र और फिर मोटी धार, पीले रंग की…
मैं भी शुरू हो गई, लेकिन मारे शर्म के मेरी आँखें बंद थीं।
पर बसंती आँखें बंद कहाँ रहने देती, और उसने मेरा सिर मोड़कर सीधे अपनी जाँघों के बीच से निकालकर उठते हुए बोली-
“तुम सोच रही होगी कि भौजी ने एतना ढेर सारा खारा शरबत बेकार कर दिया, लेकिन चलो कल भिन्सारे से बिना नागा, झांटों के छन्ने से छना खारा शरबत…”
और साड़ी ठीक करते-करते उसने अपनी तरजनी अपनी भीगी गीली बुर पे रगड़ी और सीधे मेरे होंठ पे लगा दी, और कहा-
“चला तब तक तनी स्वादे चख ला…”
लेकिन मेरी निगाह कहीं और अटकी थी। जहाँ हम लोग बैठे थे, वहीं ठीक बगल में एक पतली मेड़ सी पगडण्डी थी, जहाँ पहले मुझे अंदर गन्ने के खेत के रास्ते में एक लड़का दिखा था और फिर चन्दा मुझे छोड़कर उधर चल दी थी। सुबह उधर जो दूर 10-12 मिट्टी के घर दिखे थे वो अभी भी हल्के से दिख रहे थे। मैं पूछ बैठी-
“बसंती भौजी, आई रास्ता कहाँ जा रहा है?”
बसंती पहले तो खिलखिलाती रही फिर अपने ढंग से बोली-
“अरे बहुत तोहरे चूत में चींटा काटत हाउ, चला एक दिन तोहैं ए रास्ता पे भी घुमाय लाइब। अरे इहै रास्ता तो हौ भरौटी क…”
“धत्त…”
मैं जोर से बोली, लेकिन मैं सोच रही थी की इसका मतलब सुबह चन्दा उधर ही।
थोड़ी देर में हम लोग अमराई में पहुँच गए। और काफी अंदर जाने के बाद जहां पेड़ बहुत गझिन हो गए थे वहां झूला पड़ा था, (वही जगह जहां भाभी के गाँव में सबसे पहल मैंने झूला झूला था और इसी झूले पे रात के अँधेरे में, तेज बारिश में अजय ने मेरी सील तोड़ी थी।) बादल और घने हो गए थे, हल्का अँधेरा सा हो गया था, हवा भी हल्की-हल्की चल रही थी, बस लग रहा था की अब बारिश हुई तब बारिश हुई।
![[Image: rain-clouds-4.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/11/29/rain-clouds-4.jpg)
कामिनी भाभी, चम्पा भाभी, पूरबी पहले ही पहुँच गई थीं। और हम लोगों के साथ गाँव की एक दो और लड़कियां भी आ गई थीं।