17-07-2021, 06:08 PM
आज कल कैराली मसाज के विभिन्न रूप बाज़ार में उपलब्ध हैं। बहुत से लोग आज कल इसको एरोमा थेरेपी के नाम से भी जानते हैं। लेकिन चिन्नम्मा के तेल में ऐसा कोई एरोमा वेरोमा नहीं था। मालिश का तेल साधारण तिल के तेल, सरसों के तेल, शुद्ध हींग और हल्दी को मिला कर बनाया गया था। जो महक थी, सब इन्ही के कारण थी। और कुछ भी नहीं। आज कल काम की चीज़ कम, और नौटंकी ज्यादा करी जाती है! खैर, हमको क्या! काम करने वालो को लाभ होता है, तो मना कैसे और क्यों किया जाए?
चिन्नम्मा ने तेल की कटोरी को एक सुलगते हुए कंडे के ऊपर रखा हुआ था, जिससे तेल हल्का सा गरम था। उसी को
लेकर उन्होंने मेरे पूरे शरीर की दमदार मालिश करी। सच कहूँ, यात्रा की थकावट तो आज की मालिश के बाद ही निकली। उन्होंने मेरी एक एक माँस-पेशी, एक एक जोड़, और एक एक अंग की ऐसी मालिश करी कि मुझे लगा कि पूरा शरीर आराम के अतिरेक से शिथल हो गया है। उनके हाथों में एक अभूतपूर्व जादू है - किस अंग को कैसे दबाना है, और कैसे रगड़ना है, उनको यह सब अच्छी तरह से मालूम था। एक बात और, जिस पर मेरा और चिन्नम्मा दोनों का ध्यान गया था और वह यह था कि स्खलन के बाद भी मेरा लिंग स्तंभित ही रहा। बीच में कुछ देर के लिए शिथल पड़ा था लेकिन जब उन्होंने वापस वृषण और लिंग की मालिश शुरू करी, तो फिर से तन कर तैयार हो गया। हाँ, वो अलग बात है कि इस बार चिन्नम्मा और मैं दोनों ही किसी भी हादसे के लिए पहले से तैयार थे।
“चिन्नू, यह तो बड़ा ढीठ है। खुद से बैठ ही नहीं रहा है। मैं बैठा दूँ? नहीं तो बाद में दर्द होगा।” उन्होंने सहानुभूति दिखाते हुआ कहा।
“ठीक है।” मैंने स्वीकृति दे दी।
अगले पांच मिनट तक चिन्नम्मा मेरे लिंग को दबाती, सहलाती और रगड़ती रहीं। तब कहीं जा कर उसमे से दोबारा स्खलन हुआ और तब कहीं जा कर वो शांत हुआ। इस बार कोई हादसा नहीं हुआ। और भी अच्छी बात यह हुई कि पूरे मालिश के दौरान कोई घर नहीं आया। कम से कम किसी और के आगे मेरी इज़्ज़त नहीं गई। मुझे नहीं मालूम कि अल्का ने मुझे वैसी हालत में देखा या नहीं। लेकिन वो पूरे समय तक मैंने उसको बाहर निकले नहीं देखा। अच्छी बात है! मालिश हो जाने के बाद मैंने अपने कपड़े पहने, और घर के अंदर आ गया।
अंदर अल्का कॉफ़ी पीने के साथ साथ रेडियो पर गाने सुन रही थी। मुझे देखते ही वो मुस्कुराई,
“हो गई मालिश?”
“हाँ!” मैंने झेंपते हुए कहा।
“चिन्नम्मा बहुत बढ़िया मालिश करती हैं। रोज़ करवाया करो। जब तुम खेतों पर काम शुरू करोगे, तो रोज़ अभ्यंगम करवाना। थकावट तो यूँ चुटकी बजाते निकल जाएगी।”
“तुम करवाती हो?”
“हाँ!”
“क्या सच?”
“हाँ! इसमें झूठ वाली क्या बात है?”
“रोज़?”
“हाँ, लगभग रोज़ ही । मतलब, सप्ताह में तीन चार बार तो हो ही जाता है। नहीं तो मेरा थक कर चूरा बन जाएगा।”
“हा हा!”
“तो, आज का क्या प्लान है?”
“नहाना है...”
“तो नहा लो..”
“तालाब पर...”
अल्का की मुस्कराहट और बढ़ गई।
“मालूम था... चिन्नू जी को तालाब पर ही नहाना रहेगा। तो जाओ, नहा लो न!”
“तुम भी चलो ।“
“क्यों?”
“तुमने नहा लिया?”
“हाँ!”
“ओह!” मेरा मुँह लटक गया।
“लेकिन मैं चल सकती हूँ। आज कोई काम नहीं है मुझे, और रेडिओ पर भी बहुत ही पुराने गाने आ रहे हैं।”
मैं तुरंत खुश हो गया, “तो चलो..”
“ठीक है, लेकिन कुछ खाने को रख लेते हैं।”
चिन्नम्मा ने तेल की कटोरी को एक सुलगते हुए कंडे के ऊपर रखा हुआ था, जिससे तेल हल्का सा गरम था। उसी को
लेकर उन्होंने मेरे पूरे शरीर की दमदार मालिश करी। सच कहूँ, यात्रा की थकावट तो आज की मालिश के बाद ही निकली। उन्होंने मेरी एक एक माँस-पेशी, एक एक जोड़, और एक एक अंग की ऐसी मालिश करी कि मुझे लगा कि पूरा शरीर आराम के अतिरेक से शिथल हो गया है। उनके हाथों में एक अभूतपूर्व जादू है - किस अंग को कैसे दबाना है, और कैसे रगड़ना है, उनको यह सब अच्छी तरह से मालूम था। एक बात और, जिस पर मेरा और चिन्नम्मा दोनों का ध्यान गया था और वह यह था कि स्खलन के बाद भी मेरा लिंग स्तंभित ही रहा। बीच में कुछ देर के लिए शिथल पड़ा था लेकिन जब उन्होंने वापस वृषण और लिंग की मालिश शुरू करी, तो फिर से तन कर तैयार हो गया। हाँ, वो अलग बात है कि इस बार चिन्नम्मा और मैं दोनों ही किसी भी हादसे के लिए पहले से तैयार थे।
“चिन्नू, यह तो बड़ा ढीठ है। खुद से बैठ ही नहीं रहा है। मैं बैठा दूँ? नहीं तो बाद में दर्द होगा।” उन्होंने सहानुभूति दिखाते हुआ कहा।
“ठीक है।” मैंने स्वीकृति दे दी।
अगले पांच मिनट तक चिन्नम्मा मेरे लिंग को दबाती, सहलाती और रगड़ती रहीं। तब कहीं जा कर उसमे से दोबारा स्खलन हुआ और तब कहीं जा कर वो शांत हुआ। इस बार कोई हादसा नहीं हुआ। और भी अच्छी बात यह हुई कि पूरे मालिश के दौरान कोई घर नहीं आया। कम से कम किसी और के आगे मेरी इज़्ज़त नहीं गई। मुझे नहीं मालूम कि अल्का ने मुझे वैसी हालत में देखा या नहीं। लेकिन वो पूरे समय तक मैंने उसको बाहर निकले नहीं देखा। अच्छी बात है! मालिश हो जाने के बाद मैंने अपने कपड़े पहने, और घर के अंदर आ गया।
अंदर अल्का कॉफ़ी पीने के साथ साथ रेडियो पर गाने सुन रही थी। मुझे देखते ही वो मुस्कुराई,
“हो गई मालिश?”
“हाँ!” मैंने झेंपते हुए कहा।
“चिन्नम्मा बहुत बढ़िया मालिश करती हैं। रोज़ करवाया करो। जब तुम खेतों पर काम शुरू करोगे, तो रोज़ अभ्यंगम करवाना। थकावट तो यूँ चुटकी बजाते निकल जाएगी।”
“तुम करवाती हो?”
“हाँ!”
“क्या सच?”
“हाँ! इसमें झूठ वाली क्या बात है?”
“रोज़?”
“हाँ, लगभग रोज़ ही । मतलब, सप्ताह में तीन चार बार तो हो ही जाता है। नहीं तो मेरा थक कर चूरा बन जाएगा।”
“हा हा!”
“तो, आज का क्या प्लान है?”
“नहाना है...”
“तो नहा लो..”
“तालाब पर...”
अल्का की मुस्कराहट और बढ़ गई।
“मालूम था... चिन्नू जी को तालाब पर ही नहाना रहेगा। तो जाओ, नहा लो न!”
“तुम भी चलो ।“
“क्यों?”
“तुमने नहा लिया?”
“हाँ!”
“ओह!” मेरा मुँह लटक गया।
“लेकिन मैं चल सकती हूँ। आज कोई काम नहीं है मुझे, और रेडिओ पर भी बहुत ही पुराने गाने आ रहे हैं।”
मैं तुरंत खुश हो गया, “तो चलो..”
“ठीक है, लेकिन कुछ खाने को रख लेते हैं।”