17-07-2021, 06:14 PM
अपने विस्तृत खेत में हम दोनों इस समय एकदम अकेले थे। दोपहर और साँझ के बीच के सन्नाटे में मंद मंद बयार बहुत सुखद लग रही थी। अल्का बोली,
“कल से वहाँ काम शुरू हो जाएगा।”
“हाँ!” मुझे लगा कि यह एक साधारण सा वाक्य है। फिर मुझे लगा कि संभवतः वो कुछ और भी कहना चाहती है। तो मैंने कुछ रुक कर आगे कहा, “तो?”
“तो.… अब उस जगह पर नहाना और तैरना आसान नहीं होगा!”
“हैं? वो क्यों?”
“अरे! अब तो वहां भी लोग आते जाते रहेंगे न!”
'ओओओह्ह्ह! बात तो सही है'
“वो तो है!”
अल्का कुछ झिझकी, “तुमको वहां नहाना हो तो आज नहा लो!”
“अरे! लेकिन मेरे साथ कोई क्या करेगा? मैं तो कभी भी नहा सकता हूँ!” मैंने आँख मारते हुए अल्का को छेड़ा।
“हाँ! बन्दर के साथ कोई क्या ही करेगा! हा हा हा हा!” अल्का जोर से हंसने लगी।
“और तू है बंदरिया!” मैंने चिढ कर बोला।
न जाने क्यों पुरुष का अहम् ऐसे तुरंत ही ठेस खा लेता है। ऐसा क्या कह दिया अल्का ने कि मैं इस तरह से चिढ़ जाऊँ। लेकिन चिढ़ गया।
“मेरा प्यारा बन्दर! लाल लाल पुट्ठे वाला! हे हे हे ही ही ही!”
“आओ बताता हूँ... इतनी मार लगाऊँगा, की तेरी भी लाल हो जायेगी!”
“भी? आहाहाहाहाहा” अल्का के ठहाके थम नहीं रहे थे।
मैंने चिढ कर उसको दौड़ा लिया। वो भागी। खेत की मेढ़ों और कच्चे रास्ते उसके लिए आम बात थे, इसलिए शुरू शुरू में वो मुझसे आगे निकल रही थी। लेकिन जीन्स के कारण गति बन नहीं पाई, और मैंने जल्दी ही उसको धर दबोचा। अल्का को वहीं ज़मीन पर पटक कर उसको उल्टा किया और उसके दोनों चूतड़ों पर बारी बारी से मैंने तीन तीन चपत लगाई।
“ऊईईई अम्मा! हा हा .. माफ़ कर दो! ऊई! अब नहीं कहूँगी.. हा हा!”
खैर, उसके माफ़ी मांगने पर मैंने उसको छोड़ दिया। उसकी शर्ट वैसे ही तंग थी, और इस उठा पटक में वो थोडा ऊपर चढ़ गई थी, और धूल से गन्दी भी हो गई। उस दिन मैंने पहली बार अल्का का नंगा पेट और पीठ देखा! हाथ के मुकाबले काफी गोरा शरीर! जाहिर सी बात है – केरल की धूप में कोई अगर दिन भर बाहर काम करे तो ऐसा तो होना ही है।
“हाय चिन्नू! कितनी जोर से मारा! ऐसे कोई मारता है क्या?” अल्का अपने नितम्ब सहलाते हुए बोली; वो इस बात से अनभिज्ञ थी की मैं उसकी सुन्दरता का आस्वादन कर रहा था!
“सॉरी मेरी आलू!” कह कर मैंने उसके पुट्ठों को सहलाया।
“अच्छा! पहले तो मारता है, और अभी चांस ले रहा है! हट्ट शैतान!”
मैं अचानक ही थोड़ा गंभीर हो गया – और मैंने उसके पुट्ठों से हाथ भी नहीं हटाया, और बस सहलाता रहा।
“आई ऍम सॉरी अल्का!”
मैंने उतनी ही गंभीरता से कहा। मुझे वाकई नहीं समझ में आया कि मैंने उसको इस तरह से क्यों मारा। क्यों मुझे ऐसे गुस्सा आया। क्यों मुझे ऐसे चिढन हुई। अल्का ने मुझे सहलाने से रोका नहीं, लेकिन अपने हाथ से मेरे गाल को हलके से छू कर कहा,
“कोई बात नहीं चिन्नू! चलो.. घर चलते हैं!”
लेकिन मैं वहीँ ज़मीन पर पालथी मार कर बैठ गया, और अल्का को अपनी गोद में बैठा लिया। मैं साथ ही साथ उसकी पीठ, हाथ और नितम्ब सहलाता रहा।
“क्या हो गया, चिन्नू?”
“आई ऍम सॉरी!”
“इट इस ओके!” कह कर अल्का ने मुझे माथे पर एक बार चूम लिया।
“आई ऍम सच में सॉरी, आलू!”
“कोई बात नहीं !” कह कर अल्का ने बारी बारी मेरे दोनों गाल भी चूम लिए।
“मैंने एक और बात सोची है..”
“वो क्या?”
“मैं इस तालाब में नहीं नहाऊँगा...”
“अरे? ऐसे क्यों?”
“बिना तुम्हारे कभी नहीं!”
“हा हा! मेरे चिन्नू! तुम्हारी सुई तो एक जगह ही अटकी हुई है!” उसने हँसते हुए कहा।
“बिलकुल!” मन में पुनः कल की सारी बातें कौंध गईं।
“तो ठीक है... मैं भी नहा लूँगी तुम्हारे साथ में!”
“अभी?”
“हाँ!”
“लेकिन, इन कपड़ों में?”
“कल कैसे नहाया था?”
“मुझे लगा कि तुमको शायद अच्छा नहीं लगा।”
“मेरे चिन्नू.... मुझे तुम्हारे साथ सब अच्छा लगता है। सब कुछ!”
“ऐसी बात है?”
“हाँ”
“मैं कुछ कहूँगा, तो करोगी?”
“अगर कर सकी, तो ज़रूर करूंगी” अल्का की आवाज़ गंभीर होती जा रही थी। कुछ रुक कर, “.... बोलो?”
“बिना कपड़ों के नहा सकोगी मेरे साथ?”
मैंने न जाने किस आवेश में कह दिया। मेरी बात सुन कर अल्का का सर नीचे झुक गया। वो चुप हो गई। मेरे दिल की धड़कनें बहुत बढ़ गईं। हम लोग बिना कुछ बोले चलते रहे - हमारे तालाब की तरफ! करीब पांच मिनट बाद अल्का बेहद गंभीर स्वर में बोली,
“कल जितना नंगा देख कर तुम्हारा मन नहीं भरा? मुझे पूरी नंगी देखना चाहते हो?”
“हाँ.... और हाँ…” मैं लगभग चिल्लाते हुए बोला। यह मेरा खुद को दृढ़ दिखाने का एक बचकाना प्रयास था।
“कल से वहाँ काम शुरू हो जाएगा।”
“हाँ!” मुझे लगा कि यह एक साधारण सा वाक्य है। फिर मुझे लगा कि संभवतः वो कुछ और भी कहना चाहती है। तो मैंने कुछ रुक कर आगे कहा, “तो?”
“तो.… अब उस जगह पर नहाना और तैरना आसान नहीं होगा!”
“हैं? वो क्यों?”
“अरे! अब तो वहां भी लोग आते जाते रहेंगे न!”
'ओओओह्ह्ह! बात तो सही है'
“वो तो है!”
अल्का कुछ झिझकी, “तुमको वहां नहाना हो तो आज नहा लो!”
“अरे! लेकिन मेरे साथ कोई क्या करेगा? मैं तो कभी भी नहा सकता हूँ!” मैंने आँख मारते हुए अल्का को छेड़ा।
“हाँ! बन्दर के साथ कोई क्या ही करेगा! हा हा हा हा!” अल्का जोर से हंसने लगी।
“और तू है बंदरिया!” मैंने चिढ कर बोला।
न जाने क्यों पुरुष का अहम् ऐसे तुरंत ही ठेस खा लेता है। ऐसा क्या कह दिया अल्का ने कि मैं इस तरह से चिढ़ जाऊँ। लेकिन चिढ़ गया।
“मेरा प्यारा बन्दर! लाल लाल पुट्ठे वाला! हे हे हे ही ही ही!”
“आओ बताता हूँ... इतनी मार लगाऊँगा, की तेरी भी लाल हो जायेगी!”
“भी? आहाहाहाहाहा” अल्का के ठहाके थम नहीं रहे थे।
मैंने चिढ कर उसको दौड़ा लिया। वो भागी। खेत की मेढ़ों और कच्चे रास्ते उसके लिए आम बात थे, इसलिए शुरू शुरू में वो मुझसे आगे निकल रही थी। लेकिन जीन्स के कारण गति बन नहीं पाई, और मैंने जल्दी ही उसको धर दबोचा। अल्का को वहीं ज़मीन पर पटक कर उसको उल्टा किया और उसके दोनों चूतड़ों पर बारी बारी से मैंने तीन तीन चपत लगाई।
“ऊईईई अम्मा! हा हा .. माफ़ कर दो! ऊई! अब नहीं कहूँगी.. हा हा!”
खैर, उसके माफ़ी मांगने पर मैंने उसको छोड़ दिया। उसकी शर्ट वैसे ही तंग थी, और इस उठा पटक में वो थोडा ऊपर चढ़ गई थी, और धूल से गन्दी भी हो गई। उस दिन मैंने पहली बार अल्का का नंगा पेट और पीठ देखा! हाथ के मुकाबले काफी गोरा शरीर! जाहिर सी बात है – केरल की धूप में कोई अगर दिन भर बाहर काम करे तो ऐसा तो होना ही है।
“हाय चिन्नू! कितनी जोर से मारा! ऐसे कोई मारता है क्या?” अल्का अपने नितम्ब सहलाते हुए बोली; वो इस बात से अनभिज्ञ थी की मैं उसकी सुन्दरता का आस्वादन कर रहा था!
“सॉरी मेरी आलू!” कह कर मैंने उसके पुट्ठों को सहलाया।
“अच्छा! पहले तो मारता है, और अभी चांस ले रहा है! हट्ट शैतान!”
मैं अचानक ही थोड़ा गंभीर हो गया – और मैंने उसके पुट्ठों से हाथ भी नहीं हटाया, और बस सहलाता रहा।
“आई ऍम सॉरी अल्का!”
मैंने उतनी ही गंभीरता से कहा। मुझे वाकई नहीं समझ में आया कि मैंने उसको इस तरह से क्यों मारा। क्यों मुझे ऐसे गुस्सा आया। क्यों मुझे ऐसे चिढन हुई। अल्का ने मुझे सहलाने से रोका नहीं, लेकिन अपने हाथ से मेरे गाल को हलके से छू कर कहा,
“कोई बात नहीं चिन्नू! चलो.. घर चलते हैं!”
लेकिन मैं वहीँ ज़मीन पर पालथी मार कर बैठ गया, और अल्का को अपनी गोद में बैठा लिया। मैं साथ ही साथ उसकी पीठ, हाथ और नितम्ब सहलाता रहा।
“क्या हो गया, चिन्नू?”
“आई ऍम सॉरी!”
“इट इस ओके!” कह कर अल्का ने मुझे माथे पर एक बार चूम लिया।
“आई ऍम सच में सॉरी, आलू!”
“कोई बात नहीं !” कह कर अल्का ने बारी बारी मेरे दोनों गाल भी चूम लिए।
“मैंने एक और बात सोची है..”
“वो क्या?”
“मैं इस तालाब में नहीं नहाऊँगा...”
“अरे? ऐसे क्यों?”
“बिना तुम्हारे कभी नहीं!”
“हा हा! मेरे चिन्नू! तुम्हारी सुई तो एक जगह ही अटकी हुई है!” उसने हँसते हुए कहा।
“बिलकुल!” मन में पुनः कल की सारी बातें कौंध गईं।
“तो ठीक है... मैं भी नहा लूँगी तुम्हारे साथ में!”
“अभी?”
“हाँ!”
“लेकिन, इन कपड़ों में?”
“कल कैसे नहाया था?”
“मुझे लगा कि तुमको शायद अच्छा नहीं लगा।”
“मेरे चिन्नू.... मुझे तुम्हारे साथ सब अच्छा लगता है। सब कुछ!”
“ऐसी बात है?”
“हाँ”
“मैं कुछ कहूँगा, तो करोगी?”
“अगर कर सकी, तो ज़रूर करूंगी” अल्का की आवाज़ गंभीर होती जा रही थी। कुछ रुक कर, “.... बोलो?”
“बिना कपड़ों के नहा सकोगी मेरे साथ?”
मैंने न जाने किस आवेश में कह दिया। मेरी बात सुन कर अल्का का सर नीचे झुक गया। वो चुप हो गई। मेरे दिल की धड़कनें बहुत बढ़ गईं। हम लोग बिना कुछ बोले चलते रहे - हमारे तालाब की तरफ! करीब पांच मिनट बाद अल्का बेहद गंभीर स्वर में बोली,
“कल जितना नंगा देख कर तुम्हारा मन नहीं भरा? मुझे पूरी नंगी देखना चाहते हो?”
“हाँ.... और हाँ…” मैं लगभग चिल्लाते हुए बोला। यह मेरा खुद को दृढ़ दिखाने का एक बचकाना प्रयास था।