26-06-2021, 04:14 PM
"आआईईईईईई........ऊऊन्नन्नह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्............हाय बेदर्द.......ऊऊन्नन्नह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हूऊफ़्फ़्फ़्.......चोद मुझे.......ऐसे ही कस कस कर पेल अपना लौड़ा मेरी चूत में......." मैं घोड़ी बनी चीखती अपनी चूत उसके लण्ड पर धकेल रही थी।
वो भी पूरा ज़ोर लगा रहा था। एक एक धक्का खींच खींच कर लगा रहा था। पूरा लण्ड चूत को चीरता जड़ तक अंदर बाहर अंदर बाहर हो रहा था। इस तेरह पीछे खढे होकर मेरी कमर को पकड़ कर उसे धक्के लगाने में आसानी हो रही थी और वो मज़े में अपना पूरा ज़ोर लगाता मुझे पेले।जा रहा था।
और मैं सिसकती कराहती बेशर्मी से उसे उकसा रही थी। मेरे अति अश्लील शब्द् सुन कर जोश में वो मेरी चूत की ऐसी तैसी कर रहा था। उस कमीने की उस ज़ालिम चुदाई में इतना आनंद था के मैं बहुत देर तक रुक न सकी और फिर से मेरी चूत झड़ने लगी। बेड की चादर को मुट्ठियों में भींच मैं चीख रही थी और वो दे दनादन मेरी चूत में लण्ड पेले जा रहा था।
कुछ देर बाद वो भी ऊँचे ऊँचे सिसकने लगा। धक्को की रफ़्तार बहुत बढ़ गयी थी। अब किसी भी पल उसका छूटने वाला था।
मैं अपनी चूत में उसके रस की बौछार का इंतज़ार कर रही थी के अचानक कानो को भेद देने वाला शोर सुनाई दिया। हम दोनों रुक गए। वो फायर अलार्म था। मैं घबरा कर उठी और दौड़ कर दरवाजे के पास गयी और लाइट का स्विच ढूंढने लगी।
"नहीं रुको, लाइट मत जलाओ।" वो घबराई मगर बेहद जानी पहचानी आवाज़ मेरे कानो में गूंज उठी। मगर देर हो चुकी थी। उसके बोलने से पहले ही में स्विच ऑन कर चुकी थी। कमरा रौशनी से जगमग उठा। और फिर मेने उस अजनबी को देखा।
उस अजनबी को देखते ही मेरे पांव तले ज़मीन खिसक गयी। वो कोई और नहीं सुधीर था जो कुछ क्षण पहले मुझे घोड़ी वनाकर चोद रहा था। मेरा अपना बेटा मेरे सामने पूरा नंगा खड़ा था। मेरी सारी सोच समझ जवाब दे गयी। मैं कया करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा था। मेरा बेटा मेरे सामने नंगा खड़ा था और उसका मोटा लम्बा लण्ड मेरी आँखों के सामबे ऊपर निचे हो रहा था और वो मेरे पूरे जिस्म को फटी फटी आँखों से देख रहा था।
"सुधीर....यह तुमने कया......" मेरी बात पूरी न हो सकी। उसके लण्ड से तेज़ ज़ोरदार वीर्य की पिचकारी सीधी मेरी नाभि पर आकर गिरी और उसका रस बहकर नीचे मेरी चूत की और जाने लगा। मैं स्तब्ध सी देख रही थी के दूसरी फुहार निकल कर एकदम सीधी मेरी चूत से टकराई।
"ओह्ह्ह्ह्ह्......" सुधीर के मुंह से सिसकी निकल गयी। सुधीर की नज़र मेरी चूत पर जमी हुयी थी और उसके लण्ड से वीर्य की तेज़ फुहारे मेरी चूत को नहला रही थी।
अचानक मुझे होश आया। मैं घूमी और फटाफट बाथरूम की और भागी। मेने भढाक से दरवाजा बंद कर दिया।
"अपने कपडे पहनो और जाओ देखो काया हुआ है। मैं आती हूँ अभी। जल्दी करो।" मेने एक सेकंड बाद हल्का सा दरवाजा खोल उसे कहा और फिर से दरवाजा बंद कर दिया।
मेने शावर खोला और अपने चेहरे को हाथों से ढक कर अपने अंतर में चल रहे मनमंथन को शांत करने का प्रयास करने लगी। कुछ ही क्षणों में इतना कुछ घट चूका था के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। वो 'अजनबी' मेरा पति नहीं था इस बात का आभास तो मुझे उसी क्षण हो गया जब उसका लण्ड मेरी चूत के अंदर घुसा था मगर वो मेरा अपना बेटा निकलेगा इसकी तो मेने कल्पना तक नही की थी। 'मगर यह हुआ कैसे ? वो आखिर मेरे कमरे में कैसे आया? उसे मालूम नहीं था के वो उसकी माँ का कमरा है? उसे मालूम नहीं चला के वो अपनी ही माँ को चोद रहा है? आखिर यह हुआ कैसे? उसने मेरी आवाज़ को क्यों नहीं पहचाना?" हर पल दिमाग़ में नया सवाल कोंध रहा था और मेरे पास एक भी सवाल का जवाब नहीं था।
में पानी से बदन को रगड़ रगड़ कर साफ़ करने लगी जैसे उस गुनाह का हर सबूत मिटा देना चाहती थी जो मैंने अपने बेटे के साथ मिलकर किया था और जिसके गवाह हम दोनों थे। मेरा हाथ चूत पर गया तो पूरा बदन सनसना उठा। उसके रस से पूरी जांघे भरी पड़ी थी। मेने अपनी जांघे खोल पानी की धार को अपनी चूत पर केंद्रित किया। मेरा पूरा हाथ चिपचिपा हो गया था। बहुत ही गाढ़ा रस था एकदम मख्खन की तेरह। मेने अपनी दो उँगलियाँ चूत के अंदर घुसाई तो मेरा हाथ फिर से भर गया। 'उफ्फ्फ नजाने कम्बखत ने कब से जमा करके रखा था। पूरी चूत लबालब भरी पड़ी है।'
कोई पांच मिनट की मेहनत के बाद में बेटे की चिकनाई को धो सकी। मेने घूम कर पीठ को भी साफ़ करना चाहा के तभी मेरी नज़र बाथरूम के शीशे पर पड़ी। शीशे पर ऊँची ऊँची लाल लपटे नाच रही थी। अचानक से मुझे होश आया। फायर अलार्म फालस नहीं था जैसे मुझे सुरु में लगा था। सच में आग लगी हुयी थी।
मैंने तुम्हारे डैड को नही बताया इसका मतलब यह नही के मैंने तुम्हे माफ़ कर दिया है। चाहे तुमने मेरा बेटा होते हुए मेरे साथ बहुत गंदी हरकत की है मगर मैं माँ होने का फ़र्ज़ नहीं भूल सकती।। लेकिन अब मुझसे ज्यादा उम्मीद मत करना। अब मैं तुम्हारी माँ सिर्फ तुम्हारे बाप के सामने हूँ। मुझे नहीं लगता मैं तुम्हे कभी मुआफ़ कर पायुंगी"
उस दिन के बाद मैंने अपने बेटे से दूरी बना ली थी। मैं एक माँ का फ़र्ज़ जरूर पूरा कर रही थी। उसका खाना बनाना, कपडे धोना इत्यादि काम मैं उसके जरूर कर रही थी मगर माँ के प्यार और स्नेह से उसे मेने पूरी तरह वंचित रखा था। मैंने हम दोनों के बीच एक ऐसी दीवार खड़ी कर ली थी जिससे हम दोनों एक ही घर में रहते हुए भी अलग कर दिया था।
अब हम दोनों में लगभग ना के बराबर ही बातचीत होती थी। जब कोई बेहद जरूरी बात होती तो मैं उसे बुलाती थी। जैसे दो दिन पहले मैंने उसे पॉकेट मनी के बारे में पूछा था और उसने इंकार में धीरे से सर हिला दिया था के उसके पास पैसे नहीं थे और इसके बाद मैंने उसे कुछ रूपये जेब खर्च के लिए दिए थे। क्योंके घर का खर्च और हिसाब किताब सब मेरे पास होता था और उसकी जरूरते भी में ही पूरी करती थी।
लेकिन रात को एक अजनबी मेरे सपनो में आता और वो मुझे उत्तेजित कर देता लेकिन में उस सपने को नजरअंदाज कर देती, में जानती थी वो अजनबी कौन हे।
अब दूरी तो उसने भी मुझ से बना ली थी। मैंने तो जरूरत पड़ने पर दो तीन बार उसे बुला ही लिया था मगर उसने एक बार भी बात करने की कोशिश नहीं की थी। पैसे न होने पर भी उसने मुझसे मांगे नही थे। मगर एक दूसरे से बात न करने की हमारी वजह अलग अलग थी। मैं उसे उसकी करतूत के लिए सजा दे रही थी जबके वो अपना बचाव कर रहा था। वो इस बात की पूरी कोशिश करता था के हमारा आमना सामना कम से कम हो जा बिलकुल ना हो। सुबह कॉलेज को जाना और कॉलेज से सीधा घर आना। खाना खाने भी वो हमारे बुलाने के बाद ही आता था। अपने बाप से भी बेहद कम बोलता था। यहाँ तक के उसने कॉलेज के सिवा और कहीं जाना बिलकुल बंद कर दिया था। पहले वो रोजाना अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने जाता था, हफ्ते में एक दो बार सिनेमा देखने जा फिर यूँ ही कहीं घूमने चले जाना जैसे आजकल जवान छोकरे करते हैं। लेकिन नहीं, उसने कॉलेज के सिवा सब बंद कर दिया था।
मुझे लगता था सायद उसे इस बात का डर था के कहीं मैं किसी बात पर उससे गुस्सा न हो जायुं और उसके बाप के सामने उसकी पोल ना खोल दू। मेरी नाराज़गी तो वो यकीनन किसी भी हालात में नहीं चाहता था। या फिर शायद वो बात के ठंड पड़ने के इंतज़ार कर रहा था और उसकी यह शराफत वकती तौर पर उसका ढोंग मात्र थी।
वजह कुछ भी हो मगर हम दोनों के एक दूसरे से इस तरह कट जाने से घर में एक दम नीरसता छा गयी थी। असहनीय शांति और भयानक चुप्पी से हमारा घर घर ना होकर समशान लगने लगा था। कभी कभी तो मुझे डर लगने लगता था। बेटा घर में होता भी तो अपने कमरे से बहार नही निकलता था और मैं उसके कमरे में जाती नहीं थी। मैं जाती थी उसका बिस्तर बनाने जा फिर गंदे कपडे उठाने, मगर तभी जब वो कॉलेज गया होता। वो बंद कमरे में काया करता था मैं नहीं जान सकती थी। अपनी पढ़ाई कितनी करता था, सोता कितना था जा फिर इंटरनेट पर ब्लू फिल्म्स देखता था जा अश्लील सहित पढ़ता था, मेरे पास जानने का कोई मार्ग नहीं था। उसके कमरे से हालांके मुझे ढूंढने पर भी कोई आपत्तिजनक चीज़ नहीं मिली थी और पासवर्ड प्रोटेक्टर होने के कारन उसका कंप्यूटर तो मैं चला नहीं सकती थी।
वो भी पूरा ज़ोर लगा रहा था। एक एक धक्का खींच खींच कर लगा रहा था। पूरा लण्ड चूत को चीरता जड़ तक अंदर बाहर अंदर बाहर हो रहा था। इस तेरह पीछे खढे होकर मेरी कमर को पकड़ कर उसे धक्के लगाने में आसानी हो रही थी और वो मज़े में अपना पूरा ज़ोर लगाता मुझे पेले।जा रहा था।
और मैं सिसकती कराहती बेशर्मी से उसे उकसा रही थी। मेरे अति अश्लील शब्द् सुन कर जोश में वो मेरी चूत की ऐसी तैसी कर रहा था। उस कमीने की उस ज़ालिम चुदाई में इतना आनंद था के मैं बहुत देर तक रुक न सकी और फिर से मेरी चूत झड़ने लगी। बेड की चादर को मुट्ठियों में भींच मैं चीख रही थी और वो दे दनादन मेरी चूत में लण्ड पेले जा रहा था।
कुछ देर बाद वो भी ऊँचे ऊँचे सिसकने लगा। धक्को की रफ़्तार बहुत बढ़ गयी थी। अब किसी भी पल उसका छूटने वाला था।
मैं अपनी चूत में उसके रस की बौछार का इंतज़ार कर रही थी के अचानक कानो को भेद देने वाला शोर सुनाई दिया। हम दोनों रुक गए। वो फायर अलार्म था। मैं घबरा कर उठी और दौड़ कर दरवाजे के पास गयी और लाइट का स्विच ढूंढने लगी।
"नहीं रुको, लाइट मत जलाओ।" वो घबराई मगर बेहद जानी पहचानी आवाज़ मेरे कानो में गूंज उठी। मगर देर हो चुकी थी। उसके बोलने से पहले ही में स्विच ऑन कर चुकी थी। कमरा रौशनी से जगमग उठा। और फिर मेने उस अजनबी को देखा।
उस अजनबी को देखते ही मेरे पांव तले ज़मीन खिसक गयी। वो कोई और नहीं सुधीर था जो कुछ क्षण पहले मुझे घोड़ी वनाकर चोद रहा था। मेरा अपना बेटा मेरे सामने पूरा नंगा खड़ा था। मेरी सारी सोच समझ जवाब दे गयी। मैं कया करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा था। मेरा बेटा मेरे सामने नंगा खड़ा था और उसका मोटा लम्बा लण्ड मेरी आँखों के सामबे ऊपर निचे हो रहा था और वो मेरे पूरे जिस्म को फटी फटी आँखों से देख रहा था।
"सुधीर....यह तुमने कया......" मेरी बात पूरी न हो सकी। उसके लण्ड से तेज़ ज़ोरदार वीर्य की पिचकारी सीधी मेरी नाभि पर आकर गिरी और उसका रस बहकर नीचे मेरी चूत की और जाने लगा। मैं स्तब्ध सी देख रही थी के दूसरी फुहार निकल कर एकदम सीधी मेरी चूत से टकराई।
"ओह्ह्ह्ह्ह्......" सुधीर के मुंह से सिसकी निकल गयी। सुधीर की नज़र मेरी चूत पर जमी हुयी थी और उसके लण्ड से वीर्य की तेज़ फुहारे मेरी चूत को नहला रही थी।
अचानक मुझे होश आया। मैं घूमी और फटाफट बाथरूम की और भागी। मेने भढाक से दरवाजा बंद कर दिया।
"अपने कपडे पहनो और जाओ देखो काया हुआ है। मैं आती हूँ अभी। जल्दी करो।" मेने एक सेकंड बाद हल्का सा दरवाजा खोल उसे कहा और फिर से दरवाजा बंद कर दिया।
मेने शावर खोला और अपने चेहरे को हाथों से ढक कर अपने अंतर में चल रहे मनमंथन को शांत करने का प्रयास करने लगी। कुछ ही क्षणों में इतना कुछ घट चूका था के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। वो 'अजनबी' मेरा पति नहीं था इस बात का आभास तो मुझे उसी क्षण हो गया जब उसका लण्ड मेरी चूत के अंदर घुसा था मगर वो मेरा अपना बेटा निकलेगा इसकी तो मेने कल्पना तक नही की थी। 'मगर यह हुआ कैसे ? वो आखिर मेरे कमरे में कैसे आया? उसे मालूम नहीं था के वो उसकी माँ का कमरा है? उसे मालूम नहीं चला के वो अपनी ही माँ को चोद रहा है? आखिर यह हुआ कैसे? उसने मेरी आवाज़ को क्यों नहीं पहचाना?" हर पल दिमाग़ में नया सवाल कोंध रहा था और मेरे पास एक भी सवाल का जवाब नहीं था।
में पानी से बदन को रगड़ रगड़ कर साफ़ करने लगी जैसे उस गुनाह का हर सबूत मिटा देना चाहती थी जो मैंने अपने बेटे के साथ मिलकर किया था और जिसके गवाह हम दोनों थे। मेरा हाथ चूत पर गया तो पूरा बदन सनसना उठा। उसके रस से पूरी जांघे भरी पड़ी थी। मेने अपनी जांघे खोल पानी की धार को अपनी चूत पर केंद्रित किया। मेरा पूरा हाथ चिपचिपा हो गया था। बहुत ही गाढ़ा रस था एकदम मख्खन की तेरह। मेने अपनी दो उँगलियाँ चूत के अंदर घुसाई तो मेरा हाथ फिर से भर गया। 'उफ्फ्फ नजाने कम्बखत ने कब से जमा करके रखा था। पूरी चूत लबालब भरी पड़ी है।'
कोई पांच मिनट की मेहनत के बाद में बेटे की चिकनाई को धो सकी। मेने घूम कर पीठ को भी साफ़ करना चाहा के तभी मेरी नज़र बाथरूम के शीशे पर पड़ी। शीशे पर ऊँची ऊँची लाल लपटे नाच रही थी। अचानक से मुझे होश आया। फायर अलार्म फालस नहीं था जैसे मुझे सुरु में लगा था। सच में आग लगी हुयी थी।
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मैंने तुम्हारे डैड को नही बताया इसका मतलब यह नही के मैंने तुम्हे माफ़ कर दिया है। चाहे तुमने मेरा बेटा होते हुए मेरे साथ बहुत गंदी हरकत की है मगर मैं माँ होने का फ़र्ज़ नहीं भूल सकती।। लेकिन अब मुझसे ज्यादा उम्मीद मत करना। अब मैं तुम्हारी माँ सिर्फ तुम्हारे बाप के सामने हूँ। मुझे नहीं लगता मैं तुम्हे कभी मुआफ़ कर पायुंगी"
उस दिन के बाद मैंने अपने बेटे से दूरी बना ली थी। मैं एक माँ का फ़र्ज़ जरूर पूरा कर रही थी। उसका खाना बनाना, कपडे धोना इत्यादि काम मैं उसके जरूर कर रही थी मगर माँ के प्यार और स्नेह से उसे मेने पूरी तरह वंचित रखा था। मैंने हम दोनों के बीच एक ऐसी दीवार खड़ी कर ली थी जिससे हम दोनों एक ही घर में रहते हुए भी अलग कर दिया था।
अब हम दोनों में लगभग ना के बराबर ही बातचीत होती थी। जब कोई बेहद जरूरी बात होती तो मैं उसे बुलाती थी। जैसे दो दिन पहले मैंने उसे पॉकेट मनी के बारे में पूछा था और उसने इंकार में धीरे से सर हिला दिया था के उसके पास पैसे नहीं थे और इसके बाद मैंने उसे कुछ रूपये जेब खर्च के लिए दिए थे। क्योंके घर का खर्च और हिसाब किताब सब मेरे पास होता था और उसकी जरूरते भी में ही पूरी करती थी।
लेकिन रात को एक अजनबी मेरे सपनो में आता और वो मुझे उत्तेजित कर देता लेकिन में उस सपने को नजरअंदाज कर देती, में जानती थी वो अजनबी कौन हे।
अब दूरी तो उसने भी मुझ से बना ली थी। मैंने तो जरूरत पड़ने पर दो तीन बार उसे बुला ही लिया था मगर उसने एक बार भी बात करने की कोशिश नहीं की थी। पैसे न होने पर भी उसने मुझसे मांगे नही थे। मगर एक दूसरे से बात न करने की हमारी वजह अलग अलग थी। मैं उसे उसकी करतूत के लिए सजा दे रही थी जबके वो अपना बचाव कर रहा था। वो इस बात की पूरी कोशिश करता था के हमारा आमना सामना कम से कम हो जा बिलकुल ना हो। सुबह कॉलेज को जाना और कॉलेज से सीधा घर आना। खाना खाने भी वो हमारे बुलाने के बाद ही आता था। अपने बाप से भी बेहद कम बोलता था। यहाँ तक के उसने कॉलेज के सिवा और कहीं जाना बिलकुल बंद कर दिया था। पहले वो रोजाना अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने जाता था, हफ्ते में एक दो बार सिनेमा देखने जा फिर यूँ ही कहीं घूमने चले जाना जैसे आजकल जवान छोकरे करते हैं। लेकिन नहीं, उसने कॉलेज के सिवा सब बंद कर दिया था।
मुझे लगता था सायद उसे इस बात का डर था के कहीं मैं किसी बात पर उससे गुस्सा न हो जायुं और उसके बाप के सामने उसकी पोल ना खोल दू। मेरी नाराज़गी तो वो यकीनन किसी भी हालात में नहीं चाहता था। या फिर शायद वो बात के ठंड पड़ने के इंतज़ार कर रहा था और उसकी यह शराफत वकती तौर पर उसका ढोंग मात्र थी।
वजह कुछ भी हो मगर हम दोनों के एक दूसरे से इस तरह कट जाने से घर में एक दम नीरसता छा गयी थी। असहनीय शांति और भयानक चुप्पी से हमारा घर घर ना होकर समशान लगने लगा था। कभी कभी तो मुझे डर लगने लगता था। बेटा घर में होता भी तो अपने कमरे से बहार नही निकलता था और मैं उसके कमरे में जाती नहीं थी। मैं जाती थी उसका बिस्तर बनाने जा फिर गंदे कपडे उठाने, मगर तभी जब वो कॉलेज गया होता। वो बंद कमरे में काया करता था मैं नहीं जान सकती थी। अपनी पढ़ाई कितनी करता था, सोता कितना था जा फिर इंटरनेट पर ब्लू फिल्म्स देखता था जा अश्लील सहित पढ़ता था, मेरे पास जानने का कोई मार्ग नहीं था। उसके कमरे से हालांके मुझे ढूंढने पर भी कोई आपत्तिजनक चीज़ नहीं मिली थी और पासवर्ड प्रोटेक्टर होने के कारन उसका कंप्यूटर तो मैं चला नहीं सकती थी।