17-07-2021, 06:56 PM
“मोलू.. मेरी.. अल्का! मेरी अल्का! बस एक दो बार और... मैं अपना वीर्य तुमको दे रहा हूँ! आह!”
कहते हुए मैंने एक तीव्र स्खलन महसूस किया। अल्का ने मुझे अपने पूरे शरीर से आलिंगनबद्ध कर लिया। मैंने लगभग हाँफते हुए एक के बाद एक कई पिचकारियों में अपने बीज को अल्का की कोख के अंदर तक भर दिया। कुछ देर में मेरा बीज तो निकल गया लेकिन अल्का की योनि की अनुभूति इतनी सुखद, इतनी मीठी थी कि स्खलन होने के बाद भी बाहर निकलने का मन नहीं हुआ, इसलिए मैं शिथिल हो कर अल्का के ऊपर ही गिर गया और सुस्ताने लगा। उधर अल्का मेरे शरीर के नीचे दबी हुई, अपने हर अंग में एक मीठा मीठा सा दर्द महसूस कर रही थी।
‘इस बार तो पिछली बार से कहीं अच्छा अनुभव था!’ उसने सोचा।
अन्यमनस्क सी स्थिति में उसका हाथ अपने एक चूचक पर चला गया तो उसको लगा कि जैसे वहाँ से एक ज्वालामुखी फट पड़ा हो... ऐसी आनंददायक पीड़ा! अल्का ने खुद को थोड़ा व्यवस्थित किया और अपने एक चूचक पर मेरा मुँह आ जाने दिया। मुझे किसी अन्य संकेतों की आवश्यकता नहीं थी। मैंने उस चूचक को चूसने चुभलाना शुरू दिया। यह करते हुए कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला।
हमारे प्रथम संसर्ग के समापन की उत्तरदीप्ति में अल्का कुछ देर तक अपने शरीर में होने वाली मीठी मीठी पीड़ा का आनंद लेती रही, और मेरे सर के बालों से खेलती रही। लेकिन जब उसने मुझे पूरी तरह से बेसुध हो कर सोते हुए देखा, तो वो बिस्तर से उठ खड़ी हुई। उसको नींद नहीं आ रही थी। वो अपने इस नए अनुभव का पूरा आनंद लेना चाहती थी, और उसके अनूठे आनंद को निद्रा की बेसुधी में गँवाना नहीं चाहती थी। वो अंगड़ाई लेती हुई कमरे से बाहर निकल आई।
“अरे! मोलूट्टी! तेरे कुट्टन ने तुझे इतना सताया कि तू बिना कपड़ों के ही बाहर भाग आई?” अल्का को कमरे से बाहर आते देखते ही चिन्नम्मा ने उस से ठिठोली करी।
“अरे, मोलूट्टी.. तू आ गई? और.. अर्चित?” अम्मम्मा ने अल्का से पूछा।
“वो सो रहे हैं, अम्मा!”
“हम्म्म्म! लेकिन तू कुछ पहन तो ले.. सयानी लड़की घर भर में ऐसे नंगी घूमती हुई ठीक नहीं लगती है...!”
“पहन तो लूं अम्मा, लेकिन उसका कोई फायदा ही नहीं है। वो साड़ी मैंने पूरे आधे घंटे की मेहनत कर के पहनी थी। हुआ क्या? केवल दो क्षणों में ही सब कुछ उतर गया!”
अम्मम्मा अल्का की बात सुन कर मुस्कुराने लगीं।
“सुन रही है न लक्ष्मी? आज कल के बच्चे पूरी तरह से निर्वस्त्र हो कर सम्भोग करते हैं। हमारे समय में तो बस मुण्डु उठा कर काम हो जाता था।”
“क्यों न हो यजमंट्टी? इतनी सुन्दर सी तो है हमारी मोलूट्टी! सच कहूँ तो निर्वस्त्र हो कर तो और प्यारी सी लगती है ये! तू ऐसी ही रहा कर मोलूट्टी।” कह कर चिन्नम्मा ने अल्का को अपने आलिंगन में भर लिया।
“और.. उन्होंने कहा है कि उनके सामने मैं नंगी ही..” कहते हुए अल्का के गाल लज्जा से लाल हो गए।
“अरे वाह री आज्ञाकारी पत्नी!!” अम्मम्मा ने हँसते हुए कहा, “अच्छा है! हा हा... अच्छा है.. मुझे यह सब सुन कर बहुत अच्छा लगा! ... हम्म! अब, एक बात बता, कैसा रहा?”
“ओह अम्मा! मैं तो तृप्त हो गई!”
“पिछली बार के जैसा तो नहीं था?” चिन्नम्मा ने पूछा।
अल्का ले लज्जा से लाल होते हुए ‘न’ में सर हिलाया।
कहते हुए मैंने एक तीव्र स्खलन महसूस किया। अल्का ने मुझे अपने पूरे शरीर से आलिंगनबद्ध कर लिया। मैंने लगभग हाँफते हुए एक के बाद एक कई पिचकारियों में अपने बीज को अल्का की कोख के अंदर तक भर दिया। कुछ देर में मेरा बीज तो निकल गया लेकिन अल्का की योनि की अनुभूति इतनी सुखद, इतनी मीठी थी कि स्खलन होने के बाद भी बाहर निकलने का मन नहीं हुआ, इसलिए मैं शिथिल हो कर अल्का के ऊपर ही गिर गया और सुस्ताने लगा। उधर अल्का मेरे शरीर के नीचे दबी हुई, अपने हर अंग में एक मीठा मीठा सा दर्द महसूस कर रही थी।
‘इस बार तो पिछली बार से कहीं अच्छा अनुभव था!’ उसने सोचा।
अन्यमनस्क सी स्थिति में उसका हाथ अपने एक चूचक पर चला गया तो उसको लगा कि जैसे वहाँ से एक ज्वालामुखी फट पड़ा हो... ऐसी आनंददायक पीड़ा! अल्का ने खुद को थोड़ा व्यवस्थित किया और अपने एक चूचक पर मेरा मुँह आ जाने दिया। मुझे किसी अन्य संकेतों की आवश्यकता नहीं थी। मैंने उस चूचक को चूसने चुभलाना शुरू दिया। यह करते हुए कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला।
हमारे प्रथम संसर्ग के समापन की उत्तरदीप्ति में अल्का कुछ देर तक अपने शरीर में होने वाली मीठी मीठी पीड़ा का आनंद लेती रही, और मेरे सर के बालों से खेलती रही। लेकिन जब उसने मुझे पूरी तरह से बेसुध हो कर सोते हुए देखा, तो वो बिस्तर से उठ खड़ी हुई। उसको नींद नहीं आ रही थी। वो अपने इस नए अनुभव का पूरा आनंद लेना चाहती थी, और उसके अनूठे आनंद को निद्रा की बेसुधी में गँवाना नहीं चाहती थी। वो अंगड़ाई लेती हुई कमरे से बाहर निकल आई।
“अरे! मोलूट्टी! तेरे कुट्टन ने तुझे इतना सताया कि तू बिना कपड़ों के ही बाहर भाग आई?” अल्का को कमरे से बाहर आते देखते ही चिन्नम्मा ने उस से ठिठोली करी।
“अरे, मोलूट्टी.. तू आ गई? और.. अर्चित?” अम्मम्मा ने अल्का से पूछा।
“वो सो रहे हैं, अम्मा!”
“हम्म्म्म! लेकिन तू कुछ पहन तो ले.. सयानी लड़की घर भर में ऐसे नंगी घूमती हुई ठीक नहीं लगती है...!”
“पहन तो लूं अम्मा, लेकिन उसका कोई फायदा ही नहीं है। वो साड़ी मैंने पूरे आधे घंटे की मेहनत कर के पहनी थी। हुआ क्या? केवल दो क्षणों में ही सब कुछ उतर गया!”
अम्मम्मा अल्का की बात सुन कर मुस्कुराने लगीं।
“सुन रही है न लक्ष्मी? आज कल के बच्चे पूरी तरह से निर्वस्त्र हो कर सम्भोग करते हैं। हमारे समय में तो बस मुण्डु उठा कर काम हो जाता था।”
“क्यों न हो यजमंट्टी? इतनी सुन्दर सी तो है हमारी मोलूट्टी! सच कहूँ तो निर्वस्त्र हो कर तो और प्यारी सी लगती है ये! तू ऐसी ही रहा कर मोलूट्टी।” कह कर चिन्नम्मा ने अल्का को अपने आलिंगन में भर लिया।
“और.. उन्होंने कहा है कि उनके सामने मैं नंगी ही..” कहते हुए अल्का के गाल लज्जा से लाल हो गए।
“अरे वाह री आज्ञाकारी पत्नी!!” अम्मम्मा ने हँसते हुए कहा, “अच्छा है! हा हा... अच्छा है.. मुझे यह सब सुन कर बहुत अच्छा लगा! ... हम्म! अब, एक बात बता, कैसा रहा?”
“ओह अम्मा! मैं तो तृप्त हो गई!”
“पिछली बार के जैसा तो नहीं था?” चिन्नम्मा ने पूछा।
अल्का ले लज्जा से लाल होते हुए ‘न’ में सर हिलाया।