17-07-2021, 06:58 PM
“लक्ष्मी, मेरी बच्ची को मत छेड़! उसको जीवन में पहली बार यह सुख मिला है, कम से कम उसको उन्मुक्त हो कर इस सुख का आनंद उठाने दे!”
अम्मम्मा की बात पर अल्का पुनः लज्जा से लाल हो गई।
“हाँ! इस सुख का आनंद तो उठाना ही चाहिए। ये दोनों ही अभी युवा हैं। जितना भी संभव हो, इनको पारस्परिक अंतरंगता का आनंद उठाना ही चाहिए। अच्छा, तनिक इधर तो आओ मोलूट्टी, मैं थोड़ा तुम्हारी जाँच कर लूँ।”
“क्या जाँच करेगी तू लक्ष्मी?”
“यजमंट्टी, अल्का की पूरु अर्चित के हिसाब से छोटी है। उम्र में उससे बड़ी है तो क्या हुआ?”
“अरे, पूरु भी कहीं छोटी होती है?”
“यजमंट्टी, इसके अभ्यंगम के समय मैंने कितनी बार देखा है। अंदर कनिष्ठा डालने में भी मुँह बनाने लगती है। और फिर उसके सामने अर्चित का वाळप्पनम जैसा कुन्ना!”
“अपनी बुरी नज़र मत डाल मेरे मरुमकन पर! अच्छा, पुष्ट लिंग है, लेकिन वैसा बड़ा नहीं है। हाँ, लेकिन धीरे धीरे और बढ़ जाएगा दो तीन वर्षों में!”
अल्का अपने और मेरे शरीर की बनावट की यूँ खुले-आम चर्चा होते हुए देख कर शरमा गई। लेकिन फिर भी वो चिन्नम्मा के पास गई। चिन्नम्मा ने ध्यान से अल्का के कोमल अंगों की जाँच करी।
“दर्द हुआ था?” उन्होंने पूछा।
अल्का ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“उसने जल्दबाज़ी तो नहीं करी?
अल्का ने ‘न’ में सर हिलाया।
“क्या किया उसने?”
“चिन्नम्मा!” अल्का ने शर्माते हुए अपना चेहरा ढँक लिया।
“अरे शरमा मत! मर्दों का क्या है? उनको तो छोटे आकार की योनि ही पसंद आती है, क्योंकि उनकी कसावट में मर्दों को अधिक आनंद मिलता है। परेशानी तो हमारी हो जाती है। बोल क्या क्या किया उसने?”
“उन्होंने पहले मुँह से… फिर अपनी उंगलियाँ डालीं, और फिर अपना कु …” कहते कहते अल्का रुक गई।
“क्या सच में? बढ़िया फिर तो! चिन्नू को अगली बार कहना कि थोड़ा और देर तक यही काम करे। दर्द कम होगा।”
“क्या क्या करते हैं आज कल के बच्चे! और लक्ष्मी, ये सब बातें कोई औरत अपने पति से कहती है क्या?”
“यजमंट्टी, औरत अपने पति से न कहे, तो फिर किस से कहे? मोलूट्टी, अपना अर्चित तुझसे उम्र में छोटा है। तेरा कहा मानेगा। तेरी इच्छा समझेगा। तू बस अपने मन की बातें उसको कहने बताने में संकोच न करना। ठीक है?”
अल्का ने लज्जा से मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“ठीक है! चल, मैं पानी गरम कर देती हूँ। उसमे नारियल तेल डाल कर कुछ देर सिंकाई कर ले। आराम मिलेगा।”
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अम्मम्मा की बात पर अल्का पुनः लज्जा से लाल हो गई।
“हाँ! इस सुख का आनंद तो उठाना ही चाहिए। ये दोनों ही अभी युवा हैं। जितना भी संभव हो, इनको पारस्परिक अंतरंगता का आनंद उठाना ही चाहिए। अच्छा, तनिक इधर तो आओ मोलूट्टी, मैं थोड़ा तुम्हारी जाँच कर लूँ।”
“क्या जाँच करेगी तू लक्ष्मी?”
“यजमंट्टी, अल्का की पूरु अर्चित के हिसाब से छोटी है। उम्र में उससे बड़ी है तो क्या हुआ?”
“अरे, पूरु भी कहीं छोटी होती है?”
“यजमंट्टी, इसके अभ्यंगम के समय मैंने कितनी बार देखा है। अंदर कनिष्ठा डालने में भी मुँह बनाने लगती है। और फिर उसके सामने अर्चित का वाळप्पनम जैसा कुन्ना!”
“अपनी बुरी नज़र मत डाल मेरे मरुमकन पर! अच्छा, पुष्ट लिंग है, लेकिन वैसा बड़ा नहीं है। हाँ, लेकिन धीरे धीरे और बढ़ जाएगा दो तीन वर्षों में!”
अल्का अपने और मेरे शरीर की बनावट की यूँ खुले-आम चर्चा होते हुए देख कर शरमा गई। लेकिन फिर भी वो चिन्नम्मा के पास गई। चिन्नम्मा ने ध्यान से अल्का के कोमल अंगों की जाँच करी।
“दर्द हुआ था?” उन्होंने पूछा।
अल्का ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“उसने जल्दबाज़ी तो नहीं करी?
अल्का ने ‘न’ में सर हिलाया।
“क्या किया उसने?”
“चिन्नम्मा!” अल्का ने शर्माते हुए अपना चेहरा ढँक लिया।
“अरे शरमा मत! मर्दों का क्या है? उनको तो छोटे आकार की योनि ही पसंद आती है, क्योंकि उनकी कसावट में मर्दों को अधिक आनंद मिलता है। परेशानी तो हमारी हो जाती है। बोल क्या क्या किया उसने?”
“उन्होंने पहले मुँह से… फिर अपनी उंगलियाँ डालीं, और फिर अपना कु …” कहते कहते अल्का रुक गई।
“क्या सच में? बढ़िया फिर तो! चिन्नू को अगली बार कहना कि थोड़ा और देर तक यही काम करे। दर्द कम होगा।”
“क्या क्या करते हैं आज कल के बच्चे! और लक्ष्मी, ये सब बातें कोई औरत अपने पति से कहती है क्या?”
“यजमंट्टी, औरत अपने पति से न कहे, तो फिर किस से कहे? मोलूट्टी, अपना अर्चित तुझसे उम्र में छोटा है। तेरा कहा मानेगा। तेरी इच्छा समझेगा। तू बस अपने मन की बातें उसको कहने बताने में संकोच न करना। ठीक है?”
अल्का ने लज्जा से मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“ठीक है! चल, मैं पानी गरम कर देती हूँ। उसमे नारियल तेल डाल कर कुछ देर सिंकाई कर ले। आराम मिलेगा।”
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