17-07-2021, 06:13 PM
अगले दिन जब मैं उठा, तो अल्का रोज़ की तरह बाहर जा चुकी थी। मैंने भी जल्दी ही तैयार हो कर बाहर का रुख लिया – सोचा की कुछ लोगों से मुलाक़ात ही कर ली जाए! लोगों से मिलते मिलाते, कब दोपहर हो गई, पता ही नहीं चला। अच्छी बात यह हुई की चिन्नम्मा मुझे ढूंढते हुए सही जगह पहुँच गई, और उसने मुझे दोपहर के खाने के लिए घर बुलाया। आज हम तीनों (अम्मम्मा, अल्का और मैं) एक साथ खाने की टेबल पर खाना खा रहे थे (दोपहर में शायद ही हमने साथ में खाया हो)। हमेशा शलवार-कुरता पहनने वाली अल्का, इस समय शर्ट और जीन्स पहने हुए थी। दोनों कपड़े कुछ पुराने लग रहे थे और उसके लिए कुछ कसे हुए भी थे। शर्ट में बस एक-चौथाई आस्तीन थी, और कालर थोड़े चौड़े से.... अल्का बहुत सुन्दर लग रही थी। मैंने उसको प्रसंशा भरी दृष्टि से देखा। शर्ट से परिलक्षित होता हुआ अल्का का सौंदर्य, मैं खाने की टेबल पर बैठे बैठे पी रहा था। अल्का कल की घटनाओं से किसी भी तरह उद्विग्न नहीं लग रही थी। उसको देख कर मैं भी संयत हो गया।
मेरी दृष्टि अल्का के चेहरे से होते हुए उसके वक्षों पर आ कर रुक गई। मन को लालसा ने आ घेरा। उसको भी पता चल गया कि मैं किस तरफ देख रहा हूँ - एक हलकी, पतली मुस्कान उसके होंठों पर तैर गई। कभी वो अपने बालों में हाथ फिराती, तो कभी होठों को जीभ से गीला करती, तो कभी अपनी शर्ट के बटन से खिलवाड़ करती। मैं कभी उसका चेहरा देखता, तो कभी उसकी छाती! मेरे लिंग में वो जानी-पहचानी हलचल पुनः होने लगी। इन सब के अतिरिक्त एक और बात मैंने ध्यान दी, और वह यह कि अल्का काफी प्रसन्न लग रही थी - पहले से कहीं अधिक!
“मैंने एक डीलर से बात करी है… सलाद के पौधों और बीजों के लिए! उसका एक आदमी अभी आता ही होगा। तुम उससे ठीक से बात कर लेना। याद है न, यह तुम्हारा प्रोजेक्ट है। मैंने सिर्फ तुम्हारी असिस्टेंट बन कर रहूंगी!”
उसने बातों ही बातों में मुस्कुराते हुए कहा।
मुझे सुन कर आश्चर्य हुआ! मेरे दिमाग से वो बात तो निकल ही गई थी। न जाने कैसे अल्का को याद था। और तो और, उसने इस दिशा में कार्य भी शुरू कर दिया था। नानी ठीक से सुन नहीं पाती थीं, इसलिए उनको चिल्ला चिल्ला कर बताना पड़ रहा था। खैर, उनको यह जान कर ख़ुशी मिली, कि मैं यहाँ पर अपना काम करना चाहता हूँ। उन्होंने मुझे बहुत सारा आशीर्वाद, और शुभकामनाएं दीं। खाना खत्म कर के हम दोनों गाँव की सड़क की तरफ चल दिए, जहाँ डीलर का आदमी हमसे मिलने आने वाला था। वहां पहुँचने के कोई आधे घंटे में वो आदमी वहां पहुँच गया। उस डीलर ने सलाद की पौध, और बीज का नया नया काम शुरू किया था, इसलिए हमको मेरे आंकलन से कहीं कम दाम में बीज उपलब्ध हो गए। मानसून केरल में अगले पंद्रह दिनों में पहुँच जाने वाला था, इसके पहले ही मैं रोपड़ का कार्य समाप्त कर लेना चाहता था। डीलर ने वायदा किया कि अगले एक सप्ताह में हमको सब पौधे और बीज मिल जायेंगे।
सलाद की खेती के लिए हल बैल की आवश्यकता तो नहीं होती, लेकिन उनका ध्यान बहुत रखना पड़ता है। अच्छी बात यह थी कि, जिस भूमि क्षेत्र में हम सलाद उगाना चाहते थे, वह काफी उपजाऊ थी। बस, बाकी खेत से कुछ अलग थलग रहने के कारण यहाँ कुछ उगाया नहीं जाता था। दो आदमी, पांच से सात दिनों के प्रयास से ही इस खेत को तैयार कर सकते थे। डीलर से सब प्रकार की बाते पूछने, और जानने के बाद, हमने उसको अपनी आज्ञप्ति दे दी। सलाद की खेती उस समय नहीं होती थी, इसलिए उस डीलर ने भी लागत में काफी छूट दी थी। खैर, सारी बातें पक्की कर के, और उसको कुछ रकम पेशगी में दे कर, हमने उससे विदा ली।
उसके बाद, हम दोनों सड़क पर बात करते हुए, धीरे धीरे चल रहे थे। रास्ता कच्चा था, इसलिए रह रह कर हम दोनों की बाहें आपस में रगड़ खा रही थीं। अल्का ने कहा कि कल से ही वो दो लोगों को काम पर लगा देगी। वैसे तो इस कार्य में उन्नत तकनीक प्रयोग में लायी जाती है, लेकिन मैं धीरे धीरे इसका विकास करना चाहता था, जिससे लागत कम आए और खपत का ठीक ठीक अनुमान लगाया जा सके। मैंने राह में चलते चलते अल्का को यह सब बातें बताईं, और यह भी कहा कि मैं भी खेत पर काम करुंगा, जिससे मुझे कार्य का ठीक ठीक अनुमान लग सके। अल्का ने हँसते हुए मेरी बात मान ली, और मुझे छेड़ते हुए बोली कि दोपहर में वो मेरे लिए खाना लाया करेगी, और अपने हाथ से मुझे खिलायेगी। भले ही वो मुझे छेड़ रही थी, लेकिन यह बात सुन कर मुझे अच्छा लगा।
यह सब बातें करते करते जब हम अपने खेत पर पहुंचे तो करीब चार बज गए थे। काम करने वाले लोग तब तक अपने घर लौट गए थे।
मेरी दृष्टि अल्का के चेहरे से होते हुए उसके वक्षों पर आ कर रुक गई। मन को लालसा ने आ घेरा। उसको भी पता चल गया कि मैं किस तरफ देख रहा हूँ - एक हलकी, पतली मुस्कान उसके होंठों पर तैर गई। कभी वो अपने बालों में हाथ फिराती, तो कभी होठों को जीभ से गीला करती, तो कभी अपनी शर्ट के बटन से खिलवाड़ करती। मैं कभी उसका चेहरा देखता, तो कभी उसकी छाती! मेरे लिंग में वो जानी-पहचानी हलचल पुनः होने लगी। इन सब के अतिरिक्त एक और बात मैंने ध्यान दी, और वह यह कि अल्का काफी प्रसन्न लग रही थी - पहले से कहीं अधिक!
“मैंने एक डीलर से बात करी है… सलाद के पौधों और बीजों के लिए! उसका एक आदमी अभी आता ही होगा। तुम उससे ठीक से बात कर लेना। याद है न, यह तुम्हारा प्रोजेक्ट है। मैंने सिर्फ तुम्हारी असिस्टेंट बन कर रहूंगी!”
उसने बातों ही बातों में मुस्कुराते हुए कहा।
मुझे सुन कर आश्चर्य हुआ! मेरे दिमाग से वो बात तो निकल ही गई थी। न जाने कैसे अल्का को याद था। और तो और, उसने इस दिशा में कार्य भी शुरू कर दिया था। नानी ठीक से सुन नहीं पाती थीं, इसलिए उनको चिल्ला चिल्ला कर बताना पड़ रहा था। खैर, उनको यह जान कर ख़ुशी मिली, कि मैं यहाँ पर अपना काम करना चाहता हूँ। उन्होंने मुझे बहुत सारा आशीर्वाद, और शुभकामनाएं दीं। खाना खत्म कर के हम दोनों गाँव की सड़क की तरफ चल दिए, जहाँ डीलर का आदमी हमसे मिलने आने वाला था। वहां पहुँचने के कोई आधे घंटे में वो आदमी वहां पहुँच गया। उस डीलर ने सलाद की पौध, और बीज का नया नया काम शुरू किया था, इसलिए हमको मेरे आंकलन से कहीं कम दाम में बीज उपलब्ध हो गए। मानसून केरल में अगले पंद्रह दिनों में पहुँच जाने वाला था, इसके पहले ही मैं रोपड़ का कार्य समाप्त कर लेना चाहता था। डीलर ने वायदा किया कि अगले एक सप्ताह में हमको सब पौधे और बीज मिल जायेंगे।
सलाद की खेती के लिए हल बैल की आवश्यकता तो नहीं होती, लेकिन उनका ध्यान बहुत रखना पड़ता है। अच्छी बात यह थी कि, जिस भूमि क्षेत्र में हम सलाद उगाना चाहते थे, वह काफी उपजाऊ थी। बस, बाकी खेत से कुछ अलग थलग रहने के कारण यहाँ कुछ उगाया नहीं जाता था। दो आदमी, पांच से सात दिनों के प्रयास से ही इस खेत को तैयार कर सकते थे। डीलर से सब प्रकार की बाते पूछने, और जानने के बाद, हमने उसको अपनी आज्ञप्ति दे दी। सलाद की खेती उस समय नहीं होती थी, इसलिए उस डीलर ने भी लागत में काफी छूट दी थी। खैर, सारी बातें पक्की कर के, और उसको कुछ रकम पेशगी में दे कर, हमने उससे विदा ली।
उसके बाद, हम दोनों सड़क पर बात करते हुए, धीरे धीरे चल रहे थे। रास्ता कच्चा था, इसलिए रह रह कर हम दोनों की बाहें आपस में रगड़ खा रही थीं। अल्का ने कहा कि कल से ही वो दो लोगों को काम पर लगा देगी। वैसे तो इस कार्य में उन्नत तकनीक प्रयोग में लायी जाती है, लेकिन मैं धीरे धीरे इसका विकास करना चाहता था, जिससे लागत कम आए और खपत का ठीक ठीक अनुमान लगाया जा सके। मैंने राह में चलते चलते अल्का को यह सब बातें बताईं, और यह भी कहा कि मैं भी खेत पर काम करुंगा, जिससे मुझे कार्य का ठीक ठीक अनुमान लग सके। अल्का ने हँसते हुए मेरी बात मान ली, और मुझे छेड़ते हुए बोली कि दोपहर में वो मेरे लिए खाना लाया करेगी, और अपने हाथ से मुझे खिलायेगी। भले ही वो मुझे छेड़ रही थी, लेकिन यह बात सुन कर मुझे अच्छा लगा।
यह सब बातें करते करते जब हम अपने खेत पर पहुंचे तो करीब चार बज गए थे। काम करने वाले लोग तब तक अपने घर लौट गए थे।