14-07-2021, 04:34 PM
शशांक, जो आमतौर पर दूसरी बार जल्दी किसी होटल में नहीं जाते थे, सप्ताह में कम से कम दो या तीन बार स्वाद स्नैक्स सेंटर जरूर आ रहे थे। उनके पास अनुसूचित कार्यक्रम के लिए ८.३० पी.m के आसपास आना था, केंद्र की मालकिन के साथ मेनू पर एक पकवान पर चर्चा, घर जाओ और अगली बार काम करने के लिए जब उसके पेट और मन भरा हुआ था मिलता है । पूरे दिन काम करने के बाद उन्होंने रात में सेंटर के मालिक से बात की-शिल्पा की भाभी-और वह हमेशा फ्रेश महसूस करते थे । शिल्पा उसे काफी एनर्जी देती थीं, उनकी भाभी की शक्ल, व्यवहार, भाषण, सब कुछ । हालांकि ये दोनों काफी उपयोगी और चंद मिनटों के पुराने थे, लेकिन शशांक ऐसा चाहते थे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.