17-07-2021, 06:35 PM
“अरे चिन्नू, उठ गए! यहाँ ज़मीन पर क्यों लेट गए थे कल रात? कोई साँप या कीड़ा आ जाता, तो?”
अल्का को याद तो था कि उसने मेरे साथ क्या किया रात को। अब बड़ी चली है मेरी परवाह करने का नाटक करने। मैं तमक कर उठा, और बाहर चला गया। पीछे मुड़ कर नहीं देखा कि अल्का क्या कर रही है, क्या सोच रही है।
‘इसने मुझे बेइज़्ज़त किया, अब मैं इसको बताऊंगा।’ बस यही एक बात दिमाग में घूम रही थी।
बहुत देर तक समझ नहीं आया कि रात के अपमान का बदला कैसे लूँ।
खाना न खाना एक उपाय हो सकता है, लेकिन वह एक बचकाना उपाय है। ऊपर से स्वयं को ही कष्ट होना है उससे। अल्का को क्या? फिर एक उपाय उपजा दिमाग में। मैं घर में आया, और फिर मैंने अपने शरीर से सारे कपड़े उतार फेंके। और ऐसे ही नंगा बाहर चला गया, और नंगा ही इधर उधर घूमने लगा। मेरी इस हरकत से अल्का बहुत घबरा गई - कुछ नाराज़ भी हुई। लेकिन, उस घर में मैं ही एक मर्द था - और सबसे छोटा भी! मैं देखना चाहता था की घर की सभी स्त्रियाँ क्या प्रतिक्रिया देती हैं। चिन्नम्मा मुझे ऐसे देख कर मुस्कुराई, और बोली कि चिन्नू की शादी कर देनी चाहिए। मैंने उसको कहा कि मैं तो तैयार हूँ। तुम बताओ कि किस लड़की से करूँ? मेरी इस बात पर उसने अल्का की तरफ इशारा किया। अल्का ने इस बात पर हम दोनों को ही डाँट लगाई, और मुझे कपड़े पहनने को कहा। चिन्नम्मा तो हँसी दबा कर अपना काम करने में व्यस्त हो गईं, लेकिन मैंने फिर भी कुछ नहीं पहना।
मैं अल्का को बता देना चाहता था कि मैं उसके वश में नहीं हूँ। मैं अपनी मर्ज़ी का मालिक हूँ। और यहाँ मेरी मर्ज़ी भी चलेगी। घर की मालकिन तो अल्का ही थी, लेकिन यदि उसका बस मुझ पर नहीं चलता, तो स्पष्ट था कि मेरी हैसियत भी घर के मालिक जैसी ही है। खाना न खाने जैसे हठ करने पर अनदेखा किया जा सकता है कि ‘जा मर! मत खा!’ लेकिन इस तरह के ‘सत्याग्रह’ को अनदेखा करना असंभव है। खुद की बेइज़्ज़ती होने का बहुत बड़ा डर रहता है। ख़ास तौर पर तब जब यह करने वाला वयस्क पुरुष हो!
फिर मैं अम्मम्मा के पास गया। उनसे काफी देर बात करने के बाद उनको समझ आया कि मैं नंगा हूँ। लेकिन उनको समय इत्यादि का जैसे कोई ध्यान ही नहीं था। उनके लिए मैं अभी भी छोटा ही था। माता पिता जब अपनी संतानों को देखते हैं, तो उनको अक्सर ऐसा ही लगता होगा। ख़ैर, उन्होंने मेरे शिश्न को अपने हाथ में लिया और कहा,
“बेटा, इसकी ठीक से देखभाल करना। पति वही अच्छा होता है तो अपनी पत्नी के दोनों मुँह अच्छे से भर सके - मतलब ऊपर वाले मुँह में पेट भर भोजन, और नीचे वाले मुँह में मन भर घर्षण - इन दोनों की कमी नहीं होनी चाहिए! सुखी परिवार का बस यही आधार है!”
अल्का ने माथा पीट लिया। अम्मम्मा को वो कुछ नहीं कह सकती थी।
अल्का को याद तो था कि उसने मेरे साथ क्या किया रात को। अब बड़ी चली है मेरी परवाह करने का नाटक करने। मैं तमक कर उठा, और बाहर चला गया। पीछे मुड़ कर नहीं देखा कि अल्का क्या कर रही है, क्या सोच रही है।
‘इसने मुझे बेइज़्ज़त किया, अब मैं इसको बताऊंगा।’ बस यही एक बात दिमाग में घूम रही थी।
बहुत देर तक समझ नहीं आया कि रात के अपमान का बदला कैसे लूँ।
खाना न खाना एक उपाय हो सकता है, लेकिन वह एक बचकाना उपाय है। ऊपर से स्वयं को ही कष्ट होना है उससे। अल्का को क्या? फिर एक उपाय उपजा दिमाग में। मैं घर में आया, और फिर मैंने अपने शरीर से सारे कपड़े उतार फेंके। और ऐसे ही नंगा बाहर चला गया, और नंगा ही इधर उधर घूमने लगा। मेरी इस हरकत से अल्का बहुत घबरा गई - कुछ नाराज़ भी हुई। लेकिन, उस घर में मैं ही एक मर्द था - और सबसे छोटा भी! मैं देखना चाहता था की घर की सभी स्त्रियाँ क्या प्रतिक्रिया देती हैं। चिन्नम्मा मुझे ऐसे देख कर मुस्कुराई, और बोली कि चिन्नू की शादी कर देनी चाहिए। मैंने उसको कहा कि मैं तो तैयार हूँ। तुम बताओ कि किस लड़की से करूँ? मेरी इस बात पर उसने अल्का की तरफ इशारा किया। अल्का ने इस बात पर हम दोनों को ही डाँट लगाई, और मुझे कपड़े पहनने को कहा। चिन्नम्मा तो हँसी दबा कर अपना काम करने में व्यस्त हो गईं, लेकिन मैंने फिर भी कुछ नहीं पहना।
मैं अल्का को बता देना चाहता था कि मैं उसके वश में नहीं हूँ। मैं अपनी मर्ज़ी का मालिक हूँ। और यहाँ मेरी मर्ज़ी भी चलेगी। घर की मालकिन तो अल्का ही थी, लेकिन यदि उसका बस मुझ पर नहीं चलता, तो स्पष्ट था कि मेरी हैसियत भी घर के मालिक जैसी ही है। खाना न खाने जैसे हठ करने पर अनदेखा किया जा सकता है कि ‘जा मर! मत खा!’ लेकिन इस तरह के ‘सत्याग्रह’ को अनदेखा करना असंभव है। खुद की बेइज़्ज़ती होने का बहुत बड़ा डर रहता है। ख़ास तौर पर तब जब यह करने वाला वयस्क पुरुष हो!
फिर मैं अम्मम्मा के पास गया। उनसे काफी देर बात करने के बाद उनको समझ आया कि मैं नंगा हूँ। लेकिन उनको समय इत्यादि का जैसे कोई ध्यान ही नहीं था। उनके लिए मैं अभी भी छोटा ही था। माता पिता जब अपनी संतानों को देखते हैं, तो उनको अक्सर ऐसा ही लगता होगा। ख़ैर, उन्होंने मेरे शिश्न को अपने हाथ में लिया और कहा,
“बेटा, इसकी ठीक से देखभाल करना। पति वही अच्छा होता है तो अपनी पत्नी के दोनों मुँह अच्छे से भर सके - मतलब ऊपर वाले मुँह में पेट भर भोजन, और नीचे वाले मुँह में मन भर घर्षण - इन दोनों की कमी नहीं होनी चाहिए! सुखी परिवार का बस यही आधार है!”
अल्का ने माथा पीट लिया। अम्मम्मा को वो कुछ नहीं कह सकती थी।