09-07-2021, 11:32 AM
उस रात सब बह गया" भाग-6
रवि शादी के बाद बनारस से ही मुम्बई लौट गया। सरगुन जबलपुर में ही रह गयी, गुड़िया छोटी थी उसे संभालने के लिए मम्मी से बहुत मदद मिल रही थी। तीन महीने बात वो ससुराल गयी ,लेने कोई नहीं आया, सासु मां ने कहा सूरज(सरगुन का देवर) छोटा है । तुम अपने भाई के साथ आ जाओ।
एक बार को तो सरगुन सोच में पड़ गए, सूरज सरगुन से एक साल उम्र में बड़ा था, और गुड्डू(भाई) सरगुन से दो साल छोटा था... खैर भाई के साथ ही सरगुन ससुराल चली गयी, वहां भी एक ताना तो सुनना ही पड़ा शादी में ना आने का। सरगुन लाख सफाई देती रही कि वो आना चाहती थी पर जैसा कि बहु के प्रति लोगों की मानसिकता बन जाती है कि इसने ही बेटे को पट्टी पढ़ाई होगी..... कोई भी सरगुन की बात मानने को तैयार नहीं था।
कुछ दिन ससुराल में रह कर सरगुन मुम्बई आ गयी। यहां भी उसे शुरू में गुड़िया को संभालने मे थोड़ी दिक्कत हुई, रवि कुछ खास मदद नहीं करता था, बस थोड़ी देर सुबह ध्यान रख लेता जिससे सरगुन खाना बना सके, फिर वो ऑफिस निकल जाता और सरगुन इंतजार करती की कब गुड़िया सोये और वो अपना बाकी काम निपटाये।
जैसे -तैसे जिंदगी की गाड़ी चल रही थी, सरगुन को तो लगता जब से शादी हुई है ,सो ही नही पायी कभी चैन से पूरी रात। पहले रवि और अब गुड़िया.... रवि का पीना और देर रात आना,फिर सरगुन से प्यार जताना ,गुड़िया का भी भूख से जग जाना, पूरी रात ऐसे ही निकल जाती, मुश्किल से 2-3 घंटे की नींद मिलती।
ननद (रश्मि)की शादी और देवर(सूरज) के आगे की पढ़ाई के सिलसिले में दिल्ली जाने के बाद सरगुन की सासू माँ अकेली हो गयी थी ,तो उनको मुम्बई ही बुला लिया, गुड़िया(गुनगुन) अब 6 महीने की हो गयी थी ,सासू माँ के आने से सरगुन का भी मन लगने लगा, दोनों गुनगुन में नित नए हो रहे परिवर्तन और शरारतों को देख कर खुश रहती।
उन्हीं दिनों रवि के बचपन के दोस्त सुनील की शादी हुई थी।वो अपनी पत्नी के साथ मुम्बई आया और इनके घर मे ही रुका, एक संडे सबका साथ में लोनावला जाने का प्रोग्राम बना।
नाश्ता कर के निकले, मौसम भी सुहाना साथ दे रहा था, आपस मे हंसी,मजाक और गानों का दौर भी चल रहा था। लोनावला के रास्ते मे भी रुक कर प्रकृति के मनमोहक दृश्य का भी आनंद लिया जा रहा था,चुकी बारिश का मौसम अभी अभी खत्म हुआ था तो जगह जगह पहाड़ से गिरते हुए बड़े - छोटे झरने बहुत सुंदर लग रहे थे। कैमरे में भी इन यादों को कैद किया जा रहा था।
अब दोपहर हो चली ,सबको भूख भी लग रही थी। खंडाला और लोनावला के बीच मे कई रेस्तरां और ढाबे आये ,पर रवि की आदत थी हमेशा की तरह, यही बोलता गया कि और आगे देखते है ,और अच्छा मिल जाएगा।
काफी आगे निकल आये थे ,और ढाई बजे चुका ,सब पेट मे चूहे दौड़ रहे थे,अंततः एक रेस्तरां के आगे गाड़ी रोकी गई ।
खाने के मेनू देख ही रहे थे कि रवि ने वेटर को बुला कर आर्डर देना शुरू किया, दाल, रोटी,बैंगन का भरता.....
भरता सुनते ही संगीता(सुनील की पत्नी) के कहा ,"बैंगन का भरता कौन खायेगा"...
सरगुन बगल में बैठी थी और ये सुना तो रवि को बोलने लगी, "बैंगन का भरता ना मंगा कर कोई और सब्जी मंगा ले"....
सुनते ही रवि का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया, उसने मेनू कार्ड उठाया और सरगुन की तरफ फेका,जिसका कोना सीधा सरगुन की आंख के अंदर सफेद भाग में जा कर लगा, सरगुन दर्द से छटपटा उठी, पर रवि चिल्ला रहा था कि,"इतनी जोर से भूख लग रही है और इनके नखरे ही खत्म नही होते,ये नही खाएंगे,वो नहीं खायेंगे"...
सब स्तब्ध रह गए, कोई कुछ बोला नहीं,सरगुन उठ कर रेस्तरां के बाहर आ गयी और अपने आंसुओं को रोकने का असफल प्रयास करने लगी..... पीछे से सुनीता भी आ गयी," भाभी ,सॉरी मेरे कारण ऐसा हो गया"।
सरगुन ने झट अपने आंसू पोछ लिए और मुस्कुराने की कोशिश की, " अरे,नहीं तुम्हारे कारण कुछ नही हुआ, तुम ऐसा मत सोचो,चलो अंदर चलते हैं, अब दर्द कम है।"
सुनीता ने कहा,"भाभी आपकी आंख के अंदर रेड डॉट हो गया है जैसे खून जम गया हो"।
सरगुन ने कहा ,"कोई बात नही ठीक हो जाएगा थोड़ी देर में चलो,चलें अंदर"।
सासू माँ ने कुछ भी नहीं कहा,वो जानती थी कि कुछ भी कहना रवि को वहां और बखेड़ा खड़ा करना होता।
खाने के बाद लोनावला और खंडाला के अन्य रमणीक स्थल पर भी घूमा गया, सरगुन कितनी भी दुखी क्यों ना हो अंदर से पर चेहरे पर मुस्कान सजाए भरपूर साथ दिया अपने महमानों का।
रात को घूम फिर कर सब लौट आये, पर रवि के मुंह से एक बार भी नहीं निकला कि ,मुझसे गलती हुई या मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। सुनील और सुनीता दो-3 दिन और रहे।
सरगुन ने भी उस बात की नहीं कुरेद फिर से ,जानती थी कोई फायदा नहीं, उल्टा उसे ही और सुनना पड़ जायेगा।जब रवि अपनी माँ पर भी गुस्से में चिल्ला देता है तो उस पर तो उसका पूरा हक है,वो उसकी जागीर जो है।
****
ऑफिस पार्टी अक्सर होती थी जिसमें वो सरगुन को ले कर ही जाता था, पूरी पार्टी खत्म हो जाती ,सब लोग चले जाते बस होस्ट और 5-6 लोग जो बिना फैमिली के आये होते, उनका ड्रिंक्स का दौर चलता रहता ,उनमें रवि शामिल ना हो ऐसा कैसे होता। सरगुन अकेली बैठी रहती, गुनगुन भी नींद से परेशान होती, पर रवि को कुछ नहीं दिखता था ,सरगुन एक दो बार हिम्मत करती बोलने का की गुनगुन परेशान हो रही है,अब घर चलते है, पर रवि सिर्फ इतना ही कहता,"हां, हां चलते हैं ना थोड़ी देर में,तुम उधर बैठो"।
सरगुन के पास कोई चारा नही रहता बैठने रहने के अलावा,क्योंकि ज्यादा बार बोला तो रवि सबके सामने ही उससे बुरी तरह डाँट देगा।
बाद में सरगुन पार्टी में जाने से मना भी करती तो बिगड़ जाता कि, "चलो सबकी फैमिली आती है,होस्ट और सब तुम्हारे बारे में भी पूछेंगे को क्यों नही आई"। सरगुन को जाना ही पड़ता और अंत तक अकेले बैठना पड़ता ।
रवि शादी के बाद बनारस से ही मुम्बई लौट गया। सरगुन जबलपुर में ही रह गयी, गुड़िया छोटी थी उसे संभालने के लिए मम्मी से बहुत मदद मिल रही थी। तीन महीने बात वो ससुराल गयी ,लेने कोई नहीं आया, सासु मां ने कहा सूरज(सरगुन का देवर) छोटा है । तुम अपने भाई के साथ आ जाओ।
एक बार को तो सरगुन सोच में पड़ गए, सूरज सरगुन से एक साल उम्र में बड़ा था, और गुड्डू(भाई) सरगुन से दो साल छोटा था... खैर भाई के साथ ही सरगुन ससुराल चली गयी, वहां भी एक ताना तो सुनना ही पड़ा शादी में ना आने का। सरगुन लाख सफाई देती रही कि वो आना चाहती थी पर जैसा कि बहु के प्रति लोगों की मानसिकता बन जाती है कि इसने ही बेटे को पट्टी पढ़ाई होगी..... कोई भी सरगुन की बात मानने को तैयार नहीं था।
कुछ दिन ससुराल में रह कर सरगुन मुम्बई आ गयी। यहां भी उसे शुरू में गुड़िया को संभालने मे थोड़ी दिक्कत हुई, रवि कुछ खास मदद नहीं करता था, बस थोड़ी देर सुबह ध्यान रख लेता जिससे सरगुन खाना बना सके, फिर वो ऑफिस निकल जाता और सरगुन इंतजार करती की कब गुड़िया सोये और वो अपना बाकी काम निपटाये।
जैसे -तैसे जिंदगी की गाड़ी चल रही थी, सरगुन को तो लगता जब से शादी हुई है ,सो ही नही पायी कभी चैन से पूरी रात। पहले रवि और अब गुड़िया.... रवि का पीना और देर रात आना,फिर सरगुन से प्यार जताना ,गुड़िया का भी भूख से जग जाना, पूरी रात ऐसे ही निकल जाती, मुश्किल से 2-3 घंटे की नींद मिलती।
ननद (रश्मि)की शादी और देवर(सूरज) के आगे की पढ़ाई के सिलसिले में दिल्ली जाने के बाद सरगुन की सासू माँ अकेली हो गयी थी ,तो उनको मुम्बई ही बुला लिया, गुड़िया(गुनगुन) अब 6 महीने की हो गयी थी ,सासू माँ के आने से सरगुन का भी मन लगने लगा, दोनों गुनगुन में नित नए हो रहे परिवर्तन और शरारतों को देख कर खुश रहती।
उन्हीं दिनों रवि के बचपन के दोस्त सुनील की शादी हुई थी।वो अपनी पत्नी के साथ मुम्बई आया और इनके घर मे ही रुका, एक संडे सबका साथ में लोनावला जाने का प्रोग्राम बना।
नाश्ता कर के निकले, मौसम भी सुहाना साथ दे रहा था, आपस मे हंसी,मजाक और गानों का दौर भी चल रहा था। लोनावला के रास्ते मे भी रुक कर प्रकृति के मनमोहक दृश्य का भी आनंद लिया जा रहा था,चुकी बारिश का मौसम अभी अभी खत्म हुआ था तो जगह जगह पहाड़ से गिरते हुए बड़े - छोटे झरने बहुत सुंदर लग रहे थे। कैमरे में भी इन यादों को कैद किया जा रहा था।
अब दोपहर हो चली ,सबको भूख भी लग रही थी। खंडाला और लोनावला के बीच मे कई रेस्तरां और ढाबे आये ,पर रवि की आदत थी हमेशा की तरह, यही बोलता गया कि और आगे देखते है ,और अच्छा मिल जाएगा।
काफी आगे निकल आये थे ,और ढाई बजे चुका ,सब पेट मे चूहे दौड़ रहे थे,अंततः एक रेस्तरां के आगे गाड़ी रोकी गई ।
खाने के मेनू देख ही रहे थे कि रवि ने वेटर को बुला कर आर्डर देना शुरू किया, दाल, रोटी,बैंगन का भरता.....
भरता सुनते ही संगीता(सुनील की पत्नी) के कहा ,"बैंगन का भरता कौन खायेगा"...
सरगुन बगल में बैठी थी और ये सुना तो रवि को बोलने लगी, "बैंगन का भरता ना मंगा कर कोई और सब्जी मंगा ले"....
सुनते ही रवि का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया, उसने मेनू कार्ड उठाया और सरगुन की तरफ फेका,जिसका कोना सीधा सरगुन की आंख के अंदर सफेद भाग में जा कर लगा, सरगुन दर्द से छटपटा उठी, पर रवि चिल्ला रहा था कि,"इतनी जोर से भूख लग रही है और इनके नखरे ही खत्म नही होते,ये नही खाएंगे,वो नहीं खायेंगे"...
सब स्तब्ध रह गए, कोई कुछ बोला नहीं,सरगुन उठ कर रेस्तरां के बाहर आ गयी और अपने आंसुओं को रोकने का असफल प्रयास करने लगी..... पीछे से सुनीता भी आ गयी," भाभी ,सॉरी मेरे कारण ऐसा हो गया"।
सरगुन ने झट अपने आंसू पोछ लिए और मुस्कुराने की कोशिश की, " अरे,नहीं तुम्हारे कारण कुछ नही हुआ, तुम ऐसा मत सोचो,चलो अंदर चलते हैं, अब दर्द कम है।"
सुनीता ने कहा,"भाभी आपकी आंख के अंदर रेड डॉट हो गया है जैसे खून जम गया हो"।
सरगुन ने कहा ,"कोई बात नही ठीक हो जाएगा थोड़ी देर में चलो,चलें अंदर"।
सासू माँ ने कुछ भी नहीं कहा,वो जानती थी कि कुछ भी कहना रवि को वहां और बखेड़ा खड़ा करना होता।
खाने के बाद लोनावला और खंडाला के अन्य रमणीक स्थल पर भी घूमा गया, सरगुन कितनी भी दुखी क्यों ना हो अंदर से पर चेहरे पर मुस्कान सजाए भरपूर साथ दिया अपने महमानों का।
रात को घूम फिर कर सब लौट आये, पर रवि के मुंह से एक बार भी नहीं निकला कि ,मुझसे गलती हुई या मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। सुनील और सुनीता दो-3 दिन और रहे।
सरगुन ने भी उस बात की नहीं कुरेद फिर से ,जानती थी कोई फायदा नहीं, उल्टा उसे ही और सुनना पड़ जायेगा।जब रवि अपनी माँ पर भी गुस्से में चिल्ला देता है तो उस पर तो उसका पूरा हक है,वो उसकी जागीर जो है।
****
ऑफिस पार्टी अक्सर होती थी जिसमें वो सरगुन को ले कर ही जाता था, पूरी पार्टी खत्म हो जाती ,सब लोग चले जाते बस होस्ट और 5-6 लोग जो बिना फैमिली के आये होते, उनका ड्रिंक्स का दौर चलता रहता ,उनमें रवि शामिल ना हो ऐसा कैसे होता। सरगुन अकेली बैठी रहती, गुनगुन भी नींद से परेशान होती, पर रवि को कुछ नहीं दिखता था ,सरगुन एक दो बार हिम्मत करती बोलने का की गुनगुन परेशान हो रही है,अब घर चलते है, पर रवि सिर्फ इतना ही कहता,"हां, हां चलते हैं ना थोड़ी देर में,तुम उधर बैठो"।
सरगुन के पास कोई चारा नही रहता बैठने रहने के अलावा,क्योंकि ज्यादा बार बोला तो रवि सबके सामने ही उससे बुरी तरह डाँट देगा।
बाद में सरगुन पार्टी में जाने से मना भी करती तो बिगड़ जाता कि, "चलो सबकी फैमिली आती है,होस्ट और सब तुम्हारे बारे में भी पूछेंगे को क्यों नही आई"। सरगुन को जाना ही पड़ता और अंत तक अकेले बैठना पड़ता ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.