17-07-2021, 06:44 PM
अम्मम्मा ने मुझे हाथों से थाम कर उठने का इशारा किया; मैं उठा तो उन्होंने मेरे चेहरे पर उठते बैठते हाव भाव का जायज़ा लिया और फिर मेरे शरीर का। लज्जा के मारे मेरा शिश्न सिकुड़ कर एक मूंगफली के आकार का हो गया था। देखने वाला कोई कह ही नहीं सकता था कि अभी अभी इसी लिंग से एक सुन्दर युवती से रमण किया गया है। कोई और क्या, मैं स्वयं नहीं कह सकता था।
“तुझे मालूम है न कि परिवार के सदस्यों के बीच परिणय नहीं होता?”
यह बात केवल आंशिक रूप से सत्य थी। हमारे समाज में परिवार के सदस्यों के बीच विवाह को सामाजिक मान्यता मिली हुई है। अम्मम्मा का विवाह ख़ुद उनके ही मामा के साथ हुआ था। ममेरे भाई बहनों के बीच विवाह के किस्से तो बहुतायत से हैं। मुझे हाल में ही पता चला था कि पास के गाँव में किसी ने अपनी अम्माई से विवाह किया था। हाँ, वो अलग बात है कि उसकी अम्मा, दरअसल सौतेली अम्मा थी।
“लेकिन... हो तो सकता है न, अम्मम्मा?” मैंने उम्मीद भरी मनुहार करी।
लेकिन नानी ने जैसे मेरी बात ही नहीं सुनी, “और तू उससे आयु में कितना छोटा भी तो है..”
“अम्मम्मा, मैं अल्का को संसार के सारे सुख दूँगा।”
“देगा न ?” अम्मम्मा ने तुरंत कहा, “देगा न मेरी बेटी को संसार के सारे सुख ? उसका जीवन पर्यन्त ध्यान रखेगा न?”
“जी अम्मम्मा! मैं अल्का से बहुत प्रेम करता हूँ.. उसकी प्रसन्नता मेरे लिए अपनी प्रसन्नता से ऊपर रहेगी!”
“केवल प्रेम से पेट नहीं भरता बच्चे! मेरी मोलूट्टी ने अब तक बहुत कड़ी मेहनत करी है। बिलकुल जैसे एक घोड़ी की तरह! उसको अब सुख चाहिए। बोल, तू उसको सुख देगा न? उसको सुख दे सकेगा?”
“अम्मा! आप यह सब क्या कह रही हैं? आपको तो मालूम ही है कि हमारी आमदनी पिछले कुछ वर्षों में अचानक ही बढ़ गई है। वो कैसे बढ़ गई क्या आपको मालूम है? वो सब चिन्नू के ज्ञान के कारण हुआ है। मुझे मालूम है कि जब वो कृषि का भार पूरी तरह से सम्हाल लेगा, तो हमारी सम्पन्नता में दिन दूनी और रात चौगुनी वृद्धि होगी!” अल्का ने अम्मम्मा के प्रश्न का अपनी तरफ़ से उत्तर दिया।
“एक मिनट मोलू..” मैंने अल्का की बात को बीच में काटा, और कहा, “जी, अम्मम्मा, मैं आपकी बेटी को जीवन के सारे सुख दे सकूँगा - वो सारे सुख, जो उसको मिलने चाहिए और जो मेरे लिए संभव हैं। आज से आपकी बेटी कोई काम नहीं करेगी। अब सब कार्यों की जिम्मेदारी मेरी। मैं अब उसके सुख में कोई कोर कसर नहीं रखूँगा..”
अम्मम्मा ने मुझे और फिर अल्का को बारी बारी से ध्यान से देखा और कहा, “बेटा, मेरी बच्ची ऐसी तो नहीं है कि किसी के भी सामने ऐसी निर्लज्ज सी हो कर नग्न खड़ी हो जाए। इसने आज तुमको अपना सर्वस्व दिया है। इस बात का तुम सम्मान करना। इस बात का सम्मान मैं भी करूँगी... मेरे लिए आज से तुम मेरे पट्रन नहीं, मरुमकन हो!”
“ओह अम्मा अम्मा!!” कह कर अल्का ने अम्मम्मा को अपने गले से लगा लिया। मैंने भी भाव विह्वल हो कर उनके पैर छू लिए।
“मैं तो तरस गई कि इस घर में फिर से कोई विवाह हो! नादस्वर और तविळ की आवाज़ मेरे आँगन में फिर से गूँजे! ये लड़की तो जैसे कसम खा कर बैठी थी कि किसी से विवाह ही नहीं करेगी। अब जा कर मेरे हृदय में शांति हुई है।”
“अम्मा! मेरी प्यारी अम्मा!!” अल्का ने हर्षातिरेक में अम्मम्मा को कस कर अपने गले से लगा लिया।
“यह हुई न बात, यजमंट्टी!” चिन्नम्मा ने प्रसन्न होते हुए कहा।
“तुझे मालूम है न कि परिवार के सदस्यों के बीच परिणय नहीं होता?”
यह बात केवल आंशिक रूप से सत्य थी। हमारे समाज में परिवार के सदस्यों के बीच विवाह को सामाजिक मान्यता मिली हुई है। अम्मम्मा का विवाह ख़ुद उनके ही मामा के साथ हुआ था। ममेरे भाई बहनों के बीच विवाह के किस्से तो बहुतायत से हैं। मुझे हाल में ही पता चला था कि पास के गाँव में किसी ने अपनी अम्माई से विवाह किया था। हाँ, वो अलग बात है कि उसकी अम्मा, दरअसल सौतेली अम्मा थी।
“लेकिन... हो तो सकता है न, अम्मम्मा?” मैंने उम्मीद भरी मनुहार करी।
लेकिन नानी ने जैसे मेरी बात ही नहीं सुनी, “और तू उससे आयु में कितना छोटा भी तो है..”
“अम्मम्मा, मैं अल्का को संसार के सारे सुख दूँगा।”
“देगा न ?” अम्मम्मा ने तुरंत कहा, “देगा न मेरी बेटी को संसार के सारे सुख ? उसका जीवन पर्यन्त ध्यान रखेगा न?”
“जी अम्मम्मा! मैं अल्का से बहुत प्रेम करता हूँ.. उसकी प्रसन्नता मेरे लिए अपनी प्रसन्नता से ऊपर रहेगी!”
“केवल प्रेम से पेट नहीं भरता बच्चे! मेरी मोलूट्टी ने अब तक बहुत कड़ी मेहनत करी है। बिलकुल जैसे एक घोड़ी की तरह! उसको अब सुख चाहिए। बोल, तू उसको सुख देगा न? उसको सुख दे सकेगा?”
“अम्मा! आप यह सब क्या कह रही हैं? आपको तो मालूम ही है कि हमारी आमदनी पिछले कुछ वर्षों में अचानक ही बढ़ गई है। वो कैसे बढ़ गई क्या आपको मालूम है? वो सब चिन्नू के ज्ञान के कारण हुआ है। मुझे मालूम है कि जब वो कृषि का भार पूरी तरह से सम्हाल लेगा, तो हमारी सम्पन्नता में दिन दूनी और रात चौगुनी वृद्धि होगी!” अल्का ने अम्मम्मा के प्रश्न का अपनी तरफ़ से उत्तर दिया।
“एक मिनट मोलू..” मैंने अल्का की बात को बीच में काटा, और कहा, “जी, अम्मम्मा, मैं आपकी बेटी को जीवन के सारे सुख दे सकूँगा - वो सारे सुख, जो उसको मिलने चाहिए और जो मेरे लिए संभव हैं। आज से आपकी बेटी कोई काम नहीं करेगी। अब सब कार्यों की जिम्मेदारी मेरी। मैं अब उसके सुख में कोई कोर कसर नहीं रखूँगा..”
अम्मम्मा ने मुझे और फिर अल्का को बारी बारी से ध्यान से देखा और कहा, “बेटा, मेरी बच्ची ऐसी तो नहीं है कि किसी के भी सामने ऐसी निर्लज्ज सी हो कर नग्न खड़ी हो जाए। इसने आज तुमको अपना सर्वस्व दिया है। इस बात का तुम सम्मान करना। इस बात का सम्मान मैं भी करूँगी... मेरे लिए आज से तुम मेरे पट्रन नहीं, मरुमकन हो!”
“ओह अम्मा अम्मा!!” कह कर अल्का ने अम्मम्मा को अपने गले से लगा लिया। मैंने भी भाव विह्वल हो कर उनके पैर छू लिए।
“मैं तो तरस गई कि इस घर में फिर से कोई विवाह हो! नादस्वर और तविळ की आवाज़ मेरे आँगन में फिर से गूँजे! ये लड़की तो जैसे कसम खा कर बैठी थी कि किसी से विवाह ही नहीं करेगी। अब जा कर मेरे हृदय में शांति हुई है।”
“अम्मा! मेरी प्यारी अम्मा!!” अल्का ने हर्षातिरेक में अम्मम्मा को कस कर अपने गले से लगा लिया।
“यह हुई न बात, यजमंट्टी!” चिन्नम्मा ने प्रसन्न होते हुए कहा।