22-06-2021, 03:56 PM
जितेश और विनोद चुपचाप बाइक लेकर वहां से निकल लिए | रात के आठ बज चुके थे | गेट से बाहर आते ही सभी का ढाबे पर मिलने का प्लान था लेकिन कुछ दूर चलते ही जितेश को आभास हो गया की उनका पीछा किया जा रहा है |
जितेश ने विनोद से कहा - ये साला हरामजादा नहीं सुधरेगा, हमारे पीछे आदमी लगा दिए है |
विनोद - हूँ, ये तो होना ही था | साला अपनी फितरत से मजबूर है वो | ढाबे पर जाना सही नहीं रहेगा |
जितेश - फिर क्या करे |
विनोद - जहाँ भी उस औरत को रखा है वहां जाना भी ठीक नहीं रहेगा | जितेश ने बाइक धीमी कर दी |
जितेश - क्या करे फिर ?
विनोद - जो भी करना है बहुत सावधानी से करना होगा ? एक काम करो उस औरत की कुछ फोटो छपवा लो | हम उसे बिलकुल वैसे ही ढूढेगे जैसे सामान्यतः होता है | फोटो चिपकायेगे , लोगो से पूछेगे | जिससे सूर्यदेव के जासूस हमारी खबर उस तक पंहुचा दे, इससे उसे शक नहीं होगा |
जितेश - समझ गया, हमें इनके जासूसों को बेवखूफ़ बनाना है ताकि उन्हें ये अहसास न हो की हमारे पास रीमा की जानकारी है |
विनोद - सही समझे |
जितेश - ठीक है मै ऑटो से निकल जाऊंगा, कुछ देर बाद आप बाइक लेकर घर चले जाना | कल ढाबे की जगह नदी के दक्षिण किनारे जंगल में मशरूम वाले इलाके में मिलेगे | आप लोग नदी के उत्तर वाली बस्ती में पूछ ताछ करना फिर मौका देकर नदी पार कर दूसरी तरफ आ जाना मै वही मिल्लूँगा | कब मिलना है ये फ़ोन पर बताऊंगा | कोड रहेगा | मशरूम पानी में भिगोना है | सकी और रहीम को आप खबर कर देना | गुड्डू को अभी इससे बाहर रखो |
जितेश कुछ देर बाद बाइक रोककर उतर गया | विनोद बाइक लेकर चला गया | जितेश ने पलक झपकते एक टेम्पो में बैठ गया और अपने गंतव्य की तरफ चलने लगा | टेम्पो में बैठते ही उसने आखिरी बार फिर से एक बार गिरधारी को फोन लगाया। गिरधारी ने फोन नहीं उठाया। अब जितेश को कुछ गड़बड़ होने की शंका होने लगी।
उसने रास्ते में ही टेम्पो से उतर लिया और एक ऑटो में बैठ गया | उसे बस्ती में नहीं जाना था | उसने जंगल में एक गड्ढा बनाकर रखा हुआ था जहाँ वो रात गुजार सकता था लेकिन गिरधारी का पता लगाना जरुरी था | उसने अच्छे से अपने मुंह को बांधा, ऑटो से उतर कर अंधेरे में सड़क किनारे लगे कंटीले तारो को पार कर अँधेरे में गुम हो गया | कुछ देर बाद एक रिक्शे पर बैठकर कुछ देर चलने के बाद में उसने फिर से एक और ऑटो पकड़ा और अपनी बस्ती की तरफ चल दिया।
छुपते छुपाते जितेश को बस्ती में तक पहुंचने में 10:00 बज गए थे। उसकी बस्ती की गली में सिर्फ एक बल्ब टिमटिमाता था वहां आज जरुरत से ज्यादा रोशनी थी | जितेश सधे कदमो से आगे की तरफ बढ़ा | उसका मन किसी अनहोनी आंशका से घिर गया |
दूर से ही उसे सिक्युरिटी की जीप नजर आई | उसकी बस्ती में सिक्युरिटी उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था और सबसे हैरान करने वाली बात थी कि उसकी झुग्गी के सामने भीड़ का मेला लगा था वहां अच्छी खासी भीड़ लगी हुई थी। लोगों को हटा रही थी। जितेश छुपते छुपाते किसी तरह से उसी भीड़ का हिस्सा बनकर के पास में गया तो देखा। वहां पर एक कपड़ों से ढकी हुई जमीन पर एक आदमी लेटा हुआ है।
जितेश का मुहँ ढका हुआ था | उसने दबी आवाज में पुछा - चाची क्या हुआ है यहां |
औरत - कुछ नहीं भैया एक आदमी की लाश मिली है इसके झोपड़ी के अंदर से और बाकी सिक्युरिटी जांच रही है। दूसरा बोला - बड़ा ही खुफिया अड्डा था किसी का, साला पीछे से आने जाने के लिए सुरंग बना रखी थी। इस बस्ती में कैसे-कैसे लोग रहते हैं। भगवान जाने | जितेश जो कुछ देख रहा था उससे उसका दिमाग सुन्न हो गया था | वो गहरे शाक में था लेकिन खुद को बाहर से संभाले था |
जितेश - हाँ चाची पता नहीं कैसे कैसे लोग रहते है |
चाची - हां भैया ....सीधे दरवाजे से तो कभी ताला खुलते हमने देखा नहीं | हमें तो लगता था यहाँ कोई रहता ही नहीं है | हमेशा बंद ही देखा है इस झोपड़ी को |
जितेश - इ कौन है चाची, आदमी है या औरत ..जिंदा है या मर गया?
चाची - है तो कोई आदमी है, नंगी लाश मिली है अंदर से | सिक्युरिटी तो कह रही है कि मर गया है अब पता नहीं अब ज्यादा हम पूछे नहीं।
अब जितेश वहां ज्यादा देर तक खड़ा नहीं रह सकता था | उसके पाँव कांपने लगे थे | जितेश चुपचाप वहां से निकल लिया। उसे पता था,यहां रहेगा तो खतरा है लेकिन जाते-जाते उसे एक और आदमी मिला।
जितेश - इहाँ का हुआ है भिया |
आदमी - अरे हुआ का है आदमी की लाश मिली है बिना कपड़ो की | खोपडिया पर जोरदार किसी चीज से मारा गया है और चाकू जांघ में खोपा मिला था | खोपड़ी फटने से खून निकल गया है तभी मरा है शायद | अब पता नहीं असल में एक हुआ होगा। भगवान जाने इस बस्ती में का का होता रहता है। कुछ पता थोड़ी चलता है।
जितेश - हां हां बात तो तुम ठीक है, कह रहे हो?
जितेश ने जो कुछ भी सोच रखा था। वह सब खत्म हो चुका था। यहां सिक्युरिटी है यह लाश पड़ी है आदमी की लाश है तो रीमा कहां गई थी। ये गिरधारी है या और कोई | रीमा को ले करके करके उसने सपने पाल रखे थे। जिस रीमा के ऊपर उस नेता बड़ा दांव लगा रखा था। वह सब खत्म होता दिख रहा था। अब वह क्या करें, वहां रुकने में खतरा था। सिक्युरिटी पहचान लेती तो उसको भी लपेट ले जाती हो। चुपचाप वहां से दबे पांव चला गया। उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था। वह करे तो क्या करें उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था तो चुपचाप जाकर के जंगल की तरफ चला गया और रातभर वही बैठा रहा। सुबह लगभग 3:00 बजे उठकर से जंगल से वापस बस्ती की तरफ आया। अब वहां ना सिक्युरिटी थी ना कोई और था उसकी झोपड़ी पूरी तरह से खाली पड़ी।
उसे चारों तरफ से अपनी पैनी निगाह से देखा भीड़ यहां से जा चुकी थी। पड़ोसी का भी अब कोई मजमा नहीं था। वहां से वह चुपचाप अंदर घुस गया और अंदर क्या हुआ होगा। इसका अंदाजा लगाने लगा। उसने देखा पैसो वाला बैग गायब है और असलहा भी नहीं है उसकी झोपड़ी पर सिक्युरिटी का लंबा सा ताला लटका हुआ था। अब सुबह वो विनोद साकी को क्या बताएगा ...... उसे कुछ समझ में नहीं आता। सुरंग से निकल कर तेजी से वापस जंगल की तरफ चला गया और सुबह की पहली पौ फटते ही , उसके दिन का अँधेरा शुरू हो चूका था ।
जितेश ने विनोद से कहा - ये साला हरामजादा नहीं सुधरेगा, हमारे पीछे आदमी लगा दिए है |
विनोद - हूँ, ये तो होना ही था | साला अपनी फितरत से मजबूर है वो | ढाबे पर जाना सही नहीं रहेगा |
जितेश - फिर क्या करे |
विनोद - जहाँ भी उस औरत को रखा है वहां जाना भी ठीक नहीं रहेगा | जितेश ने बाइक धीमी कर दी |
जितेश - क्या करे फिर ?
विनोद - जो भी करना है बहुत सावधानी से करना होगा ? एक काम करो उस औरत की कुछ फोटो छपवा लो | हम उसे बिलकुल वैसे ही ढूढेगे जैसे सामान्यतः होता है | फोटो चिपकायेगे , लोगो से पूछेगे | जिससे सूर्यदेव के जासूस हमारी खबर उस तक पंहुचा दे, इससे उसे शक नहीं होगा |
जितेश - समझ गया, हमें इनके जासूसों को बेवखूफ़ बनाना है ताकि उन्हें ये अहसास न हो की हमारे पास रीमा की जानकारी है |
विनोद - सही समझे |
जितेश - ठीक है मै ऑटो से निकल जाऊंगा, कुछ देर बाद आप बाइक लेकर घर चले जाना | कल ढाबे की जगह नदी के दक्षिण किनारे जंगल में मशरूम वाले इलाके में मिलेगे | आप लोग नदी के उत्तर वाली बस्ती में पूछ ताछ करना फिर मौका देकर नदी पार कर दूसरी तरफ आ जाना मै वही मिल्लूँगा | कब मिलना है ये फ़ोन पर बताऊंगा | कोड रहेगा | मशरूम पानी में भिगोना है | सकी और रहीम को आप खबर कर देना | गुड्डू को अभी इससे बाहर रखो |
जितेश कुछ देर बाद बाइक रोककर उतर गया | विनोद बाइक लेकर चला गया | जितेश ने पलक झपकते एक टेम्पो में बैठ गया और अपने गंतव्य की तरफ चलने लगा | टेम्पो में बैठते ही उसने आखिरी बार फिर से एक बार गिरधारी को फोन लगाया। गिरधारी ने फोन नहीं उठाया। अब जितेश को कुछ गड़बड़ होने की शंका होने लगी।
उसने रास्ते में ही टेम्पो से उतर लिया और एक ऑटो में बैठ गया | उसे बस्ती में नहीं जाना था | उसने जंगल में एक गड्ढा बनाकर रखा हुआ था जहाँ वो रात गुजार सकता था लेकिन गिरधारी का पता लगाना जरुरी था | उसने अच्छे से अपने मुंह को बांधा, ऑटो से उतर कर अंधेरे में सड़क किनारे लगे कंटीले तारो को पार कर अँधेरे में गुम हो गया | कुछ देर बाद एक रिक्शे पर बैठकर कुछ देर चलने के बाद में उसने फिर से एक और ऑटो पकड़ा और अपनी बस्ती की तरफ चल दिया।
छुपते छुपाते जितेश को बस्ती में तक पहुंचने में 10:00 बज गए थे। उसकी बस्ती की गली में सिर्फ एक बल्ब टिमटिमाता था वहां आज जरुरत से ज्यादा रोशनी थी | जितेश सधे कदमो से आगे की तरफ बढ़ा | उसका मन किसी अनहोनी आंशका से घिर गया |
दूर से ही उसे सिक्युरिटी की जीप नजर आई | उसकी बस्ती में सिक्युरिटी उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था और सबसे हैरान करने वाली बात थी कि उसकी झुग्गी के सामने भीड़ का मेला लगा था वहां अच्छी खासी भीड़ लगी हुई थी। लोगों को हटा रही थी। जितेश छुपते छुपाते किसी तरह से उसी भीड़ का हिस्सा बनकर के पास में गया तो देखा। वहां पर एक कपड़ों से ढकी हुई जमीन पर एक आदमी लेटा हुआ है।
जितेश का मुहँ ढका हुआ था | उसने दबी आवाज में पुछा - चाची क्या हुआ है यहां |
औरत - कुछ नहीं भैया एक आदमी की लाश मिली है इसके झोपड़ी के अंदर से और बाकी सिक्युरिटी जांच रही है। दूसरा बोला - बड़ा ही खुफिया अड्डा था किसी का, साला पीछे से आने जाने के लिए सुरंग बना रखी थी। इस बस्ती में कैसे-कैसे लोग रहते हैं। भगवान जाने | जितेश जो कुछ देख रहा था उससे उसका दिमाग सुन्न हो गया था | वो गहरे शाक में था लेकिन खुद को बाहर से संभाले था |
जितेश - हाँ चाची पता नहीं कैसे कैसे लोग रहते है |
चाची - हां भैया ....सीधे दरवाजे से तो कभी ताला खुलते हमने देखा नहीं | हमें तो लगता था यहाँ कोई रहता ही नहीं है | हमेशा बंद ही देखा है इस झोपड़ी को |
जितेश - इ कौन है चाची, आदमी है या औरत ..जिंदा है या मर गया?
चाची - है तो कोई आदमी है, नंगी लाश मिली है अंदर से | सिक्युरिटी तो कह रही है कि मर गया है अब पता नहीं अब ज्यादा हम पूछे नहीं।
अब जितेश वहां ज्यादा देर तक खड़ा नहीं रह सकता था | उसके पाँव कांपने लगे थे | जितेश चुपचाप वहां से निकल लिया। उसे पता था,यहां रहेगा तो खतरा है लेकिन जाते-जाते उसे एक और आदमी मिला।
जितेश - इहाँ का हुआ है भिया |
आदमी - अरे हुआ का है आदमी की लाश मिली है बिना कपड़ो की | खोपडिया पर जोरदार किसी चीज से मारा गया है और चाकू जांघ में खोपा मिला था | खोपड़ी फटने से खून निकल गया है तभी मरा है शायद | अब पता नहीं असल में एक हुआ होगा। भगवान जाने इस बस्ती में का का होता रहता है। कुछ पता थोड़ी चलता है।
जितेश - हां हां बात तो तुम ठीक है, कह रहे हो?
जितेश ने जो कुछ भी सोच रखा था। वह सब खत्म हो चुका था। यहां सिक्युरिटी है यह लाश पड़ी है आदमी की लाश है तो रीमा कहां गई थी। ये गिरधारी है या और कोई | रीमा को ले करके करके उसने सपने पाल रखे थे। जिस रीमा के ऊपर उस नेता बड़ा दांव लगा रखा था। वह सब खत्म होता दिख रहा था। अब वह क्या करें, वहां रुकने में खतरा था। सिक्युरिटी पहचान लेती तो उसको भी लपेट ले जाती हो। चुपचाप वहां से दबे पांव चला गया। उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था। वह करे तो क्या करें उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था तो चुपचाप जाकर के जंगल की तरफ चला गया और रातभर वही बैठा रहा। सुबह लगभग 3:00 बजे उठकर से जंगल से वापस बस्ती की तरफ आया। अब वहां ना सिक्युरिटी थी ना कोई और था उसकी झोपड़ी पूरी तरह से खाली पड़ी।
उसे चारों तरफ से अपनी पैनी निगाह से देखा भीड़ यहां से जा चुकी थी। पड़ोसी का भी अब कोई मजमा नहीं था। वहां से वह चुपचाप अंदर घुस गया और अंदर क्या हुआ होगा। इसका अंदाजा लगाने लगा। उसने देखा पैसो वाला बैग गायब है और असलहा भी नहीं है उसकी झोपड़ी पर सिक्युरिटी का लंबा सा ताला लटका हुआ था। अब सुबह वो विनोद साकी को क्या बताएगा ...... उसे कुछ समझ में नहीं आता। सुरंग से निकल कर तेजी से वापस जंगल की तरफ चला गया और सुबह की पहली पौ फटते ही , उसके दिन का अँधेरा शुरू हो चूका था ।