23-06-2021, 12:23 PM
अपडेट - 10
मैं ललिता के मूह से ये वर्ड्स सुन कर एक दम से हैरान रह गयी….मुझे समझ नही आ रहा था कि, जो लड़की हमेशा शरमाती रहती थी…किसी की तरफ आँख उठा कर भी नही देखती थी….उसे अचानक से क्या हो गया है…
मैं: ठीक है ललिता पर मैं तुम्हे ये सब करने से रोकूंगी….ये तुम्हारी लिए सही नही…कल कैसे तुम छी मुझे तो कहते हुए भी शरम आ रही है…तुम्हे ज़रा भी शरम नही आई अपनी टीचर के सामने ये सब करते हुए….कि तुम्हारी टीचर क्या सोचेंगी……कुछ तो ख़याल किया होता मेरा….
ललिता: जो क्या मेने किया…आपकी झान्टे क्यों सुलग रही है….मैं अच्छे से जानती हूँ. खुद तो आज तक कुछ कर नही पे हो……जाकर जिसे बताना है बता देना…
ये कहते हुए ललिता बस की तरफ चली गयी…जिंदगी मे इतने शॉक मुझे एक साथ कभी नही लगे थे…मेरी टांगे कांप रही थी….किसी तरह चल कर मैं बस तक पहुँची. और बस मे बैठ गयी…ललिता दूसरी बस मे बैठी थी राज के साथ…..मैं जानती थी, कि ललिता मे अभी बच्पना है….और ये सब वो बच्पने मे कर रही है….
पर मैं उसको अपनी जिंदगी बर्बाद करते हुए भी नही देख सकती थी…हम 1 घंटे मे खज़ार पहुँच गये….वहाँ हम सब ने पहले ब्रेकफास्ट किया…और फिर सब खज़ार की वादियों का लुफ्त उठाने लगे….पर मेरा मन बेचैन था…सभी स्टूडेंट्स इधर उधर छोटे-2 ग्रूप बना कर घूम रहे थे…मैं पहले से ही ललिता पर नज़रें जमाए हुए थी….पर ललिता इस बात से अंज़ान थी…
मैं ब्रेकफास्ट करके लड़कियों के बड़े से ग्रूप मे जाकर खड़ी हो गयी…..ललिता अकेली पहाड़ियों के पीछे जा रही थी…वो बार-2 पीछे मूड कर देख रही थी. शायद चेक कर रही थी कि, कोई उसे देख तो नही रहा…मैं ललिता के पीछे जाने लगी. इस तरह से कि वो मुझे अपने पीछे आता हुआ ना देख सके….ललिता काफ़ी देर तक चलती रही…हम भीड़ से काफ़ी आगे आ चुके थे…पर मुझे अब ललिता कही दिखाई नही दे रही थी…
मैं एक दम से परेशान हो गयी….और उस तरफ बढ़ने लगी….जिस तरफ ललिता गयी थी…चारो तरफ एक दम सुनसान था….ना कोई इंसान नज़र आ रहा था….और ना ही कोई घर….करीब 5 मिनिट चलने के बाद….मुझे एक टूटा सा हुआ घर दिखाई दिया. दूर से ही पता चल रहा था…वो घर अब खंडहर बन चुका है…मैं तेज़ी से उस तरफ बढ़ी…जैसे-2 मैं उस घर के करीब पहुँच रही थी….डर के मारे मेरे हाथ पैर काँपने शुरू हो गये थे…..उस घर के बाहर लकड़ी का एक टूटा हुआ डोर था…थोड़ा सा झुक कर उसके अंदर जाया जा सकता था…मेने अंदर झाँकने की कॉसिश की तो अंदर बहुत अंधेरा था…
अब मेरा दिल इतनी जोरो से धड़क रहा था कि, मैं अपने दिल की धड़कने भी सॉफ सुन पा रही थी…मेरा दिल बैठा जा रहा था….पर ऐसा लग रहा था….जैसे अंदर कोई ना हो. पर तभी मुझे अंदर से कुछ आहट सुनाई दी….मुझे लगा कि, आज तो ललिता लौट ही जाएगी. मुझे उसे किसी भी हाल मे ये सब करने से रोकना होगा….वो अभी ना समझ है… बच्ची है….मैं झुक कर उस डोर से अंदर गयी…और फिर मेरे सामने एक और डोर था. जो थोड़ा सा खुला हुआ था…
मैने वो डोर खोला तो सामने एक छोटा सा आँगन था….जिसके ऊपेर छत नही थी. सूरज की रोशनी देख कर मुझे थोड़ी राहत महसूस हुई…पर आँगन के चारो और कई रूम्स थे…अब ललिता किस रूम मे है…मैं डेड पाँव आगे बढ़ी…तो मुझे फिर से कुछ आहट सुनाई दी….मैं उस तरफ बढ़ी…जिस रूम से आवाज़ आ रही थी…मैने देखा कि उस रूम का डोर भी खुला हुआ था…मैं जैसे ही उस रूम के डोर पर पहुँची. किसी ने मुझे पीछे से धक्का देकर रूम के अंदर गिरा दिया….
रूम के अंदर सुखी घास का ढेर लगा हुआ था…इसलिए गिरने से मुझे चोट नही लगी. वरना जितनी बुरी तरह से मैं गिरी थी…मेरे हाथ पैर ज़रूर टूट जाते….मैं अपने ऊपेर हुए इस हमले से बिकुल अंज़ान थी…इसलिए मैं बहुत डर गयी…तभी बाहर से आती रोशनी के सामने कोई आकर खड़ा हुआ…मैं उसके चेहरे को ठीक से देख नही पा रही थी…”क क कॉन हो तुम…..” मेने अपने आप को उठाने की कॉसिश करते हुए कहा….
“क्यों मॅम मुझे नही पहचाना आप ने…” ये आवाज़ राज की थी….मैं एक दम से घबरा गयी…
.”राज तुम ये क्या बदतमीज़ी है….” मैने अपने कपड़ों पर लगी घास को झाड़ते हुए कहा
…”आज मैं तुम्हे दिखाउन्गा कि बदतमीज़ी क्या होती है..”
मैं जैसे ही खड़ी होने लगी…राज ने आगे बढ़ कर मेरी टाँगो को नीचे से पकड़ कर मुझे ख़ासीट दिया….मैं पीछे की तरफ लूड़क गयी….”आहह राज छोड़ो मुझे क्या कर रहे हो….छोड़ मुझे कुत्ते….”
इससे पहले कि मैं कुछ कर पाती या समझ पाती…राज मेरे ऊपेर सवार हो गया… उसकी कमर से नीचे वाला हिस्सा मेरी टाँगो के बीच मे था…और बाकी का हिस्सा मेरे ऊपेर था…मैं उसके वजन के कारण नीचे दब गयी….भले ही मैं राज से हाइट मे उँची लंबी थी….पर मेरी उसके सामने एक नही चल रही थी…इससे पहले कि मैं अपने आप को संभाल पाती…उसने मुझे अपने नीचे जाकड़ लिया….
मेने दोनो हाथों से उसके चेहरे को नोचना चाहा….पर उसने मेरे हाथों को पकड़ कर नीचे ज़मीन पर सटा दिया…”राज छोड़ो मुझे..क्या कर रहे हो….तुम मेरा रेप करने की कॉसिश कर रहे हो…तुम्हे बहुत महँगा पड़ेगा ये सब…” मेरी बात सुन कर राज हसने लगा…
.”रेप और तुम्हारा….वो भी मैं हाहाहा….शकल देखी है कभी आयने मे….साली तू औरत कम और जल्लाद ज़्यादा लगती है….और मेरे इतने भी बुरे दिन नही आए कि, मुझे रेप करना पड़े…और वो भी तेरे जैसी का….”
मैं: देखो राज हट जाओ….वरना मैं तुम्हारी कंप्लेंट पोलीस मे कर दूँगी…
राज: तुझे जो करना है कर लेना…तू मेरी झान्ट का बाल भी नही उखाड़ सकती..
मैं: अच्छा तो फिर एक बार छोड़ के देख मैं तुम्हारा क्या हशर करती हूँ….
राज: हशर तो मैं वो तुम्हारा करूँगा….कि तुम मरते दम तक मुझे भूल नही पाओगी….सोते जागते हर समय मेरा ये चेहरा तुम्हारे सामने आएगा….
ये कहते हुए, राज ने मेरे हाथो को पकड़ कर मेरे सर के साथ लगा दिया. जिससे कि मैं अपना सर भी ना हिला पाऊ…और फिर मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए बोला…”आज का दिन तुझे हमेशा याद रहेगा…” और ये कहते हुए, उसने मेरे होंटो पर अपने होंटो रख दिए…और ज़बरदस्ती मेरे होंटो को सक करने लगा…मैने अपने होंटो को आपस मे ज़ोर से भींच लिया….पर वो जिस तरह से मेरे होंटो को चूस रहा था…
मैं अपने होंटो को ज़्यादा देर तक आपस मे सटा कर नही रख पा रही थी…उसने मेरे होंटो पर अपने होंटो को रगड़ते हुए, मेरे हाथों को एक हाथ से पकड़ा, और अपना एक हाथ नीचे की और लेजाने लगा…..”ये ये तुम क्या कर रहे हो…राज छोड़ो मुझे प्लीज़ छोड़ो मुझे कोई है….” मेने चीखते हुए कहा….पर वहाँ कोन था…जो वहाँ पर आता….तभी मेरे कानो मे जैसे किसी ने बॉम्ब फोड़ दिया हो….
मुझे राज की पेंट की ज़िप्प खुलने की आवाज़ आई….और अगले ही पल मुझे अपनी टाँगो के बीच अपनी फुद्दि पर कुछ कड़क सा और गरम सा अहसास हुआ…..और अगले ही पल मेरी रूह अंदर तक कांप गयी….राज का बाबूराव मेरी सलवार और पेंटी के ऊपेर से मेरी चुनमुनियाँ पर धंसा हुआ था….मेरी टाँगे थरथराने लगी….और मुझे चुनमुनियाँ मे कल वाली सरसराहट फिर से महसूस होने लगी….पर इस बार चुनमुनियाँ की कुलबुलाहट बहुत ज़्यादा थी. एक अजीब सी गुदगुदी मुझे अपनी जाँघो के बीच और पेंटी के अंदर छुपी हुई चुनमुनियाँ पर हो रही थी…पर मेरा दिमाग़ मुझे कह रहा था….कि इसके चंगुल से निकल जा डॉली…”
मैं ललिता के मूह से ये वर्ड्स सुन कर एक दम से हैरान रह गयी….मुझे समझ नही आ रहा था कि, जो लड़की हमेशा शरमाती रहती थी…किसी की तरफ आँख उठा कर भी नही देखती थी….उसे अचानक से क्या हो गया है…
मैं: ठीक है ललिता पर मैं तुम्हे ये सब करने से रोकूंगी….ये तुम्हारी लिए सही नही…कल कैसे तुम छी मुझे तो कहते हुए भी शरम आ रही है…तुम्हे ज़रा भी शरम नही आई अपनी टीचर के सामने ये सब करते हुए….कि तुम्हारी टीचर क्या सोचेंगी……कुछ तो ख़याल किया होता मेरा….
ललिता: जो क्या मेने किया…आपकी झान्टे क्यों सुलग रही है….मैं अच्छे से जानती हूँ. खुद तो आज तक कुछ कर नही पे हो……जाकर जिसे बताना है बता देना…
ये कहते हुए ललिता बस की तरफ चली गयी…जिंदगी मे इतने शॉक मुझे एक साथ कभी नही लगे थे…मेरी टांगे कांप रही थी….किसी तरह चल कर मैं बस तक पहुँची. और बस मे बैठ गयी…ललिता दूसरी बस मे बैठी थी राज के साथ…..मैं जानती थी, कि ललिता मे अभी बच्पना है….और ये सब वो बच्पने मे कर रही है….
पर मैं उसको अपनी जिंदगी बर्बाद करते हुए भी नही देख सकती थी…हम 1 घंटे मे खज़ार पहुँच गये….वहाँ हम सब ने पहले ब्रेकफास्ट किया…और फिर सब खज़ार की वादियों का लुफ्त उठाने लगे….पर मेरा मन बेचैन था…सभी स्टूडेंट्स इधर उधर छोटे-2 ग्रूप बना कर घूम रहे थे…मैं पहले से ही ललिता पर नज़रें जमाए हुए थी….पर ललिता इस बात से अंज़ान थी…
मैं ब्रेकफास्ट करके लड़कियों के बड़े से ग्रूप मे जाकर खड़ी हो गयी…..ललिता अकेली पहाड़ियों के पीछे जा रही थी…वो बार-2 पीछे मूड कर देख रही थी. शायद चेक कर रही थी कि, कोई उसे देख तो नही रहा…मैं ललिता के पीछे जाने लगी. इस तरह से कि वो मुझे अपने पीछे आता हुआ ना देख सके….ललिता काफ़ी देर तक चलती रही…हम भीड़ से काफ़ी आगे आ चुके थे…पर मुझे अब ललिता कही दिखाई नही दे रही थी…
मैं एक दम से परेशान हो गयी….और उस तरफ बढ़ने लगी….जिस तरफ ललिता गयी थी…चारो तरफ एक दम सुनसान था….ना कोई इंसान नज़र आ रहा था….और ना ही कोई घर….करीब 5 मिनिट चलने के बाद….मुझे एक टूटा सा हुआ घर दिखाई दिया. दूर से ही पता चल रहा था…वो घर अब खंडहर बन चुका है…मैं तेज़ी से उस तरफ बढ़ी…जैसे-2 मैं उस घर के करीब पहुँच रही थी….डर के मारे मेरे हाथ पैर काँपने शुरू हो गये थे…..उस घर के बाहर लकड़ी का एक टूटा हुआ डोर था…थोड़ा सा झुक कर उसके अंदर जाया जा सकता था…मेने अंदर झाँकने की कॉसिश की तो अंदर बहुत अंधेरा था…
अब मेरा दिल इतनी जोरो से धड़क रहा था कि, मैं अपने दिल की धड़कने भी सॉफ सुन पा रही थी…मेरा दिल बैठा जा रहा था….पर ऐसा लग रहा था….जैसे अंदर कोई ना हो. पर तभी मुझे अंदर से कुछ आहट सुनाई दी….मुझे लगा कि, आज तो ललिता लौट ही जाएगी. मुझे उसे किसी भी हाल मे ये सब करने से रोकना होगा….वो अभी ना समझ है… बच्ची है….मैं झुक कर उस डोर से अंदर गयी…और फिर मेरे सामने एक और डोर था. जो थोड़ा सा खुला हुआ था…
मैने वो डोर खोला तो सामने एक छोटा सा आँगन था….जिसके ऊपेर छत नही थी. सूरज की रोशनी देख कर मुझे थोड़ी राहत महसूस हुई…पर आँगन के चारो और कई रूम्स थे…अब ललिता किस रूम मे है…मैं डेड पाँव आगे बढ़ी…तो मुझे फिर से कुछ आहट सुनाई दी….मैं उस तरफ बढ़ी…जिस रूम से आवाज़ आ रही थी…मैने देखा कि उस रूम का डोर भी खुला हुआ था…मैं जैसे ही उस रूम के डोर पर पहुँची. किसी ने मुझे पीछे से धक्का देकर रूम के अंदर गिरा दिया….
रूम के अंदर सुखी घास का ढेर लगा हुआ था…इसलिए गिरने से मुझे चोट नही लगी. वरना जितनी बुरी तरह से मैं गिरी थी…मेरे हाथ पैर ज़रूर टूट जाते….मैं अपने ऊपेर हुए इस हमले से बिकुल अंज़ान थी…इसलिए मैं बहुत डर गयी…तभी बाहर से आती रोशनी के सामने कोई आकर खड़ा हुआ…मैं उसके चेहरे को ठीक से देख नही पा रही थी…”क क कॉन हो तुम…..” मेने अपने आप को उठाने की कॉसिश करते हुए कहा….
“क्यों मॅम मुझे नही पहचाना आप ने…” ये आवाज़ राज की थी….मैं एक दम से घबरा गयी…
.”राज तुम ये क्या बदतमीज़ी है….” मैने अपने कपड़ों पर लगी घास को झाड़ते हुए कहा
…”आज मैं तुम्हे दिखाउन्गा कि बदतमीज़ी क्या होती है..”
मैं जैसे ही खड़ी होने लगी…राज ने आगे बढ़ कर मेरी टाँगो को नीचे से पकड़ कर मुझे ख़ासीट दिया….मैं पीछे की तरफ लूड़क गयी….”आहह राज छोड़ो मुझे क्या कर रहे हो….छोड़ मुझे कुत्ते….”
इससे पहले कि मैं कुछ कर पाती या समझ पाती…राज मेरे ऊपेर सवार हो गया… उसकी कमर से नीचे वाला हिस्सा मेरी टाँगो के बीच मे था…और बाकी का हिस्सा मेरे ऊपेर था…मैं उसके वजन के कारण नीचे दब गयी….भले ही मैं राज से हाइट मे उँची लंबी थी….पर मेरी उसके सामने एक नही चल रही थी…इससे पहले कि मैं अपने आप को संभाल पाती…उसने मुझे अपने नीचे जाकड़ लिया….
मेने दोनो हाथों से उसके चेहरे को नोचना चाहा….पर उसने मेरे हाथों को पकड़ कर नीचे ज़मीन पर सटा दिया…”राज छोड़ो मुझे..क्या कर रहे हो….तुम मेरा रेप करने की कॉसिश कर रहे हो…तुम्हे बहुत महँगा पड़ेगा ये सब…” मेरी बात सुन कर राज हसने लगा…
.”रेप और तुम्हारा….वो भी मैं हाहाहा….शकल देखी है कभी आयने मे….साली तू औरत कम और जल्लाद ज़्यादा लगती है….और मेरे इतने भी बुरे दिन नही आए कि, मुझे रेप करना पड़े…और वो भी तेरे जैसी का….”
मैं: देखो राज हट जाओ….वरना मैं तुम्हारी कंप्लेंट पोलीस मे कर दूँगी…
राज: तुझे जो करना है कर लेना…तू मेरी झान्ट का बाल भी नही उखाड़ सकती..
मैं: अच्छा तो फिर एक बार छोड़ के देख मैं तुम्हारा क्या हशर करती हूँ….
राज: हशर तो मैं वो तुम्हारा करूँगा….कि तुम मरते दम तक मुझे भूल नही पाओगी….सोते जागते हर समय मेरा ये चेहरा तुम्हारे सामने आएगा….
ये कहते हुए, राज ने मेरे हाथो को पकड़ कर मेरे सर के साथ लगा दिया. जिससे कि मैं अपना सर भी ना हिला पाऊ…और फिर मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए बोला…”आज का दिन तुझे हमेशा याद रहेगा…” और ये कहते हुए, उसने मेरे होंटो पर अपने होंटो रख दिए…और ज़बरदस्ती मेरे होंटो को सक करने लगा…मैने अपने होंटो को आपस मे ज़ोर से भींच लिया….पर वो जिस तरह से मेरे होंटो को चूस रहा था…
मैं अपने होंटो को ज़्यादा देर तक आपस मे सटा कर नही रख पा रही थी…उसने मेरे होंटो पर अपने होंटो को रगड़ते हुए, मेरे हाथों को एक हाथ से पकड़ा, और अपना एक हाथ नीचे की और लेजाने लगा…..”ये ये तुम क्या कर रहे हो…राज छोड़ो मुझे प्लीज़ छोड़ो मुझे कोई है….” मेने चीखते हुए कहा….पर वहाँ कोन था…जो वहाँ पर आता….तभी मेरे कानो मे जैसे किसी ने बॉम्ब फोड़ दिया हो….
मुझे राज की पेंट की ज़िप्प खुलने की आवाज़ आई….और अगले ही पल मुझे अपनी टाँगो के बीच अपनी फुद्दि पर कुछ कड़क सा और गरम सा अहसास हुआ…..और अगले ही पल मेरी रूह अंदर तक कांप गयी….राज का बाबूराव मेरी सलवार और पेंटी के ऊपेर से मेरी चुनमुनियाँ पर धंसा हुआ था….मेरी टाँगे थरथराने लगी….और मुझे चुनमुनियाँ मे कल वाली सरसराहट फिर से महसूस होने लगी….पर इस बार चुनमुनियाँ की कुलबुलाहट बहुत ज़्यादा थी. एक अजीब सी गुदगुदी मुझे अपनी जाँघो के बीच और पेंटी के अंदर छुपी हुई चुनमुनियाँ पर हो रही थी…पर मेरा दिमाग़ मुझे कह रहा था….कि इसके चंगुल से निकल जा डॉली…”