17-07-2021, 06:21 PM
हाँ! मुझे भी तो निर्वस्त्र होना था। मैं जल्दी जल्दी अपने कपड़े उतारने लगा। मैं इस काम में इतना मगन हो गया, कि यह मालूम ही नहीं पड़ा कि अल्का मुझे छोड़ कर तालाब के पानी में डुबकी लगा चुकी। वो तो जब पानी की छपछपाहट, और उसके हंसने की आवाज़ आई, तब समझ आया। अब तक मैं भी नंगा हो गया था, और उसकी तरफ मुड़ कर तालाब की तरफ जाने लगा। मेरा शिश्न तो हमेशा की तरह तन कर तैयार हो गया था। इस पूरे घटनाक्रम, और वातावरण के कारण दो प्रकार का प्रभाव हो रहा था - एक तो मेरे शरीर में सिहरन सी दौड़ रही थी, और दूसरा मेरे वृषण की थैली सिकुड़ कर जघन क्षेत्र के बेहद करीब जा कर चिपक गई थी। अच्छी बात यह है की स्तम्भन अपनी पराकाष्ठा पर था - मैं अल्का को दिखाना चाहता था कि अब मैं पहले जैसा बच्चा नहीं रहा।
मेरे चलने पर मेरा शिश्न इधर उधर डोल रहा था, और इस हलचल के कारण लिंगमुण्ड उसी तनी हुई अवस्था में हवा में ही छोटे छोटे वृत्त से बना रहा था। अल्का का हंसना बंद हो गया, और अब वो रूचि ले कर मेरे शिश्न को, और मुझे अपनी तरफ आते हुए देख रही थी। जब मैं पानी के अंदर आकर उसके बगल जा बैठा, तो वो फिर से मुस्कुराई और बोली,
“चिन्नू.... तुम्हारा कुन्ना (लिंग) तो कितना बड़ा हो गया है, और प्यारा भी!”
“तुमको कैसे मालूम?” मैंने अल्का को छेड़ा।
“तुम भूल गए? जब तुम छोटे थे तो मैंने कितनी बार तुम्हे नहलाया है।”
“मुझे सब याद है अम्माई” मैंने उसको छेड़ना जारी रखा, “मुझे यह भी याद है की तुम इसे अपने मुँह में ले कर दुलारती थी। तुम्हे याद है या भूल गई?”
बचपन में हम दोनों का एक बेहद निजी खेल था - जब कभी किसी खेल-प्रतियोगिता में मैं उनसे जीतता था, तो मुझे पुरस्कार स्वरुप यह मिलता था। अल्का मेरे छोटे से शिश्न को अपने मुँह में ले कर दुलारती थी। मुझे बाद में कई बार यह लगता कि वो मुझे जान बूझ कर जीतने देती थी, लेकिन इस बात के लिए कैसी शिकायत भला!
“हाँ लेकिन तब तुम छोटे थे। अब तुम बड़े हो गए हो... और ‘ये’ बहुत बड़ा हो गया है।” अल्का मेरे इस उद्घोषणा, और अपनी कही हुई बात पर पुनः शर्मा गई।
मैं उत्तर में बस मुस्कुराया, और अंजुली में पानी भर कर अल्का के ऊपर फेंकने लगा। अल्का भी अपनी शर्म छोड़ कर मेरे साथ खेल में शामिल हो गई। कुछ ही पलों में हम दोनों पूरी तरह से भीग गए। उसने एक बार मेरे सर को पकड़ कर पानी के अंदर डुबो दिया, मैंने भी इसका पूरा मज़ा उसको चखाया। हमारी इस छीना-झपटी, ज़ोर-आज़माइश, और टाँग-खिंचाई में हमने जाने अनजाने एक दूसरे के पूरे शरीर का जायज़ा ले लिया। ऐसे ही हमने तालाब में कम से कम पंद्रह मिनट तक स्नान किया। और आखिरकार मैं थक कर बाहर निकल आया, और घास पर बैठ गया।
“आ जाओ!” बाहर आ कर मैंने कहा।
अल्का जानती थी कि मैं उसका भीगा हुआ नग्न शरीर देखना चाहता हूँ। वो मुस्कुराती हुई पानी से बाहर निकली - एक एक कर उसके स्तन, फिर पेट और फिर योनि बाहर आ गए। सबसे मज़ेदार बात यह कि भीगे बालों में से भी उसकी योनि की लंबवत दरार मुझे उतनी दूरी से भी दिख रही थी। हर एक कदम पर उसकी कमर में उठने वाले हिचकोले और स्तनों पर उनका प्रभाव! एकदम मस्त कर देने वाला दृश्य था। और सबसे अच्छी बात यह थी कि यह सुंदरी मेरी थी!!
मेरे चलने पर मेरा शिश्न इधर उधर डोल रहा था, और इस हलचल के कारण लिंगमुण्ड उसी तनी हुई अवस्था में हवा में ही छोटे छोटे वृत्त से बना रहा था। अल्का का हंसना बंद हो गया, और अब वो रूचि ले कर मेरे शिश्न को, और मुझे अपनी तरफ आते हुए देख रही थी। जब मैं पानी के अंदर आकर उसके बगल जा बैठा, तो वो फिर से मुस्कुराई और बोली,
“चिन्नू.... तुम्हारा कुन्ना (लिंग) तो कितना बड़ा हो गया है, और प्यारा भी!”
“तुमको कैसे मालूम?” मैंने अल्का को छेड़ा।
“तुम भूल गए? जब तुम छोटे थे तो मैंने कितनी बार तुम्हे नहलाया है।”
“मुझे सब याद है अम्माई” मैंने उसको छेड़ना जारी रखा, “मुझे यह भी याद है की तुम इसे अपने मुँह में ले कर दुलारती थी। तुम्हे याद है या भूल गई?”
बचपन में हम दोनों का एक बेहद निजी खेल था - जब कभी किसी खेल-प्रतियोगिता में मैं उनसे जीतता था, तो मुझे पुरस्कार स्वरुप यह मिलता था। अल्का मेरे छोटे से शिश्न को अपने मुँह में ले कर दुलारती थी। मुझे बाद में कई बार यह लगता कि वो मुझे जान बूझ कर जीतने देती थी, लेकिन इस बात के लिए कैसी शिकायत भला!
“हाँ लेकिन तब तुम छोटे थे। अब तुम बड़े हो गए हो... और ‘ये’ बहुत बड़ा हो गया है।” अल्का मेरे इस उद्घोषणा, और अपनी कही हुई बात पर पुनः शर्मा गई।
मैं उत्तर में बस मुस्कुराया, और अंजुली में पानी भर कर अल्का के ऊपर फेंकने लगा। अल्का भी अपनी शर्म छोड़ कर मेरे साथ खेल में शामिल हो गई। कुछ ही पलों में हम दोनों पूरी तरह से भीग गए। उसने एक बार मेरे सर को पकड़ कर पानी के अंदर डुबो दिया, मैंने भी इसका पूरा मज़ा उसको चखाया। हमारी इस छीना-झपटी, ज़ोर-आज़माइश, और टाँग-खिंचाई में हमने जाने अनजाने एक दूसरे के पूरे शरीर का जायज़ा ले लिया। ऐसे ही हमने तालाब में कम से कम पंद्रह मिनट तक स्नान किया। और आखिरकार मैं थक कर बाहर निकल आया, और घास पर बैठ गया।
“आ जाओ!” बाहर आ कर मैंने कहा।
अल्का जानती थी कि मैं उसका भीगा हुआ नग्न शरीर देखना चाहता हूँ। वो मुस्कुराती हुई पानी से बाहर निकली - एक एक कर उसके स्तन, फिर पेट और फिर योनि बाहर आ गए। सबसे मज़ेदार बात यह कि भीगे बालों में से भी उसकी योनि की लंबवत दरार मुझे उतनी दूरी से भी दिख रही थी। हर एक कदम पर उसकी कमर में उठने वाले हिचकोले और स्तनों पर उनका प्रभाव! एकदम मस्त कर देने वाला दृश्य था। और सबसे अच्छी बात यह थी कि यह सुंदरी मेरी थी!!