17-07-2021, 06:51 PM
मुझे तो अल्का पूरी ही अच्छी लगती है। लेकिन हाँ, सच है कि उसके शरीर के कुछ अंग बाकी अंगों से अधिक सुन्दर तो हैं। मैंने कहा, “तुम्हारे होंठ, कैसे रस भरे हैं। उनको चूम कर लगता है कि जैसे किशमिश चख रहा हूँ!”
अल्का के होंठों पर यह सुनते ही मुस्कान आ जाती है। मैं आगे कहना जारी रखता हूँ,
“तुम्हारी आँखें - तुम कुछ न भी बोलो, तो भी यह सब कुछ बोल देती हैं।”
मैंने बारी बारी से उसकी दोनों आँखों को चूमा।
“तुम्हारा चेहरा! कैसा भोलापन! कितनी सुंदरता!”
मैंने बारी बारी से उसके दोनों गालों, मस्तक और ठुड्डी को चूमा।
फिर मैंने उसके सीने पर से उसके हाथों हो हटा दिया और उसकी कमर के इर्द गिर्द अपनी बाहों का घेरा बना लिया। ऐसे कोमल आलिंगन से उसके मुलाक्कल और मुलाक्कन्न मेरे सीने पर चुभने लगे। मैंने एक हाथ से उसके एक मुलाक्कल को सहलाते हुए कहा,
“तुम्हारे पृयूर! तुम तो खुद ही ईश्वर की कलाकृति हो, लेकिन तुम्हारे पृयूर... एकदम पुष्ट और रसीले!”
मैंने बारी बारी से उसके दोनों मुलाक्कलों को पहले चूमा, फिर उनको हाथों में भर कर दबाने लगा। ऐसे गोल गोल और सुडौल मुलाक्कल किसको पसंद नहीं आएँगे?
“कितने सुन्दर हैं ये! इतने सुन्दर मैंने कभी नहीं देखे! तुम मुझे पागल कर दोगी!”
“कितनी स्त्रियों के मुलाक्कल देख लिए तुमने चिन्नू?”
“तुम्हारे ही.. और... चिन्नम्मा के!”
“चिन्नम्मा के!? हा हा!”
“हाँ!” कहते हुए मैंने अल्का के स्तनों पर बूँद बूँद कर वाइन डाल दी, और जीभ से चाटने लगा।
“इससे मदिरा का स्वाद बढ़ गया क्या?”
“हाँ..”
“हम्म्मम..”
उसके बाद वाइन को अल्का के पूरे शरीर पर डाल कर मैं चाटने लगा। मुझ पर एक अलग ही तरह की मदहोशी छाने लगी। उधर अल्का मेरे बालों में उँगलियाँ डाले आनंद ले रही थी। मैं पुनः चूमते हुए उसके स्तनों पर पहुंचा।
“अभी ये रसीले नहीं हैं।” अल्का की आवाज़ लड़खड़ाने लगी, “अभी पके नहीं हैं न, तुम्हारे पृयूर!”
“कब पकेंगे?” मैंने सरलता से पूछ लिया। मेरे प्रश्न पर अल्का शरमा गई।
“जानू!” उसने ठुनकते हुए कहा, “क्या तुम नहीं मालूम? सच में?”
“क्या नहीं मालूम?”
“हम्म... इनमें रस तब आएगा जब हमारी संतान...” कहते हुए अल्का ने लज्जा से अपना चेहरा अपनी हथेलियों से ढँक लिया।
“फिर तो जल्दी ही हमको विवाह कर लेना चाहिए!” मैंने हँसते हुए कहा।
“हाँ हाँ! चिन्नू जी, मुझको माँ बनाने की इतनी जल्दी है आपको?” अल्का ने मुझे छेड़ते हुए कहा।
“नहीं। जल्दी तो मुझे तुमको अपनी पत्नी बनाने की है।”
अल्का के होंठों पर यह सुनते ही मुस्कान आ जाती है। मैं आगे कहना जारी रखता हूँ,
“तुम्हारी आँखें - तुम कुछ न भी बोलो, तो भी यह सब कुछ बोल देती हैं।”
मैंने बारी बारी से उसकी दोनों आँखों को चूमा।
“तुम्हारा चेहरा! कैसा भोलापन! कितनी सुंदरता!”
मैंने बारी बारी से उसके दोनों गालों, मस्तक और ठुड्डी को चूमा।
फिर मैंने उसके सीने पर से उसके हाथों हो हटा दिया और उसकी कमर के इर्द गिर्द अपनी बाहों का घेरा बना लिया। ऐसे कोमल आलिंगन से उसके मुलाक्कल और मुलाक्कन्न मेरे सीने पर चुभने लगे। मैंने एक हाथ से उसके एक मुलाक्कल को सहलाते हुए कहा,
“तुम्हारे पृयूर! तुम तो खुद ही ईश्वर की कलाकृति हो, लेकिन तुम्हारे पृयूर... एकदम पुष्ट और रसीले!”
मैंने बारी बारी से उसके दोनों मुलाक्कलों को पहले चूमा, फिर उनको हाथों में भर कर दबाने लगा। ऐसे गोल गोल और सुडौल मुलाक्कल किसको पसंद नहीं आएँगे?
“कितने सुन्दर हैं ये! इतने सुन्दर मैंने कभी नहीं देखे! तुम मुझे पागल कर दोगी!”
“कितनी स्त्रियों के मुलाक्कल देख लिए तुमने चिन्नू?”
“तुम्हारे ही.. और... चिन्नम्मा के!”
“चिन्नम्मा के!? हा हा!”
“हाँ!” कहते हुए मैंने अल्का के स्तनों पर बूँद बूँद कर वाइन डाल दी, और जीभ से चाटने लगा।
“इससे मदिरा का स्वाद बढ़ गया क्या?”
“हाँ..”
“हम्म्मम..”
उसके बाद वाइन को अल्का के पूरे शरीर पर डाल कर मैं चाटने लगा। मुझ पर एक अलग ही तरह की मदहोशी छाने लगी। उधर अल्का मेरे बालों में उँगलियाँ डाले आनंद ले रही थी। मैं पुनः चूमते हुए उसके स्तनों पर पहुंचा।
“अभी ये रसीले नहीं हैं।” अल्का की आवाज़ लड़खड़ाने लगी, “अभी पके नहीं हैं न, तुम्हारे पृयूर!”
“कब पकेंगे?” मैंने सरलता से पूछ लिया। मेरे प्रश्न पर अल्का शरमा गई।
“जानू!” उसने ठुनकते हुए कहा, “क्या तुम नहीं मालूम? सच में?”
“क्या नहीं मालूम?”
“हम्म... इनमें रस तब आएगा जब हमारी संतान...” कहते हुए अल्का ने लज्जा से अपना चेहरा अपनी हथेलियों से ढँक लिया।
“फिर तो जल्दी ही हमको विवाह कर लेना चाहिए!” मैंने हँसते हुए कहा।
“हाँ हाँ! चिन्नू जी, मुझको माँ बनाने की इतनी जल्दी है आपको?” अल्का ने मुझे छेड़ते हुए कहा।
“नहीं। जल्दी तो मुझे तुमको अपनी पत्नी बनाने की है।”