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मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam
स्वप्न

वह रात चाँदनी रही सखी, साजन निद्रा में लीन रहा 
आँखों में मेरी पर नींद नहीं, मैंने तो देखा स्वप्न नया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



सोते साजन के बालों को, हौले-हौले सहलाय दिया 
माथे पर एक चुम्बन लेकर, होठों में होंठ घुसाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन के होंठों से होंठ मेरे, चिपके जैसे कि चुम्बक हों 
साजन सोते या जागते हैं, अंग पे हाथ फेर अनुमान किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



दस अंगुल का विस्तार निरख, मैं तो हो गई निहाल सखी 
साजन सोते हैं या जागते हैं, अब ये विचार मन से दूर किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अपने स्तन निर्वस्त्र किये, साजन के होठों में सौंप दिए 
गहरी-गरम उसकी सांसों ने, मेरे स्तन स्वतः फुलाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन के उभरे सीने पर, फिर मैंने जिह्वा सरकाई सखी 
उसके सीने पर होंठों से, चुम्बन के कई प्रकार लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन बेसुध सा सोया था, मैंने अंतःवस्त्र उतार दिया 
दस अंगुल के चितचोर को फिर, मैंने मुख माहि उतार लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैंने साजन के अंग से फिर, मुँह से खेले कई खेल सखी 
कभी होंठों से खींचा उसको, कभी जीभ से रस फैलाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



कभी केले सा होंठस्थ किया, कभी आम सा था रस चूस लिया 
कभी जिह्वा की अठखेली दी, कभी दाँतों से मृदु दंड दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



होंठ-जिह्वा दोनों संग-संग, इस क्रिया में रत रहे सखी 
जिह्वा-रस में तर अंग से मैंने, स्तनों पे रस का लेप किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैंने सोचा साजन का अंग, मेरे अंग में कैसे जाता होगा 
कैसे अंग में वह धँसता होगा, कैसे अंग में इतराता होगा 
अपनी मुट्ठी को अंग समझ, मैंने क्या–क्या नहीं अनुमान किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं देखत थी मैं खेलत थी, अंग मुँह के अन्दर सेवत थी 
मेरे मन में ऐसा लोभ हुआ, मैंने उसको पूर्ण कंठस्थ किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन की उँगलियाँ अब मैंने, नितम्बों पे फिरती अनुभव की 
मैं समझ गई अब साजन की, आँखों से उड़ी झूठी निंदिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन ने नितम्ब सहलाये सखी, पूरा अंग मुट्ठी ले दबा दिया 
ख़ुशी से झूमे मेरे अंग ने, द्रव के द्वारों को खोल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



नितम्बों के मध्य सखी साजन ने, रस भरा सा चुम्बन टांक दिया 
मेरे मुँह से बस सिसकी निकली, मैंने आनन्द अतिरेक था प्राप्त किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन ने नितम्बों पर दाँतों से, कई मोहरें सखी उकेर दईं 
मक्खन की ढेली समझ उन्हें, जिह्वा से चाट-चटकार लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



एक बड़े अनोखे अनुभव ने, जीवन में मेरे किलकार किया 
मैं चिहुंकी मेरे अंग फड़के, मैंने उल्लास मय चीत्कार किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



रात्रि के गहन सन्नाटे को, मेरी सिसकारी थी तोड़ रही 
मैं बेसुध सी होकर अंग को, होंठों से पकड़ और छोड़ रही 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं बेसब्री से उठी सखी, साजन के अंग पर जा लेटी 
साजन के विपरीत था मुख मेरा, नितम्बों को पकड़ निचोड़ दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरा मुख साजन के पंजों पर, स्तन घुटनों पर पड़े सखी 
मेरा अंग विराजा उसके अंग पर, अंग को सांचे में ढाल लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन की कमर के आर-पार, मेरे दो घुटने आधार बने 
मेरे पंजों ने तो साजन की, तकिया का जैसे काम किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरे अंग के सब क्रिया कलाप, अब साजन की नज़रों में थे 
अंग को अंग से सख्ती से जकड़, चहुँ ओर से नितम्ब हिलोर दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



कभी इस चक्कर कभी उस चक्कर, मेरे नितम्ब थे डोल रहे 
साजन ने उँगलियों से उकसाया, कभी उन पे कचोटी काट लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



बड़ी बेसब्री से अंग मेरा, स्तम्भ पे चढ़ता उतरता था 
जितनी तेजी से चढ़ता था, उतना ही तीव्र उतरता था 
मेरे अंग ने उसके अंग की, लम्बाई-चौड़ाई नाप लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन ने अपनी आँखों से, देखे मेरे सब स्पंदन 
उसने देखा रस में डूबे, अंगों का गतिमय आलिंगन 
उसने नितम्ब पर थाप दिया, मैंने स्पंदन पुरजोर किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



श्रम के मारे मेरा शरीर, श्रम के कण से था भीग गया 
मेरा उद्वेलित अंग उसके अंग पर, कितने ही मील चढ़-उतर गया 
स्तम्भ पे कुशल कोई नट जैसा, मेरे अंग ने था अठखेल किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



आह, ओह, सीत्कार सिवा, हमरे मुख में कोई शब्द न थे 
मैं जितनी थी बेसब्र सखी, साजन भी कम बेसब्र न थे 
साजन के अंग ने मेरे अंग में, कई शब्दों का स्वर खोल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरा अंग तो उसके अंग को, लील लेने को बेसब्र रहा 
ऐसी आवाजें आती थी, जैसे भूखा भोजन चबा रहा 
साजन ने अपने अंगूठे को, नितम्बों के मध्य लगाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अंग का घर्षण था अंग के संग, अंगूठे का मध्य नितम्बों पर 
उसका सुख था अन्दर-अन्दर, इसका सुख था बाहर-बाहर 
मैं सर्वत्र आनन्द से घिरी सखी, सुख काम-शिखर तक पहुँच गया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अंगों की क्षुधा बढ़ती ही गई, संग स्पंदन भी बढ़े सखी 
पल भर में ऐसी बारिश हुई, शीतल हो गई तपती धरती 
साजन के अंग ने मेरे अंग में, तृप्ति के बांध को तोड़ दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन ने उठाकर मुझे सखी, अपने सीने से लगा लिया 
और हंसकर बोला वह मुझसे, अनुपम सुख हमने प्राप्त किया 
मैंने सहमति की मुस्कान लिए, होंठों से होंठ मिलाय लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !



पहले हम हँसे फिर नैन हँसे, फिर नैनन बीच हँसा कजरा 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



पहले तो निहारा उसने मुझे फिर मुस्कान होठों पर खेल गई 
उंगली से ठुड्डी उठा मेरी, होंठों को मेरे सखी, चूम लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरे स्तन बारी बारी उसने वस्त्र सहित ही चूम लिए 
अंगिया का आवरण दूर किया और चुम्बन से उन पर दबाय दिया 
हर कोने में स्तनों को री सखी, हाथों से उभार कर चूम लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



दबा-दबा के वक्षों को, उसने मुझको मदहोश किया 
फिर चूम लिया और चाट लिया, फिर तरह-तरह से चूस लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अंगन से रगड़त थे अंगन को, सब अंगन पे जीभ फिरात रहे 
सर्वांग मेरे बेहाल हुए, मुझे मोम की भांति पिघलाय दिया, 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



आगे चूमा पीछे चूमा, मोहे चूम-चूम निढाल किया 
उभरे अंगों को साजन ने, दांतों के बीच दबाय लिया 
मैं कैसे कहूँ तुझसे ऐ सखी, अंग-अंग पे निशानी छोड़ दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



माथे को उसने चूम लिया, फिर आँखों को उसने चूमा 
होंठों को लेकर होंठों में, सब रस होंठों का चूस लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



चुम्बन की बारिश सुन री सखी, ऊपर से नीचे बढ़ती गई 
मैं सिसकारी लेती ही गई, वह अमृत रस पीता ही गया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अपना अंग लेकर वह री सखी, मेरे अंग के मध्य समाय गया 
फिर स्पंदन का दौर चला, तन 'मंथन योग' में डूब गया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



स्पंदन क्रमशः तेज हुए, मैंने भी नितम्ब उठाय दिए 
मैं लेती गई वह देता गया, अब सीत्कार उल्लास हुआ 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



खटिया की ‘चूँ-चूँ’ की धुन थी, और स्पंदन की थाप सखी 
उसकी सांसों की हुन्कन ने, आनन्द-अगन का काम किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अंग उसका सखी मेरे अंग में, अन्दर जाता बाहर आता 
छूकर मेरे अन्तस्थल को, वह सखी और भी इतराता 
मेरे अंग ने तो सरस होकर, सखी उसको और कठोर किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



हर स्पंदन के साथ सखी, मेरी मदहोशी बढ़ती गई 
मैं सिसकारी के साथ साथ, उई आह ओह भी करती गई 
अंगों के रसमय इस प्याले में, उत्तेजना ने अति उफान लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



उसके नितम्ब यूँ उठे-गिरे, जैसे लौहार कोई चोट करे, 
तपता लोहा मेरा अंग बना उसका था सख्त हथौड़े सा 
उसके मुख से हुन्कन के स्वर, मैंने आह ओह सीत्कार किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



स्पंदन रत उसके नितम्बों पर, मैंने सखी उँगलियाँ फेर दईं 
मैंने तो अपनी टांगों को सखी उसकी कमर में लपेट दईं 
मैंने हाथों से देकर दबाव, नितम्बों को गतिमय और किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



हर स्पंदन से रस बनता, अंग के प्याले में गिर जाता 
साजन के अंग से चिपुड़-चिपुड़, मेरे अंग को और भी मदमाता 
साजन ने रसमय अंग लेकर, स्पंदन कई विशेष किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



पूरा का पूरा अंग उसका, सखी मेरे अंग के अन्दर था, 
कमर के पार से हाथ लिए, नितम्बों को उसने पकड़ा था 
अंग लम्बाई तक उठ नितम्बों ने, अंग उतना ही अन्दर ठेल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अब इतनी क्रियाएँ एक साथ, मेरे तन में सखी होती थी 
मुख में जिह्वा, होंठों में होंठ, अंगों का परस्पर परिचालन 
साजन ने अपने हाथों से, स्तनों का मर्दन खूब किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं अब सब कुछ सखी भूल गई, मैंने कुछ भी न याद किया 
अंग की गहराई में साजन ने, सुख तरल बना के घोल दिया 
मेरे अंग में उसने परम सुख की कई-कई धाराएँ छोड़ दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं संतुष्ट हुई वह संतुष्ट हुआ, उसका तकिया मेरा वक्ष हुआ 
गहरी सांसों के तूफानों ने, क्रमशः बयार का रूप लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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RE: मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam - by usaiha2 - 21-07-2021, 08:52 PM



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