17-07-2021, 05:08 PM
हमको जब कभी भी उनको छुट्टियां मिलती थी, तो वो समय हम अपने तय स्थान केरल जा कर मनाते थे। केरल में मेरे नाना-नानी और मौसी रहते थे। नाना-नानी की कई संतानें हुईं : माँ के बाद 4 और, फिर अम्माई (मौसी), फिर एक और। लेकिन अधिकतर बच्चों की मृत्यु हो गई थी - कोई मृत पैदा हुए, तो कोई जन्म के कुछ दिनों में मर गए। केवल मेरी माँ और मौसी ही जीवित बच सके।
लिहाज़ा, माँ और मौसी के बीच उम्र का लम्बा चौड़ा अंतर था। मेरी मौसी अल्का मुझसे कोई 05 साल बड़ी रही होंगी। उनका नाम उनके घने घुंघराले बालों के कारण ही पड़ा था। सच तो यह है कि मैं केरल जाने की राह अक्सर ही देखता रहता था - और उसका कारण थीं मेरी मौसी अल्का।
उनके लिए मेरे मन में गंभीर प्रेमासक्ति थी। मेरे कहने का यह मतलब कतई नहीं है की मेरे मन में उनको लेकर किसी प्रकार की कामुक फंतासी थी। मैं बस यह कहना चाहता हूँ कि मेरे मन में इनके लिए एक प्रबल और स्मरणीय स्नेह था। और उनके मन में मेरे लिए! उनसे एक अलग ही तरह का लगाव था मुझे। माँ के ख़ानदान में मैं एकलौता पुरुष संतान बचा हुआ था। उस कारण से भी मुझे काफी तवज्जो मिलती थी। लेकिन मौसी और मेरा एक अलग ही तारतम्य था।
माँ कभी कभी मुझे कहती भी थी: “अल्का तुमको बहुत प्यार करती है। उसके लिए तुम दुनिया के सबसे प्यारे बच्चे हो! और हो भी क्यों न? तुम भी तो उसके सामने एक सीधे सादे बच्चे बन जाते थे!”
यह बात सच भी थी - उनके साथ अपनी छुट्टियों का एक एक पल बिताना भी मुझे अच्छा लगता था। उनके आस पास रहने से मेरी अतिसक्रियता अचानक ही कम हो जाती थी। वो मुझे पुस्तक से पढ़ कर कोई कहानी सुनातीं, तो मैं चुपचाप बैठ कर सुन लेता। वो जो भी कहतीं, मैं बिना किसी प्रतिवाद के कर देता।
अल्का मौसी बदले में मेरे साथ विनोदप्रियता, बुद्धिमत्ता और प्रेम से व्यवहार करती थीं। न तो वो कभी मुझसे ऊंची आवाज़ में बात करती थीं, और न ही कभी मेरी मार पिटाई। और प्रेम तो इतना करतीं कि बस पूछिए मत! दुनिया में वो मेरी सबसे पसंदीदा व्यक्ति थीं।
जब तक मैं छोटा था, तब तक प्रत्येक वर्ष हम दो बार केरल अवश्य जाते थे। लेकिन मेरे बड़े होने के साथ साथ माता-पिता की जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगीं और मेरी पढ़ाई का बोझ भी।
नाना जी की मृत्यु (तब मैं ग्यारह-बारह साल का रहा होऊंगा!) के समय हम सभी दो बार साथ में गए, और उसके बाद केरल जाना कम होता गया। नाना जी की बहुत बड़ी खेती थी, और उसको सम्हालने का कार्य अब मौसी के सर था। आश्चर्य की बात है की ऐसा सश्रम कार्य मौसी बखूबी और कुशलता से निभा रही थीं।
मेरी नानी अब करीब पैंसठ साल की हो चुकीं थीं, और अब उनकी सभी इन्द्रियां शिथिल पड़ गईं थीं। उनको अब ठीक से दिखाई, और सुनाई नहीं देता था। सात बच्चे हो जाने कारण उनके शरीर में ऐसे ही कमज़ोरी आ गई थी। उनके हाथ कांपते थे; गठिया और मृदुलास्थि के कारण ठीक से चल भी नहीं पाती थीं। उनकी देखभाल और खेती के कार्य के बढ़ते बोझ के कारण मौसी ने विवाह करने से भी मना कर दिया था। उनका कहना था कि यह दो जिम्मेदारियां उनके लिए बहुत हैं! ज्ञात रहे, कि उन दिनों अगर कोई लड़की 25 साल की हो जाए, और अविवाहित हो, तो केरल के ग्रामीण परिद्रेश्य में वो विवाह योग्य नहीं रहती। वैसे तो कुछेक लोग अभी भी उनके लिए विवाह प्रस्ताव लाते थे, लेकिन उनकी दृष्टि सिर्फ मौसी की धन-सम्पदा पर ही थी। इसलिए उनके विवाह की कोई भी सम्भावना अब लगभग नगण्य थी।
लेकिन मेरे मन में एक अबूझ सी बात अक्सर आती। मैं जब भी अलका मौसी के बारे में सोचता, या फिर जब भी उनको देखता, तो मुझे लगता कि हो न हो - उन्ही के जैसी कोई लड़की मेरे लिए ठीक है... हर प्रकार से! जिस प्रकार से वो विभिन्न जिम्मेदारियों को निभाती हैं, वो एक तरह से बहुत ही आकर्षक, रोचक और एक तरह से दिलासा देने वाला भाव उत्पन्न करता है। उन के जैसी मृदुभाषी, कर्मठ, विभिन्न कलाओं में दक्ष, समाज में आदरणीय लड़की कौन नहीं चाहेगा! लेकिन देखिए - कोई नहीं चाहता। ख़ैर...
उनकी देखा-देखी मुझे भी मन होता था कि मैं भी खेती करूँ। आज कल कृषि एक कर्मनाशा व्यवसाय हो गया है, लेकिन मानव-जाति की असंख्य पीढ़ियाँ यही व्यवसाय कर के उन्नति कर सकीं। इसलिए बड़े होते होते मैंने भी यह ठान लिया था कि कृषि क्षेत्र में ही स्नातक की पढ़ाई कर खेती का व्यवसाय करुंगा। इस हेतु मैंने दुनिया भर में कृषि क्षेत्र में चल रहे वैज्ञानिक उन्नति के बारे में पढ़ना और समझना शुरू कर दिया था, और जल्दी ही मेरे मस्तिष्क में कृषि के आधुनिकीकरण को लेकर कई सारे विचार और प्रयोग उत्पन्न हो गए।
लेकिन, मेरे इस निर्णय से मेरे माता पिता सबसे अधिक चिंतित रहते थे - उनको लगता था की यह बहुत बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय नहीं था, और नौकरी करना ही श्रेयस्कर था। उन दोनों ने मुझे मनाने की बहुत कोशिश करी, लेकिन मेरे तर्क के सामने बेबस हो गए। खैर, मेरे बारहवीं करते करते उन्होंने मुझे एक साल का अवसर दिया कि मैं अपनी सोच और प्रयोग केरल में हमारी खेती पर सफलतापूर्वक आज़मा सका तो वो मुझे इसी क्षेत्र में जाने देंगे, अन्यथा मुझे उनकी बात माननी पड़ेगी और नौकरी करनी पड़ेगी। मेरे पास उनकी बात मानने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था।
अल्का मौसी ने मेरे निर्णय पर मेरे सामने तो ख़ुशी ज़ाहिर करी, लेकिन मेरे माता-पिता के सामने नहीं। दरअसल, बिना मेरे माता पिता को बताए, वो मेरे सुझावों को हमारी खेती में पिछले तीन चार साल से इस्तेमाल कर रहीं थी, और इसके कारण खेती में पहले ही बहुत उन्नति हो चुकी थी। मेरा केरल जाना कम हो गया था, लेकिन फ़ोन और डाक के जरिए मौसी और मेरी बात-चीत चलती रहती थी।
लिहाज़ा, माँ और मौसी के बीच उम्र का लम्बा चौड़ा अंतर था। मेरी मौसी अल्का मुझसे कोई 05 साल बड़ी रही होंगी। उनका नाम उनके घने घुंघराले बालों के कारण ही पड़ा था। सच तो यह है कि मैं केरल जाने की राह अक्सर ही देखता रहता था - और उसका कारण थीं मेरी मौसी अल्का।
उनके लिए मेरे मन में गंभीर प्रेमासक्ति थी। मेरे कहने का यह मतलब कतई नहीं है की मेरे मन में उनको लेकर किसी प्रकार की कामुक फंतासी थी। मैं बस यह कहना चाहता हूँ कि मेरे मन में इनके लिए एक प्रबल और स्मरणीय स्नेह था। और उनके मन में मेरे लिए! उनसे एक अलग ही तरह का लगाव था मुझे। माँ के ख़ानदान में मैं एकलौता पुरुष संतान बचा हुआ था। उस कारण से भी मुझे काफी तवज्जो मिलती थी। लेकिन मौसी और मेरा एक अलग ही तारतम्य था।
माँ कभी कभी मुझे कहती भी थी: “अल्का तुमको बहुत प्यार करती है। उसके लिए तुम दुनिया के सबसे प्यारे बच्चे हो! और हो भी क्यों न? तुम भी तो उसके सामने एक सीधे सादे बच्चे बन जाते थे!”
यह बात सच भी थी - उनके साथ अपनी छुट्टियों का एक एक पल बिताना भी मुझे अच्छा लगता था। उनके आस पास रहने से मेरी अतिसक्रियता अचानक ही कम हो जाती थी। वो मुझे पुस्तक से पढ़ कर कोई कहानी सुनातीं, तो मैं चुपचाप बैठ कर सुन लेता। वो जो भी कहतीं, मैं बिना किसी प्रतिवाद के कर देता।
अल्का मौसी बदले में मेरे साथ विनोदप्रियता, बुद्धिमत्ता और प्रेम से व्यवहार करती थीं। न तो वो कभी मुझसे ऊंची आवाज़ में बात करती थीं, और न ही कभी मेरी मार पिटाई। और प्रेम तो इतना करतीं कि बस पूछिए मत! दुनिया में वो मेरी सबसे पसंदीदा व्यक्ति थीं।
जब तक मैं छोटा था, तब तक प्रत्येक वर्ष हम दो बार केरल अवश्य जाते थे। लेकिन मेरे बड़े होने के साथ साथ माता-पिता की जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगीं और मेरी पढ़ाई का बोझ भी।
नाना जी की मृत्यु (तब मैं ग्यारह-बारह साल का रहा होऊंगा!) के समय हम सभी दो बार साथ में गए, और उसके बाद केरल जाना कम होता गया। नाना जी की बहुत बड़ी खेती थी, और उसको सम्हालने का कार्य अब मौसी के सर था। आश्चर्य की बात है की ऐसा सश्रम कार्य मौसी बखूबी और कुशलता से निभा रही थीं।
मेरी नानी अब करीब पैंसठ साल की हो चुकीं थीं, और अब उनकी सभी इन्द्रियां शिथिल पड़ गईं थीं। उनको अब ठीक से दिखाई, और सुनाई नहीं देता था। सात बच्चे हो जाने कारण उनके शरीर में ऐसे ही कमज़ोरी आ गई थी। उनके हाथ कांपते थे; गठिया और मृदुलास्थि के कारण ठीक से चल भी नहीं पाती थीं। उनकी देखभाल और खेती के कार्य के बढ़ते बोझ के कारण मौसी ने विवाह करने से भी मना कर दिया था। उनका कहना था कि यह दो जिम्मेदारियां उनके लिए बहुत हैं! ज्ञात रहे, कि उन दिनों अगर कोई लड़की 25 साल की हो जाए, और अविवाहित हो, तो केरल के ग्रामीण परिद्रेश्य में वो विवाह योग्य नहीं रहती। वैसे तो कुछेक लोग अभी भी उनके लिए विवाह प्रस्ताव लाते थे, लेकिन उनकी दृष्टि सिर्फ मौसी की धन-सम्पदा पर ही थी। इसलिए उनके विवाह की कोई भी सम्भावना अब लगभग नगण्य थी।
लेकिन मेरे मन में एक अबूझ सी बात अक्सर आती। मैं जब भी अलका मौसी के बारे में सोचता, या फिर जब भी उनको देखता, तो मुझे लगता कि हो न हो - उन्ही के जैसी कोई लड़की मेरे लिए ठीक है... हर प्रकार से! जिस प्रकार से वो विभिन्न जिम्मेदारियों को निभाती हैं, वो एक तरह से बहुत ही आकर्षक, रोचक और एक तरह से दिलासा देने वाला भाव उत्पन्न करता है। उन के जैसी मृदुभाषी, कर्मठ, विभिन्न कलाओं में दक्ष, समाज में आदरणीय लड़की कौन नहीं चाहेगा! लेकिन देखिए - कोई नहीं चाहता। ख़ैर...
उनकी देखा-देखी मुझे भी मन होता था कि मैं भी खेती करूँ। आज कल कृषि एक कर्मनाशा व्यवसाय हो गया है, लेकिन मानव-जाति की असंख्य पीढ़ियाँ यही व्यवसाय कर के उन्नति कर सकीं। इसलिए बड़े होते होते मैंने भी यह ठान लिया था कि कृषि क्षेत्र में ही स्नातक की पढ़ाई कर खेती का व्यवसाय करुंगा। इस हेतु मैंने दुनिया भर में कृषि क्षेत्र में चल रहे वैज्ञानिक उन्नति के बारे में पढ़ना और समझना शुरू कर दिया था, और जल्दी ही मेरे मस्तिष्क में कृषि के आधुनिकीकरण को लेकर कई सारे विचार और प्रयोग उत्पन्न हो गए।
लेकिन, मेरे इस निर्णय से मेरे माता पिता सबसे अधिक चिंतित रहते थे - उनको लगता था की यह बहुत बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय नहीं था, और नौकरी करना ही श्रेयस्कर था। उन दोनों ने मुझे मनाने की बहुत कोशिश करी, लेकिन मेरे तर्क के सामने बेबस हो गए। खैर, मेरे बारहवीं करते करते उन्होंने मुझे एक साल का अवसर दिया कि मैं अपनी सोच और प्रयोग केरल में हमारी खेती पर सफलतापूर्वक आज़मा सका तो वो मुझे इसी क्षेत्र में जाने देंगे, अन्यथा मुझे उनकी बात माननी पड़ेगी और नौकरी करनी पड़ेगी। मेरे पास उनकी बात मानने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था।
अल्का मौसी ने मेरे निर्णय पर मेरे सामने तो ख़ुशी ज़ाहिर करी, लेकिन मेरे माता-पिता के सामने नहीं। दरअसल, बिना मेरे माता पिता को बताए, वो मेरे सुझावों को हमारी खेती में पिछले तीन चार साल से इस्तेमाल कर रहीं थी, और इसके कारण खेती में पहले ही बहुत उन्नति हो चुकी थी। मेरा केरल जाना कम हो गया था, लेकिन फ़ोन और डाक के जरिए मौसी और मेरी बात-चीत चलती रहती थी।