17-07-2021, 06:52 PM
यह कह कर मैं कुछ देर तक उसके स्तनों को पीने लगा। कितना रुचिकर होता है अपनी पत्नी, अपनी प्रेमिका का स्तनों को पीना। सुख हो जाता है। जब स्तनपान से मन भर गया, तब मैंने अल्का को आलिंगन में भरे हुए ही कहा,
“अल्का, तुम्हारा हर अंग बहुत सुन्दर है। मुझे तुम्हारा हर अंग प्रिय है!”
अल्का मुस्कुराई।
“और तुम्हारा रंग भी प्रिय है!”
“मेरा रंग? मेरा रंग कोई गोरा तो नहीं है...” वो बोली ।
“इसीलिए तो और भी पसंद है..” फिर कुछ रुक कर, “तुम्हारा पूरा शरीर अपूर्व है! कैसी चिकनी त्वचा, कैसे मुलायम और चमकीले बाल.. कैसे काले काले हैं!”
“आओ, मैं तुमको अपने बालों से ढँक लूँ! याद है कुट्टन तुमको? जब तुम छोटे थे, तो लुका छिपी खेलते समय मेरे बालों में छुप जाते थे।”
कह कर अल्का ने मुझे अपने सीने में भींच कर मुझे अपने बालों से ढँक लिया। मैं क्यों शिकायत करता? मैं तो वापस अपनी मनपसंद जगह पर आ गया था। मैंने उंगली से उसके मुलाक्कन्न छुए, फिर उनको अपनी नाक की नोक से किसी पक्षी के मानिंद सहलाया, और सूंघा। फिर उसके दोनों चूचकों को अपने मुँह में ले कर मन भर चूसा।
“मोलू, तुमको मालूम है कि वाइन पीने के बाद चेरी खानी चाहिए?”
“अच्छा?” अलका एक आज्ञाकारी पत्नी की तरह मेरी हर इच्छा को पूरा करना चाहती थी, “मुझे नहीं मालूम था... लेकिन.. लेकिन घर पर चेरी तो है ही नहीं...”
“घर पर नहीं है.. लेकिन यहाँ (मैंने उसके चूचकों की तरफ इशारा करते हुए कहा) तो हैं!”
“हा हा ! आप तो इनको बहुत देर से खा रहे हैं!”
‘आप!’ मैंने मन ही मन कहा!
मैं अल्का के स्तनों और पेट का चुम्बन लेते हुए धीरे धीरे नीचे की ओर उसके नाज़ुक यौनांगों तक आ गया। अल्का ने सख्ती से अपनी दोनों जाँघें जोड़ी हुई थीं। उनको मैंने अपने दोनों हाथों से अलग करते हुए कहा,
“अपना स्वाद लेने दो, मोलू!”
“छीः! नहीं!” उसने वापस अपनी जांघें आपस में भींच लीं।
“क्यों?”
“अरे! क्यों क्यों? कितना गन्दा काम है!”
“गन्दा काम! अरे देखो तो! कितने सुन्दर हैं तुम्हारी योनि के होंठ! मैं जानता हूँ कि इनके अंदर अमृत भरा हुआ है.. प्लीज मुझे तुम्हारा अमृत पीने दो!”
“आपको भी न जाने क्या क्या अमृत लगता है!”
मैंने धीरे धीरे से उसकी जाँघों को अलग किया। अल्का ने इस बार विरोध नहीं किया, लेकिन उसने शर्म से अपनी आँखें बंद कर लीं। उत्तेजना के कारण उसकी योनि से पहले ही कामरस रिस रहा था। मैंने अल्का की योनि में अपने मुंह को पूरी यथासंभव अंदर तक डाल दिया और उसका कामरस पीने लगा। कुछ देर में मैंने उसका सारा अमृत पी लिया.. कैसी प्यास! अल्का भी अपनी आँखें बंद किए हुए इस अनोखे अनुभव को जी रही थी..।
“आँखें खोलो मोलू... मुझे देखो!”
अल्का ने आँखें खोलीं। सामने का दृश्य देख कर उसने एक गहरी सिसकारी भरी। मैंने अपने शिश्न से शिश्नाग्रच्छद हटा दिया था। साँवले गुलाबी रंग का शिश्नमुंड उसके सामने था; ह्रदय की गति के साथ मेरा शिश्न भी रक्त संचार के कारण रह रह कर झटके खा रहा था। इस समय वो पहले से अधिक बड़ा लग रहा था। थोड़ी ही देर में वो पुनः इस लिंग के द्वारा भोगे जाने वाली थी - एक पत्नी के तौर पर। सच कहें तो वो पहली ही बार भोगी जाने वाली थी। पहली बार तो बस जैसे तैसे बस एक सम्बन्ध स्थापित हुआ था। भोगने जैसा कुछ हुआ नहीं था। उस समय एक असहजता थी, अनाड़ीपन था, डर था। अभी हम सहज थे, और आश्वस्त हो कर सम्भोग कर रहे थे।
“अल्का, तुम्हारा हर अंग बहुत सुन्दर है। मुझे तुम्हारा हर अंग प्रिय है!”
अल्का मुस्कुराई।
“और तुम्हारा रंग भी प्रिय है!”
“मेरा रंग? मेरा रंग कोई गोरा तो नहीं है...” वो बोली ।
“इसीलिए तो और भी पसंद है..” फिर कुछ रुक कर, “तुम्हारा पूरा शरीर अपूर्व है! कैसी चिकनी त्वचा, कैसे मुलायम और चमकीले बाल.. कैसे काले काले हैं!”
“आओ, मैं तुमको अपने बालों से ढँक लूँ! याद है कुट्टन तुमको? जब तुम छोटे थे, तो लुका छिपी खेलते समय मेरे बालों में छुप जाते थे।”
कह कर अल्का ने मुझे अपने सीने में भींच कर मुझे अपने बालों से ढँक लिया। मैं क्यों शिकायत करता? मैं तो वापस अपनी मनपसंद जगह पर आ गया था। मैंने उंगली से उसके मुलाक्कन्न छुए, फिर उनको अपनी नाक की नोक से किसी पक्षी के मानिंद सहलाया, और सूंघा। फिर उसके दोनों चूचकों को अपने मुँह में ले कर मन भर चूसा।
“मोलू, तुमको मालूम है कि वाइन पीने के बाद चेरी खानी चाहिए?”
“अच्छा?” अलका एक आज्ञाकारी पत्नी की तरह मेरी हर इच्छा को पूरा करना चाहती थी, “मुझे नहीं मालूम था... लेकिन.. लेकिन घर पर चेरी तो है ही नहीं...”
“घर पर नहीं है.. लेकिन यहाँ (मैंने उसके चूचकों की तरफ इशारा करते हुए कहा) तो हैं!”
“हा हा ! आप तो इनको बहुत देर से खा रहे हैं!”
‘आप!’ मैंने मन ही मन कहा!
मैं अल्का के स्तनों और पेट का चुम्बन लेते हुए धीरे धीरे नीचे की ओर उसके नाज़ुक यौनांगों तक आ गया। अल्का ने सख्ती से अपनी दोनों जाँघें जोड़ी हुई थीं। उनको मैंने अपने दोनों हाथों से अलग करते हुए कहा,
“अपना स्वाद लेने दो, मोलू!”
“छीः! नहीं!” उसने वापस अपनी जांघें आपस में भींच लीं।
“क्यों?”
“अरे! क्यों क्यों? कितना गन्दा काम है!”
“गन्दा काम! अरे देखो तो! कितने सुन्दर हैं तुम्हारी योनि के होंठ! मैं जानता हूँ कि इनके अंदर अमृत भरा हुआ है.. प्लीज मुझे तुम्हारा अमृत पीने दो!”
“आपको भी न जाने क्या क्या अमृत लगता है!”
मैंने धीरे धीरे से उसकी जाँघों को अलग किया। अल्का ने इस बार विरोध नहीं किया, लेकिन उसने शर्म से अपनी आँखें बंद कर लीं। उत्तेजना के कारण उसकी योनि से पहले ही कामरस रिस रहा था। मैंने अल्का की योनि में अपने मुंह को पूरी यथासंभव अंदर तक डाल दिया और उसका कामरस पीने लगा। कुछ देर में मैंने उसका सारा अमृत पी लिया.. कैसी प्यास! अल्का भी अपनी आँखें बंद किए हुए इस अनोखे अनुभव को जी रही थी..।
“आँखें खोलो मोलू... मुझे देखो!”
अल्का ने आँखें खोलीं। सामने का दृश्य देख कर उसने एक गहरी सिसकारी भरी। मैंने अपने शिश्न से शिश्नाग्रच्छद हटा दिया था। साँवले गुलाबी रंग का शिश्नमुंड उसके सामने था; ह्रदय की गति के साथ मेरा शिश्न भी रक्त संचार के कारण रह रह कर झटके खा रहा था। इस समय वो पहले से अधिक बड़ा लग रहा था। थोड़ी ही देर में वो पुनः इस लिंग के द्वारा भोगे जाने वाली थी - एक पत्नी के तौर पर। सच कहें तो वो पहली ही बार भोगी जाने वाली थी। पहली बार तो बस जैसे तैसे बस एक सम्बन्ध स्थापित हुआ था। भोगने जैसा कुछ हुआ नहीं था। उस समय एक असहजता थी, अनाड़ीपन था, डर था। अभी हम सहज थे, और आश्वस्त हो कर सम्भोग कर रहे थे।