17-07-2021, 07:10 PM
(This post was last modified: 19-07-2021, 02:18 PM by usaiha2. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
सच में मैं स्वयं पर नियन्त्रण नहीं रख पा रहा था।
विवाह के दौरान मुझे जैसे ही अवसर मिलता, मैं अल्का के स्तन, पेट या नितम्ब - किसी न किसी बहाने से छू लेता। मेरी यह सब चेष्टाएँ वहाँ उपस्थित लोगों की दृष्टि से बच नहीं सकतीं थी। बचती भी तो कैसे? मेरी आंशिक उत्तेजना मेरे मुंडू से साफ़ परिलक्षित हो रही थी। वहाँ उपस्थित महिलाएँ यह देख कर खिलखिला रही थीं, और पुरुष मुस्कुराते हुए मुझे आँखे मार रहे थे। इसलिए जैसे ही विवाह कार्य संपन्न हुआ तो हम सभी ने राहत की साँस ली कि अब मैं और अल्का एक दूसरे को भोगने के लिए स्वतंत्र हैं।
हमारा विवाह शिव-पार्वती के मंदिर में संपन्न हुआ था। मंदिर से कोई आधा कोस (डेढ़ किलोमीटर) दूर हमारा एक उपगृह था। वह उपगृह बस एक कमरा था, और उससे लगा हुआ एक अहाता था। कमरे के चारों तरफ पेड़ पौधे लगे हुए थे, और काफी शान्ति थी। वह कमरा छोटा था, और कभी कभार किसी अतिथि के आने पर ही उपयोग में आता था। इसके अतिरिक्त उस कमरे का कोई और उपयोग नहीं था। उसकी साफ़ सफाई कर दी गई थी - एक पलंग लगा कर नव विवाहित जोड़े के लिए सुव्यवस्थित कर दिया गया था। कमरे में एक ओर एक बड़ी सी खिड़की थी। उस पर एक परदा लगा दिया गया था। कमरा बाहर से तो बंद किया जा सकता था, लेकिन अंदर से बंद करने का कोई साधन नहीं था। एक तरह से कहिए कि बाहर से यदि कोई चाहे, तो हम अंदर क्या कुछ कर रहे हैं, साफ़ देख सकता था। लेकिन उस बात की परवाह मुझे तो बिलकुल भी नहीं थी। हम जो करने वाले थे, वो सभी को मालूम था। जो कोई देखता है तो देखे! हमको कमरे के अंदर ले जा कर परिवारजनों ने बाहर से दरवाज़ा लगा दिया - बंद नहीं किया।
वैसे भी यहाँ एकाँत था; आज भी वर्षा रह रह कर पड़ रही थी, इसलिए कोई बिना वज़ह बाहर नहीं रहना चाहता था। वैसे भी, नवविवाहितों के बीच में किसी और का क्या काम? जाते जाते अम्मा ने कहा था कि कुछ देर बाद वो हमारे लिए भोजन ले कर आएँगी। ठीक है! कुछ देर मतलब एक पारी तो खेली जा सकती थी! जैसे ही एकाँत हुआ, अल्का ने मुस्कुराते कहा,
“चिन्नू मेरे, आपसे सब्र नहीं हो रहा था?” यह कोई प्रश्न नहीं था, बस एक कथन था।
मैंने ‘न’ में सर हिलाया, और मुस्कुराया।
“अब तो मैं रीति और विधिपूर्वक भी आपकी हूँ!” कह कर वो मेरे सामने ज़मीन पर बैठ गई, और उसने अपने सर को मेरे पाँव पर रख दिया। जैसा कि पहले भी हुआ था, उसके ऐसे आदर प्रदर्शन से मैं अचकचा गया - किसी व्यक्ति को ऐसे नहीं नहीं पूजना चाहिए। ऐसा आदर सम्मान केवल भगवानों के लिए आरक्षित रहना चाहिए।
“अल्का.. मेरी मोलू! मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ!”
“बोलिए न?”
“तुम मेरे पैर न छुआ करो! नहीं तो मैं भी तुम्हारे पैर छुऊँगा!”
“अरे! और मुझे पाप लगाओगे?” उसने मुझे छेड़ते हुए कहा।
“मैं तुमको पाप न लगाऊं? लेकिन तुम मुझे लगा सकती हो?”
“चिन्नू मेरे.. मैं आपके पैर इसलिए छूती हूँ, कि आपको मेरा पूर्ण समर्पण है! मैं आपका पूरा आदर करती हूँ.. पति होने के नाते, आप मेरे भगवान भी हैं.. और इसलिए भी आपके पैर छूती हूँ क्योंकि मुझे आपसे प्रेम है।”
अल्का की इस बात पर मैंने भी बिजली की तेजी से उसके पैर छू लिए, “मेरा भी आपको पूर्ण समर्पण है, और मुझे भी आपसे प्रेम है!”
अल्का मेरी इस हरकत से थोड़ा असहज हो गई।
“वो तो मुझे मालूम है, मेरे चेट्टन! आप एक बहुत अच्छे पुरुष हैं! आपका स्वभाव बहुत अच्छा है, और, मुझे मालूम है कि आप एक आदर्श भर्ताव (पति) बनेंगे! हर लड़की अपने लिए ऐसा वर माँगती है, जो उसे जीवन भर प्रसन्न रख सके, और उसका हर कठिनाई में साथ दे। प्रभु ने मुझे आपका साथ दिया है; जैसा मैं चाहती थी, आपमें वह सब कुछ है! मैं बहुत... लकी हूँ!”
“यह सब तो मेरे लिए भी उतना ही सच है, जितना आपके लिए! फिर यह पैर छूना मुझे पसंद नहीं! और तो और, आयु में तो आप ही मुझसे बड़ी है!”
“हाँ, लेकिन पद आपका बड़ा है!”
“पत्नी का पद कब से छोटा होने लगा?”
“ओह्हो! आपसे तर्क में कोई नहीं जीत सकता!”
“और पैर छूने के साथ साथ मुझे ‘आप’ ‘आप’ भी कहना बंद करो! लगता है कि तुम मुझे नहीं, किसी पड़ोसी को बुला रही हो!”
“अच्छा ठीक है! मैं आपके पैर नहीं छुऊँगी, लेकिन आपको ‘आप’ कह कर बुलाऊँगी!”
“ओह्हो!” मैंने अल्का की ही तर्ज़ पर कहा, “यह बेकार के मोल भाव में समय जाया हो रहा है! चलो, हम वो करें, जिसके लिए इस कमरे में आए हैं!”
विवाह के दौरान मुझे जैसे ही अवसर मिलता, मैं अल्का के स्तन, पेट या नितम्ब - किसी न किसी बहाने से छू लेता। मेरी यह सब चेष्टाएँ वहाँ उपस्थित लोगों की दृष्टि से बच नहीं सकतीं थी। बचती भी तो कैसे? मेरी आंशिक उत्तेजना मेरे मुंडू से साफ़ परिलक्षित हो रही थी। वहाँ उपस्थित महिलाएँ यह देख कर खिलखिला रही थीं, और पुरुष मुस्कुराते हुए मुझे आँखे मार रहे थे। इसलिए जैसे ही विवाह कार्य संपन्न हुआ तो हम सभी ने राहत की साँस ली कि अब मैं और अल्का एक दूसरे को भोगने के लिए स्वतंत्र हैं।
हमारा विवाह शिव-पार्वती के मंदिर में संपन्न हुआ था। मंदिर से कोई आधा कोस (डेढ़ किलोमीटर) दूर हमारा एक उपगृह था। वह उपगृह बस एक कमरा था, और उससे लगा हुआ एक अहाता था। कमरे के चारों तरफ पेड़ पौधे लगे हुए थे, और काफी शान्ति थी। वह कमरा छोटा था, और कभी कभार किसी अतिथि के आने पर ही उपयोग में आता था। इसके अतिरिक्त उस कमरे का कोई और उपयोग नहीं था। उसकी साफ़ सफाई कर दी गई थी - एक पलंग लगा कर नव विवाहित जोड़े के लिए सुव्यवस्थित कर दिया गया था। कमरे में एक ओर एक बड़ी सी खिड़की थी। उस पर एक परदा लगा दिया गया था। कमरा बाहर से तो बंद किया जा सकता था, लेकिन अंदर से बंद करने का कोई साधन नहीं था। एक तरह से कहिए कि बाहर से यदि कोई चाहे, तो हम अंदर क्या कुछ कर रहे हैं, साफ़ देख सकता था। लेकिन उस बात की परवाह मुझे तो बिलकुल भी नहीं थी। हम जो करने वाले थे, वो सभी को मालूम था। जो कोई देखता है तो देखे! हमको कमरे के अंदर ले जा कर परिवारजनों ने बाहर से दरवाज़ा लगा दिया - बंद नहीं किया।
वैसे भी यहाँ एकाँत था; आज भी वर्षा रह रह कर पड़ रही थी, इसलिए कोई बिना वज़ह बाहर नहीं रहना चाहता था। वैसे भी, नवविवाहितों के बीच में किसी और का क्या काम? जाते जाते अम्मा ने कहा था कि कुछ देर बाद वो हमारे लिए भोजन ले कर आएँगी। ठीक है! कुछ देर मतलब एक पारी तो खेली जा सकती थी! जैसे ही एकाँत हुआ, अल्का ने मुस्कुराते कहा,
“चिन्नू मेरे, आपसे सब्र नहीं हो रहा था?” यह कोई प्रश्न नहीं था, बस एक कथन था।
मैंने ‘न’ में सर हिलाया, और मुस्कुराया।
“अब तो मैं रीति और विधिपूर्वक भी आपकी हूँ!” कह कर वो मेरे सामने ज़मीन पर बैठ गई, और उसने अपने सर को मेरे पाँव पर रख दिया। जैसा कि पहले भी हुआ था, उसके ऐसे आदर प्रदर्शन से मैं अचकचा गया - किसी व्यक्ति को ऐसे नहीं नहीं पूजना चाहिए। ऐसा आदर सम्मान केवल भगवानों के लिए आरक्षित रहना चाहिए।
“अल्का.. मेरी मोलू! मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ!”
“बोलिए न?”
“तुम मेरे पैर न छुआ करो! नहीं तो मैं भी तुम्हारे पैर छुऊँगा!”
“अरे! और मुझे पाप लगाओगे?” उसने मुझे छेड़ते हुए कहा।
“मैं तुमको पाप न लगाऊं? लेकिन तुम मुझे लगा सकती हो?”
“चिन्नू मेरे.. मैं आपके पैर इसलिए छूती हूँ, कि आपको मेरा पूर्ण समर्पण है! मैं आपका पूरा आदर करती हूँ.. पति होने के नाते, आप मेरे भगवान भी हैं.. और इसलिए भी आपके पैर छूती हूँ क्योंकि मुझे आपसे प्रेम है।”
अल्का की इस बात पर मैंने भी बिजली की तेजी से उसके पैर छू लिए, “मेरा भी आपको पूर्ण समर्पण है, और मुझे भी आपसे प्रेम है!”
अल्का मेरी इस हरकत से थोड़ा असहज हो गई।
“वो तो मुझे मालूम है, मेरे चेट्टन! आप एक बहुत अच्छे पुरुष हैं! आपका स्वभाव बहुत अच्छा है, और, मुझे मालूम है कि आप एक आदर्श भर्ताव (पति) बनेंगे! हर लड़की अपने लिए ऐसा वर माँगती है, जो उसे जीवन भर प्रसन्न रख सके, और उसका हर कठिनाई में साथ दे। प्रभु ने मुझे आपका साथ दिया है; जैसा मैं चाहती थी, आपमें वह सब कुछ है! मैं बहुत... लकी हूँ!”
“यह सब तो मेरे लिए भी उतना ही सच है, जितना आपके लिए! फिर यह पैर छूना मुझे पसंद नहीं! और तो और, आयु में तो आप ही मुझसे बड़ी है!”
“हाँ, लेकिन पद आपका बड़ा है!”
“पत्नी का पद कब से छोटा होने लगा?”
“ओह्हो! आपसे तर्क में कोई नहीं जीत सकता!”
“और पैर छूने के साथ साथ मुझे ‘आप’ ‘आप’ भी कहना बंद करो! लगता है कि तुम मुझे नहीं, किसी पड़ोसी को बुला रही हो!”
“अच्छा ठीक है! मैं आपके पैर नहीं छुऊँगी, लेकिन आपको ‘आप’ कह कर बुलाऊँगी!”
“ओह्हो!” मैंने अल्का की ही तर्ज़ पर कहा, “यह बेकार के मोल भाव में समय जाया हो रहा है! चलो, हम वो करें, जिसके लिए इस कमरे में आए हैं!”