17-07-2021, 05:59 PM
“तो?” आखिरकार अल्का ने ही चुप्पी तोड़ी।
मेरी तो जैसे तन्द्रा टूटी! मैं हैरानी से उसको देख रहा था।
“चिन्नू बाबू... कभी लड़की नहीं देखी क्या?” वो मुस्कुराते हुए कह रही थी - वो हल्का फुल्का मज़ाक तो कर रही थी, लेकिन खुद भी कुछ घबराई हुई थी।
“देखी तो है... लेकिन आप जैसी सुन्दर नहीं!”
“हम्म्... अच्छा है फिर तो! ‘मेरे जैसी’ सुन्दर लड़की के साथ सोने का मौका मिलेगा!” कहते हुए वो बिस्तर में मेरे पास आ गई, और आते ही उसने खुद को चद्दर से ढक लिया। मौसम गर्म था, और अब हम दोनों भी! और ऐसे में चद्दर ओढ़ना! यह तो तय बात थी कि वो अपने स्तंभित मुलाक्कन्ना (चूचकों) को ढकना चाहती थी।
“यह निक्कर बहुत कसी हुई है....” कह कर उसने निक्कर के बटन खोल दिए। आवाज़ और उसके हाथ की हरकतों से मुझे इतना तो मालूम हो गया। माहौल बहुत ही भारी हो गया था। हम दोनों ने बहुत देर तक कुछ भी बात नहीं करी।
“और ये टी शर्ट भी!” उन्होंने चुप्पी तोड़ी।
मैं क्या कहता! वो तो लग ही रहा था कि टी शर्ट बहुत कसी हुई थी।
“मेरा साइज़ लगता है कि थर्टी फोर हो गया है!” उन्होंने ऐसे कहा जैसे कि ऐसे ही कोई आम बात कह रही हों।
“मुलाक्कल (स्तनों) का?” मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया।
“हाँ!”
“सातुकुड़ी अब पृयूर बन गए ... हा हा!” मैंने मज़ाक में कहा।
पृयूर दरअसल एक बहुत ही उत्कृष्ट नस्ल का आम होता है जो केरल में होता है। इसके फ़ल में खटास कभी नहीं होती, कच्चा होने पर भी नहीं। और पक जाने पर यह बहुत रसीला, और मीठा हो जाता है।
मेरी इस बात पर वो भी खिलखिला कर हंस पड़ी!
“पृयूर नहीं.. उससे भी बड़े!” उसने हँसते हुए आगे जोड़ा। उनके यह बोलते ही मेरे आँखों के सामने उनके स्तनों का एक परिकल्पित दृश्य घूम गया.. मैंने कुछ कहा नहीं, बस एक हलकी सी, दबी हुई हंसी छोड़ी।
“गुड नाईट चिन्नू” अंततः अल्का ने कहा।
“गुड नाईट अल्का!” मैंने भी कहा और जबरदस्ती सोने की कोशिश करने लगा।
इस तरह के अनुभव के बाद नींद किसको आ सकती है? यही हाल मेरा भी था। और एक समस्या थी - और वह यह कि मैं अब तक अत्यंत कामोत्तेजित हो गया था। यह मेरे लिए वैसे कोई नई बात तो थी नहीं। इस उम्र में वैसे भी हार्मोनों का प्रभाव अपने चरम पर होता है। लेकिन, उससे भी बड़ा कारण थी अल्का, जो मेरे ही बगल लेटी हुई थी, और उस प्रकार के कपड़े पहने हुए थी, जो किसी भी नवयुवक को पागल कर दे! मुझे यह ज्ञान था कि मेरे बगल वही अत्यंत सुन्दर जवान लड़की लेटी हुई थी। और उस लड़की के पास एक कोरी योनि थी, और मेरे पास एक अनभ्यस्त लिंग! न जाने क्यों बंद आँखों के पटल पर एक तस्वीर खिंच गई जिसमें मैं और अलका दोनों नग्न थे, और आलिंगनबद्ध थे।
‘यह कैसा दृश्य!’ कब अलका मेरे ख्यालों में इस तरह आने लग गई! अब जब आ ही गई है, तो मन में एक और विचार कौंधा, ‘क्या मैं अल्का की योनि के कोरे कागज़ पर अपने लिंग की कलम से कोई प्रेम कहानी लिख पाऊंगा?’ ऐसी बातों का उत्तर तो भविष्य की कोख में था! लेकिन मेरा अलका को देखने का नज़रिया बदलने लग गया था। यही सब सोचते सोचते जब नींद आई, तो मेरे सपने में लड़कियों के कामुक सपने आने लगे, और उन लड़कियों के चेहरे अल्का से मिलते जुलते से लगे।
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मेरी तो जैसे तन्द्रा टूटी! मैं हैरानी से उसको देख रहा था।
“चिन्नू बाबू... कभी लड़की नहीं देखी क्या?” वो मुस्कुराते हुए कह रही थी - वो हल्का फुल्का मज़ाक तो कर रही थी, लेकिन खुद भी कुछ घबराई हुई थी।
“देखी तो है... लेकिन आप जैसी सुन्दर नहीं!”
“हम्म्... अच्छा है फिर तो! ‘मेरे जैसी’ सुन्दर लड़की के साथ सोने का मौका मिलेगा!” कहते हुए वो बिस्तर में मेरे पास आ गई, और आते ही उसने खुद को चद्दर से ढक लिया। मौसम गर्म था, और अब हम दोनों भी! और ऐसे में चद्दर ओढ़ना! यह तो तय बात थी कि वो अपने स्तंभित मुलाक्कन्ना (चूचकों) को ढकना चाहती थी।
“यह निक्कर बहुत कसी हुई है....” कह कर उसने निक्कर के बटन खोल दिए। आवाज़ और उसके हाथ की हरकतों से मुझे इतना तो मालूम हो गया। माहौल बहुत ही भारी हो गया था। हम दोनों ने बहुत देर तक कुछ भी बात नहीं करी।
“और ये टी शर्ट भी!” उन्होंने चुप्पी तोड़ी।
मैं क्या कहता! वो तो लग ही रहा था कि टी शर्ट बहुत कसी हुई थी।
“मेरा साइज़ लगता है कि थर्टी फोर हो गया है!” उन्होंने ऐसे कहा जैसे कि ऐसे ही कोई आम बात कह रही हों।
“मुलाक्कल (स्तनों) का?” मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया।
“हाँ!”
“सातुकुड़ी अब पृयूर बन गए ... हा हा!” मैंने मज़ाक में कहा।
पृयूर दरअसल एक बहुत ही उत्कृष्ट नस्ल का आम होता है जो केरल में होता है। इसके फ़ल में खटास कभी नहीं होती, कच्चा होने पर भी नहीं। और पक जाने पर यह बहुत रसीला, और मीठा हो जाता है।
मेरी इस बात पर वो भी खिलखिला कर हंस पड़ी!
“पृयूर नहीं.. उससे भी बड़े!” उसने हँसते हुए आगे जोड़ा। उनके यह बोलते ही मेरे आँखों के सामने उनके स्तनों का एक परिकल्पित दृश्य घूम गया.. मैंने कुछ कहा नहीं, बस एक हलकी सी, दबी हुई हंसी छोड़ी।
“गुड नाईट चिन्नू” अंततः अल्का ने कहा।
“गुड नाईट अल्का!” मैंने भी कहा और जबरदस्ती सोने की कोशिश करने लगा।
इस तरह के अनुभव के बाद नींद किसको आ सकती है? यही हाल मेरा भी था। और एक समस्या थी - और वह यह कि मैं अब तक अत्यंत कामोत्तेजित हो गया था। यह मेरे लिए वैसे कोई नई बात तो थी नहीं। इस उम्र में वैसे भी हार्मोनों का प्रभाव अपने चरम पर होता है। लेकिन, उससे भी बड़ा कारण थी अल्का, जो मेरे ही बगल लेटी हुई थी, और उस प्रकार के कपड़े पहने हुए थी, जो किसी भी नवयुवक को पागल कर दे! मुझे यह ज्ञान था कि मेरे बगल वही अत्यंत सुन्दर जवान लड़की लेटी हुई थी। और उस लड़की के पास एक कोरी योनि थी, और मेरे पास एक अनभ्यस्त लिंग! न जाने क्यों बंद आँखों के पटल पर एक तस्वीर खिंच गई जिसमें मैं और अलका दोनों नग्न थे, और आलिंगनबद्ध थे।
‘यह कैसा दृश्य!’ कब अलका मेरे ख्यालों में इस तरह आने लग गई! अब जब आ ही गई है, तो मन में एक और विचार कौंधा, ‘क्या मैं अल्का की योनि के कोरे कागज़ पर अपने लिंग की कलम से कोई प्रेम कहानी लिख पाऊंगा?’ ऐसी बातों का उत्तर तो भविष्य की कोख में था! लेकिन मेरा अलका को देखने का नज़रिया बदलने लग गया था। यही सब सोचते सोचते जब नींद आई, तो मेरे सपने में लड़कियों के कामुक सपने आने लगे, और उन लड़कियों के चेहरे अल्का से मिलते जुलते से लगे।
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