17-07-2021, 06:29 PM
मैंने अल्का के सीने पर हल्की हल्की थपकी देते हुए गुनगुनाना शुरू किया,
“जाग दिल-ए-दीवाना, रुत जागी वस्ल-ए-यार की,
बसी हुई जुल्फ में आई है सबा प्यार की”
“बाप रे! यह कौन सी भाषा? हिंदी?”
“नहीं! उर्दू! अब बीच में टोंको मत, गाने का आनंद लो।”
“लेकिन मेरे चेट्टा, गाने का अर्थ तो समझ में आना चाहिए न, उसका आनंद उठाने के लिए?”
“वो भी बताऊँगा। लेकिन सुनो तो पहले”
“जाग दिल-ए-दीवाना, रुत जागी वस्ल-ए-यार की,
बसी हुई जुल्फ में आई है सबा प्यार की”
“ऐ मेरे दीवाने दिल, जाग। मेरी मोलू से मिलन की ऋतु जागी है। उसकी महकती हुई ज़ुल्फ़ों से प्यार की सुगंध आ रही है।” मेरे अनुवाद पर अल्का शर्म से मुस्कुराई। उसके गालों पर वही परिचित लालिमा फैल गई।
“दो दिल के, कुछ ले के पयाम आई है
चाहत के, कुछ ले के सलाम आई है
दर पे तेरे सुबह खड़ी हुई है दीदार की”
“(ये ऋतु) हमारे दिलों के संदेश ले कर आई है। चाहत की बातें ले कर आई है। अपने प्रियतम के दर्शनों की सुबह आ गई है।”
“सुबह? लेकिन अभी तो रात है, कुट्टन!” अल्का ने मुझे छेड़ा।
“चुप्प!” मैंने उसको प्यार से झिड़का।
“एक परी कुछ शाद सी, नाशाद सी
बैठी हुई शबनम में तेरी याद की
भीग रही होगी कहीं, कली सी गुलज़ार की”
“एक परी, यानि कि तुम, क्या पता प्रसन्न है, या नाराज़ है!”
“प्रसन्न है” अल्का ने मुस्कुराते हुए कहा, तो मैंने उसको चूम लिया।
“तुम हमारे प्रेम की याद में उसी तरह भीग रही हो, जैसे किसी खिले हुए बगीचे में कोई कली ओस से भीग जाती है!”
अल्का मुस्कुराई और लपक कर मेरे आलिंगन में बंध गई। उसके दोनों ठोस मुलाक्कल और मुलाक्कन्न मेरे सीने में चुभने लगे। मीठी चुभन! आह! इस एहसास का आनंद तो उम्र भर ले सकता हूँ, फिर भी न अघाऊँ।
“आ मेरे दिल, अब ख्वाबों से मुँह मोड़ ले
बीती हुई, सब रातें यहीं छोड़ दे
तेरे तो दिन रात है अब आँखों में दिलदार की”
“ऐ मेरे दिल, अब सपने देखने ज़रुरत नहीं और ना ही पिछली बातें याद करने की! अब तुम्हारा, यानि मेरे दिल का, मेरे प्रेम का भविष्य तुम्हारे प्रियतम, यानि तुम्हारी आँखों में है, मेरी आलू!”
मैंने बड़े ही रोमांटिक अंदाज़ में गाना और उसका अनुवाद समाप्त किया और अल्का की दोनों आँखों को कई बार चूमा।
यह बेहद सुन्दर गीत फिल्म "उंचे लोग" से है। इसके गीतकार हैं, मजरुह सुल्तानपुरी जी, गायक हैं, मोहम्मद रफ़ी जी, और संगीतकार हैं, चित्रगुप्त जी। सुनें यह गीत! आत्मा तृप्त हो जाएगी
“यह तो प्रेम गीत है, कुट्टन! लोरी नहीं!”
“हाँ! प्रेम गीत है, मेरी जान!”
“जाग दिल-ए-दीवाना, रुत जागी वस्ल-ए-यार की,
बसी हुई जुल्फ में आई है सबा प्यार की”
“बाप रे! यह कौन सी भाषा? हिंदी?”
“नहीं! उर्दू! अब बीच में टोंको मत, गाने का आनंद लो।”
“लेकिन मेरे चेट्टा, गाने का अर्थ तो समझ में आना चाहिए न, उसका आनंद उठाने के लिए?”
“वो भी बताऊँगा। लेकिन सुनो तो पहले”
“जाग दिल-ए-दीवाना, रुत जागी वस्ल-ए-यार की,
बसी हुई जुल्फ में आई है सबा प्यार की”
“ऐ मेरे दीवाने दिल, जाग। मेरी मोलू से मिलन की ऋतु जागी है। उसकी महकती हुई ज़ुल्फ़ों से प्यार की सुगंध आ रही है।” मेरे अनुवाद पर अल्का शर्म से मुस्कुराई। उसके गालों पर वही परिचित लालिमा फैल गई।
“दो दिल के, कुछ ले के पयाम आई है
चाहत के, कुछ ले के सलाम आई है
दर पे तेरे सुबह खड़ी हुई है दीदार की”
“(ये ऋतु) हमारे दिलों के संदेश ले कर आई है। चाहत की बातें ले कर आई है। अपने प्रियतम के दर्शनों की सुबह आ गई है।”
“सुबह? लेकिन अभी तो रात है, कुट्टन!” अल्का ने मुझे छेड़ा।
“चुप्प!” मैंने उसको प्यार से झिड़का।
“एक परी कुछ शाद सी, नाशाद सी
बैठी हुई शबनम में तेरी याद की
भीग रही होगी कहीं, कली सी गुलज़ार की”
“एक परी, यानि कि तुम, क्या पता प्रसन्न है, या नाराज़ है!”
“प्रसन्न है” अल्का ने मुस्कुराते हुए कहा, तो मैंने उसको चूम लिया।
“तुम हमारे प्रेम की याद में उसी तरह भीग रही हो, जैसे किसी खिले हुए बगीचे में कोई कली ओस से भीग जाती है!”
अल्का मुस्कुराई और लपक कर मेरे आलिंगन में बंध गई। उसके दोनों ठोस मुलाक्कल और मुलाक्कन्न मेरे सीने में चुभने लगे। मीठी चुभन! आह! इस एहसास का आनंद तो उम्र भर ले सकता हूँ, फिर भी न अघाऊँ।
“आ मेरे दिल, अब ख्वाबों से मुँह मोड़ ले
बीती हुई, सब रातें यहीं छोड़ दे
तेरे तो दिन रात है अब आँखों में दिलदार की”
“ऐ मेरे दिल, अब सपने देखने ज़रुरत नहीं और ना ही पिछली बातें याद करने की! अब तुम्हारा, यानि मेरे दिल का, मेरे प्रेम का भविष्य तुम्हारे प्रियतम, यानि तुम्हारी आँखों में है, मेरी आलू!”
मैंने बड़े ही रोमांटिक अंदाज़ में गाना और उसका अनुवाद समाप्त किया और अल्का की दोनों आँखों को कई बार चूमा।
यह बेहद सुन्दर गीत फिल्म "उंचे लोग" से है। इसके गीतकार हैं, मजरुह सुल्तानपुरी जी, गायक हैं, मोहम्मद रफ़ी जी, और संगीतकार हैं, चित्रगुप्त जी। सुनें यह गीत! आत्मा तृप्त हो जाएगी
“यह तो प्रेम गीत है, कुट्टन! लोरी नहीं!”
“हाँ! प्रेम गीत है, मेरी जान!”