17-07-2021, 06:40 PM
अल्का पीठ के बल मेरे सामने लेट गई; उसने मेरे लिंग का स्वागत करने के लिए अपनी टांगें खोल दी। उसकी जाँघें ऊपर उठी हुई थीं, और पैर ज़मीन पर समतल! मेरी बेचैनी बढती ही जा रही थी। उत्तेजना के अतिरेक से मेरा लिंग ठोस तो बहुत पहले ही हो गया था, और मुझे लग रहा था कि यह शुभ-कार्य जल्दी से कर लेना चाहिए। अपनी किस्मत पर मुझे कोई ख़ास भरोसा नहीं था। भगवान की कृपा से अल्का जैसी लड़की का प्रेम मिल रहा था, जो मेरे सर आँखों पर था। इस सुनहरे दान को मैं अपने दोनों हाथों से लपक लेना चाहता था।
मैं अल्का के ऊपर दंड-बैठक करने वाली मुद्रा में छा गया - मतलब मेरे हाथ उसके दोनों तरफ, और पैर सीधे नीचे ज़मीन पर, और मैं खुद सीधा उसके ऊपर। थोड़ी सी बेढब मुद्रा है, लेकिन मुझे इसका अनुभव भी कहाँ था? मैंने उसी मुद्रा में एक दंड पेला - उम्मीद थी कि लिंग स्वयं ही उसकी योनि में प्रविष्ट हो जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। ऐसे ही मैंने चार-पाँच बार प्रयास किया... कुछ नहीं! निष्कर्ष वही ढाक के तीन पात! अल्का को लगा कि उसको भी मेरी सहायता करनी होगी। अपने कोमल हाथ से उसने मेरा लिंग पकड़ा और अपनी योनि के द्वार पर सटाया।
कैसा कोमल एहसास ! एक ऊष्ण, आर्द्र छिद्र! मैंने प्रविष्ट होने के लिए धक्का लगाया, तो वहाँ चिकनाई पा कर मेरा लिंग अपने गंतव्य से फिसल गया। ऐसे ही चार पांच निष्फल प्रयास और निकल गए।
“चेट्टा मेरे, थोड़ा जल्दी करो! ऐसा न हो कि कोई आ जाए... हमारे कमरे तक जाने की अब मेरी हालत नहीं है!”
अल्का ने मुझे उकसाया। हाँ, समय का अभाव तो था ही! मैंने भी अपने काम पर फोकस किया।
“मोलू, तुम इसको अपनी पुरु पर सटा कर पकड़े रहो, तो मैं ज़ोर लगाऊंगा..”
“ठीक है मेरे कुट्टन...”
उसने वैसे ही किया, और साथ ही साथ अपनी योनि का द्वार थोड़ा खोल भी दिया। इस बार मेरा लिंग उसकी योनि के कुछ भीतर तक घुस गया। यह एक बड़ी सफलता थी। लिंग मेरा उसके थोड़ा ही अंदर गया हो, अंदर तो गया! अब अल्का कुँवारी नहीं रह गई थी। किसी भी स्त्री या पुरुष के लिए यह एक बहुत बड़ी बात है।
“और अंदर कुट्टन...”
मैंने ज़ोर लगाया। इस प्रयास से शिश्नाग्र पूरा ही अल्का की योनि के भीतर हो गया ।
“आह !” अल्का की कराह निकल गई।
मुझे भी एकदम अलग सा एहसास हुआ ।
‘कितना मुलायम है अंदर!’
अब और अंदर कैसे जाया जाए? इस धक्के की सारी ताकत तो समाप्त हो गई थी। मुझे स्वप्रेरणा से लगा कि दूसरा धक्का लगाना चाहिए। लेकिन वैसा करने से बाहर निकल जाने का भय भी था। इसलिए मैंने अपने पुट्ठों को बस इतना पीछे किया कि बस दूसरा धक्का लगाने के लिए पर्याप्त बल मिल जाए, लेकिन लिंग अपने युगल से बाहर न निकले।
मैं अल्का के ऊपर दंड-बैठक करने वाली मुद्रा में छा गया - मतलब मेरे हाथ उसके दोनों तरफ, और पैर सीधे नीचे ज़मीन पर, और मैं खुद सीधा उसके ऊपर। थोड़ी सी बेढब मुद्रा है, लेकिन मुझे इसका अनुभव भी कहाँ था? मैंने उसी मुद्रा में एक दंड पेला - उम्मीद थी कि लिंग स्वयं ही उसकी योनि में प्रविष्ट हो जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। ऐसे ही मैंने चार-पाँच बार प्रयास किया... कुछ नहीं! निष्कर्ष वही ढाक के तीन पात! अल्का को लगा कि उसको भी मेरी सहायता करनी होगी। अपने कोमल हाथ से उसने मेरा लिंग पकड़ा और अपनी योनि के द्वार पर सटाया।
कैसा कोमल एहसास ! एक ऊष्ण, आर्द्र छिद्र! मैंने प्रविष्ट होने के लिए धक्का लगाया, तो वहाँ चिकनाई पा कर मेरा लिंग अपने गंतव्य से फिसल गया। ऐसे ही चार पांच निष्फल प्रयास और निकल गए।
“चेट्टा मेरे, थोड़ा जल्दी करो! ऐसा न हो कि कोई आ जाए... हमारे कमरे तक जाने की अब मेरी हालत नहीं है!”
अल्का ने मुझे उकसाया। हाँ, समय का अभाव तो था ही! मैंने भी अपने काम पर फोकस किया।
“मोलू, तुम इसको अपनी पुरु पर सटा कर पकड़े रहो, तो मैं ज़ोर लगाऊंगा..”
“ठीक है मेरे कुट्टन...”
उसने वैसे ही किया, और साथ ही साथ अपनी योनि का द्वार थोड़ा खोल भी दिया। इस बार मेरा लिंग उसकी योनि के कुछ भीतर तक घुस गया। यह एक बड़ी सफलता थी। लिंग मेरा उसके थोड़ा ही अंदर गया हो, अंदर तो गया! अब अल्का कुँवारी नहीं रह गई थी। किसी भी स्त्री या पुरुष के लिए यह एक बहुत बड़ी बात है।
“और अंदर कुट्टन...”
मैंने ज़ोर लगाया। इस प्रयास से शिश्नाग्र पूरा ही अल्का की योनि के भीतर हो गया ।
“आह !” अल्का की कराह निकल गई।
मुझे भी एकदम अलग सा एहसास हुआ ।
‘कितना मुलायम है अंदर!’
अब और अंदर कैसे जाया जाए? इस धक्के की सारी ताकत तो समाप्त हो गई थी। मुझे स्वप्रेरणा से लगा कि दूसरा धक्का लगाना चाहिए। लेकिन वैसा करने से बाहर निकल जाने का भय भी था। इसलिए मैंने अपने पुट्ठों को बस इतना पीछे किया कि बस दूसरा धक्का लगाने के लिए पर्याप्त बल मिल जाए, लेकिन लिंग अपने युगल से बाहर न निकले।