17-07-2021, 06:46 PM
मैं भी उसके पीछे पीछे चला, तो अम्मम्मा ने मुझे टोका,
“अब तू क्यों उसके पीछे पीछे चल दिया ? तू रूक! लक्ष्मी, इसका अभ्यंगम कर दे। मेरी बेटी को पूरा सुख मिलना चाहिए! समझ गए?” अम्मम्मा ने शरारती मुस्कान भरते हुए कहा।
तो फिर क्या था! चिन्नम्मा ने मेरी मालिश करना, और अल्का ने साड़ी-ब्लाउज़ और अन्य साज सज्जा करना शुरु कर दिया। आज सच में, यह एक बहुत बड़ी बात हो गई थी। कहने सुनने में यह एक छोटी सी बात लग सकती है, लेकिन एक लड़के और लड़की के जीवन में यह अवसर केवल एक बार आता है। अल्का का तो ठीक था - वो एकांत में थी और आराम से तैयार हो रही थी। लेकिन मेरी हालत ठीक नहीं थी - मैं दो दो महिलाओं के सामने नंगा था और मेरी मालिश हो रही थी। चिन्नम्मा ने इस मालिश में तो कोई कोर कसर ही नहीं रख छोड़ी थी; मेरे पूरे शरीर की दमदार - ख़ास तौर पर वो मेरे लिंग को दबा दबा कर, खींच खींच कर ज़ोरदार मालिश कर रही थीं। कोई कहने वाली बात नहीं है, कि मेरा लिंग वापस ठोस हो कर अपने उत्थान के चरम पर था। बस यही गनीमत थी कि स्खलन नहीं हो गया। अम्मम्मा भी बीच बीच में मेरे लिंग की जाँच पड़ताल कर के ‘अच्छा कुन्ना’ ‘अच्छा कुन्ना’ कह कह कर मेरा उत्साह बढ़ा रही थीं। मालिश होने के साथ साथ दोनों बुढ़ियाएँ मुझे अपनी पत्नी के संग उत्तम सम्भोग करने का आरंभिक ज्ञान भी देती जा रही थीं। उदाहरण के लिए, क्या क्या करना चाहिए; स्तनों का मर्दन कैसे करना चाहिए; क्या क्या करना नहीं करना चाहिए; क्या करने से अधिक आनंद आएगा इत्यादि। कुछ देर में अल्का ने कमरे के अंदर से ही आवाज़ लगाई,
“अम्मा, मैं तैयार हूँ..”
“अरे देखो तो ज़रा मोलूट्टी को... सम्भोग करने के लिए कितनी उतावली हो रही है..” चिन्नम्मा ने हम को छेड़ा.. “जाओ जाओ चिन्नू, तुम्हारी वधु तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है..”
मैं कमरे में जाने को उठा।
“लेकिन, उसके पहले एक रस्म होती है, जो तुमको निभानी पड़ेगी.. अपनी वधु से रमण करने से पहले, वर अपनी माँ के मुलाक्कल पीता है।” चिन्नमा ने एक और बम छोड़ा, “हाँ हाँ, हमको मालूम है कि तुम दोनों पहले ही रमण कर चुके हो, लेकिन इस बार तो हमारी निगरानी में तुम्हारा मिलन हो रहा है न?”
“तो मैं क्या करूँ..?” मुझे लज्जा आने लगी।
“अरे इतना क्या सोचना? मेरे ही मुलाक्कल पी लो, फिर चले जाओ! मेरे बाद अलका के मुलाक्कल जी भर के पी लेना.. हा हा!” कह कर हँसते हुए चिन्नम्मा ने अपनी ब्लाउज के बटन खोल दिए और उनके विशालकाय मुलाक्कल बाहर निकल आए। उनके बड़े बड़े साँवले रंग के चूचक मेरी मोलू के मुलाक्कलों का भला क्या मुकाबला करते! खैर, मैंने बेमन से बारी बारी से उनके दोनों मुलाक्कन्न को अपने मुँह में लेकर चूसा और आगे बढ़ गया।
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“अब तू क्यों उसके पीछे पीछे चल दिया ? तू रूक! लक्ष्मी, इसका अभ्यंगम कर दे। मेरी बेटी को पूरा सुख मिलना चाहिए! समझ गए?” अम्मम्मा ने शरारती मुस्कान भरते हुए कहा।
तो फिर क्या था! चिन्नम्मा ने मेरी मालिश करना, और अल्का ने साड़ी-ब्लाउज़ और अन्य साज सज्जा करना शुरु कर दिया। आज सच में, यह एक बहुत बड़ी बात हो गई थी। कहने सुनने में यह एक छोटी सी बात लग सकती है, लेकिन एक लड़के और लड़की के जीवन में यह अवसर केवल एक बार आता है। अल्का का तो ठीक था - वो एकांत में थी और आराम से तैयार हो रही थी। लेकिन मेरी हालत ठीक नहीं थी - मैं दो दो महिलाओं के सामने नंगा था और मेरी मालिश हो रही थी। चिन्नम्मा ने इस मालिश में तो कोई कोर कसर ही नहीं रख छोड़ी थी; मेरे पूरे शरीर की दमदार - ख़ास तौर पर वो मेरे लिंग को दबा दबा कर, खींच खींच कर ज़ोरदार मालिश कर रही थीं। कोई कहने वाली बात नहीं है, कि मेरा लिंग वापस ठोस हो कर अपने उत्थान के चरम पर था। बस यही गनीमत थी कि स्खलन नहीं हो गया। अम्मम्मा भी बीच बीच में मेरे लिंग की जाँच पड़ताल कर के ‘अच्छा कुन्ना’ ‘अच्छा कुन्ना’ कह कह कर मेरा उत्साह बढ़ा रही थीं। मालिश होने के साथ साथ दोनों बुढ़ियाएँ मुझे अपनी पत्नी के संग उत्तम सम्भोग करने का आरंभिक ज्ञान भी देती जा रही थीं। उदाहरण के लिए, क्या क्या करना चाहिए; स्तनों का मर्दन कैसे करना चाहिए; क्या क्या करना नहीं करना चाहिए; क्या करने से अधिक आनंद आएगा इत्यादि। कुछ देर में अल्का ने कमरे के अंदर से ही आवाज़ लगाई,
“अम्मा, मैं तैयार हूँ..”
“अरे देखो तो ज़रा मोलूट्टी को... सम्भोग करने के लिए कितनी उतावली हो रही है..” चिन्नम्मा ने हम को छेड़ा.. “जाओ जाओ चिन्नू, तुम्हारी वधु तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है..”
मैं कमरे में जाने को उठा।
“लेकिन, उसके पहले एक रस्म होती है, जो तुमको निभानी पड़ेगी.. अपनी वधु से रमण करने से पहले, वर अपनी माँ के मुलाक्कल पीता है।” चिन्नमा ने एक और बम छोड़ा, “हाँ हाँ, हमको मालूम है कि तुम दोनों पहले ही रमण कर चुके हो, लेकिन इस बार तो हमारी निगरानी में तुम्हारा मिलन हो रहा है न?”
“तो मैं क्या करूँ..?” मुझे लज्जा आने लगी।
“अरे इतना क्या सोचना? मेरे ही मुलाक्कल पी लो, फिर चले जाओ! मेरे बाद अलका के मुलाक्कल जी भर के पी लेना.. हा हा!” कह कर हँसते हुए चिन्नम्मा ने अपनी ब्लाउज के बटन खोल दिए और उनके विशालकाय मुलाक्कल बाहर निकल आए। उनके बड़े बड़े साँवले रंग के चूचक मेरी मोलू के मुलाक्कलों का भला क्या मुकाबला करते! खैर, मैंने बेमन से बारी बारी से उनके दोनों मुलाक्कन्न को अपने मुँह में लेकर चूसा और आगे बढ़ गया।
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