19-06-2021, 11:22 PM
कुछ देर और उसके स्तनों का भोग लगाने के बाद, वो उसके शरीर के अन्य हिस्सों को भी चूमते हुए नीचे की तरफ जाने लगा। गौरी के योनिस्थल पर बाल थे। कौतूहलवश, उसने उँगलियों से बालों को अलग किया, और योनि के होंठों पर एक प्रगाढ़ चुम्बन रसीद दिया। गौरी आनंद से सिहर उठी! हद तो तब ही गई, जब आदर्श ने उसकी योनि के चीरे की लम्बाई पर ऊपर नीचे कई बार चाट भी लिया।
“ईइस्स्स्स! ऐसे मत करिए.. ये गन्दा है..”
“मुझे लगा कि आपने नहाया है..” कह कर आदर्श वापस उसी काम में लग गया।
“हाँ.. लेकिन.. ऊऊह्ह्ह्ह!” उसका वाक्य अधूरा ही रह गया। आदर्श ने जो कुछ भी किया था, वो उसको अत्यंत आनंद दे रहा था।
लेकिन, आदर्श को भी इस विषय में कोई ज्ञान नहीं था। जो भी उसको समझ में आ रहा था, वो कर रहा था.. यह सोच कर कि शायद गौरी को पसंद आये! उसको नहीं मालूम था की सम्भोग के समय में क्या कार्य करने होते हैं, कैसे करने होते हैं, और कितनी देर करने होते हैं! अपनी सीमा में उसको जो भी समझ आ रहा था, वो बढ़िया कर रहा था।
न तो आदर्श, और न ही गौरी को इस बात का भान भी हुआ कि गौरी पहले अपने स्तन पिए जाने, और अब अपनी योनि पिए जाने पर – मतलब दो बार यौन चरमोत्कर्ष प्राप्त कर चुकी है! खैर, मुँह का इस्तेमाल कब तक करे कोई! इसलिए अब वो रुक गया। समय हो गया था!
आदर्श ने जल्दी जल्दी निर्वस्त्र होना शुरू किया। गौरी ने एक बात पर गौर किया कि आदर्श अपनी उम्र के हिसाब से सुगढ़ और अच्छी डील डौल वाला नवयुवक था।
‘कुछ और समय में वो पूर्ण पुरुष बन जायेगा तो कितना आकर्षक लगेगा!’ उसने सोचा।
लेकिन अभी भी वो एक आकर्षक, और मंत्रमुग्ध कर देने वाला नवयुवक था। खेतों में श्रम, व्यायाम इत्यादि से बाहों की मछलियाँ साफ़ दिख रही थीं, सीने और कंधे मज़बूत, और कमर पतली थी। अपने पति को ऐसे देख कर गौरी का गला सूख गया। जब आदर्श अपनी जांघिया उतार रहा था, तो गौरी का दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था।
‘कैसा होगा इनका छुन्नू!’
जब आदर्श पूरी तरह से निर्वस्त्र हो गया तब गौरी का मन हुआ कि कहीं और देखे.. किसी और तरफ! लेकिन चाह कर भी वो ऐसा न कर सकी। वो सम्मोहित सी आदर्श के शिश्न को निहारने लगी। गौरी के पास किसी भी अन्य तरह की उपमा नहीं थी, आदर्श ले लिंग को देने के लिए। यह एक पुष्ट अंग था – एक सीधे केले के समान। उत्तेजनावश वो लगभग ऊर्ध्व खड़ा हुआ था और उसका सिरा कमरे की छत को निहार रहा था। उसका आकार, लम्बाई और मोटाई.. देख कर गौरी को डर लग गया।
ऐसे आदर्श के अंग को देख कर उसको कहीं न कहीं अपराध बोध सा हुआ, लेकिन वो बेबस थी। उसको इस अंग का उद्देश्य भी मालूम था। और यह भी मालूम था की यह उसके लिए बहुत बड़ा है। इसलिए उसको डर लग रहा था.. लेकिन यह इतना प्यारा सा अंग था कि उसकी दृष्टि वहां से हट ही नहीं पा रही थी। एक जादुई छड़ी के समान आदर्श के लिंग ने गौरी पर मोहिनी डाल दी।
आदर्श वापस बिस्तर पर आया। गौरी धड़कते दिल के साथ होने वाले सम्भोग की प्रत्याशा में लेटी हुई थी। आदर्श ने गौरी की टाँगे फैलाईं। ऐसा करने से गौरी के योनि-ओष्ठ थोड़े से अलग हो गए। सायंकाल की ढलती रौशनी में टाँगों के बीच छुपी योनि चमक रही थी। योनि रस लगातार रिस रहा था – गौरी का शरीर उसके अनजाने में ही अपने प्रथम प्रणय की प्रत्याशा में तैयार हो गया था।
उसने खुद को दोनों टांगों के बीच में स्थापित किया, और अपने शिश्न को उसकी योनि मुख पर व्यवस्थित किया। उंगली की मदद से उसने कुछ जगह बनाई, जिससे गौरी के होंठ उसके लिंग को पकड़ लें, और फिर उसके रस से शिश्नाग्र को सरोबार कर लिया।
गौरी घबरा रही थी, लेकिन फिर भी मुस्कुराई, “आप थोड़ा.. आराम से.... ये.. चोट लग सकती है..” उसने पूरा वाक्य नहीं कहा, लेकिन आदर्श को समझ में आ गया।
वो भी लज्जा से लाल होते हुए बोला, “मैंने कभी नहीं किया..”
गौरी की मुस्कान अभी भी बरकरार थी, “कोई बात नहीं.. आराम से.. मैं आपकी हूँ.. कहीं भागी नहीं जा रही हूँ.. जितना समय लेना हो, लीजिए..”
गौरी की योनि का छेड़ दरअसल छोटा था। शायद सभी कुंवारी लड़कियों का ऐसे ही होता हो। आदर्श जानता था कि उसको दर्द होगा.. लेकिन क्या करे! आज उनका मिलन तो अपरिहार्य था! गौरी को वो किसी भी तरह का दुःख, दर्द देने के ख़याल से ही घृणा करता था, लेकिन आज उसको अपनी बनाना ही था। या उसकी इच्छा भी थी, और इसमें गौरी की रजामंदी भी थी.. इसलिए आज वह स्वार्थी हो गया।
“बहुत आराम से.. ठीक है?” उसने फुसफुसाते हुए कहा।
गौरी ने हामी में सर हिलाया। आदर्श ने गौरी के गर्भ के द्वार में अपना लिंग बैठाया, और सावधानी से धीरे धीरे लिंग को अन्दर की तरफ ठेला। आदर्श के लिंग के गोल और बड़े सिरे ने तुरंत ही गौरी के योनि मुख को फैला दिया। प्रतिक्रिया में गौरी ने एक तेज़ साँस ली और घूँट कर के पी ली। आदर्श रुक गया – अभी तो वो कही गया भी नहीं! जब गौरी ने साँस छोड़ी, तब आदर्श ने पुनः लिंग को ठेला – इस बार थोड़ा और बलपूर्वक। तनाव में आकर गौरी का शरीर अकड़ गया; उसने आदर्श को कांपते हुए आलिंगन में भर लिया। उसके घुटने खुद-ब-खुद ऊपर की तरफ उठ गए, और उसके पैर आदर्स के नितम्बो के गिर्द लिपट गए। इस आसन में गौरी की योनि ने अनचाहे ही आदर्श को रास्ता दे दिया। दरअसल असली अवरोध तो उसकी योनिमुख का छोटा सा द्वार था, जो की खुल गया था। आदर्श अभी भी लिंग को आगे ठेल रहा था, अभी वो कुछ अन्दर चला गया था। लेकिन फिलहाल उसने और आगे बढ़ना रोक लिया, जिससे गौरी को कुछ आराम मिल सके।
“ऊह्ह” गौरी ने गहरी साँस ली, और बस!
आदर्श ने पुनः धक्का लगाया। इस बार उसने गौरी की पीड़ा की परवाह नहीं की। और तुरंत ही उसका लिंग गौरी की योनि के भीतर कई इंच अन्दर तक चला गया। दोनों ही इस बात पर आश्चर्यचकित हो गए। साथ ही साथ गौरी को तीव्र पीड़ा का अनुभव भी हुआ। उसका मुख पीदवश खुला हुआ था, लेकिन कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। मानो साँसों ने आना जाना ही बंद कर दिया हो। आदर्श ने देखा तो फ़ौरन उसने अपने लिंग को पीछे खींचा। लगभग तुरंत ही गौरी की साँस वापस आ गईं।
उसकी आँखें आंसुओं से भर गईं। वो रोना चाहती थी, लेकिन रोई नहीं। यह सही समय नहीं था। क्या किससे सुने थे – सब बकवास! अभी तक उसको पीड़ा के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला। कोई आनंद नहीं! आदर्श ने अपने चुम्बनों से गौरी के नमकीन आँसुओं को पी लिया। उसके शिश्न का सिरा अभी भी गौरी के अन्दर ही था। जब गौरी पुनः तैयार हो गई, तो आदर्श ने फिर से धक्का लगाया, और लगभग उतना ही अन्दर गया जितना पहले गया था। उसने फिर जल्दी जल्दी चार पांच धक्के लगाए। गौरी को दर्द हुआ, लेकिन फिर भी वो हिम्मत जुटा कर मुस्कुराई। गौरी आदर्श को चाहती थी, और उसका दिल नहीं दुखाना चाहती थी। वैसे भी उसने आदर्श को इतने लम्बे समय तक वैवाहिक सुख से वंचित कर के रखा हुआ था, इस बात की वो क्षति पूर्ती भी करना चाहती थी। उसको मालूम था, कि अभी जो कुछ हो रहा है, उसको रोकना असंभव है।
कुछ ही धक्कों में आदर्श का लिंग आसानी से अन्दर बाहर आने जाने लगा। अब वो गौरी के और भीतर तक जा रहा था, और उसकी योनि का और अधिक प्रसार कर रहा था। गौरी भी आदर्श के प्रहारों का प्रतिरोध नहीं कर रही थी, बल्कि उनको स्वीकार रही थी। आदर्श रह रह कर गौरी को चूमता, आलिंगन में भरता, और धक्के लगाता जाता।
गौरी की पूरी योनि आदर्श के लिंग से भर गई थी। उसने अपने पैर आदर्श की कमर के गिर्द लपेट रखी थी, जिससे आदर्श उसका योनि-भेदन समुचित तरीके से कर पा रहा था। एक बार उसके लिंग के गौरी की योनि के अधोभाग को छू लिया। कैसा अनपेक्षित संवेदन था! आदर्श उसके अन्दर उतना जा चुका था, जितना संभव था! यह बात आदर्श को भी मालूम हुई। उसने रुक कर गौरी को गले से लगा लिया। आदर्श के दिल की हर धड़कन से उसका शिश्न योनि के तल को जैसे बुहार रहा था। एक आश्चर्यजनक.. एक अतुल्य अनुभव!
गौरी भी आदर्श के दिल की धड़कन इस मैथुनिक संयोग से महसूस कर रही थी। दोनों ने बिना कुछ भी कहे सुने, एक दूसरे की आँखों में देर तक देखा। उस क्षण सम्भोग के स्वर्गिक आनंद की एक कोमल सी लौ, गौरी के भीतर संदीप्त हुई।
उसने फिर से धक्के लगाने आरम्भ कर दिए – इस बार कुछ तीव्र गति से। जल्दी ही गौरी के उत्तेजना अपने चरम शिखर पर पहुँच गई... और उस शाम तीसरी बार रति-निष्पत्ति का अनुभव करने लगी। लेकिन यह आनंद पहले दोनों आनंद के जोड़ से भी दो गुणा था! आदर्श ने जब उसकी योनि को रह रह कर अपने लिंग की लम्बाई पर संकुचित होता महसूस किया, वो वह खुद भी कामोन्माद के चरम पर पहुँच गया। महीने भर का संचित उसका वीर्य, गौरी की कोख में प्रस्फोट के रूप में खाली होने लगा।
गौरी महसूस कर रही थी, कि आदर्श भी वही आनंद महसूस कर रहा था जो की वो खुद भी कर रही है। उसके शिश्न के साथ साथ ही उसने अपनी योनि भी संकुचित करी। उसने आदर्श के आठ प्रस्फोट अपने भीतर महसूस किए। तब कहीं जा कर आदर्श ने राहत और आनंद भरी साँस बाहर छोड़ी।
जब उन दोनों की आँखें मिली, तो गौरी आदर्श के चेहरे पर देख सकती थी कि वो बताना चाहता था कि उसको कितना अच्छा लगा! लेकिन उसने खुद को ज़ब्त कर लिया.. बातें कर के ऐसे रोमानी माहौल का कबाड़ा क्यों किया जाय! बजे कुछ कहने के, आदर्श मुस्कुराया, और उसने गौरी का मुख चूम लिया।
“ईइस्स्स्स! ऐसे मत करिए.. ये गन्दा है..”
“मुझे लगा कि आपने नहाया है..” कह कर आदर्श वापस उसी काम में लग गया।
“हाँ.. लेकिन.. ऊऊह्ह्ह्ह!” उसका वाक्य अधूरा ही रह गया। आदर्श ने जो कुछ भी किया था, वो उसको अत्यंत आनंद दे रहा था।
लेकिन, आदर्श को भी इस विषय में कोई ज्ञान नहीं था। जो भी उसको समझ में आ रहा था, वो कर रहा था.. यह सोच कर कि शायद गौरी को पसंद आये! उसको नहीं मालूम था की सम्भोग के समय में क्या कार्य करने होते हैं, कैसे करने होते हैं, और कितनी देर करने होते हैं! अपनी सीमा में उसको जो भी समझ आ रहा था, वो बढ़िया कर रहा था।
न तो आदर्श, और न ही गौरी को इस बात का भान भी हुआ कि गौरी पहले अपने स्तन पिए जाने, और अब अपनी योनि पिए जाने पर – मतलब दो बार यौन चरमोत्कर्ष प्राप्त कर चुकी है! खैर, मुँह का इस्तेमाल कब तक करे कोई! इसलिए अब वो रुक गया। समय हो गया था!
आदर्श ने जल्दी जल्दी निर्वस्त्र होना शुरू किया। गौरी ने एक बात पर गौर किया कि आदर्श अपनी उम्र के हिसाब से सुगढ़ और अच्छी डील डौल वाला नवयुवक था।
‘कुछ और समय में वो पूर्ण पुरुष बन जायेगा तो कितना आकर्षक लगेगा!’ उसने सोचा।
लेकिन अभी भी वो एक आकर्षक, और मंत्रमुग्ध कर देने वाला नवयुवक था। खेतों में श्रम, व्यायाम इत्यादि से बाहों की मछलियाँ साफ़ दिख रही थीं, सीने और कंधे मज़बूत, और कमर पतली थी। अपने पति को ऐसे देख कर गौरी का गला सूख गया। जब आदर्श अपनी जांघिया उतार रहा था, तो गौरी का दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था।
‘कैसा होगा इनका छुन्नू!’
जब आदर्श पूरी तरह से निर्वस्त्र हो गया तब गौरी का मन हुआ कि कहीं और देखे.. किसी और तरफ! लेकिन चाह कर भी वो ऐसा न कर सकी। वो सम्मोहित सी आदर्श के शिश्न को निहारने लगी। गौरी के पास किसी भी अन्य तरह की उपमा नहीं थी, आदर्श ले लिंग को देने के लिए। यह एक पुष्ट अंग था – एक सीधे केले के समान। उत्तेजनावश वो लगभग ऊर्ध्व खड़ा हुआ था और उसका सिरा कमरे की छत को निहार रहा था। उसका आकार, लम्बाई और मोटाई.. देख कर गौरी को डर लग गया।
ऐसे आदर्श के अंग को देख कर उसको कहीं न कहीं अपराध बोध सा हुआ, लेकिन वो बेबस थी। उसको इस अंग का उद्देश्य भी मालूम था। और यह भी मालूम था की यह उसके लिए बहुत बड़ा है। इसलिए उसको डर लग रहा था.. लेकिन यह इतना प्यारा सा अंग था कि उसकी दृष्टि वहां से हट ही नहीं पा रही थी। एक जादुई छड़ी के समान आदर्श के लिंग ने गौरी पर मोहिनी डाल दी।
आदर्श वापस बिस्तर पर आया। गौरी धड़कते दिल के साथ होने वाले सम्भोग की प्रत्याशा में लेटी हुई थी। आदर्श ने गौरी की टाँगे फैलाईं। ऐसा करने से गौरी के योनि-ओष्ठ थोड़े से अलग हो गए। सायंकाल की ढलती रौशनी में टाँगों के बीच छुपी योनि चमक रही थी। योनि रस लगातार रिस रहा था – गौरी का शरीर उसके अनजाने में ही अपने प्रथम प्रणय की प्रत्याशा में तैयार हो गया था।
उसने खुद को दोनों टांगों के बीच में स्थापित किया, और अपने शिश्न को उसकी योनि मुख पर व्यवस्थित किया। उंगली की मदद से उसने कुछ जगह बनाई, जिससे गौरी के होंठ उसके लिंग को पकड़ लें, और फिर उसके रस से शिश्नाग्र को सरोबार कर लिया।
गौरी घबरा रही थी, लेकिन फिर भी मुस्कुराई, “आप थोड़ा.. आराम से.... ये.. चोट लग सकती है..” उसने पूरा वाक्य नहीं कहा, लेकिन आदर्श को समझ में आ गया।
वो भी लज्जा से लाल होते हुए बोला, “मैंने कभी नहीं किया..”
गौरी की मुस्कान अभी भी बरकरार थी, “कोई बात नहीं.. आराम से.. मैं आपकी हूँ.. कहीं भागी नहीं जा रही हूँ.. जितना समय लेना हो, लीजिए..”
गौरी की योनि का छेड़ दरअसल छोटा था। शायद सभी कुंवारी लड़कियों का ऐसे ही होता हो। आदर्श जानता था कि उसको दर्द होगा.. लेकिन क्या करे! आज उनका मिलन तो अपरिहार्य था! गौरी को वो किसी भी तरह का दुःख, दर्द देने के ख़याल से ही घृणा करता था, लेकिन आज उसको अपनी बनाना ही था। या उसकी इच्छा भी थी, और इसमें गौरी की रजामंदी भी थी.. इसलिए आज वह स्वार्थी हो गया।
“बहुत आराम से.. ठीक है?” उसने फुसफुसाते हुए कहा।
गौरी ने हामी में सर हिलाया। आदर्श ने गौरी के गर्भ के द्वार में अपना लिंग बैठाया, और सावधानी से धीरे धीरे लिंग को अन्दर की तरफ ठेला। आदर्श के लिंग के गोल और बड़े सिरे ने तुरंत ही गौरी के योनि मुख को फैला दिया। प्रतिक्रिया में गौरी ने एक तेज़ साँस ली और घूँट कर के पी ली। आदर्श रुक गया – अभी तो वो कही गया भी नहीं! जब गौरी ने साँस छोड़ी, तब आदर्श ने पुनः लिंग को ठेला – इस बार थोड़ा और बलपूर्वक। तनाव में आकर गौरी का शरीर अकड़ गया; उसने आदर्श को कांपते हुए आलिंगन में भर लिया। उसके घुटने खुद-ब-खुद ऊपर की तरफ उठ गए, और उसके पैर आदर्स के नितम्बो के गिर्द लिपट गए। इस आसन में गौरी की योनि ने अनचाहे ही आदर्श को रास्ता दे दिया। दरअसल असली अवरोध तो उसकी योनिमुख का छोटा सा द्वार था, जो की खुल गया था। आदर्श अभी भी लिंग को आगे ठेल रहा था, अभी वो कुछ अन्दर चला गया था। लेकिन फिलहाल उसने और आगे बढ़ना रोक लिया, जिससे गौरी को कुछ आराम मिल सके।
“ऊह्ह” गौरी ने गहरी साँस ली, और बस!
आदर्श ने पुनः धक्का लगाया। इस बार उसने गौरी की पीड़ा की परवाह नहीं की। और तुरंत ही उसका लिंग गौरी की योनि के भीतर कई इंच अन्दर तक चला गया। दोनों ही इस बात पर आश्चर्यचकित हो गए। साथ ही साथ गौरी को तीव्र पीड़ा का अनुभव भी हुआ। उसका मुख पीदवश खुला हुआ था, लेकिन कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। मानो साँसों ने आना जाना ही बंद कर दिया हो। आदर्श ने देखा तो फ़ौरन उसने अपने लिंग को पीछे खींचा। लगभग तुरंत ही गौरी की साँस वापस आ गईं।
उसकी आँखें आंसुओं से भर गईं। वो रोना चाहती थी, लेकिन रोई नहीं। यह सही समय नहीं था। क्या किससे सुने थे – सब बकवास! अभी तक उसको पीड़ा के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला। कोई आनंद नहीं! आदर्श ने अपने चुम्बनों से गौरी के नमकीन आँसुओं को पी लिया। उसके शिश्न का सिरा अभी भी गौरी के अन्दर ही था। जब गौरी पुनः तैयार हो गई, तो आदर्श ने फिर से धक्का लगाया, और लगभग उतना ही अन्दर गया जितना पहले गया था। उसने फिर जल्दी जल्दी चार पांच धक्के लगाए। गौरी को दर्द हुआ, लेकिन फिर भी वो हिम्मत जुटा कर मुस्कुराई। गौरी आदर्श को चाहती थी, और उसका दिल नहीं दुखाना चाहती थी। वैसे भी उसने आदर्श को इतने लम्बे समय तक वैवाहिक सुख से वंचित कर के रखा हुआ था, इस बात की वो क्षति पूर्ती भी करना चाहती थी। उसको मालूम था, कि अभी जो कुछ हो रहा है, उसको रोकना असंभव है।
कुछ ही धक्कों में आदर्श का लिंग आसानी से अन्दर बाहर आने जाने लगा। अब वो गौरी के और भीतर तक जा रहा था, और उसकी योनि का और अधिक प्रसार कर रहा था। गौरी भी आदर्श के प्रहारों का प्रतिरोध नहीं कर रही थी, बल्कि उनको स्वीकार रही थी। आदर्श रह रह कर गौरी को चूमता, आलिंगन में भरता, और धक्के लगाता जाता।
गौरी की पूरी योनि आदर्श के लिंग से भर गई थी। उसने अपने पैर आदर्श की कमर के गिर्द लपेट रखी थी, जिससे आदर्श उसका योनि-भेदन समुचित तरीके से कर पा रहा था। एक बार उसके लिंग के गौरी की योनि के अधोभाग को छू लिया। कैसा अनपेक्षित संवेदन था! आदर्श उसके अन्दर उतना जा चुका था, जितना संभव था! यह बात आदर्श को भी मालूम हुई। उसने रुक कर गौरी को गले से लगा लिया। आदर्श के दिल की हर धड़कन से उसका शिश्न योनि के तल को जैसे बुहार रहा था। एक आश्चर्यजनक.. एक अतुल्य अनुभव!
गौरी भी आदर्श के दिल की धड़कन इस मैथुनिक संयोग से महसूस कर रही थी। दोनों ने बिना कुछ भी कहे सुने, एक दूसरे की आँखों में देर तक देखा। उस क्षण सम्भोग के स्वर्गिक आनंद की एक कोमल सी लौ, गौरी के भीतर संदीप्त हुई।
उसने फिर से धक्के लगाने आरम्भ कर दिए – इस बार कुछ तीव्र गति से। जल्दी ही गौरी के उत्तेजना अपने चरम शिखर पर पहुँच गई... और उस शाम तीसरी बार रति-निष्पत्ति का अनुभव करने लगी। लेकिन यह आनंद पहले दोनों आनंद के जोड़ से भी दो गुणा था! आदर्श ने जब उसकी योनि को रह रह कर अपने लिंग की लम्बाई पर संकुचित होता महसूस किया, वो वह खुद भी कामोन्माद के चरम पर पहुँच गया। महीने भर का संचित उसका वीर्य, गौरी की कोख में प्रस्फोट के रूप में खाली होने लगा।
गौरी महसूस कर रही थी, कि आदर्श भी वही आनंद महसूस कर रहा था जो की वो खुद भी कर रही है। उसके शिश्न के साथ साथ ही उसने अपनी योनि भी संकुचित करी। उसने आदर्श के आठ प्रस्फोट अपने भीतर महसूस किए। तब कहीं जा कर आदर्श ने राहत और आनंद भरी साँस बाहर छोड़ी।
जब उन दोनों की आँखें मिली, तो गौरी आदर्श के चेहरे पर देख सकती थी कि वो बताना चाहता था कि उसको कितना अच्छा लगा! लेकिन उसने खुद को ज़ब्त कर लिया.. बातें कर के ऐसे रोमानी माहौल का कबाड़ा क्यों किया जाय! बजे कुछ कहने के, आदर्श मुस्कुराया, और उसने गौरी का मुख चूम लिया।