17-07-2021, 06:57 PM
“पिछली बार?”
“हाँ यजमंट्टी, इनका पहली बार रहा होगा। बड़ी कठिनाई से अंदर गया था, और बस दो तीन बार में ही...”
“तुझसे कुछ नहीं छुपा है क्या लक्ष्मी?”
“अरे यजमंट्टी, मैं तो काम से अंदर आ रही थी, और ये दोनों आपस में इतना मगन थे कि इन्होने मुझे देखा ही नहीं तो इसमें मेरा क्या दोष है?”
“सही कह रही है! तेरा कोई दोष नहीं! भले ही पूरी की पूरी दुष्ट है तू, लेकिन तेरा कोई दोष नहीं!”
“हा हा! लेकिन इस बार लगता है कि देर तक चला दोनों का। सच सच कहना मोलूट्टी, तुझको आनंद तो आया न? अर्चित ने तुझे सुख तो दिया न?”
“बहुत आनंद आया चिन्नम्मा! सच में आत्मा तृप्त हो गई!”
“हम्म्म.. बहुत बढ़िया! मुझे अर्चित से यही आशा थी। पति का कर्त्तव्य है कि वो अपनी पत्नी को सभी प्रकार की संतुष्टि दे!” अम्मम्मा ने कहा, “अच्छा, अब मेरी एक बात ध्यान से सुन। तुम दोनों युवा हो; और तुम दोनों ने अब सम्भोग का फल भी खा लिया है। और प्रत्यक्ष है कि तुम दोनों को इसमें आनंद भी आया। इसका मतलब यह है कि अब तुम दोनों को आगे सम्भोग करने से रोक पाना बहुत कठिन है। तुम एक दूसरे को मन से अपना चुके हो, इसलिए मैं नहीं चाहती कि तुम दोनों छुप छुप कर यह काम करो। सम्भोग निर्बाध हो कर करना चाहिए, एकदम उन्मुक्त! बिना किसी डर के, बिना किसी रोक टोक के..”
अल्का कुछ बोलने को हुई तो अम्मम्मा ने उसको रोकते हुए कहा, “मेरी बात तो सुन ले पहले.. मैं पहले तो सोच रही थी कि अर्चित अपने काम का बोझ पूरी तरह से सम्हाल लेता, तब तुम दोनों के विवाह की बात मैं उसके अम्मा और अच्चन से करती। लेकिन मुझे अब लगता है कि उचित यही होगा कि तुम दोनों शीघ्र अतिशीघ्र विवाह के बंधन में बंध जाओ। इसका मतलब मुझे तेरी चेची से बात करनी पड़ेगी, और उसको यहाँ बुलाना पड़ेगा।”
“ओह अम्मा!” कह कर अल्का अम्मम्मा से लिपट गई, “मुझे बहुत डर लग रहा है..”
“डर तो तुझे इस राह चल निकलने से पहले लगना चाहिए था बच्चे। लेकिन अब जब तुम इस राह चल ही निकली हो, तो अब डरो मत! अर्चित का प्रेम तुम्हारे साथ है, और साथ में मैं भी तो अब तेरे साथ हूँ! है न, बच्चे!”
“ओह अम्मा! मेरी प्यारी अम्मा!”
“लेकिन यह मेरा कर्त्तव्य है कि मैं तुमको बता दूँ, कि मैं अपनी ओर से पूरा प्रयास करूँगी कि तुम दोनों के विवाह के लिए अर्चित के माँ बाप को मना लूँ। लेकिन यदि वो न माने, तो मेरे हाथ बंधे हुए हैं। और यदि वो मान गए, तो बाकी के समाज को मनाना कोई बहुत बड़ा काम नहीं!”
“अम्मा, आपने अभी तक जो कुछ भी किया है, वो भी तो कुछ कम नहीं! यह एक ऋण है, जिसको मैं उम्र भर चुका नहीं सकती।”
“अरे चल! माँ बाप का भी भला कोई ऋण होता है अपने बच्चों पर? मैं तो बस तुम दोनों की ख़ुशियाँ चाहती हूँ। बस - और कुछ भी नहीं।”
अल्का हर्षातिरेक में अम्मम्मा से लिपट जाती है।
“हाँ! मैं भी तुम दोनों की ख़ुशियाँ चाहती हूँ।” चिन्नम्मा ने कहा, “अब से तू अधिक से अधिक समय अर्चित के साथ व्यतीत कर। जब वो घर पर हो, तब तू उसके साथ रह। घर के काम की चिंता मत कर। उसके लिए मैं हूँ। तू बस अपने इस नए जीवन का आनंद उठा।”
“चिन्नम्मा!” कह कर अल्का ने लज्जा के मारे अपने चेहरे को अपनी हथेलियों से ढँक लिया।
“हाँ यजमंट्टी, इनका पहली बार रहा होगा। बड़ी कठिनाई से अंदर गया था, और बस दो तीन बार में ही...”
“तुझसे कुछ नहीं छुपा है क्या लक्ष्मी?”
“अरे यजमंट्टी, मैं तो काम से अंदर आ रही थी, और ये दोनों आपस में इतना मगन थे कि इन्होने मुझे देखा ही नहीं तो इसमें मेरा क्या दोष है?”
“सही कह रही है! तेरा कोई दोष नहीं! भले ही पूरी की पूरी दुष्ट है तू, लेकिन तेरा कोई दोष नहीं!”
“हा हा! लेकिन इस बार लगता है कि देर तक चला दोनों का। सच सच कहना मोलूट्टी, तुझको आनंद तो आया न? अर्चित ने तुझे सुख तो दिया न?”
“बहुत आनंद आया चिन्नम्मा! सच में आत्मा तृप्त हो गई!”
“हम्म्म.. बहुत बढ़िया! मुझे अर्चित से यही आशा थी। पति का कर्त्तव्य है कि वो अपनी पत्नी को सभी प्रकार की संतुष्टि दे!” अम्मम्मा ने कहा, “अच्छा, अब मेरी एक बात ध्यान से सुन। तुम दोनों युवा हो; और तुम दोनों ने अब सम्भोग का फल भी खा लिया है। और प्रत्यक्ष है कि तुम दोनों को इसमें आनंद भी आया। इसका मतलब यह है कि अब तुम दोनों को आगे सम्भोग करने से रोक पाना बहुत कठिन है। तुम एक दूसरे को मन से अपना चुके हो, इसलिए मैं नहीं चाहती कि तुम दोनों छुप छुप कर यह काम करो। सम्भोग निर्बाध हो कर करना चाहिए, एकदम उन्मुक्त! बिना किसी डर के, बिना किसी रोक टोक के..”
अल्का कुछ बोलने को हुई तो अम्मम्मा ने उसको रोकते हुए कहा, “मेरी बात तो सुन ले पहले.. मैं पहले तो सोच रही थी कि अर्चित अपने काम का बोझ पूरी तरह से सम्हाल लेता, तब तुम दोनों के विवाह की बात मैं उसके अम्मा और अच्चन से करती। लेकिन मुझे अब लगता है कि उचित यही होगा कि तुम दोनों शीघ्र अतिशीघ्र विवाह के बंधन में बंध जाओ। इसका मतलब मुझे तेरी चेची से बात करनी पड़ेगी, और उसको यहाँ बुलाना पड़ेगा।”
“ओह अम्मा!” कह कर अल्का अम्मम्मा से लिपट गई, “मुझे बहुत डर लग रहा है..”
“डर तो तुझे इस राह चल निकलने से पहले लगना चाहिए था बच्चे। लेकिन अब जब तुम इस राह चल ही निकली हो, तो अब डरो मत! अर्चित का प्रेम तुम्हारे साथ है, और साथ में मैं भी तो अब तेरे साथ हूँ! है न, बच्चे!”
“ओह अम्मा! मेरी प्यारी अम्मा!”
“लेकिन यह मेरा कर्त्तव्य है कि मैं तुमको बता दूँ, कि मैं अपनी ओर से पूरा प्रयास करूँगी कि तुम दोनों के विवाह के लिए अर्चित के माँ बाप को मना लूँ। लेकिन यदि वो न माने, तो मेरे हाथ बंधे हुए हैं। और यदि वो मान गए, तो बाकी के समाज को मनाना कोई बहुत बड़ा काम नहीं!”
“अम्मा, आपने अभी तक जो कुछ भी किया है, वो भी तो कुछ कम नहीं! यह एक ऋण है, जिसको मैं उम्र भर चुका नहीं सकती।”
“अरे चल! माँ बाप का भी भला कोई ऋण होता है अपने बच्चों पर? मैं तो बस तुम दोनों की ख़ुशियाँ चाहती हूँ। बस - और कुछ भी नहीं।”
अल्का हर्षातिरेक में अम्मम्मा से लिपट जाती है।
“हाँ! मैं भी तुम दोनों की ख़ुशियाँ चाहती हूँ।” चिन्नम्मा ने कहा, “अब से तू अधिक से अधिक समय अर्चित के साथ व्यतीत कर। जब वो घर पर हो, तब तू उसके साथ रह। घर के काम की चिंता मत कर। उसके लिए मैं हूँ। तू बस अपने इस नए जीवन का आनंद उठा।”
“चिन्नम्मा!” कह कर अल्का ने लज्जा के मारे अपने चेहरे को अपनी हथेलियों से ढँक लिया।