17-07-2021, 12:07 AM
दोस्तों,
आज मैं जो ये कहानी लिख रहा हूँ यह कहानी नहीं बल्कि पूरी सच्चाई हैं, मुझे और सभी की तरह पोर्न मूवी देखने-पढ़ने का बहुत शौक हैं,और सभी तरह की पोर्न मूवी मझे पसंद हैं पर उन सबमें मैं पिसींग व टाॅयलेट स्केट मूवी ज्यादा पसंद करता हूँ । जिसमें औरत मालकिन का रोल अदा करती है व आदमी को गुलाम बना कर उसे टाॅर्चर करती हैं और फिर उसके साथ स्केट सेक्स करती हैं यानि उसे अपनी पेशाब पीने को मजबूर करती हैं व उसके मुंह पर बैठ कर अपनी टट्टी का स्वाद भी चखाती हैं।यह सब देखकर मुझे भी यह करने का मन करता था कि कोई औरत मेरे साथ ऐसा सब कुछ करे,लेकिन हमारे देश में आम तौर पर कोई भी औरत ये सब करना पसंद नहीं करती हैं,इसलिए मैं ऐसे सेक्सi के सपने देखता रहता था और ऐसा ही कोई मौका ढूंढ रहा था।
मेरे आफिस में एक कामवाली आती हैं जोकि पूरे आफिस की सफाई के साथ साथ चाय पानी भी पिलाती हैं ।
उसकी उम्र कोई पच्चीस बरस की होगी, उसका रंग तो काला हैं लेकिन उसके फिचर्स बेहद आकर्षक है व शरीर बेहद सुगठित।
शादीशुदा हैं लेकिन पति शराबी हैं व उसे मारता पिटता हैं इसलिए वह उससे अलग अपने माता पिता के साथ रहतीं हैं एवं जीविका के लिए नौकरी करती हैं ।
कई बार मैं आफिस किसी काम से जल्दी चला जाता तो वो मेरा चैम्बर साफ करती हुई मिलती,तो मैं सफाई होने तक वहीं खडा हो के इन्तजार कर लेता।
कईं बार मैंने उसे जब झुक कर झाडू लगाते हुए देखा तो उसके ब्लाउज में से उसके दो गोले बाहर की ओर झांक रहे थे व बाहर निकलने को बेताब थे।ये देख कर मेरा लंड फनफनाने लगता ।लेकिन शुरू में जैसे ही शीला की नजर मुझसे मिलती वो शरम के मारे नजर नीची कर लेती,व साड़ी का पल्लू उपर कर लेती।बाद में उसे भी समझ में आ गया कि मै क्या चाहता हूँ ।एक बार मौका मिला जब मेरे घर पर मै अकेला था,बीबी बच्चों के साथ माइके गयी हुई थी।मौका पाकर मैने उससे बात करने की सोची।
अगले ही दिन मैं सुबह जल्दी से तैयार हो कर आफिस पहुँच गया,तब शीला मेरे चैम्बर में झाडू ही लगा रही थी...
मुझे जल्दी आया देख थोड़ी सकपकायी फिर नार्मल हो कर अपना काम करने लगी।जब वो झुक कर झाडू लगा रही थी तो मैं उसके ब्लाउज में से झांकते हुए गोलों को निहार रहा था।अचानक उसकी नज़र मेरी नज़र से मिली,शायद वो मेरी मंशा ताड़ चुकी थी।वह अबकी बार नीची गरदन करके साड़ी का पल्लू मुंह पर रख के हल्के से मुस्कराने लगी।....
अब तो मेरी बल्ले बल्ले हो गई।मुझे तो ग्रीन सिग्नल मिल चुका था।मैने तुरंत एक पांच सौ का नोट निकाला और बोला
"शीला ये रख लो,काफी दिनों से तुम्हें कुछ नहीं दिया...जाते वक्त घर के लिए मिठाई लेती जाना।"
........"जी साहब,"
शीला ने हाथ बढा कर मुस्कुराते हुए रूपये ले लिए।
"और हां,मेरे घर पे भी कुछ काम पड़ा हैं,उसे करोगी ?"
"आओगी क्या?" मैंने इस उम्मीद से पूछा कि वो जरूर हाँ कह देगी।
"आप जब बुलाएंगे तब आ जाउंगी" शीला ने नीची निगाह किये हुए मुस्कुराते हुए कहा।
वो ताड़ चुकी थी कि मेरी मंशा क्या है, लेकिन शायद उसकी भी कुछ जरूरतें थी और वो भी उन्हें पूरा करना चाहती थी।
वो अभी भी नीची निगाह किये हुए मुस्कुरा रही थी व अपना काम करती जा रही थी।
मैंने लाईन क्लियर देख कर बनावटी अंदाज़ में बोला "ठीक है शीला वैसे तो मेरे घर से सारे लोग बाहर गये हुए हैं,पर तुम कभी भी आ सकती हो,"
फिर थोड़ा रूक कर उसे टटोलते हुए अर्थपूर्ण अंदाज़ में बोला..."और हो सके तो आज ही आफिस छूटने के बाद आ जाना क्योंकि वैसे तो दिन में टाइम मिलेगा नहीं।"
अब उसके मन में सारा पिक्चर क्लियर हो चुका था...वो भी बनावटी अंदाज़ में बोली.."नहीं साहब आज नहीं.."
"क्यों ?" मैंने पूछा।
वो क्या है साहब कि आज...कहते कहते रूक गयी।
मैंने थोड़ा और नजदीक आकर पूछा.."आज क्या...?
वो भी यह जताते हुए कि उसे मेरी मंशा समझ आ चुकी थी धीरे से शरमा के बोली.."वो क्या है साहब कि आज मैं एम..सी में हूँ।"
व्वाऊ...करंट लगा मुझे...अब तो संशय की कोई गुंजाइश ही नहीं बची.....ये तो सब समझ चुकी हैं और
मामला साफ हैं।
"तो फिर कल आ जाना"मैंने उतावले स्वर में कहा।" उसने तुरंत ही हाँ मे सिर हिला दिया और नीची निगाह करके मुस्कुराने लगी।
अब क्या था....मैं तुरंत आफिस से बाहर निकल आया व अपने आप को नार्मल दिखाते हुए कुछ फाइलों को उलट पलट कर देखने का नाटक करने लगा।
तब तक स्टाफ के लोग आना शुरू हो गए थे।
शेष अगली किस्त में ....क्रमशः
आज मैं जो ये कहानी लिख रहा हूँ यह कहानी नहीं बल्कि पूरी सच्चाई हैं, मुझे और सभी की तरह पोर्न मूवी देखने-पढ़ने का बहुत शौक हैं,और सभी तरह की पोर्न मूवी मझे पसंद हैं पर उन सबमें मैं पिसींग व टाॅयलेट स्केट मूवी ज्यादा पसंद करता हूँ । जिसमें औरत मालकिन का रोल अदा करती है व आदमी को गुलाम बना कर उसे टाॅर्चर करती हैं और फिर उसके साथ स्केट सेक्स करती हैं यानि उसे अपनी पेशाब पीने को मजबूर करती हैं व उसके मुंह पर बैठ कर अपनी टट्टी का स्वाद भी चखाती हैं।यह सब देखकर मुझे भी यह करने का मन करता था कि कोई औरत मेरे साथ ऐसा सब कुछ करे,लेकिन हमारे देश में आम तौर पर कोई भी औरत ये सब करना पसंद नहीं करती हैं,इसलिए मैं ऐसे सेक्सi के सपने देखता रहता था और ऐसा ही कोई मौका ढूंढ रहा था।
मेरे आफिस में एक कामवाली आती हैं जोकि पूरे आफिस की सफाई के साथ साथ चाय पानी भी पिलाती हैं ।
उसकी उम्र कोई पच्चीस बरस की होगी, उसका रंग तो काला हैं लेकिन उसके फिचर्स बेहद आकर्षक है व शरीर बेहद सुगठित।
शादीशुदा हैं लेकिन पति शराबी हैं व उसे मारता पिटता हैं इसलिए वह उससे अलग अपने माता पिता के साथ रहतीं हैं एवं जीविका के लिए नौकरी करती हैं ।
कई बार मैं आफिस किसी काम से जल्दी चला जाता तो वो मेरा चैम्बर साफ करती हुई मिलती,तो मैं सफाई होने तक वहीं खडा हो के इन्तजार कर लेता।
कईं बार मैंने उसे जब झुक कर झाडू लगाते हुए देखा तो उसके ब्लाउज में से उसके दो गोले बाहर की ओर झांक रहे थे व बाहर निकलने को बेताब थे।ये देख कर मेरा लंड फनफनाने लगता ।लेकिन शुरू में जैसे ही शीला की नजर मुझसे मिलती वो शरम के मारे नजर नीची कर लेती,व साड़ी का पल्लू उपर कर लेती।बाद में उसे भी समझ में आ गया कि मै क्या चाहता हूँ ।एक बार मौका मिला जब मेरे घर पर मै अकेला था,बीबी बच्चों के साथ माइके गयी हुई थी।मौका पाकर मैने उससे बात करने की सोची।
अगले ही दिन मैं सुबह जल्दी से तैयार हो कर आफिस पहुँच गया,तब शीला मेरे चैम्बर में झाडू ही लगा रही थी...
मुझे जल्दी आया देख थोड़ी सकपकायी फिर नार्मल हो कर अपना काम करने लगी।जब वो झुक कर झाडू लगा रही थी तो मैं उसके ब्लाउज में से झांकते हुए गोलों को निहार रहा था।अचानक उसकी नज़र मेरी नज़र से मिली,शायद वो मेरी मंशा ताड़ चुकी थी।वह अबकी बार नीची गरदन करके साड़ी का पल्लू मुंह पर रख के हल्के से मुस्कराने लगी।....
अब तो मेरी बल्ले बल्ले हो गई।मुझे तो ग्रीन सिग्नल मिल चुका था।मैने तुरंत एक पांच सौ का नोट निकाला और बोला
"शीला ये रख लो,काफी दिनों से तुम्हें कुछ नहीं दिया...जाते वक्त घर के लिए मिठाई लेती जाना।"
........"जी साहब,"
शीला ने हाथ बढा कर मुस्कुराते हुए रूपये ले लिए।
"और हां,मेरे घर पे भी कुछ काम पड़ा हैं,उसे करोगी ?"
"आओगी क्या?" मैंने इस उम्मीद से पूछा कि वो जरूर हाँ कह देगी।
"आप जब बुलाएंगे तब आ जाउंगी" शीला ने नीची निगाह किये हुए मुस्कुराते हुए कहा।
वो ताड़ चुकी थी कि मेरी मंशा क्या है, लेकिन शायद उसकी भी कुछ जरूरतें थी और वो भी उन्हें पूरा करना चाहती थी।
वो अभी भी नीची निगाह किये हुए मुस्कुरा रही थी व अपना काम करती जा रही थी।
मैंने लाईन क्लियर देख कर बनावटी अंदाज़ में बोला "ठीक है शीला वैसे तो मेरे घर से सारे लोग बाहर गये हुए हैं,पर तुम कभी भी आ सकती हो,"
फिर थोड़ा रूक कर उसे टटोलते हुए अर्थपूर्ण अंदाज़ में बोला..."और हो सके तो आज ही आफिस छूटने के बाद आ जाना क्योंकि वैसे तो दिन में टाइम मिलेगा नहीं।"
अब उसके मन में सारा पिक्चर क्लियर हो चुका था...वो भी बनावटी अंदाज़ में बोली.."नहीं साहब आज नहीं.."
"क्यों ?" मैंने पूछा।
वो क्या है साहब कि आज...कहते कहते रूक गयी।
मैंने थोड़ा और नजदीक आकर पूछा.."आज क्या...?
वो भी यह जताते हुए कि उसे मेरी मंशा समझ आ चुकी थी धीरे से शरमा के बोली.."वो क्या है साहब कि आज मैं एम..सी में हूँ।"
व्वाऊ...करंट लगा मुझे...अब तो संशय की कोई गुंजाइश ही नहीं बची.....ये तो सब समझ चुकी हैं और
मामला साफ हैं।
"तो फिर कल आ जाना"मैंने उतावले स्वर में कहा।" उसने तुरंत ही हाँ मे सिर हिला दिया और नीची निगाह करके मुस्कुराने लगी।
अब क्या था....मैं तुरंत आफिस से बाहर निकल आया व अपने आप को नार्मल दिखाते हुए कुछ फाइलों को उलट पलट कर देखने का नाटक करने लगा।
तब तक स्टाफ के लोग आना शुरू हो गए थे।
शेष अगली किस्त में ....क्रमशः