17-07-2021, 03:02 PM
(This post was last modified: 17-07-2021, 05:03 PM by usaiha2. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मंगलसूत्र
लेखक : avsji
अंजलि जी ने ये कहानी xossip पर लिखी थी.............. मेरी पसंदीदा कहानियों में से है... मित्रों, इस कहानी में लेखक ने एक 'सामाजिक प्रयोग' (social experiment) भी किया।
हाँलाकि मेरे हिसाब से यह एक प्रेम कथा है, लेकिन लेखकने इस कहानी को incest की category में डाला।
हाँलाकि मेरे हिसाब से यह एक प्रेम कथा है, लेकिन लेखकने इस कहानी को incest की category में डाला।
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बात थोड़ी पुरानी है, लेकिन उससे कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता है। यह एक taboo विषय है। मेरे बहुत से दक्षिण भारतीय मित्र हैं। दो मित्र अपनी चचेरी बहनों से ब्याहे हैं। वहां इस सम्बन्ध को सामाजिक मान्यता है। मामा और भांजी का भी वैवाहिक सम्बन्ध मान्य है। उत्तर भारत में भी यह होते हुए देखा मैंने।
बस एक हैं, हमारे पिता जी के मित्र, जिन्होंने अपनी मौसी से शादी करी थी। उनके घर में इस सम्बन्ध को ले कर क्या वितंडावाद हुआ, वो पिता जी कभी कभी बताते हैं। घर से निकाला और न जाने क्या क्या।
कहने का मतलब यह कि एकाध अपवाद हैं समाज में!
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बात थोड़ी पुरानी है, लेकिन उससे कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता है।
मैं और मेरा परिवार मूलतः केरल राज्य से हैं। वो अलग बात है कि मेरा जन्म और मेरी परवरिश उत्तरी-भारत में हुई। फिर भी वंशावली के नाते, केरल से मेरे सम्बन्ध सदैव रहे।
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केरल को भारत में 'देवों के देश' के नाम से जाना जाता है। उसके कई सारे कारण हो सकते हैं - एक तो यह कि केरल प्राकृतिक रूप से एक अत्यंत सुन्दर भूमि है - हमारे लाख दुष्प्रयत्नों के बाद भी यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता अभी भी लगभग वैसी ही है जैसी की लगभग एक सहस्त्र वर्ष पहले रही होगी। सहस्त्रों वर्षों से विभिन्न मानव जातियाँ केरल आती रहीं, और मिलती रहीं। द्रविड़, सीरिआई, आर्य, अरबी और ऐसी ही कई प्रकार की मानव जातियाँ यहाँ आईं और मिलती रहीं। और इसी मिश्रित परम्पराओं से उपजी है केरल की अत्यंत संपन्न संस्कृति!
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खैर, भावनाओं की रौ में बहने से पहले मैं अब कुछ अपने और अपने परिवार के बारे में बता देता हूँ। मेरे परिवार में बस हम तीन लोग ही हैं। मैं, मेरी माँ और मेरे पिता।
मेरे पिता, मेरी माँ से करीब दस साल बड़े हैं – उनका विवाह कोई प्रेम विवाह नहीं था, बल्कि उनके माता-पिता द्वारा तय किया हुआ विवाह था। उन दिनों लड़कियों की शादी बहुत जल्दी हो जाती थी।
उस लिहाज़ से माँ का विवाह होने में कुछ देर हो गई। उसी जल्दबाज़ी में जो भी पहला, बढ़िया वर मिल पाया, उसी से माँ को ब्याह दिया गया। उन दोनों के विवाह का एक ही कारण था, और वो था मेरे पिता की सरकारी नौकरी!
वो अलग बात है कि बाद में मालूम पड़ा कि वो एक अच्छे इंसान भी हैं। विवाह के बाद उन्होंने माँ को काफी प्रोत्साहन दिया, जिसके कारण उन्होंने मुझे जन्म देने के बाद स्वयं भी नौकरी करना आरम्भ कर दिया। आगे की पढ़ाई नहीं करी लेकिन एक बैंक में माँ क्लर्क का काम करती थीं। पिता जी तब तक सिंचाई विभाग में अधिवीक्षक बन गए थे। उन दोनों की ही नौकरियाँ उत्तर-भारत में थीं। और सरकारी नौकरी होने के बावजूद उनका ज्यादातर समय अपने अपने कार्य में ही बीतता था।
मैं बचपन से ही काफी जीवंत था। मेरा पूरा समय इधर उधर भागने दौड़ने, और खेलने में ही बीत जाता था। और मेरी ऊर्जा का मुकाबला न तो मेरे पिता ही कर पाते थे, और न ही मेरी माता। समय से बहुत पहले ही बूढ़े हो गए थे दोनों। मेरे जन्म के समय माँ के शरीर में कुछ जटिलता उत्पन्न हो गई थी, इसलिए उनको और संताने नहीं हो सकीं - अन्यथा उन दिनों सिर्फ एक संतान का चलन नहीं था। बच्चों की एक पूरी लड़ी लग जाती थी। खैर, काम के बोझ से मेरे माता पिता दोनों ही थके हुए और चिड़चिड़े से रहते थे। इसलिए मेरे साथ बहुत समय नहीं बिता पाते थे। और फिर जैसे जैसे मेरी उम्र बढ़ी, वैसे वैसे हमारे बीच दूरियाँ बढ़ती गईं। ऐसा नहीं है कि मैं उनका आदर नहीं करता था, या फिर वो मुझसे प्रेम नहीं करते थे।
मैं उनका आदर भी करता था, और वो मुझसे प्रेम भी करते थे। बस हमारे बीच में यह दिक्कत थी कि हम एक दूसरे से अपनी भावनाएं खुल कर नहीं कह पाते थे। इन सब बातों का मुझ पर असर यह हुआ कि मैं अपने शुरूआती जीवन के बाद, बहुत जल्दी ही आत्म-निर्भर हो गया। अपना सब काम, और घर के कुछ काम मैं कर लेता था। इस कारण से आज़ाद ख़याली भी काफ़ी हो गई थी, और उसके कारण मेरी सोच भी भेड़-चाल से भिन्न विकसित होती गई। पढ़ाई लिखाई में मैं साधारण ही था। न तेज़, न फिसड्डी। कुछ एक बार एकाध विषयों में फ़ेल होते होते बचा था। लेकिन पूरा फ़ेल कभी नहीं!