17-07-2021, 07:00 PM
अम्मा घंटों तक हम सभी से क्रोधित बैठी रही थीं, लेकिन जब उनके क्रोध का ज्वार थम गया तब पिता जी ने उनको समझाना शुरू किया। जाहिर सी बात है कि वो अम्मा के सामने लालच की भाषा नहीं बोल सकते थे; धन की भाषा नहीं बोल सकते थे.. इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को प्रेम की पट्टी पढ़ानी शुरू कर दी कि कैसे अल्का और मैं, हम दोनों एक दूसरे से अत्यंत प्रेम करते हैं, और हमारा सम्बन्ध केवल इस बात से न बने कि अल्का मेरी अम्माई है। अल्का अभी भी उम्र में छोटी है, और हमको कई संताने भी हो जाएँगी। और तो और हम अल्का को, उसके व्यवहार को हम भली भाँति जानते समझते भी है, इसलिए विवाह के बाद किसी प्रकार का पारिवारिक घर्षण भी नहीं होगा इत्यादि इत्यादि! पिताजी की इस विषय में अप्रत्याशित स्वीकृति ने अम्मा को निहत्था कर दिया। जब उनका पति ही उनके एक तरफ़ा युद्ध का भागीदार नहीं था, वो वो अकेली कितनी ही देर तक युद्ध कर सकती थीं? अंततः वो शांत हो गईं.. शांत क्या, बस उनका हमको गाली देना और कठोर भाषा में डाँटना बंद हो गया।
अम्मा के क्रोध का ज्वार भले ही उतर गया हो, लेकिन वो अभी भी भीतर ही भीतर सुलग रहीं थीं। क्रोध की धीमी धीमी आँच उनके मन को साल रही थी। इतना तो अवश्य था कि अम्मा को मनाने के लिए, अच्चन ने अपना पुरजोर प्रयास कर डाला रहेगा। लेकिन हमारे विवाह के लिए अम्मा की स्वीकृति होनी आवश्यक थी... उसी के चलते अम्मा अच्चन ने उस रात एक लम्बे अन्तराल के बाद सम्भोग किया। हमको कैसे मालूम चला, आप पूछेंगे? दरअसल जब अच्चन कमरे में गए, तो वो कमरे का दरवाज़ा पूरी तरह से बंद करना शायद भूल गए थे। ऋतु परिवर्तन का प्रभाव पृथ्वी के प्रत्येक जीव जन्तुओं पर अवश्यम्भावी है, और मनुष्य इससे अछूता नहीं है। वर्षा ऋतु में घने मेघ, मनोरम हवा, और कम तापमान कुछ ऐसा रम्य वातावरण बना देते हैं कि स्त्री और पुरुष, दोनों में ही एक-दूसरे में लीन हो जाने की बड़ी तीव्र इच्छा उत्पन्न हो जाती है। अम्मा और पिताजी को ‘हमारा’ कमरा दे दिया गया था, और हम बाकी के तीन जने एक कमरे में थे।
अल्का ने आज बड़े चाव से एक नई साड़ी पहनी हुई थी कि अपनी चेची और होने वाली अम्माईल अम्मा का स्वागत करेगी। लेकिन मन की इच्छाएँ अम्मा की गालियों के बोझ से दब कर रह गईं। आज की रात बेचारी बड़े ही गहरे अवसाद में लेटी। आज किसी ने खाना नहीं खाया था; सभी बस वैसे ही चुप चाप लेट गए थे। मुझे न जाने कैसे नींद आ गई थी, लेकिन अल्का के सुबकने की आवाज़ ने मुझे नींद से उठा दिया।
“क्या हुआ, मोलू?”
“ओह मेरे कुट्टन! तुम सोए नहीं?”
“क्यों रो रही हो मोलू!”
“चेची हम दोनों को एक नहीं होने देगी..” उसने सुबकते हुए कहा।
“इधर आओ..” कह कर मैंने उसको अपने आगोश में भींच लिया, और उसके माथे को चूम लिया, “कैसे हम दोनों एक नहीं हो सकते? कौन कर सकता है यह मेरी मोलू के साथ? हम्म?”
वो मुस्कुराई! एक थकी हुई सी मुस्कान। लेकिन अपने भाव में शुद्ध! प्रेम के ऐसे छोटे छोटे अभिव्यक्ति पर भी वो खुश हो जाती है, “अब बोलो कि हम दोनों एक नहीं हैं?”
“एक हैं..।”
“हैं न?”
“हाँ कुट्टन!”
“फ़िर?”
“ठीक है!”
“भूख लगी है?”
“नहीं!”
“मैं खिला दूँ, तो खाओगी?”
उसने ‘न’ में सर हिलाया। मैं उठ कर रसोई से एक कटोरी भर अडा प्रधामन ले आया।
“ऐसी सुन्दर, मनोरम, चाँदनी रात में अपनी पत्नी को अडा खिलाना बड़े पुण्य का काम होता है!”
“चाँदनी रात? कहाँ है चाँदनी?”
“इसको उतार दो, चाँदनी ही चाँदनी हो जाएगी!” मैंने उसकी ब्लाउज की ओर इशारा किया।
अल्का मुस्कुराई।
अम्मा के क्रोध का ज्वार भले ही उतर गया हो, लेकिन वो अभी भी भीतर ही भीतर सुलग रहीं थीं। क्रोध की धीमी धीमी आँच उनके मन को साल रही थी। इतना तो अवश्य था कि अम्मा को मनाने के लिए, अच्चन ने अपना पुरजोर प्रयास कर डाला रहेगा। लेकिन हमारे विवाह के लिए अम्मा की स्वीकृति होनी आवश्यक थी... उसी के चलते अम्मा अच्चन ने उस रात एक लम्बे अन्तराल के बाद सम्भोग किया। हमको कैसे मालूम चला, आप पूछेंगे? दरअसल जब अच्चन कमरे में गए, तो वो कमरे का दरवाज़ा पूरी तरह से बंद करना शायद भूल गए थे। ऋतु परिवर्तन का प्रभाव पृथ्वी के प्रत्येक जीव जन्तुओं पर अवश्यम्भावी है, और मनुष्य इससे अछूता नहीं है। वर्षा ऋतु में घने मेघ, मनोरम हवा, और कम तापमान कुछ ऐसा रम्य वातावरण बना देते हैं कि स्त्री और पुरुष, दोनों में ही एक-दूसरे में लीन हो जाने की बड़ी तीव्र इच्छा उत्पन्न हो जाती है। अम्मा और पिताजी को ‘हमारा’ कमरा दे दिया गया था, और हम बाकी के तीन जने एक कमरे में थे।
अल्का ने आज बड़े चाव से एक नई साड़ी पहनी हुई थी कि अपनी चेची और होने वाली अम्माईल अम्मा का स्वागत करेगी। लेकिन मन की इच्छाएँ अम्मा की गालियों के बोझ से दब कर रह गईं। आज की रात बेचारी बड़े ही गहरे अवसाद में लेटी। आज किसी ने खाना नहीं खाया था; सभी बस वैसे ही चुप चाप लेट गए थे। मुझे न जाने कैसे नींद आ गई थी, लेकिन अल्का के सुबकने की आवाज़ ने मुझे नींद से उठा दिया।
“क्या हुआ, मोलू?”
“ओह मेरे कुट्टन! तुम सोए नहीं?”
“क्यों रो रही हो मोलू!”
“चेची हम दोनों को एक नहीं होने देगी..” उसने सुबकते हुए कहा।
“इधर आओ..” कह कर मैंने उसको अपने आगोश में भींच लिया, और उसके माथे को चूम लिया, “कैसे हम दोनों एक नहीं हो सकते? कौन कर सकता है यह मेरी मोलू के साथ? हम्म?”
वो मुस्कुराई! एक थकी हुई सी मुस्कान। लेकिन अपने भाव में शुद्ध! प्रेम के ऐसे छोटे छोटे अभिव्यक्ति पर भी वो खुश हो जाती है, “अब बोलो कि हम दोनों एक नहीं हैं?”
“एक हैं..।”
“हैं न?”
“हाँ कुट्टन!”
“फ़िर?”
“ठीक है!”
“भूख लगी है?”
“नहीं!”
“मैं खिला दूँ, तो खाओगी?”
उसने ‘न’ में सर हिलाया। मैं उठ कर रसोई से एक कटोरी भर अडा प्रधामन ले आया।
“ऐसी सुन्दर, मनोरम, चाँदनी रात में अपनी पत्नी को अडा खिलाना बड़े पुण्य का काम होता है!”
“चाँदनी रात? कहाँ है चाँदनी?”
“इसको उतार दो, चाँदनी ही चाँदनी हो जाएगी!” मैंने उसकी ब्लाउज की ओर इशारा किया।
अल्का मुस्कुराई।