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Misc. Erotica आशा...
#19
भाग ३): सरेंडर


‘ओह नहीं----नहीं--- ये क्या कह रहे हैं आप ?? नहीं सर--- मैं ऐसी वैसी नहीं हूँ--- मुझे जॉब चाहिए---- पर मैं कोई ऐसी वैसी औरत नहीं हूँ--- माफ़ कीजिए--- मुझसे न हो पाएगा----|’


‘कूल डाउन आशा--- मैंने बस तुम्हें ऐसा ऑफर किया है---इसका मतलब ये नहीं की तुम्हें ऐसा कुछ करना ही है---ऐसा नहीं की तुम अगर न करोगी तो तुम्हें जॉब नहीं मिलेगी--- मिलेगी, पर प्रमोशन नहीं—---इंसेंटिव नहीं ---- एक्सटेंडेड हॉलीडेज नहीं ---- और भी कई चीज़ें हैं जो तुम्हें नहीं मिलेंगी--- ’


आशा ने बीच में ही टोकते हुए पूछा,


‘पर मैं ही क्यों ? अभी अभी आपने कहा था की एक शर्त पर हाँ करने से ही मुझे जॉब मिलेगी----और तो और मैंने आज ही आपसे मुलाकात की और आज ही आप मुझे ऐसा ऑफर कर रहे हैं—क्यों??’


अविश्वास से भरे उसके कंठस्वर बरबस ही ऊँचे हो चले थे--- और ऊँचे आवाज़ में कोई रणधीर बाबू से बात करे ---- ये रणधीर बाबू को बिल्कुल पसंद नहीं था |


‘लो योर वोइस डाउन आशा--- मुझे ऊँची आवाज़ बिल्कुल पसंद नहीं---हाँ--- मैंने कहा है की इस एक शर्त को मान लेने पर तुम्हें जॉब मिल जाएगी--- क्या--- क्यों--- कैसे--- ये सब घर जा कर सोचना--- और अगर शर्त मंज़ूर हो, तो तीन दिन बाद, ****** हाई कॉलेज में 11:00 – 1:00 के बीच आ कर मिलना--- ओके?? नाउ यू मे गो----| ’


आशा को अब तक बहुत तेज़ गुस्सा भी आने लगा था ------


गुस्से से नथुने फूल-सिकुड़ रहे थे ------- |


गुस्से में ही वह उठने को हुई की एकाएक उसकी नज़र अपने जिस्म के ऊपरी हिस्से पर गई ----- पल्ला अपने स्थान से हटा हुआ था ---- और दाईं चूची का ऊपरी हिस्सा गोल हो कर हद से अधिक बाहर की ओर निकला हुआ था --- |


गुस्से को एक पल के लिए भूल, स्त्री सुलभ लज्जा से आशा ने झट से अपनी आँचल को ठीक किया---- ठीक करते समय उसने तिरछी नज़र से रणधीर बाबू की ओर देखा ---- रणधीर बाबू एकटक दृष्टि से उसके वक्षों की ओर ही नज़र जमाए हुए हैं ---- रणधीर बाबू की नज़रों में नर्म गदराए मांस पिंडों को पाने की बेइंतहाँ ललक और प्रतिक्षण उनके चेहरे पर आते जाते वासना के बादल को देख पल भर में दो वैचारिक प्रतिक्रियाएं हुईं आशा के मन में-----


एक तो वह एक बार फ़िर अपनी ही खूबसूरत शारीरिक गठन और ख़ूबसूरती पर; होंठों के कोने पर कुटिल मुस्कान लिए, गर्व कर बैठी -----


दूसरा, अभी इस गर्वीले क्षण का वो आनंद ले; उससे पहले ही उसे रणधीर बाबू के द्वारा दिए गए शर्त वाली बात याद आ गई और याद आते ही उसका मन कड़वाहट से भर गया |


वह तेज़ी से उठी; नीर को साथ ली और पैर पटकते हुए चली गई---- बाहर निकलने से पहले एकबार के लिए वह ज़रा सा सिर घूमा कर पीछे देखी--- रणधीर बाबू बड़ी हसरत से उसकी गोल, उभरे हुए नितम्बों को देख रहा था---- चेहरे और आँखों से ऐसा लगा मानो रणधीर बाबू साँस लेना तक भूल गए हैं------


एकटक---


एक दृष्टि----


अपलक भाव से देखते हुए----


----------


खिड़की के पास बैठी आशा दूर क्षितिज तक देख रही थी; कॉफ़ी पीते हुए------ उसकी माँ नीर को ले कर बगल में कहीं गई हुई थी----- आशा के पिताजी भी रोज़ की तरह ही अपने रिटायर्ड दोस्तों से मिलने शाम को निकल जाया करते थे--- खुद भी रिटायर्ड और दोस्त भी ----- मस्त महफ़िल जमती थी सबकी |


घर में अकेली आशा--- ‘सिरररप सिरररप’ से कॉफ़ी की चुस्कियाँ ले रही और किसी गहरी सोच में डूबी; गोते लगा रही है ----


‘क्या करूँ.. ऐसी बेहूदगी भरा ऑफर... पिता के उम्र के होकर भी शर्म नहीं आई उन्हें..’


मन घृणा से भरा हुआ था उसका |


सोच रही थी,


‘कैसी विचित्र दुनिया है--- थोड़ी हमदर्दी के बदले क्या क्या नहीं माँगा जाता--- अब तो सवाल ही नहीं उठता की मैं उसके पास जाऊँ--- कितना नीच है--- साला..’


‘साला’ शब्द मन में आते ही सिर को दो-तीन झटके देकर हिलाई---- हे भगवान ! ये क्या अनाप शनाप बोल रही हूँ मन ही मन---- उफ्फ्फ़--- इस आदमी ने तो मूड और दिमाग के साथ साथ मन को भी मैला कर दिया है----धत |


कप प्लेट धो कर रख देने के बाद घर के दूसरे कामों में लग गई आशा; रणधीर बाबू की बातों को लगभग भूल ही चुकी थी वह—


अचानक से उसका ध्यान टेबल पर रखे तीन-चार एप्लीकेशन फॉर्म्स पर गया--- कॉलेज एडमिशन फॉर्म्स थे वह सब--- नीर के लिए--- पर कॉलेजों की फ़ीस इतनी ज़्यादा थी कि आशा की हिम्मत ही जवाब दे गई थी--- हालाँकि उसके पापा के पास पैसे तो बहुत हैं और देने के लिए भी राज़ी थे पर आशा को यह पसंद नहीं था कि उसके रिटायर्ड पापा उसके बेटे के कॉलेज के खर्चों का निर्वहन करें |


उन फॉर्म्स को हाथों में लिए सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई--- नीर को किसी बढ़िया कॉलेज में एडमिशन कराने की इच्छा एकबार फिर से हिलोरें मार कर मन की सीमाओं से पार जाने लगीं----अच्छे अच्छे यूनिफार्म पहना कर कॉलेज भेजने की--- रोज़ स्वादिष्ट टिफ़िन बना कर नीर का लंच बॉक्स तैयार करने की--- उसे बस स्टॉप तक छोड़ने जाना या फ़िर हो सके तो ख़ुद ही कॉलेज ले जाना और ले आना ; ये सभी पहले दम तोड़ चुकीं हसरतें एकबार फ़िर से मानो जिंदा होने लगीं |


उन्हीं फॉर्म्स में से एक फॉर्म पर नज़र ठिठकी उसकी;


फॉर्म के टॉप पर एक नाम लिखा हुआ/ प्रिंट था;


************************** कॉलेज |


थोड़ी बहुत बदलाव के साथ लगभग इस नाम के दो कॉलेज हैं पूरे शहर में और दोनों ही सिर्फ़ एक ही आदमी के थे---


‘रणधीर सिन्हा--- उर्फ़--- रणधीर बाबू |’


एकेडमिक के हिसाब से दोनों ही कॉलेज बहुत ही अच्छे हैं और नीर के लिए भी बहुत ही अच्छे रहेंगे ये कॉलेज--- पर;


पर,


एडमिशन और एकेडमिक फ़ीस में तो बहुत खर्चा है---


सिर पे हाथ रख कुर्सी पर पीठ सटा कर बैठ गई ----


कुछ ही मिनटों बाद अचानक से सीधी हो कर बैठ गई---


‘कुछ भी हो, मैं नीर का एडमिशन और पढ़ाई एक अच्छे कॉलेज से करा कर ही रहूँगी--- (एक फॉर्म को उठाकर देखते हुए)---- जॉब भी और एडमिशन भी--- |’


इतना बड़बड़ाने के तुरंत बाद ही,


आशा के---


दोनों आँखों से लगातार चार बूँद आँसू गिरे---


चेहरा थोड़ा कठोर हो चला उसका---


कुछ ठान लिया उसने---


अपने हैण्डबैग से एक पेन निकाल लाई और फटाफट फॉर्म भरने लगी---


स्पष्टतः उसने एक ऐसा निर्णय ले लिया था जो आगे उसकी ज़िंदगी को बहुत हद तक बदल देने वाला था ---|


----------------------


अगले ही दिन,


नहा धो कर, अच्छे से तैयार हो ; माँ बाबूजी का आशीर्वाद ले ऑटो से सीधे ****************** कॉलेज जा पहुँची ---- अर्थात रणधीर बाबू का कॉलेज--- |


रजिस्टर में नाम, पता और आने का उद्देश्य लिखने के बाद पेरेंट्स कम गेस्ट्स वेटिंग रूम में करीब आधा घंटा इंतज़ार करना पड़ा आशा को |


पियून आया और,


‘साहब बुला रहे हैं’


कह कर कमरे से बाहर चला गया |


सोफ़ा चेयर के दोनों आर्मरेस्ट पर अपने दोनों हाथ टिकाए सीधी बैठ,


एक लंबी साँस छोड़ी और उतनी ही लंबी साँस ली आशा ने –


फ़िर सीधी उठ खड़ी हुई और सधी चाल से उस कमरे से बाहर निकली--- उसको इस बात की ज़रा सी भी भनक नहीं लगी कि उस कमरे में ही दीवारों के ऊपर लगे दो छोटे सीसीटीवी कैमरों से उस पर नज़र रखी जा रही थी ----|


भनक लगती भी तो कैसे, पूरे समय किन्हीं और ख्यालों में खोई रही वह |


पियून उसे लेकर सीढ़ियों से होता हुआ, एक लम्बी गैलरी पार कर एक कमरे के बंद दरवाज़े के ठीक सामने पहुँचा--- बगल दीवार में लगी एक छोटी सी कॉल बेल नुमा एक बेल को बजाया--- २ सेकंड में ही अन्दर से एक मीठी सी बेल बजने की आवाज़ आई--- अब पियून ने दरवाज़े को हल्का धक्का दिया और दरवाज़ा को पूरा खोल कर ख़ुद साइड में खड़ा हो गया और अपने बाएँ हाथ से अन्दर की तरफ़ इशारा कर आशा से मौन अनुरोध किया; अंदर आने को --- आशा कंपकंपाए होंठ और काँपते पैरों से अन्दर प्रविष्ट हुई--- मन में किसी अनहोनी या कोई अनजाने डर को पाले हुई थी |


अन्दर एक बड़ी सी मेज़ की दूसरी तरफ़, रणधीर बाबू एक फ़ाइल को पढ़ने में डूबा हुआ था;


पियून ने एकबार बड़े अदब से ‘सर’ कहा---


फ़ाइल में घुसा रणधीर ने बिना सिर उठाए ही ‘म्मम्मम; हम्म्म्म..’ कहा---


आशा चेहरे पर शंकित भाव लिए सिर घुमा कर पीछे पियून की ओर देखा—पियून भी सिर्फ़ आशा को देखा और कंधे उचकाकर इशारे में ये बताने की कोशिश किया कि वह इससे ज़्यादा कुछ नहीं कर सकता है |


तब आशा ने ही अपने नर्वसनेस पर थोड़ा काबू पाते हुए अपनी आवाज़ को थोड़ा सख्त और ऊँचा करते हुए कहा,


‘ग... गुड मोर्निंग सर...|’


इस बार रणधीर ने फ़ाइल हाथों में लिए ही आँखें ज़रा सा ऊपर किया--- करीब ५-६ सेकंड्स आशा की ओर अपने गोल सुनहरे फ्रेम से देखता रहा--- आँखों पर जैसे उसे भरोसा ही नहीं हो रहा हो--- उसकी ड्रीमलेडी उसके सामने खड़ी है आज---अभी--- वो ड्रीमलेडी जो कुछ दिन पहले ही उसके घर से गुस्से से निकल आई थी उसका ऑफर सुनकर--- जिसके बारे में इतने दिनों से सोच सोच कर, तन जाने वाले अपने बूढ़े लंड को मुठ मार कर शांत करता आ रहा है--- आशा को सिर्फ़ सोचने भर से ही उसका बूढा लंड न जाने कैसे खुद ही, अभी अभी जवानी के दहलीज पर पाँव रखने वाले किसी टीनएजेर के लंड के माफ़िक टनटना कर, रणधीर बाबू के पैंट हो या लुंगी, उसके अंदर आगे की ओर तन जाया करता है --- सख्त - फूला – फनफनाता हुआ--- साँस लेने के लिए रणधीर बाबू के पैंट या लुंगी के अंदर से निकल आने को बेताब सा हो छटपटाने सा लगता लंड ऐसे पेश आता जैसे की उस समय अगर कोई भी महिला यदि सामने आ जाए तो फ़िर चोद के ही उसका काम तमाम कर दे----|


इसी सनक में रणधीर बाबू ने न जाने इतने ही दिनों में कितनी ही हाई क्लास कॉल गर्ल्स- कॉल वाइव्स – एस्कॉर्ट्स और कितने ही वेश्याओं को रगड़ रगड़ कर चोद चुका था पर वो सुख नहीं मिलता जो उसे आशा के नंगे जिस्म को कल्पना मात्र करते हुए मुठ मारने में मिल रहा था ---


और आज वही स्वप्नपरी उसके सामने उसी के ऑफिस में खड़ी है !


रणधीर के चश्मे का ग्लास हलके ब्राउन रंग का था और कुछ दूरी पर खड़ा कोई भी शख्स इस बात को कन्फर्म कभी नहीं कर सकता कि रणधीर अगर उसे देख रहा है तो एक्सेक्ट्ली उसकी नज़रें हैं कहाँ ......


और यही हुआ आशा के साथ भी----


वो बेचारी ये सोच रही है की रणधीर उसे देख रहा है पर वास्तव में रणधीर की नज़रें सिर्फ़ और सिर्फ़ आशा के सामने की ओर उभर कर तने विशाल पुष्ट चूचियों पर अटकी हुई हैं |


फ़ाइल के एक कागज़ को उसने इस तरह से भींच लिया मानो वो कागज़ न होकर आशा की पुष्ट नर्म गदराई चूचियों में से एक हो----


खैर,


ख़ुद को तुरंत सँभालते हुए रणधीर बाबू ने अपना गला खंखारा और बोला,


‘अरे! इतने दिन बाद... प्लीज हैव ए सीट...’


बड़ी होशियारी से रणधीर बाबू ने आशा का नाम नहीं लिया क्योंकि अगर उसने नाम लिया होता तो ‘आशा जी’ कह कर संबोधित करना पड़ता जोकि उसे पसंद नहीं था क्योंकि आशा ने पहले अपने तेवर दिखाते हुए उसे ‘ना’ कर चुकी थी और अगर उसने सिर्फ ‘आशा’ कहा होता तो इससे वहाँ उपस्थित पियून को ये शक हो जाता कि रणधीर इस औरत को पहले से जानता है और ये बात वो पियून दूसरों में फ़ैला देता |


आशा सामने की कुर्सी को सरका के बैठ गई |


पियून जाने जाने को हो रहा था पर जा नहीं रहा देख कर,


रणधीर बाबू ने आँखों के इशारों से पियून को वहाँ से जाने का आदेश दिया |


पियून सलाम ठोक कर चला गया ----


रणधीर ने कुछ देर यूँही मुस्करा कर, चेहरे पर रौनक वाली हँसी लिए आशा के साथ इधर उधर की फोर्मालिटी वाली बातें करता रहा; पहुँचा हुआ खिलाड़ी है वह ऐसे खेलों में--- अच्छे से जानता है की आशा अभी घबराई हुई है और अगर अचानक से ऐसी वैसी कोई बात छेड़ी जाए तो बात शायद बिगड़ जाए--- हालाँकि कोई माई का लाल है नहीं जो रणधीर बाबू से पंगा ले ले --- रही बात कॉलेज के लेडी टीचर्स की तो; जितनी भी लेडी टीचर्स हैं--- सब की सब रणधीर बाबू के बिस्तर तक का सफ़र कर चुकी हैं |


आशा ने तिरछि नज़रों और कनखियों से पूरे रूम का जल्दी से मुआयना किया---


आलिशान रूम है रणधीर बाबू का....


चारों ओर सुन्दर नक्काशी वाले मार्बल्स, ग्लास के प्लेट्स, खिड़की पर सुन्दर गमलों में मनी प्लांट्स और ऐसे ही दूसरे प्लांट्स की मौजूदगी, कमरे में फ़ैली एक मीठी भीनी सी सुगंध... सब मिलकर माहौल को एक अलग ही ढंग दे रहे हैं |


टेबल पर रखे एक स्टैंड लैंप को ठीक करते हुए आशा की तरफ़ पैनी निगाह डालते हुए रणधीर ने पूछा,


‘सो...., आर यू रेडी??’


‘ऊंह...’


आशा चिंहुकी... रणधीर बाबू की ओर सवालिया नज़रों से देखी और मतलब समझते ही लाज से आँखें झुका ली.....


आदतन, अपने पल्लू को थोड़ा ठीक की वो..


और उसके ऐसा करते ही,


रणधीर बाबू की नज़रें फ़िर से आशा के पुष्ट वक्षस्थल पर जा टिकीं जो पिछले कुछ दिनों से उसके आशा के प्रति आकर्षण का केंद्र बिंदु रहा है ---


रणधीर बाबू के नज़रों का लक्ष्य समझने में देरी नहीं हुई आशा से...


और समझते ही तुरंत और भी ज़्यादा शर्मा गई...


रणधीर की अत्यंत वासना युक्त निगाहें---


और उन निगाहों से अंदर तक नहाती चली जाती आशा का सारा जिस्म का रक्त तो मानो उफ़ान सा मारने लगा--- चेहरे का सारा रक्त जैसे उसके गालों में इकट्ठा हो कर उसके मुखरे को और भी गुलाबी बना रहा था |


पता नहीं कैसे;


पर एक बाप के उम्र के आदमी के द्वारा खुद के यूँ मुआयना किए जाने से अब आशा के तन-मन में कुछ गुदगुदी सी होने लगी--- ख़ुद को ऐसे विचारों से घिरने से रोक तो रही थी अंदर ही अंदर; पर रह रह कर मन में उठने वाली काम-तरंगों पर उसका कोई नियंत्रण रह ही नहीं रहा था |


‘आई सेड, आर यू रेडी... आशा??’ मेज़ पर अपने दोनों कोहनियों को टिका कर आशा की तरफ़ आगे की ओर झुकते हुए रणधीर बाबू ने पूछा |


यूँ तो दोनों के बीच दो हाथ से भी ज़्यादा की दूरी है, फ़िर भी आशा को ऐसा एहसास हुआ की मानो रणधीर बाबू वाकई उसपर झुक गए हैं ---- |


‘ज..ज.. जी सर... आई एम रेडी... |’


‘पूरी बात साफ़ साफ़ बोलो आशा---’


रणधीर बाबू ने अबकी बार थोड़ा कड़क और रौबीले अंदाज़-ओ-आवाज़ में कहा----


शर्म और डर का मिश्रित भाव चेहरे पर लिए, नज़रें नीचे कर बोली,


‘मैं तैयार हूँ आपके हरेक आदेश को बिना शर्त और बिना के रोक टोक के , अक्षरशः पालन करने के लिए...’


‘मैं यहाँ हूँ आशा--- यहाँ--- मेरी तरफ़ देख कर अभी अभी कही गई बातों को दोहराओ..... |’ उसकी ऐसी स्थिति का और अधिक आनंद लेने के लिए रणधीर बाबू ने कहा |


एक साँस छोड़ते हुए आशा रणधीर बाबू की ओर देखी--- और दोहराई---


‘सर, मैं, आशा मुखर्जी, तैयार हूँ आपके हरेक आदेश को बिना शर्त और बिना के रोक टोक के , अक्षरशः पालन करने के लिए... |’


रणधीर मुस्कराया ---


आशा के शर्म और संकोच की दीवार में थोड़ी ही सही, पर आख़िर में एक दरार डाल पाया | पर उसे एक संदेह यह भी है की कुछ ही दिनों पहले गुस्सैल तेवर दिखाने वाली महिला अचानक से आज समर्पण क्यों कर रही है??


ह्म्म्म,


‘कुछ तो गड़बड़ है—‘ वह सोचा


‘आज यहाँ कैसे?’ --- रणधीर ने पूछा |


काँपते लहजे में नर्वस आशा ने उत्तर दिया,


‘सर... दो काम से आई हूँ---- एक, मुझे जॉब के लिए अप्लाई करना है और दूसरा, अपने बेटे का एडमिशन इस कॉलेज में करवाना है--- |’


‘हम्म्म्म, पर उस दिन तो सिर्फ़ जॉब के लिए आई थी?’ चकित रणधीर ने तुरंत सवाल दागा |


‘जी सर, नीर के लिए कोई बढ़िया कॉलेज नहीं मिल रहा और इस कॉलेज का काफ़ी नाम है--- इसलिए सोची की अगर मेरा जॉब और उसका एडमिशन; दोनों एक ही कॉलेज में हो जाए तो बहुत ही अच्छा होगा ---- नज़रों के सामने तो रहेगा --- पढ़ाई और ओवरऑल एक्टिविटीज़ पर ध्यान दे सकूँगी |’


‘उसपे ध्यान देने के चक्कर में कहीं तुम्हारा काम प्रभावित हुआ तो?’ रणधीर ने पूछा |


‘नहीं सर, आई प्रॉमिस--- ऐसा कभी नहीं होगा---- आई कैन वैरी वेल मैनेज इट |’ उतावलेपन पर थोड़ी दृढ़ता से जवाब दिया आशा ने |


‘तुम्हें यहाँ जॉब चाहिए और तुम्हारे बेटे को एडमिशन---- और मेरा क्या??’ इस प्रश्न को अधूरा छोड़ते हुए रणधीर ने आशा की ओर मतलबी निगाहों से देखा |


‘आप जो बोलें सर---’ आशा ने भी अस्पष्ट प्रत्युत्तर दिया |


‘मेरा हर कहना मानोगी?’ रणधीर ने सवाल किया |


‘जी सर... हर कहना मानूँगी’


रणधीर ने ड्रावर से एक सादा कागज़ निकाला और आशा की ओर बढ़ाते हुए कहा,


‘इसमें अपना पूरा नाम, पता, मोबाइल नंबर लिख कर दो और साथ ही यह भी लिख कर दो कि तुम अपने पूरे होशोहवास में मेरा हर कंडीशन स्वीकार कर रही हो और जॉइनिंग के बाद से मेरा हर कहना मानोगी--- जब कहूँ --- जो कहूँ --- जैसा कहूँ --- ’


आशा बिना सोचे कागज़ लपक कर ले ली और पेन निकाल कर वह सब लिख दी जो रणधीर ने लिखने के लिए कहा |


लिखने के बाद कागज़ वापस दी ---


रणधीर कागज़ पर लिखे एक एक शब्द को बड़े ध्यान से पढ़ा और पढ़ने के बाद मुस्कराया—


आशा की ओर देखा और बोला,


‘ह्म्म्म; ओके, पर इंटरव्यू तो देना पड़ेगा तुम्हें--- तैयार हो |’


‘जी सर--’


‘पक्का--??’ रणधीर ने फ़िर सवाल किया


‘जी सर...’ आशा ने वही जवाब दोहराया पर इस बार जवाब कुछ इस लहजे में दी जैसे की उसे थोड़ा बहुत अंदाज़ा हो गया की क्या और कैसा इंटरव्यू होने वाला है |


रणधीर मुस्कराया --- अपने सीट पर ठीक से बैठा और एक हाथ पैंट के ऊपर से ही धीरे धीरे सख्त हो रहे लंड को सहलाया |


‘प्रॉमिस याद है न? और कागज़ पर खुद के लिखे एक एक शब्द?’


‘जी सर....’ आशा झेंपते हुए आँखें नीची करके बोली |


आशा का यह जवाब सुनते ही रणधीर बाबू के चेहरे पर पहले से ही मौजूद मुस्कान अब और अधिक कुटिल और बड़ी हो गई और साथ ही साथ आँखों में टीनएजेर्स जैसी उतावली एक अलग चमक आ गई |


उत्तेजना में लंड को दोबार ज़ोर से रगड़ दिया |


टेलीकॉम पे एक बटन प्रेस कर रिसेप्शन में ऑर्डर दिया,


‘कैंसिल ऑल माय अपॉइंटमेंट्स --- नो गेस्ट्स--- नो पैरेंट्स---- नो पिओंस--- | नोबडी---- ओके? इज़ दैट क्लियर??’


‘यस सर—क्रिस्टल क्लियर--- |’ दूसरी तरफ़ से किसी लड़की की पतली सी आवाज़ आई |


कॉल काट कर आशा की ओर देखा अब रणधीर ने --- होंठों पर वही कुटिल मुस्कान वापस आ गई ---


ज़िप खोला,


लंड निकाला,


और मसलने लगा---- टेबल के नीचे--- और आशा को इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं---- वैसे भी अंदाज़ा का करेगी क्या--- मन से तो वह रणधीर बाबू के आगे 'सरेंडर' कर ही चुकी है--- अब तो बस तन ................. |


‘तो मिस आशा, इंटरव्यू शुरू करते हैं --- !!’ चहकते हुए बोले, रणधीर बाबू |







क्रमशः




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आशा... - by Bhaiya Ji95 - 02-04-2019, 10:37 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 02-04-2019, 10:43 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 02-04-2019, 10:53 PM
RE: आशा... - by shruti.sharma4 - 03-04-2019, 02:43 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 07-04-2019, 03:00 PM
RE: आशा... - by thyroid - 03-04-2019, 01:10 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 07-04-2019, 03:00 PM
RE: आशा... - by Singsonu1415 - 03-04-2019, 01:37 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 07-04-2019, 03:02 PM
RE: आशा... - by rajeshsarhadi - 07-04-2019, 03:17 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 09-04-2019, 08:03 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 09-04-2019, 08:15 AM
RE: आशा... - by rajeshsarhadi - 09-04-2019, 08:51 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 09-04-2019, 08:53 AM
RE: आशा... - by Singsonu1415 - 09-04-2019, 11:39 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 14-04-2019, 08:40 PM
RE: आशा... - by shruti.sharma4 - 09-04-2019, 03:02 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 14-04-2019, 08:42 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 14-04-2019, 08:52 PM
RE: आशा... - by KareenaKapoorLover - 15-04-2019, 01:03 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 16-04-2019, 02:13 PM
RE: आशा... - by Singsonu1415 - 15-04-2019, 08:54 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 16-04-2019, 02:14 PM
RE: आशा... - by rajeshsarhadi - 15-04-2019, 08:57 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 16-04-2019, 02:16 PM
RE: आशा... - by thyroid - 15-04-2019, 11:36 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 16-04-2019, 02:18 PM
RE: आशा... - by shruti.sharma4 - 16-04-2019, 12:52 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 16-04-2019, 02:19 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 21-04-2019, 01:28 PM
RE: आशा... - by thyroid - 21-04-2019, 06:22 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 02-05-2019, 08:39 PM
RE: आशा... - by Singsonu1415 - 22-04-2019, 09:18 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 02-05-2019, 08:39 PM
RE: आशा... - by shruti.sharma4 - 24-04-2019, 10:59 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 02-05-2019, 08:40 PM
RE: आशा... - by besharmboy - 03-05-2019, 06:46 AM
RE: आशा... - by ghost19 - 25-04-2019, 11:51 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 02-05-2019, 08:41 PM
RE: आशा... - by shruti.sharma4 - 30-04-2019, 03:31 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 02-05-2019, 08:43 PM
RE: आशा... - by Theflash - 01-05-2019, 09:47 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 02-05-2019, 08:44 PM
RE: आशा... - by Luckyloda - 03-05-2019, 11:04 AM
RE: आशा... - by besharmboy - 03-05-2019, 04:42 PM
RE: आशा... - by shruti.sharma4 - 10-05-2019, 11:47 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 10-05-2019, 10:27 PM
RE: आशा... - by Singsonu1415 - 11-05-2019, 08:48 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 14-05-2019, 10:28 PM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 14-05-2019, 10:29 PM
RE: आशा... - by bhavna - 15-05-2019, 12:08 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 16-05-2019, 10:20 PM
RE: आशा... - by shruti.sharma4 - 15-05-2019, 01:34 AM
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RE: आशा... - by bhavna - 17-05-2019, 06:56 AM
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RE: आशा... - by shruti.sharma4 - 17-05-2019, 03:24 PM
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RE: आशा... - by Nasheeliaankhein - 17-05-2019, 06:02 PM
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RE: आशा... - by Luckyloda - 18-05-2019, 06:43 AM
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RE: आशा... - by Theflash - 21-05-2019, 12:03 AM
RE: आशा... - by shruti.sharma4 - 21-05-2019, 11:25 AM
RE: आशा... - by kamdev99008 - 24-05-2019, 10:45 PM
RE: आशा... - by Vampire boy - 21-05-2019, 12:28 AM
RE: आशा... - by Bhaiya Ji95 - 31-05-2019, 09:14 PM
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RE: आशा... - by kamdev99008 - 01-06-2019, 01:11 AM
RE: आशा... - by Nasheeliaankhein - 24-06-2019, 02:07 PM
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RE: आशा... - by kamdev99008 - 25-06-2019, 04:16 AM
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RE: आशा... - by kamdev99008 - 05-07-2019, 04:33 PM
RE: आशा... - by asha10783 - 03-07-2019, 03:17 AM
RE: आशा... - by koolme98 - 10-07-2020, 01:09 PM
RE: आशा... - by Really man - 03-10-2020, 03:13 AM
RE: आशा... - by Dark Soul - 25-03-2021, 08:39 PM
RE: आशा... - by bhavna - 26-03-2021, 09:17 AM
RE: आशा... - by Dark Soul - 27-03-2021, 08:28 PM
RE: आशा... - by bhavna - 29-03-2021, 10:52 PM
RE: आशा... - by Dark Soul - 31-03-2021, 10:31 PM
RE: आशा... - by bhavna - 01-04-2021, 12:26 AM
RE: आशा... - by The_Writer - 31-10-2022, 10:05 PM



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