17-07-2021, 06:04 PM
चिन्नम्मा को ज़रूरी निर्देश और दोपहर में नानी को खाना खिलाने के निर्देश दे कर, अल्का और मैं उस तरफ चल दिए। खैर, चूँकि रास्ता अल्का को मालूम था इसलिए वो आगे और मैंने उसके पीछे चल रहा था। उसने हमेशा की तरह वही ढीले ढाले कपड़े पहने हुए थे, लेकिन मेरे मन में उसकी निक्कर और टी-शर्ट पहनी हुई छवि बसी हुई थी। मैंने यही सोच रहा था कि अगर वो इस समय उन्ही कपड़ों में होती तो किस तरह उसके नितम्ब उसकी हर चाल पर थिरकते! यह सोच कर एक बार फिर से मुझे उत्तेजना हो आई, लेकिन एक तो वहां एकांत था, और मैं पीछे था - इसलिए उत्तेजना छुपाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। हमारा सारा खेत एक साथ नहीं था, और यह हिस्सा थोड़ा अलग थलग पड़ा हुआ था। खैर, आराम से चलते और बातें करते हुए हम पैंतालीस मिनट में उस जगह पहुँच गए।
वो जगह वाकई बहुत सुन्दर थी। वो नदी छोटी सी थी, और उसके अगल बगल हरी घास उगी हुई थी। कुछ छोटे बड़े वृक्ष भी उगे हुए थे। और इन सब बातों का सम्मिलित प्रभाव यह था कि वह जगह बहुत शांत और निस्तब्ध थी! यहाँ खेत नहीं, रिसोर्ट बनाना चाहिए!! नदी के एक तरफ ढाल था, जिसमें पानी भर कर एक तालाब जैसा बन गया था। अल्का ने बताया की करीब आठ-नौ फ़ीट गहरा तालाब होगा। मेरी खेती के इरादे के लिए यह जगह एकदम सही लग रही थी। मेरे मन में एक और बात आई - क्यों न अल्का और मैं इसी तालाब में साथ साथ नहाएं! उस जगह का भली भाँति निरीक्षण करने के बाद मैंने अल्का को विस्तार से पूरे प्लान के बारे में बताया। मैंने बताया कि आज कल अमरीका से बहुत सारे पर्यटक (हिप्पी) आ रहे थे, जो कि कई दिनों तक एक जगह रुकते थे। उन लोगों में सलाद की ख़पत बढ़िया रहेगी। मछली और चिकन के साथ सलाद तो उन लोगो का खाना है ही। अल्का ध्यान से मेरी पूरी बात सुन रही थी, और अपनी तरफ से कई सारे सुझाव भी देती जा रही थी। हम दोनों ही एक बात पर सहमत थे, कि सलाद की खेती से लाभ तो होगा! त्रिवेंद्रम, एर्णाकुलम, कोच्चि, मुन्नार जैसे बड़े शहरों में इसकी खपत बढ़िया रहेगी, और खेत से इन जगहों पर जाने में सिर्फ दो से तीन घंटे लगेंगे! बड़ी गाड़ी की ज़रुरत भी नहीं है, बस दो जीप में भर कर एक को उत्तर और दूसरे को दक्षिण दिशा में भेजना है। मतलब एकदम ताज़ा सलाद, जो इस व्यापार के लिए सबसे आवश्यक नियम है! मतलब सवेरे काट कर, ग्राहकों को दे कर दिन भर में वापस आया जा सकता है। बढ़िया!
खैर, यह बातें करते करते काफी समय बीत गया और मुझे अचानक ही भूख लगने लगी। अल्का ने वहीं घास पर पत्तलों पर खाना लगाया। अल्का को भी भूख लग गई थी। हम दोनों ही जल्दी जल्दी खाना खाने लगे। उसके बाद मैं वहीं पर लेट गया, और हर रात की तरह अल्का भी मेरी बगल लेट गई। वही लेटे लेटे हम उस जगह की शांति का आनंद उठाने लगे। दोपहर गरम थी। और ऐसे छाँव में लेटना बहुत सुखद था। लेटे हुए मैंने थोड़ा सा हिला तो मेरा हाथ, अल्का के हाथ को छूने लगा। न तो अल्का ने अपना हाथ हटाया, और न ही मैंने! कुछ देर ऐसे ही रहने के बाद मैंने उसके हाथ को सहलाना शुरू कर दिया। अल्का ने फिर भी अपना हाथ नहीं हटाया।
कुछ देर ऐसे ही रहने के बाद मैंने कहा, “अल्का, यह तालाब तो बढ़िया जगह है नहाने के लिए!”
“हाँ! यह ज़मीन हमको बहुत सस्ते में मिल गई थी। इसके पहले के मालिक लोग लंदन में बसने जा रहे थे, तो उन्होंने पिता जी को यह ज़मीन बेच दी। पता है, जब मैं छोटी थी तो यहाँ आ कर खूब नहाती थी!”
“कौन लोग थे?”
“तुमको नहीं मालूम होगा। उनकी यहाँ ज़मीन थी, लेकिन उस पर खेती कोई और करते थे।”
“हम्म्म!”
हम कुछ देर तक चुप रहे, फिर मैं ही बोला, “बिना कपड़ों के?”
“क्या बिना कपड़ों के?”
“जब तुम यहाँ नहाने आती थी?”
“हाँ! और कैसे?”
“मज़ा आता था?”
“बहुत! लेकिन फिर बाद में चेची और अम्मा मुझे मना करने लगे!”
“हम्म्म.... तो अभी कभी नहाती हो यहाँ?”
“कभी कभी!”
“बिना कपड़ों के?”
अल्का हंसी, “चिन्नू बहुत शैतान हो गया है!”
वो जगह वाकई बहुत सुन्दर थी। वो नदी छोटी सी थी, और उसके अगल बगल हरी घास उगी हुई थी। कुछ छोटे बड़े वृक्ष भी उगे हुए थे। और इन सब बातों का सम्मिलित प्रभाव यह था कि वह जगह बहुत शांत और निस्तब्ध थी! यहाँ खेत नहीं, रिसोर्ट बनाना चाहिए!! नदी के एक तरफ ढाल था, जिसमें पानी भर कर एक तालाब जैसा बन गया था। अल्का ने बताया की करीब आठ-नौ फ़ीट गहरा तालाब होगा। मेरी खेती के इरादे के लिए यह जगह एकदम सही लग रही थी। मेरे मन में एक और बात आई - क्यों न अल्का और मैं इसी तालाब में साथ साथ नहाएं! उस जगह का भली भाँति निरीक्षण करने के बाद मैंने अल्का को विस्तार से पूरे प्लान के बारे में बताया। मैंने बताया कि आज कल अमरीका से बहुत सारे पर्यटक (हिप्पी) आ रहे थे, जो कि कई दिनों तक एक जगह रुकते थे। उन लोगों में सलाद की ख़पत बढ़िया रहेगी। मछली और चिकन के साथ सलाद तो उन लोगो का खाना है ही। अल्का ध्यान से मेरी पूरी बात सुन रही थी, और अपनी तरफ से कई सारे सुझाव भी देती जा रही थी। हम दोनों ही एक बात पर सहमत थे, कि सलाद की खेती से लाभ तो होगा! त्रिवेंद्रम, एर्णाकुलम, कोच्चि, मुन्नार जैसे बड़े शहरों में इसकी खपत बढ़िया रहेगी, और खेत से इन जगहों पर जाने में सिर्फ दो से तीन घंटे लगेंगे! बड़ी गाड़ी की ज़रुरत भी नहीं है, बस दो जीप में भर कर एक को उत्तर और दूसरे को दक्षिण दिशा में भेजना है। मतलब एकदम ताज़ा सलाद, जो इस व्यापार के लिए सबसे आवश्यक नियम है! मतलब सवेरे काट कर, ग्राहकों को दे कर दिन भर में वापस आया जा सकता है। बढ़िया!
खैर, यह बातें करते करते काफी समय बीत गया और मुझे अचानक ही भूख लगने लगी। अल्का ने वहीं घास पर पत्तलों पर खाना लगाया। अल्का को भी भूख लग गई थी। हम दोनों ही जल्दी जल्दी खाना खाने लगे। उसके बाद मैं वहीं पर लेट गया, और हर रात की तरह अल्का भी मेरी बगल लेट गई। वही लेटे लेटे हम उस जगह की शांति का आनंद उठाने लगे। दोपहर गरम थी। और ऐसे छाँव में लेटना बहुत सुखद था। लेटे हुए मैंने थोड़ा सा हिला तो मेरा हाथ, अल्का के हाथ को छूने लगा। न तो अल्का ने अपना हाथ हटाया, और न ही मैंने! कुछ देर ऐसे ही रहने के बाद मैंने उसके हाथ को सहलाना शुरू कर दिया। अल्का ने फिर भी अपना हाथ नहीं हटाया।
कुछ देर ऐसे ही रहने के बाद मैंने कहा, “अल्का, यह तालाब तो बढ़िया जगह है नहाने के लिए!”
“हाँ! यह ज़मीन हमको बहुत सस्ते में मिल गई थी। इसके पहले के मालिक लोग लंदन में बसने जा रहे थे, तो उन्होंने पिता जी को यह ज़मीन बेच दी। पता है, जब मैं छोटी थी तो यहाँ आ कर खूब नहाती थी!”
“कौन लोग थे?”
“तुमको नहीं मालूम होगा। उनकी यहाँ ज़मीन थी, लेकिन उस पर खेती कोई और करते थे।”
“हम्म्म!”
हम कुछ देर तक चुप रहे, फिर मैं ही बोला, “बिना कपड़ों के?”
“क्या बिना कपड़ों के?”
“जब तुम यहाँ नहाने आती थी?”
“हाँ! और कैसे?”
“मज़ा आता था?”
“बहुत! लेकिन फिर बाद में चेची और अम्मा मुझे मना करने लगे!”
“हम्म्म.... तो अभी कभी नहाती हो यहाँ?”
“कभी कभी!”
“बिना कपड़ों के?”
अल्का हंसी, “चिन्नू बहुत शैतान हो गया है!”