27-06-2021, 03:29 PM
(This post was last modified: 30-06-2021, 03:00 PM by babasandy. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
अगले दिन मेरी रूपाली दीदी ने एक समाचार पत्र में एक नौकरी का विज्ञापन देखा... वैसे तो नौकरी कोई बहुत अच्छी नहीं थी एक रिसेप्शनिस्ट की जॉब थी... पर कुछ ज्यादा क्वालीफिकेशंस की भी जरूरत नहीं थी इसके लिए.. मेरी दीदी मुझसे और मेरे जीजू से सलाह मशवरा लेकर इस नौकरी के लिए प्रयास करने लगी.. हमारे पूरे परिवार को सख्त जरूरत थी इस नौकरी की.. अगले दिन सोनिया के कॉलेज से आने के बाद मेरी रूपाली दीदी ने मुझे सोनिया और अपनी 3 महीने की छोटी बेटी नूपुर की देखभाल करने की जिम्मेदारी सौंप दी.. उन्होंने अपना दूध एक बोतल में भर के मुझे दे दिया और उन्होंने मुझे हिदायत दी कि जब नूपुर रोने लगे तो उसे दूध पिला देना थोड़ी थोड़ी देर पर.. मेरी रूपाली दीदी सोनिया और नूपुर को मेरे हवाले करके नौकरी की तलाश में बाहर निकल गई.. रास्ता तकरीबन 1 घंटे का था.. मेरी दीदी बस से गई थी..
मेरी रूपाली दीदी वहां पहुंच गई.. वहां पर पहले से ही 100 से भी ज्यादा लोग मौजूद थे जिनमें से सिर्फ दो को नौकरी मिलने वाली थी. सभी लोगों का इंटरव्यू हुआ एक-एक करके.. दोस्तों बताने की जरूरत नहीं है कि उन लोगों ने मेरी रूपाली दीदी को पहली बार में ही अस्वीकार कर दिया.. इस ऑफिस में काम करने के लिए अपना काफी समय व्यतीत करना होगा और मेरी रूपाली दीदी ठहरी दो बच्चों की मां, ऊपर से एक दूध पीती हुई बच्ची.. उन लोगों ने मेरी दीदी का आवेदन अस्वीकार कर दिया पहली नजर में.. मेरी रूपाली दीदी बेहद निराश हो गई थी..
थक हार के मेरी रुपाली दीदी बस स्टॉप की तरफ वापस आ रही थी.. रात के तकरीबन 8:00 बज चुके थे.. अचानक तेज बारिश शुरू हो गई..
मेरी रूपाली दीदी पूरी तरह से भीग गई.. उनके पास तो छाता भी नहीं था.. बारिश के पानी से मेरी बहन गीली हो चुकी थी.. तेज बारिश के कारण सड़क पर बहुत सारा पानी जमा हो चुका था.. लोगों में भगदड़ मची हुई थी.. जो भी बस आ रही थी उसमें पहले से ही काफी भीड़ थी और घुसने की कोई जगह नहीं थी... मेरी रूपाली दीदी भीगी भागी हुई बस स्टॉप पर खड़ी अपने सामने से बसों को जाते हुए देख देख रही थी.. उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि किसी भी बस में सवार हो सके.. रात बीतने लगी थी.. मेरी बहन चिंतित हो रही थी..
अचानक एक काले रंग की शानदार गाड़ी बस स्टॉप पर आकर रुकी ठीक मेरी रूपाली दीदी के सामने.. गाड़ी पर काले रंग के शीशे थे. मेरी बहन अंदर कुछ भी नहीं देख पा रही थी.. गाड़ी का काला शीशा नीचे हुआ और ड्राइविंग सीट पर जो शख्स बैठा हुआ था वह और कोई नहीं बल्कि ठाकुर रणवीर सिंह ही थे.. मेरी बहन ने ठाकुर साहब को देखा और अपना मुंह फेर लिया.. ठाकुर साहब ने मेरी बहन को अपनी तरफ आने का इशारा किया. मेरी बहन ने नजरअंदाज कर दिया.. ठाकुर साहब गाड़ी से बाहर निकल कर मेरी रूपाली दीदी के पास आए..
ठाकुर साहब: रुपाली जी.. बैठ जाइए.. इस बरसात में कहां आप बस और ट्रेन का इंतजार करेंगी.
मेरी रूपाली दीदी: जी मैं चली जाऊंगी..
ठाकुर साहब: प्लीज रुपाली जी मेरी बात मान लीजिए. आपके बच्चे घर पर आपका इंतजार कर रहे होंगे.. आपके पति और आपका छोटा भाई भी परेशान हो रहा होगा.. कार से जाएंगे तो हम लोग जल्दी पहुंच जाएंगे.
मेरी दीदी ने कुछ देर अपने बच्चों के बारे में सोचा और अपने धीरे कदमों के साथ कार की तरह बढ़ने लगी... ठाकुर साहब ने कार का दरवाजा खोला और मेरी रुपाली दीदी अंदर बैठ गई.. ठाकुर साहब ड्राइविंग सीट पर आ गए और गाड़ी चल पड़ी..
उन्होंने मेरी बहन को तिरछी निगाह से देखा.. मेरी रूपाली दीदी की साड़ी उनके बदन से चिपकी हुई थी भीगे हुए होने के कारण.. ठाकुर साहब मेरी बहन का पेट और और उनकी गहरी नाभि साफ-साफ देख पा रहे थे. मेरी रूपाली दीदी के गीले बाल और भीगे होंठ देखकर ठाकुर साहब की नियत खराब हो रही थी..
ठाकुर साहब अपने आप को नियंत्रित करने की कोशिश करने लगे क्योंकि मेरी बहन को देखकर उनका लंड खड़ा होने लगा था.
ठाकुर साहब: आप यहां कैसे रुपाली जी.
मेरी रूपाली दीदी: एक नौकरी के इंटरव्यू के लिए आई थी
ठाकुर साहब: अच्छा.. नौकरी मिली क्या.
मेरी दीदी: नहीं.
ठाकुर साहब: अच्छा कोई बात नहीं.
मेरी रूपाली दीदी: यह आपकी कार है?
ठाकुर साहब: हां रुपाली जी.. मेरी ही कार है.. बहुत कम चलाता हूं.. जब भी यहां आना होता है तभी निकालता हूं.
मेरी दीदी: ओ अच्छा..
ठाकुर साहब: आप कुछ चाय वगैरह पीना पसंद करेंगी.. यहां ढाबे पर बहुत अच्छी चाय मिलती है.
मेरी दीदी: नहीं ठाकुर साहब.. बच्चे इंतजार कर रहे होंगे..
ठाकुर साहब: जी रुपाली जी.. बस यह चेक नाका क्रॉस कर लेंगे तो फिर रास्ता खाली मिलेगा..
दोनों चुप हो गए..
तकरीबन 1 घंटे के ड्राइव के बाद चेक नाका क्रॉस हुआ.. अभी भी हमारे घर तक पहुंचने के लिए तकरीबन 30 किलोमीटर का रास्ता बचा हुआ था.. बिल्कुल सुनसान.. यहां वहां छोटी मोटी झाड़ी और जंगल थे रास्ते में.
ठाकुर साहब: रूपाली.. क्या अब तुमको पैसों की जरूरत नहीं है? अगर अभी भी तुम्हें जरूरत हो तो मुझे बता देना( ठाकुर साहब आप से तुम पर आ गए थे).
मेरी रूपाली दीदी बिल्कुल चुप हो गई.. कुछ भी नहीं बोली.
ठाकुर साहब: देखो मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं इसीलिए कह रहा हूं.
मेरी रूपाली दीदी: देखिए ठाकुर साहब.. मैं अपने पति अनूप से बेहद प्यार करती हूं.. आप जो चाहते हैं वह मैं नहीं कर पाऊंगी..
ठाकुर साहब: अरे रूपाली मैं तो बस ऐसे ही कह रहा हूं.. तुम मुझे गलत समझ रही हो..
थोड़ी देर बाद..
ठाकुर साहब: अच्छा.. यहां से एक शॉर्टकट है.. तुम अपने घर जल्दी पहुंच जाओगी.. मैं इधर से ही ले लेता हूं..
मेरी रुपाली दीदी: ठीक है.. मगर रास्ता सुरक्षित तो है ना..
ठाकुर साहब: हां बिल्कुल रूपाली..
ठाकुर साहब ने अपनी गाड़ी एक सुनसान सड़क की तरफ मोड़ दी. थोड़ी दूर जाने के बाद ही गाड़ी ने झटके देने शुरू कर दिए और बंद हो गई.. ठाकुर साहब गाड़ी से बाहर निकले और उन्होंने देखा कि गाड़ी के आगे के दोनों टायर पंचर हो चुके हैं..
ठाकुर साहब: हमारी बदकिस्मती है रुपाली.. गाड़ी के दोनों टायर पंचर हो चुके हैं..
मेरी रुपाली दीदी: क्या? क्या होगा अब..
ठाकुर साहब: मेरे पास एक स्टेफनी है.. मगर दूसरे टायर का क्या करेंगे. यहां पर तो कोई पंचर वाला भी नहीं मिलेगा.. मैं अपने एक आदमी को फोन कर देता हूं वह किसी ना किसी को लेकर आएगा.. रात के 10:00 बज चुके हैं.. इतनी बारिश भी हो रही है.. पता नहीं अब क्या होगा.
मेरी रुपाली दीदी बुरी तरह डर गई थी.. हालांकि मेरी दीदी जानती थी कि इस मुसीबत में ठाकुर साहब ने उनको जानबूझकर नहीं डाला है.. फिर भी मेरी रुपाली दीदी घबरा रही थी ठाकुर साहब से..
ठाकुर साहब ने अपने एक साथी को फोन किया और उनको बोला कि अपने साथ किसी पंचर वाले को लेकर आय..
ठाकुर साहब: रूपाली तुम भी अपने घर पर फोन कर दो और अपने पति या अपने भाई को बता दो.. हमें यहां इंतजार करना ही होगा..
रूपाली दीदी ने मुझे फोन किया और वस्तु स्थिति के बारे में मुझे बताया. उनकी बात सुनकर मुझे घबराहट होने लगी, परंतु यह जानकर अच्छा लगा कि ठाकुर साहब भी उनके साथ मौजूद है.. वह जरूर मेरी बहन की देखभाल करेंगे अच्छे से..
सुनसान सड़क पर गाड़ी खड़ी थी.. आसपास किसी इंसान तो क्या किसी जानवर का भी नामोनिशान नहीं था.. बहुत तेज बारिश होने लगी.. ठाकुर साहब गाड़ी के अंदर घुस गय..
ठाकुर साहब: रूपाली.. तुम चाहो तो पीछे की सीट पर जाकर थोड़ी देर आराम कर सकती हो..
मेरी रूपाली दीदी: नहीं ठाकुर साहब मैं ठीक हूं.
ठाकुर साहब: तुम बेहद थकी हुई लग रही हो.. आगे की सीट पर पैर पसारने की जगह भी नहीं है.. मुझे भी नहीं पता कि वह लोग कब आएंगे. इसीलिए कह रहा हूं रूपाली.. जाओ पीछे और थोड़ी देर आराम कर लो.
मेरी रूपाली दीदी मान गई और गाड़ी की पिछली सीट पर चली गई.. ठाकुर साहब भी उनके पीछे-पीछे आ कर उनके बगल में बैठ गय.. ठाकुर साहब मेरी बहन से बातचीत करने लगे.. उनकी पसंद उनकी नापसंद उनके शौक और उनकी हॉबी के बारे में... मेरी दीदी उनके साथ बात तो करती रही पर उनको अच्छा नहीं लग रहा था..
मेरी रूपाली दीदी की साड़ी अभी भी गीली थी. मेरी बहन ने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई थी और साथ में गुलाबी रंग मैच की चोली , जो अभी भीगी हुई थी.. मेरी दीदी को ठंड लग रही थी.. मेरी रूपाली दीदी ठंड के मारे थरथर कांप रही थी..
ठाकुर साहब मेरी बहन के करीब आए और उन्होंने मेरी बहन की हाथ पर अपना हाथ रख दिया.. मेरी दीदी ने अपने हाथ छुड़ा लिया.
ठाकुर साहब: रूपाली.. तुम्हें तो ठंड लग रही है.. मेरे पास आओ ना.. मैं तुमको गर्मी देता हूं...
मेरी रूपाली दीदी बेहद थकी हुई थी और ठाकुर साहब की मौजूदगी में खुद को असहज पा रही थी..
मेरी रूपाली दीदी: प्लीज ठाकुर साहब.. मेरे करीब मत आइए..
मेरी रूपाली दीदी का मासिक धर्म अभी अभी खत्म हुआ था.. यह वह समय होता है जब औरत खुद पर काबू नहीं रख पाती है.. संभोग की लालसा के ऊपर काबू पाना किसी भी औरत के लिए बेहद मुश्किल समय होता है.. मेरी रूपाली दीदी एक कामपीड़ित स्त्री की तरह व्यवहार कर रही थी.. दृश्य बेहद उत्तेजक हो चुका था.. ठाकुर साहब को मेरी बहन की हालत का एहसास होने लगा था. वह मेरी दीदी के पास आने लगे .. मेरी दीदी खिड़की की तरफ खिसकने लगी .. ठाकुर साहब ने मेरी बहन की कमर में अपनी बाहें डाल दी और उनको अपने पास खींच लिया.. और खुद से चिपका लिया... मेरी रूपाली दीदी ने थोड़ा बहुत विरोध किया परंतु दिन भर की थकान की वजह से ऐसा लग रहा था कि मेरी दीदी अपने होशो हवास गम आ चुकी है... ठाकुर साहब ने अपनी दोनों बाहें मेरी बहन की कमर में डाल कर उनको दबोच लिया और उनके कान को चूमने लगे लगे.
ठाकुर साहब का एक हाथ मेरी बहन के पेट पर था.. उन्होंने अपने हाथ की एक उंगली मेरी बहन की नाभि में घुसा दि.. मेरी दीदी तड़प रही थी.
मेरी रूपाली दीदी ने भी अपनी बहन पीछे ले जाकर ठाकुर साहब के कंधे पर डाल दी.. ऐसी स्थिति किसी भी पुरुष और स्त्री के लिए बेहद नाजुक होती है.. बिना संभोग के रह पाना दोनों के लिए असंभव लग रहा था.. ऊपर से ठाकुर साहब एक सच्चे और कड़क मर्द थे.. मेरे जीजू विनोद की तरह हल्के-फुल्के नहीं .. ऐसा लग रहा था कि मेरी बहन सिर्फ ठाकुर साहब के लिए ही बनी हुई है.. मेरी जीजू के लिए नहीं..
ठाकुर साहब ने मेरी बहन को अपनी बाहों में दबोच लिया था.. उन्होंने मेरी बहन को पलट दिया.. अब मेरी रूपाली दीदी की चूचियों पहाड़ की तरह तनी हुए थी ठाकुर साहब की आंखों के सामने.. उन्होंने मेरी बहन को अपनी मजबूत और कड़क सीने में चिपका लिया.. मेरी रूपाली दीदी के गाल और फिर उसके बाद उनकी कान को चूमने लगे ठाकुर साहब..
मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब..आअह्हह्हह्हह्ह... मैं अपने पति विनोद की अमानत हूं.. मैं बस उनसे प्यार करती हूं.
ठाकुर साहब: तुम बस मेरी अमानत हो रूपाली.. तुम मेरी हो बस मेरी.
मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब मैं आपकी बेटी जैसी हूं..
ठाकुर साहब मेरी बहन के कान को चूमते रहे.. मेरी रूपाली दीदी काफी गंभीर हो चुकी थी.. इसी बीच ठाकुर साहब ने मेरी बहन की साड़ी का पल्लू उनके सीने से अलग कर दिया.. गोरा सपाट पेट.. गहरी नाभि गोलाकार... और उसके ऊपर बड़ी-बड़ी दो चूचियां गुलाबी रंग की चोली के अंदर देख ठाकुर साहब का मन डोल गया था.. मेरी रूपाली दीदी ने अपनी आंखें बंद कर ली थी.. ठाकुर साहब को अपने नसीब पर गुमान हो रहा था..
मेरी रूपाली दीदी: प्लीज ठाकुर साहब कोई देख लेगा..
ठाकुर साहब: मेरी जान.. कोई नहीं है यहां पर.. इतनी बारिश हो रही है और यह एक सुनसान जगह है.. मेरी गाड़ी के शीशे भी काले हैं.. कोई नहीं देखेगा अभी..
मेरी रूपाली दीदी की चोली के अंदर उनके गोरे गोरे स्तनों के हाहाकारी उभार देखकर ठाकुर साहब से रहा नहीं गया.. उन्होंने अपना एक हाथ मेरी बहन की एक चूची पर रख दिया चोली के ऊपर से और फिर हल्के से दबा दिया...
चूड़ियों से भरी हुई अपनी बाहों का हार मेरी रूपाली दीदी ने ठाकुर साहब के गले में डाल दिया था.. कुछ ही इंच की दूरी पर था मेरी दीदी का चेहरा ठाकुर साहब के सामने.. गुलाबी रसीले होंठ देखकर ठाकुर साहब पागल हुए जा रहे थे... वह अच्छी तरह समझ पा रहे थे कि आज अगर उन्होंने मेरी बहन को नहीं चुम्मा तो फिर कभी नहीं चुम्मा ले पाएंगे.. उन्होंने मेरी बहन के होठों पर अपने होंठ चिपका दिय. ठाकुर साहब के काले गरम होंठ मेरी बहन के लाल सुर्ख होंठ से चिपक गए थे.. और पिघलने लगे थे दोनों एक दूसरे के अंदर...
ठाकुर साहब ने खींचकर मेरी रूपाली दीदी को अपनी गोद में बिठा लिया ठीक अपने खड़े लंड के ऊपर .. उन्होंने अपनी दोनों टांगे फैलाकर मेरी बहन को अपनी गोद में बैठने की जगह दी.. मेरी दीदी की दोनों बाहें ठाकुर साहब के गले में थी... मेरी दीदी को कोई होश नहीं था...
ठाकुर साहब मेरी बहन को बुरी तरह चूसने लगे.. मेरी बहन के होठों को अपने होंठों के बीच लेकर... मेरी दीदी भी उनका भरपूर साथ दे रही थी.
उन दोनों के होंठ आपस में जंगली तरीके से युद्ध कर रहे थे.. मेरी बहन के होंठों को चूमते हुए ठाकुर साहब ने एक हाथ से उनकी एक चूची को दबाना जारी रखा... ठाकुर साहब के प्रहार से मेरी दीदी तड़पने लगी थी.. मचलने लगी थी.. कामवासना की अग्नि भड़क गई थी मेरी बहन के अंदर.. ठाकुर साहब मेरी बहन की आग को हवा दे रहे थे..
ठाकुर साहब ने मेरी रूपाली दीदी की चूची के ऊपर से अपना हाथ हटा लिया और उनके पेट पर रख कर सहलाने लगे.. उन्होंने मेरी बहन की नाभि के अंदर अपनी एक उंगली घु ठाकुर साहब ने मेरी रूपाली दीदी के होठों को अपने होठों की कैद से आजाद कर दिया और उनकी गर्दन को चूमने लगे.. साथ ही साथ नाभि के अंदर उंगली से हमला बोल दिया था उन्होंने..
ठाकुर साहब ने मेरे रुपाली दीदी को गाड़ी की सीट के ऊपर पटक दिया और उनके ऊपर सवार हो गए.. वह मेरी बहन को फिर से चूमने लगे.. चूमते चूमते हुए वह नीचे आने लगे.. ठाकुर साहब मेरी बहन की नाभि को चूमना चाहते थे परंतु गाड़ी में जगह कम होने के कारण और उनका बलिष्ठ शरीर होने के कारण वह ऐसा नहीं कर पा रहे थे..
ठाकुर साहब मेरी बहन के ऊपर से नीचे उतर गय.. गाड़ी की सीट के नीचे बैठकर वह मेरी बहन की नाभि के अंदर अपनी जीभ डाल कर गोल गोल घुमाने लगे.. बड़ा ही अजीबोगरीब दृश्य था.. ठाकुर साहब मेरी बहन की नाभि देखकर पागल हो चुके थे पहले से ही..
पेटिकोट और ब्लाउज में रूपाली दीदी बेहद कामुक दिख रही थी.. उनकी नाभि के अंदर ठाकुर साहब अपनी जीभ से घमासान युद्ध कर रहे थे..
मेरी रूपाली दीदी के उठे हुए सुडौल स्तनों को देखकर ठाकुर साहब से बर्दाश्त नहीं हो रहा था... एक बार फिर वह मेरी रुपाली दीदी के ऊपर सवार हो गय.. उन्होंने अपनी दोनों मजबूत हाथों में मेरी बहन की दोनों चूचियां दबोच ... मसलने लगे ठाकुर साहब... चोली के ऊपर से.. ठाकुर साहब मेरी रुपाली दीदी की चूचियां बड़ी बेरहमी से मसल रहे थे.. दबा रहे थे.. मेरी बहन की सिसकारियां निकलने लगी.. दबाने के साथ-साथ ठाकुर साहब अब मेरी बहन की चोली के बटन खोलने लगे थे बड़ी तेजी से. कुछ ही देर में मेरी बहन की चोली खुल चुकी थी.. ठाकुर साहब ने मेरी दीदी के कांधे पर से चोली के दोनों भागों को अलग किया फिर उन्होंने मेरी बहन के क्लीवेज पर चुंबन की बरसात कर दी..
मेरी रूपाली दीदी: अहाहहह्हह्ह्ह्ह... ठाकुर साहब... यह ठीक नहीं है.. मैं किसी और की अमानत हूं..
ठाकुर साहब तो हवस की आग में पागल हो चुके थे.. उन्होंने एक हाथ से मेरी दीदी की साड़ी और उनका पेटीकोट उनके घुटने के ऊपर तक उठा दिया और अपना हाथ अंदर डाल कर मेरी बहन की पेंटी को छूने लगे.. हाथ लगाते ही ठाकुर साहब को तो जैसे झटका लगा.. मेरी बहन तो पहले से ही गर्म और गीली हो चुकी थी..
ठाकुर साहब मेरी रूपाली दीदी की ब्रा खोलने वाले थे कि गाड़ी के शीशे पर किसी ने बहुत तेजी से .. नॉक नॉक.. किया..
मेरी रूपाली दीदी वहां पहुंच गई.. वहां पर पहले से ही 100 से भी ज्यादा लोग मौजूद थे जिनमें से सिर्फ दो को नौकरी मिलने वाली थी. सभी लोगों का इंटरव्यू हुआ एक-एक करके.. दोस्तों बताने की जरूरत नहीं है कि उन लोगों ने मेरी रूपाली दीदी को पहली बार में ही अस्वीकार कर दिया.. इस ऑफिस में काम करने के लिए अपना काफी समय व्यतीत करना होगा और मेरी रूपाली दीदी ठहरी दो बच्चों की मां, ऊपर से एक दूध पीती हुई बच्ची.. उन लोगों ने मेरी दीदी का आवेदन अस्वीकार कर दिया पहली नजर में.. मेरी रूपाली दीदी बेहद निराश हो गई थी..
थक हार के मेरी रुपाली दीदी बस स्टॉप की तरफ वापस आ रही थी.. रात के तकरीबन 8:00 बज चुके थे.. अचानक तेज बारिश शुरू हो गई..
मेरी रूपाली दीदी पूरी तरह से भीग गई.. उनके पास तो छाता भी नहीं था.. बारिश के पानी से मेरी बहन गीली हो चुकी थी.. तेज बारिश के कारण सड़क पर बहुत सारा पानी जमा हो चुका था.. लोगों में भगदड़ मची हुई थी.. जो भी बस आ रही थी उसमें पहले से ही काफी भीड़ थी और घुसने की कोई जगह नहीं थी... मेरी रूपाली दीदी भीगी भागी हुई बस स्टॉप पर खड़ी अपने सामने से बसों को जाते हुए देख देख रही थी.. उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि किसी भी बस में सवार हो सके.. रात बीतने लगी थी.. मेरी बहन चिंतित हो रही थी..
अचानक एक काले रंग की शानदार गाड़ी बस स्टॉप पर आकर रुकी ठीक मेरी रूपाली दीदी के सामने.. गाड़ी पर काले रंग के शीशे थे. मेरी बहन अंदर कुछ भी नहीं देख पा रही थी.. गाड़ी का काला शीशा नीचे हुआ और ड्राइविंग सीट पर जो शख्स बैठा हुआ था वह और कोई नहीं बल्कि ठाकुर रणवीर सिंह ही थे.. मेरी बहन ने ठाकुर साहब को देखा और अपना मुंह फेर लिया.. ठाकुर साहब ने मेरी बहन को अपनी तरफ आने का इशारा किया. मेरी बहन ने नजरअंदाज कर दिया.. ठाकुर साहब गाड़ी से बाहर निकल कर मेरी रूपाली दीदी के पास आए..
ठाकुर साहब: रुपाली जी.. बैठ जाइए.. इस बरसात में कहां आप बस और ट्रेन का इंतजार करेंगी.
मेरी रूपाली दीदी: जी मैं चली जाऊंगी..
ठाकुर साहब: प्लीज रुपाली जी मेरी बात मान लीजिए. आपके बच्चे घर पर आपका इंतजार कर रहे होंगे.. आपके पति और आपका छोटा भाई भी परेशान हो रहा होगा.. कार से जाएंगे तो हम लोग जल्दी पहुंच जाएंगे.
मेरी दीदी ने कुछ देर अपने बच्चों के बारे में सोचा और अपने धीरे कदमों के साथ कार की तरह बढ़ने लगी... ठाकुर साहब ने कार का दरवाजा खोला और मेरी रुपाली दीदी अंदर बैठ गई.. ठाकुर साहब ड्राइविंग सीट पर आ गए और गाड़ी चल पड़ी..
उन्होंने मेरी बहन को तिरछी निगाह से देखा.. मेरी रूपाली दीदी की साड़ी उनके बदन से चिपकी हुई थी भीगे हुए होने के कारण.. ठाकुर साहब मेरी बहन का पेट और और उनकी गहरी नाभि साफ-साफ देख पा रहे थे. मेरी रूपाली दीदी के गीले बाल और भीगे होंठ देखकर ठाकुर साहब की नियत खराब हो रही थी..
ठाकुर साहब अपने आप को नियंत्रित करने की कोशिश करने लगे क्योंकि मेरी बहन को देखकर उनका लंड खड़ा होने लगा था.
ठाकुर साहब: आप यहां कैसे रुपाली जी.
मेरी रूपाली दीदी: एक नौकरी के इंटरव्यू के लिए आई थी
ठाकुर साहब: अच्छा.. नौकरी मिली क्या.
मेरी दीदी: नहीं.
ठाकुर साहब: अच्छा कोई बात नहीं.
मेरी रूपाली दीदी: यह आपकी कार है?
ठाकुर साहब: हां रुपाली जी.. मेरी ही कार है.. बहुत कम चलाता हूं.. जब भी यहां आना होता है तभी निकालता हूं.
मेरी दीदी: ओ अच्छा..
ठाकुर साहब: आप कुछ चाय वगैरह पीना पसंद करेंगी.. यहां ढाबे पर बहुत अच्छी चाय मिलती है.
मेरी दीदी: नहीं ठाकुर साहब.. बच्चे इंतजार कर रहे होंगे..
ठाकुर साहब: जी रुपाली जी.. बस यह चेक नाका क्रॉस कर लेंगे तो फिर रास्ता खाली मिलेगा..
दोनों चुप हो गए..
तकरीबन 1 घंटे के ड्राइव के बाद चेक नाका क्रॉस हुआ.. अभी भी हमारे घर तक पहुंचने के लिए तकरीबन 30 किलोमीटर का रास्ता बचा हुआ था.. बिल्कुल सुनसान.. यहां वहां छोटी मोटी झाड़ी और जंगल थे रास्ते में.
ठाकुर साहब: रूपाली.. क्या अब तुमको पैसों की जरूरत नहीं है? अगर अभी भी तुम्हें जरूरत हो तो मुझे बता देना( ठाकुर साहब आप से तुम पर आ गए थे).
मेरी रूपाली दीदी बिल्कुल चुप हो गई.. कुछ भी नहीं बोली.
ठाकुर साहब: देखो मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं इसीलिए कह रहा हूं.
मेरी रूपाली दीदी: देखिए ठाकुर साहब.. मैं अपने पति अनूप से बेहद प्यार करती हूं.. आप जो चाहते हैं वह मैं नहीं कर पाऊंगी..
ठाकुर साहब: अरे रूपाली मैं तो बस ऐसे ही कह रहा हूं.. तुम मुझे गलत समझ रही हो..
थोड़ी देर बाद..
ठाकुर साहब: अच्छा.. यहां से एक शॉर्टकट है.. तुम अपने घर जल्दी पहुंच जाओगी.. मैं इधर से ही ले लेता हूं..
मेरी रुपाली दीदी: ठीक है.. मगर रास्ता सुरक्षित तो है ना..
ठाकुर साहब: हां बिल्कुल रूपाली..
ठाकुर साहब ने अपनी गाड़ी एक सुनसान सड़क की तरफ मोड़ दी. थोड़ी दूर जाने के बाद ही गाड़ी ने झटके देने शुरू कर दिए और बंद हो गई.. ठाकुर साहब गाड़ी से बाहर निकले और उन्होंने देखा कि गाड़ी के आगे के दोनों टायर पंचर हो चुके हैं..
ठाकुर साहब: हमारी बदकिस्मती है रुपाली.. गाड़ी के दोनों टायर पंचर हो चुके हैं..
मेरी रुपाली दीदी: क्या? क्या होगा अब..
ठाकुर साहब: मेरे पास एक स्टेफनी है.. मगर दूसरे टायर का क्या करेंगे. यहां पर तो कोई पंचर वाला भी नहीं मिलेगा.. मैं अपने एक आदमी को फोन कर देता हूं वह किसी ना किसी को लेकर आएगा.. रात के 10:00 बज चुके हैं.. इतनी बारिश भी हो रही है.. पता नहीं अब क्या होगा.
मेरी रुपाली दीदी बुरी तरह डर गई थी.. हालांकि मेरी दीदी जानती थी कि इस मुसीबत में ठाकुर साहब ने उनको जानबूझकर नहीं डाला है.. फिर भी मेरी रुपाली दीदी घबरा रही थी ठाकुर साहब से..
ठाकुर साहब ने अपने एक साथी को फोन किया और उनको बोला कि अपने साथ किसी पंचर वाले को लेकर आय..
ठाकुर साहब: रूपाली तुम भी अपने घर पर फोन कर दो और अपने पति या अपने भाई को बता दो.. हमें यहां इंतजार करना ही होगा..
रूपाली दीदी ने मुझे फोन किया और वस्तु स्थिति के बारे में मुझे बताया. उनकी बात सुनकर मुझे घबराहट होने लगी, परंतु यह जानकर अच्छा लगा कि ठाकुर साहब भी उनके साथ मौजूद है.. वह जरूर मेरी बहन की देखभाल करेंगे अच्छे से..
सुनसान सड़क पर गाड़ी खड़ी थी.. आसपास किसी इंसान तो क्या किसी जानवर का भी नामोनिशान नहीं था.. बहुत तेज बारिश होने लगी.. ठाकुर साहब गाड़ी के अंदर घुस गय..
ठाकुर साहब: रूपाली.. तुम चाहो तो पीछे की सीट पर जाकर थोड़ी देर आराम कर सकती हो..
मेरी रूपाली दीदी: नहीं ठाकुर साहब मैं ठीक हूं.
ठाकुर साहब: तुम बेहद थकी हुई लग रही हो.. आगे की सीट पर पैर पसारने की जगह भी नहीं है.. मुझे भी नहीं पता कि वह लोग कब आएंगे. इसीलिए कह रहा हूं रूपाली.. जाओ पीछे और थोड़ी देर आराम कर लो.
मेरी रूपाली दीदी मान गई और गाड़ी की पिछली सीट पर चली गई.. ठाकुर साहब भी उनके पीछे-पीछे आ कर उनके बगल में बैठ गय.. ठाकुर साहब मेरी बहन से बातचीत करने लगे.. उनकी पसंद उनकी नापसंद उनके शौक और उनकी हॉबी के बारे में... मेरी दीदी उनके साथ बात तो करती रही पर उनको अच्छा नहीं लग रहा था..
मेरी रूपाली दीदी की साड़ी अभी भी गीली थी. मेरी बहन ने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई थी और साथ में गुलाबी रंग मैच की चोली , जो अभी भीगी हुई थी.. मेरी दीदी को ठंड लग रही थी.. मेरी रूपाली दीदी ठंड के मारे थरथर कांप रही थी..
ठाकुर साहब मेरी बहन के करीब आए और उन्होंने मेरी बहन की हाथ पर अपना हाथ रख दिया.. मेरी दीदी ने अपने हाथ छुड़ा लिया.
ठाकुर साहब: रूपाली.. तुम्हें तो ठंड लग रही है.. मेरे पास आओ ना.. मैं तुमको गर्मी देता हूं...
मेरी रूपाली दीदी बेहद थकी हुई थी और ठाकुर साहब की मौजूदगी में खुद को असहज पा रही थी..
मेरी रूपाली दीदी: प्लीज ठाकुर साहब.. मेरे करीब मत आइए..
मेरी रूपाली दीदी का मासिक धर्म अभी अभी खत्म हुआ था.. यह वह समय होता है जब औरत खुद पर काबू नहीं रख पाती है.. संभोग की लालसा के ऊपर काबू पाना किसी भी औरत के लिए बेहद मुश्किल समय होता है.. मेरी रूपाली दीदी एक कामपीड़ित स्त्री की तरह व्यवहार कर रही थी.. दृश्य बेहद उत्तेजक हो चुका था.. ठाकुर साहब को मेरी बहन की हालत का एहसास होने लगा था. वह मेरी दीदी के पास आने लगे .. मेरी दीदी खिड़की की तरफ खिसकने लगी .. ठाकुर साहब ने मेरी बहन की कमर में अपनी बाहें डाल दी और उनको अपने पास खींच लिया.. और खुद से चिपका लिया... मेरी रूपाली दीदी ने थोड़ा बहुत विरोध किया परंतु दिन भर की थकान की वजह से ऐसा लग रहा था कि मेरी दीदी अपने होशो हवास गम आ चुकी है... ठाकुर साहब ने अपनी दोनों बाहें मेरी बहन की कमर में डाल कर उनको दबोच लिया और उनके कान को चूमने लगे लगे.
ठाकुर साहब का एक हाथ मेरी बहन के पेट पर था.. उन्होंने अपने हाथ की एक उंगली मेरी बहन की नाभि में घुसा दि.. मेरी दीदी तड़प रही थी.
मेरी रूपाली दीदी ने भी अपनी बहन पीछे ले जाकर ठाकुर साहब के कंधे पर डाल दी.. ऐसी स्थिति किसी भी पुरुष और स्त्री के लिए बेहद नाजुक होती है.. बिना संभोग के रह पाना दोनों के लिए असंभव लग रहा था.. ऊपर से ठाकुर साहब एक सच्चे और कड़क मर्द थे.. मेरे जीजू विनोद की तरह हल्के-फुल्के नहीं .. ऐसा लग रहा था कि मेरी बहन सिर्फ ठाकुर साहब के लिए ही बनी हुई है.. मेरी जीजू के लिए नहीं..
ठाकुर साहब ने मेरी बहन को अपनी बाहों में दबोच लिया था.. उन्होंने मेरी बहन को पलट दिया.. अब मेरी रूपाली दीदी की चूचियों पहाड़ की तरह तनी हुए थी ठाकुर साहब की आंखों के सामने.. उन्होंने मेरी बहन को अपनी मजबूत और कड़क सीने में चिपका लिया.. मेरी रूपाली दीदी के गाल और फिर उसके बाद उनकी कान को चूमने लगे ठाकुर साहब..
मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब..आअह्हह्हह्हह्ह... मैं अपने पति विनोद की अमानत हूं.. मैं बस उनसे प्यार करती हूं.
ठाकुर साहब: तुम बस मेरी अमानत हो रूपाली.. तुम मेरी हो बस मेरी.
मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब मैं आपकी बेटी जैसी हूं..
ठाकुर साहब मेरी बहन के कान को चूमते रहे.. मेरी रूपाली दीदी काफी गंभीर हो चुकी थी.. इसी बीच ठाकुर साहब ने मेरी बहन की साड़ी का पल्लू उनके सीने से अलग कर दिया.. गोरा सपाट पेट.. गहरी नाभि गोलाकार... और उसके ऊपर बड़ी-बड़ी दो चूचियां गुलाबी रंग की चोली के अंदर देख ठाकुर साहब का मन डोल गया था.. मेरी रूपाली दीदी ने अपनी आंखें बंद कर ली थी.. ठाकुर साहब को अपने नसीब पर गुमान हो रहा था..
मेरी रूपाली दीदी: प्लीज ठाकुर साहब कोई देख लेगा..
ठाकुर साहब: मेरी जान.. कोई नहीं है यहां पर.. इतनी बारिश हो रही है और यह एक सुनसान जगह है.. मेरी गाड़ी के शीशे भी काले हैं.. कोई नहीं देखेगा अभी..
मेरी रूपाली दीदी की चोली के अंदर उनके गोरे गोरे स्तनों के हाहाकारी उभार देखकर ठाकुर साहब से रहा नहीं गया.. उन्होंने अपना एक हाथ मेरी बहन की एक चूची पर रख दिया चोली के ऊपर से और फिर हल्के से दबा दिया...
चूड़ियों से भरी हुई अपनी बाहों का हार मेरी रूपाली दीदी ने ठाकुर साहब के गले में डाल दिया था.. कुछ ही इंच की दूरी पर था मेरी दीदी का चेहरा ठाकुर साहब के सामने.. गुलाबी रसीले होंठ देखकर ठाकुर साहब पागल हुए जा रहे थे... वह अच्छी तरह समझ पा रहे थे कि आज अगर उन्होंने मेरी बहन को नहीं चुम्मा तो फिर कभी नहीं चुम्मा ले पाएंगे.. उन्होंने मेरी बहन के होठों पर अपने होंठ चिपका दिय. ठाकुर साहब के काले गरम होंठ मेरी बहन के लाल सुर्ख होंठ से चिपक गए थे.. और पिघलने लगे थे दोनों एक दूसरे के अंदर...
ठाकुर साहब ने खींचकर मेरी रूपाली दीदी को अपनी गोद में बिठा लिया ठीक अपने खड़े लंड के ऊपर .. उन्होंने अपनी दोनों टांगे फैलाकर मेरी बहन को अपनी गोद में बैठने की जगह दी.. मेरी दीदी की दोनों बाहें ठाकुर साहब के गले में थी... मेरी दीदी को कोई होश नहीं था...
ठाकुर साहब मेरी बहन को बुरी तरह चूसने लगे.. मेरी बहन के होठों को अपने होंठों के बीच लेकर... मेरी दीदी भी उनका भरपूर साथ दे रही थी.
उन दोनों के होंठ आपस में जंगली तरीके से युद्ध कर रहे थे.. मेरी बहन के होंठों को चूमते हुए ठाकुर साहब ने एक हाथ से उनकी एक चूची को दबाना जारी रखा... ठाकुर साहब के प्रहार से मेरी दीदी तड़पने लगी थी.. मचलने लगी थी.. कामवासना की अग्नि भड़क गई थी मेरी बहन के अंदर.. ठाकुर साहब मेरी बहन की आग को हवा दे रहे थे..
ठाकुर साहब ने मेरी रूपाली दीदी की चूची के ऊपर से अपना हाथ हटा लिया और उनके पेट पर रख कर सहलाने लगे.. उन्होंने मेरी बहन की नाभि के अंदर अपनी एक उंगली घु ठाकुर साहब ने मेरी रूपाली दीदी के होठों को अपने होठों की कैद से आजाद कर दिया और उनकी गर्दन को चूमने लगे.. साथ ही साथ नाभि के अंदर उंगली से हमला बोल दिया था उन्होंने..
ठाकुर साहब ने मेरे रुपाली दीदी को गाड़ी की सीट के ऊपर पटक दिया और उनके ऊपर सवार हो गए.. वह मेरी बहन को फिर से चूमने लगे.. चूमते चूमते हुए वह नीचे आने लगे.. ठाकुर साहब मेरी बहन की नाभि को चूमना चाहते थे परंतु गाड़ी में जगह कम होने के कारण और उनका बलिष्ठ शरीर होने के कारण वह ऐसा नहीं कर पा रहे थे..
ठाकुर साहब मेरी बहन के ऊपर से नीचे उतर गय.. गाड़ी की सीट के नीचे बैठकर वह मेरी बहन की नाभि के अंदर अपनी जीभ डाल कर गोल गोल घुमाने लगे.. बड़ा ही अजीबोगरीब दृश्य था.. ठाकुर साहब मेरी बहन की नाभि देखकर पागल हो चुके थे पहले से ही..
पेटिकोट और ब्लाउज में रूपाली दीदी बेहद कामुक दिख रही थी.. उनकी नाभि के अंदर ठाकुर साहब अपनी जीभ से घमासान युद्ध कर रहे थे..
मेरी रूपाली दीदी के उठे हुए सुडौल स्तनों को देखकर ठाकुर साहब से बर्दाश्त नहीं हो रहा था... एक बार फिर वह मेरी रुपाली दीदी के ऊपर सवार हो गय.. उन्होंने अपनी दोनों मजबूत हाथों में मेरी बहन की दोनों चूचियां दबोच ... मसलने लगे ठाकुर साहब... चोली के ऊपर से.. ठाकुर साहब मेरी रुपाली दीदी की चूचियां बड़ी बेरहमी से मसल रहे थे.. दबा रहे थे.. मेरी बहन की सिसकारियां निकलने लगी.. दबाने के साथ-साथ ठाकुर साहब अब मेरी बहन की चोली के बटन खोलने लगे थे बड़ी तेजी से. कुछ ही देर में मेरी बहन की चोली खुल चुकी थी.. ठाकुर साहब ने मेरी दीदी के कांधे पर से चोली के दोनों भागों को अलग किया फिर उन्होंने मेरी बहन के क्लीवेज पर चुंबन की बरसात कर दी..
मेरी रूपाली दीदी: अहाहहह्हह्ह्ह्ह... ठाकुर साहब... यह ठीक नहीं है.. मैं किसी और की अमानत हूं..
ठाकुर साहब तो हवस की आग में पागल हो चुके थे.. उन्होंने एक हाथ से मेरी दीदी की साड़ी और उनका पेटीकोट उनके घुटने के ऊपर तक उठा दिया और अपना हाथ अंदर डाल कर मेरी बहन की पेंटी को छूने लगे.. हाथ लगाते ही ठाकुर साहब को तो जैसे झटका लगा.. मेरी बहन तो पहले से ही गर्म और गीली हो चुकी थी..
ठाकुर साहब मेरी रूपाली दीदी की ब्रा खोलने वाले थे कि गाड़ी के शीशे पर किसी ने बहुत तेजी से .. नॉक नॉक.. किया..