17-07-2021, 07:02 PM
कोई एक मिनट के बाद दरवाज़े के उस तरफ से से अम्मा की दबी हुई आवाज़ आई,
“तुम दोनों का हो गया हो तो बाहर आ जाओ... कुछ बात करनी है।”
अल्का और मैं दोनों ही चौंक गए। इसका तो साफ़ मतलब है कि अम्मा ने हमको सम्भोग करते देख या सुन लिया था। अब इस बात का उन पर कोई और प्रभाव हुआ हो या नहीं, कम से कम उनको इतना तो मालूम हो गया होगा कि हम दोनों अपने प्रेम सम्बन्ध में बहुत आगे बढ़ गए थे, और बहुत गंभीर भी थे। हम अपने कपड़े पहनने लगे तो अम्मा ने कहा,
“अगर मन करे तो ऐसे ही आ जाओ.. अपनी अनियत्ति की चाँदनी मैं भी तो देखूँ...” उन्होंने अर्थपूर्ण तरीके से कहा।
हमको तुरंत समझ में आ गया कि अम्मा हमको बहुत देर से देख / सुन रही थीं, और उन्होंने हमको सब कुछ करते और कहते देखा और सुना है। अब उनके सामने किसी भी प्रकार का स्वांग करने से कोई लाभ नहीं था। तो हम दोनों अनिच्छा से वैसे ही उठ कर, दबे पाँव कमरे से बाहर चले आए। बाहर आ कर जब हम अम्मा के समीप आए तो हमने देखा कि अम्मा भी केवल पेटीकोट और ब्रा ही पहनी हुई है। उनको ऐसे तो मैने कभी भी नहीं देखा था - मतलब आसार ठीक ठाक ही हैं!
“चेची मैं..” अल्का कुछ कहने को हुई लेकिन अम्मा ने उसकी बात बीच में ही काट दी।
“तुमको कोई सफाई देने की ज़रुरत नहीं है, मोलूटी! अगर तुम अपने ही चेट्टन से प्रेम नहीं करोगी तो किसके साथ करोगी?”
“चेची ?”
“हाँ मेरी प्यारी बहना.. तुमको कुछ कहने की आवश्यकता नहीं... ! इधर आ... तू भी इधर आ अर्चित! हम लोगों की
बाते सुन कर कहीं अम्मा जग न जायें!”
हम तीनों दबे चुपके, कम आवाज़ करते हुए कमरे से बाहर निकल कर अहाते में आ गए। बारिश अभी भी हो रही थी और ठंडी हवा चल रही थी। अभी भी अँधेरा था, लेकिन हम एक दूसरे की आकृतियाँ ठीक से देख पा रहे थे। माँ ने प्यार से अल्का के गाल को छुआ और कहा,
“तुम बहुत अच्छी हो मोलूट्टी... बहुत प्यारी.. और बहुत सुन्दर भी ! अर्चित बड़े भाग्य वाला है!”
“चेची!?”
“हाँ मेरी बच्ची! जब तुम दोनों साथ में प्रसन्न हो, तो मैं क्यों तुम दोनों की प्रसन्नता के बीच में बाधा डालूँ? मैंने तुमको - तुम दोनों को बहुत बुरा भला कहा.. तुम दोनों के प्रेम को गालियाँ दीं.. उस अपराध के लिए मुझे माफ़ कर दो!”
“ओह चेची..” कह कर अल्का माँ के आलिंगन में बंध गई।
“नहीं! अब से चेची नहीं, अब से.. अम्माईअम्मा कहो मुझे!”
यह सुन कर अल्का शरमा गई ; तो माँ ने कहा, “ऐसे तो मेरे सामने नंगी खड़ी है तो शरम नहीं आ रही है, लेकिन मुझे अम्मा कहने में लज्जा आ रही है तुझे?”
“अम्मा..” अल्का ने कोमल, प्रेममय आवाज़ में अपनी बड़ी दीदी को पुकारा!
“हाँ मेरी बच्ची! तू मुझे अम्मा ही बुलाया कर.. तेरे अम्माईअप्पन ने तेरा और अर्चित का सम्बन्ध स्वीकार कर लिया है..”
“ओह अम्मा!” कह कर अल्का पुनः सुबकने लगी।
“ओहो ! मुझसे रहा नहीं गया, इसीलिए मैंने तुम दोनों को यथाशीघ्र यह खुशखबरी देनी चाही... और ऐसे ख़ुशी के मौके पर तू रो रही है? लगता है तुझे ख़ुशी नहीं हुई! अर्चित बेटा, जैसे तू थोड़ी देर पहले कर रहा था, वैसे ही अपनी भार्या के मूलाकल के मधु का आस्वादन कर ले.. संभव है कि पुनः खुश हो जाए!”
“जो आज्ञा माते!” कह कर मैं आगे बढ़ा!
“हट्ट!” अल्का ने सुबकने के बीच में कहा।
“अरे !” माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरी मरुमघल, मेरे ही मोने को मना कर रही है !”
“मना नहीं चेची.. पी पी कर आपके मोने ने इनका बुरा हाल कर दिया है!” अल्का ने भोलेपन से जवाब दिया।
“तुम दोनों का हो गया हो तो बाहर आ जाओ... कुछ बात करनी है।”
अल्का और मैं दोनों ही चौंक गए। इसका तो साफ़ मतलब है कि अम्मा ने हमको सम्भोग करते देख या सुन लिया था। अब इस बात का उन पर कोई और प्रभाव हुआ हो या नहीं, कम से कम उनको इतना तो मालूम हो गया होगा कि हम दोनों अपने प्रेम सम्बन्ध में बहुत आगे बढ़ गए थे, और बहुत गंभीर भी थे। हम अपने कपड़े पहनने लगे तो अम्मा ने कहा,
“अगर मन करे तो ऐसे ही आ जाओ.. अपनी अनियत्ति की चाँदनी मैं भी तो देखूँ...” उन्होंने अर्थपूर्ण तरीके से कहा।
हमको तुरंत समझ में आ गया कि अम्मा हमको बहुत देर से देख / सुन रही थीं, और उन्होंने हमको सब कुछ करते और कहते देखा और सुना है। अब उनके सामने किसी भी प्रकार का स्वांग करने से कोई लाभ नहीं था। तो हम दोनों अनिच्छा से वैसे ही उठ कर, दबे पाँव कमरे से बाहर चले आए। बाहर आ कर जब हम अम्मा के समीप आए तो हमने देखा कि अम्मा भी केवल पेटीकोट और ब्रा ही पहनी हुई है। उनको ऐसे तो मैने कभी भी नहीं देखा था - मतलब आसार ठीक ठाक ही हैं!
“चेची मैं..” अल्का कुछ कहने को हुई लेकिन अम्मा ने उसकी बात बीच में ही काट दी।
“तुमको कोई सफाई देने की ज़रुरत नहीं है, मोलूटी! अगर तुम अपने ही चेट्टन से प्रेम नहीं करोगी तो किसके साथ करोगी?”
“चेची ?”
“हाँ मेरी प्यारी बहना.. तुमको कुछ कहने की आवश्यकता नहीं... ! इधर आ... तू भी इधर आ अर्चित! हम लोगों की
बाते सुन कर कहीं अम्मा जग न जायें!”
हम तीनों दबे चुपके, कम आवाज़ करते हुए कमरे से बाहर निकल कर अहाते में आ गए। बारिश अभी भी हो रही थी और ठंडी हवा चल रही थी। अभी भी अँधेरा था, लेकिन हम एक दूसरे की आकृतियाँ ठीक से देख पा रहे थे। माँ ने प्यार से अल्का के गाल को छुआ और कहा,
“तुम बहुत अच्छी हो मोलूट्टी... बहुत प्यारी.. और बहुत सुन्दर भी ! अर्चित बड़े भाग्य वाला है!”
“चेची!?”
“हाँ मेरी बच्ची! जब तुम दोनों साथ में प्रसन्न हो, तो मैं क्यों तुम दोनों की प्रसन्नता के बीच में बाधा डालूँ? मैंने तुमको - तुम दोनों को बहुत बुरा भला कहा.. तुम दोनों के प्रेम को गालियाँ दीं.. उस अपराध के लिए मुझे माफ़ कर दो!”
“ओह चेची..” कह कर अल्का माँ के आलिंगन में बंध गई।
“नहीं! अब से चेची नहीं, अब से.. अम्माईअम्मा कहो मुझे!”
यह सुन कर अल्का शरमा गई ; तो माँ ने कहा, “ऐसे तो मेरे सामने नंगी खड़ी है तो शरम नहीं आ रही है, लेकिन मुझे अम्मा कहने में लज्जा आ रही है तुझे?”
“अम्मा..” अल्का ने कोमल, प्रेममय आवाज़ में अपनी बड़ी दीदी को पुकारा!
“हाँ मेरी बच्ची! तू मुझे अम्मा ही बुलाया कर.. तेरे अम्माईअप्पन ने तेरा और अर्चित का सम्बन्ध स्वीकार कर लिया है..”
“ओह अम्मा!” कह कर अल्का पुनः सुबकने लगी।
“ओहो ! मुझसे रहा नहीं गया, इसीलिए मैंने तुम दोनों को यथाशीघ्र यह खुशखबरी देनी चाही... और ऐसे ख़ुशी के मौके पर तू रो रही है? लगता है तुझे ख़ुशी नहीं हुई! अर्चित बेटा, जैसे तू थोड़ी देर पहले कर रहा था, वैसे ही अपनी भार्या के मूलाकल के मधु का आस्वादन कर ले.. संभव है कि पुनः खुश हो जाए!”
“जो आज्ञा माते!” कह कर मैं आगे बढ़ा!
“हट्ट!” अल्का ने सुबकने के बीच में कहा।
“अरे !” माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरी मरुमघल, मेरे ही मोने को मना कर रही है !”
“मना नहीं चेची.. पी पी कर आपके मोने ने इनका बुरा हाल कर दिया है!” अल्का ने भोलेपन से जवाब दिया।