17-07-2021, 06:04 PM
“बताओ न मौसी!” मैंने छेड़ा।
“अरे फिर से मौसी!! मुझे मेरे नाम से ही बुलाया करो। मुझे अच्छा लगता है।”
“तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया!”
“नहीं बाबा! नहीं नहाती! कोई देख लेगा तो?”
“कौन देखेगा? ये जगह तो ऐसे ही सूनसान सी रहती है!”
“हाँ! सूनसान सी रहती है, इसीलिए तो! अगर कुछ हो जाए, तो कोई बचाने वाला भी नहीं रहेगा!”
“हा हा! वो भी ठीक है!” कह कर मैं चुप हो गया। फिर कुछ हिम्मत कर के मैंने आगे कहा,
“आज नहा लो?”
“अच्छा! और तुम जो यहाँ हो, वो?”
“मैं ही तो हूँ बस! मैं बचा भी लूँगा! चलो न, नहाते हैं?”
“मेरे चिन्नू, अब हम बड़े हो गए हैं… और जब एक लड़का और एक लड़की बड़े हो जाएँ न, तो यह सब नहीं कर सकते! समझे?”
यह कहते कहते अल्का का चेहरा शर्म से लाल हो गया था। ये इस कारण हुआ कि उसने मुझे ‘मेरे चिन्नू’ कहा, या फिर इस कारण की वो हम दोनों को उस तालाब में साथ में निर्वस्त्र नहाते हुए सोच रही थी, यह मैं कह नहीं सकता!
मैं अल्का की बात से विचलित नहीं हुआ। मुझे अचानक ही लगने लगा कि अल्का का शरीर देखने का एक सुनहरा मौका है आज!
मैंने कहा, “अरे! हम दोनों अपने अंडरवियर में नहा सकते हैं! है न? वैसे भी यहाँ कौन है देखने वाला? जल्दी से नहा कर निकल लेंगे!”
अल्का की आँखें एक गहरी सोच में सिकुड़ सी गईं। साफ तौर पर वो मेरे सुझाव के बारे में सोच रही थी। अंततः उसने कहा, “हाँ... नहा तो सकते हैं! लेकिन, नहायेंगे नहीं!”
उसकी बात पर मेरा चेहरा उतर गया।
“क्या हुआ चिन्नू राजा?” अल्का ने मुस्कुराते हुआ कहा, “लगता है तुम्हारी शादी कर देनी चाहिए! तब जी भर के अपनी पत्नी को नहाते हुए देखना! हा हा!”
“हा हा हा” मैंने चिढ़ते हुआ कहा, “तुम ही कर लो न मेरे संग शादी। फिर मैं ही देखूँगा तुमको.. जी भर के!”
“अले अले! मेला चिन्नू नाराज़ हो गया!”
“मैं क्यूँ नाराज़ होऊंगा भला? न नहाना है, तो न नहाओ!”
वैसे भी शाम ढलने वाली थी, इसलिए वापस चलना ही ठीक था। इसलिए हम दोनों उस जगह से वापस हो लिए।
“अरे फिर से मौसी!! मुझे मेरे नाम से ही बुलाया करो। मुझे अच्छा लगता है।”
“तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया!”
“नहीं बाबा! नहीं नहाती! कोई देख लेगा तो?”
“कौन देखेगा? ये जगह तो ऐसे ही सूनसान सी रहती है!”
“हाँ! सूनसान सी रहती है, इसीलिए तो! अगर कुछ हो जाए, तो कोई बचाने वाला भी नहीं रहेगा!”
“हा हा! वो भी ठीक है!” कह कर मैं चुप हो गया। फिर कुछ हिम्मत कर के मैंने आगे कहा,
“आज नहा लो?”
“अच्छा! और तुम जो यहाँ हो, वो?”
“मैं ही तो हूँ बस! मैं बचा भी लूँगा! चलो न, नहाते हैं?”
“मेरे चिन्नू, अब हम बड़े हो गए हैं… और जब एक लड़का और एक लड़की बड़े हो जाएँ न, तो यह सब नहीं कर सकते! समझे?”
यह कहते कहते अल्का का चेहरा शर्म से लाल हो गया था। ये इस कारण हुआ कि उसने मुझे ‘मेरे चिन्नू’ कहा, या फिर इस कारण की वो हम दोनों को उस तालाब में साथ में निर्वस्त्र नहाते हुए सोच रही थी, यह मैं कह नहीं सकता!
मैं अल्का की बात से विचलित नहीं हुआ। मुझे अचानक ही लगने लगा कि अल्का का शरीर देखने का एक सुनहरा मौका है आज!
मैंने कहा, “अरे! हम दोनों अपने अंडरवियर में नहा सकते हैं! है न? वैसे भी यहाँ कौन है देखने वाला? जल्दी से नहा कर निकल लेंगे!”
अल्का की आँखें एक गहरी सोच में सिकुड़ सी गईं। साफ तौर पर वो मेरे सुझाव के बारे में सोच रही थी। अंततः उसने कहा, “हाँ... नहा तो सकते हैं! लेकिन, नहायेंगे नहीं!”
उसकी बात पर मेरा चेहरा उतर गया।
“क्या हुआ चिन्नू राजा?” अल्का ने मुस्कुराते हुआ कहा, “लगता है तुम्हारी शादी कर देनी चाहिए! तब जी भर के अपनी पत्नी को नहाते हुए देखना! हा हा!”
“हा हा हा” मैंने चिढ़ते हुआ कहा, “तुम ही कर लो न मेरे संग शादी। फिर मैं ही देखूँगा तुमको.. जी भर के!”
“अले अले! मेला चिन्नू नाराज़ हो गया!”
“मैं क्यूँ नाराज़ होऊंगा भला? न नहाना है, तो न नहाओ!”
वैसे भी शाम ढलने वाली थी, इसलिए वापस चलना ही ठीक था। इसलिए हम दोनों उस जगह से वापस हो लिए।