19-06-2021, 11:21 PM
“गौरी..” आदर्श बिस्तर पर नहीं बैठा; बस खड़े खड़े ही एक नपी तुली आवाज़ में बोला, “आप यह सब कहीं अम्मा के दबाव में आकर तो नहीं कर रही हैं?”
गौरी फिर से चुप!
“भगवान् के वास्ते गौरी! आप कुछ कहती क्यों नहीं..?”
गौरी ने ‘न’ में सर हिलाया।
“इसका क्या मतलब है?”
गौरी के लिए अपनी आवाज़ को पाना ही दूभर हो रहा था। वो कैसे इस अन्तरंग विषय पर बात करे! क्या आदर्श को नहीं मालूम, कि संसर्ग जैसे विषय पर लडकियाँ कुछ बोल नहीं पातीं! खैर, उसने जैसे तैसे तो तमाम हिम्मत बटोर कर कहा.. कहा क्या, बस एक अस्पष्ट फुसफुसाहट सी निकली,
“नहीं.. उन उनके दबाव में न्न्न्नहीं..”
आदर्श ने इतनी दबी हुई बात भी साफ़ सुनी। इस एक छोटे से वाक्य ने उसके जीवन को एक अलग ही दिशा प्रदान कर दी।
“क्या सच?” वो मुस्कुराया! विजय वाली मुस्कराहट नहीं.. चाहे जाने पर प्रसन्न होने वाली मुस्कराहट!
गौरी ने उसको मुस्कुराते हुए तो नहीं देखा – वो तो अपना सर अपने घुटनों में छुपाए बैठी हुई थी। लेकिन वो भी मुस्कुराई। उसने हलके से सहमति में सर हिलाया। इस एक छोटे से संकेत से आदर्श के शिश्न में जीवन का संचार हो गया। युवावस्था तो होती ही ऐसी है! पल पल भर में शिश्न संभोगरत को तैयार हो जाता है।
“गौरी.. आप तो हमारे दिल की रानी हो..”
कहते हुए वो गौरी के समीप पलंग पर बैठा, और उंगली से उसकी ठोढ़ी उठा कर उसके रसीले गुलाब से होंठों को चूम लिया।
गौरी भी आदर्श के लिए अपने में, अपने ह्रदय में उमड़ते घुमड़ते प्रेम के सागर में डूबने लगी; जब आदर्श ने उसको चूमा, तो उसके सब्र का बाँध भी टूट गया – उसने आदर्श के चुम्बन का समुचित उत्तर दिया। उसको नहीं मालूम था कि चुम्बन कैसा होता है, या कैसे करते हैं.. लेकिन फिर भी, उसने कोशिश करी। और फिर एक चुम्बन के बाद दूसरा चुम्बन के बाद तीसरा चुम्बन.. प्रेमी युगल जल्दी ही अपने चुम्बनों के आदान प्रदान में गिनती भूल गया।
जब वो एक दूसरे से अलग हुए, तो भावना की दीवार जिसके भीतर गौरी ने स्वयं को बंद कर रखा था, वो टूट गई, और आंसू के रूप में उसके गालों पर ढलक गई। आदर्श को समझ में नहीं आया कि गौरी दुखी है या प्रसन्न – लेकिन उसने उसको अपने प्रेममय आलिंगन में बाँध लिया।
प्रेममय आलिंगन तो था ही, लेकिन उस आलिंगन में दो युवा शरीर बंधे हुए थे। पहली बार दोनों विपरीत लिंग के संसर्ग में बंधे हुए थे। आदर्श को गौरी के स्तन अपने सीने पर दबते हुए महसूस हुए। गौरी को भी महसूस हुआ – ऐसे कोमल और अन्तरंग एहसास लडकियों से चूक नहीं सकते। उसने गौरी की आँखों में देखा, मानो उससे कुछ कहना चाहता हो.. लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। गौरी भी कुछ देर रुकी – उसको भी लगा कि आदर्श उससे कुछ कहना चाहता था, लेकिन जब उसने कुछ नहीं कहा, तो उसने आगे बढ़ कर एक बार फिर से आदर्श के होंठों को चूम लिया। हलके से ही सही, यह चुम्बन गौरी की पहल की निशानी था। दोनों प्रेमी पुनः अधर-रस-पान करने में लीन हो गए। जब तक दोनों का चुम्बन छूटा, तब तक दोनों की साँसें भारी हो चली थीं।
दोनों ने पुनः एक दूसरे की आँखों में देखा। तेज़ साँसों के साथ साथ गौरी के स्तन भी तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे। ऐसा मनोहारी दृश्य आदर्श की आँखों से बच नहीं सका – उसकी कौतूहल और उत्साह भरी दृष्टि मानों गौरी के स्तनों पर ही चिपक गई। गौरी को मालूम था कि वो क्या देख रहा है, लेकिन फिर भी सहज रूप से आदर्श की दृष्टि का पीछा करते हुए उसकी आँख अपने ही स्तनों पर चली गई। ऐसे देखे जाने पर गौरी को लगा जैसे आदर्श उसको आँखों से ही निर्वस्त्र कर रहा हो। गौरी को लगा जैसे आदर्श उसकी मूक बढ़ाई करा रहा हो.. वैसी अनुभूति जैसे खुद को बड़ी शिद्दत से चाहे जाने पर होती है। लेकिन साथ ही साथ उसको शर्म भी आई कि उसके वक्षस्थल को इस प्रकार की निर्लज्जता से देखा जा रहा है! लज्जा से उसका चेहरा पुनः लाल हो गया... अपनी योनि के भीतर उसको एक अपरिचित सी झुनझुनी महसूस हुई। शर्म के मारे, उसने अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया।
समय बस पास ही था! आदर्श से अब रहा नहीं जा रहा था। उसने आगे बढ़ कर गौरी की चोली के निचले किनारे को ऊपर की तरफ हलके से खींचा। यह इशारा उसने समझा।
“प्प्पीछे.. से..” उसने हलकी सी घबराहट के साथ कहा।
आदर्श को समझ आया कि चोली को खोलने के लिए पीछे देखना पड़ेगा – पीठ की तरफ उसको खोलने के लिए हुक थे, और उनको खोलना परिश्रम वाला काम था। खैर, अधीर और कांपते हाथों से उसने जल्दी ही सारे हुक अलग कर दिए, और उस वस्त्र को गौरी के शरीर से अलग कर दिया। अचानक ही गौरी को एक नग्न अनुभूति होने लगी – भले ही उसने अभी भी समुचित कपडे पहन रखे थे। लेकिन आदर्श को निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि उसका पुरस्कार तो अभी भी छुपा हुआ था।
‘ये क्या बला है!’ उसको समझ ही नहीं आया कि इस नए तरह के वस्त्र का क्या करना है!
लेकिन वो था बहुत रोचक – लक्ष्मी देवी ने गौरी को यह कह कर पहना दिया था कि यह गौरी की माप का था, लेकिन ऐसा था नहीं। दरअसल वो ब्रा कुछ छोटी थी, जिसके दबाव से उसका वक्ष-विदरण उठ कर सामने आ गया था।
‘क्या बात है..!’ आदर्श के मन में अनायास ही प्रसंशा छूटी।
आदर्श को यूँ संभ्रमित होते हुए देख कर गौरी ने ही उसकी मदद करी।
“ये.. सामने से..” फुसफुसाती हुई आवाज़ में उसने मार्ग दर्शाया – उसको अपनी ही कही हुई बात पर शर्म आ गई। वो दरअसल आदर्श को बता रही थी कि उसको निर्वस्त्र कैसे किया जाय..
आदर्श को बात समझ में आ गई। उसने ध्यान से देखा, तो सामने की तरफ हुक दिखाई दिए, जिनको खोलते ही दुनिया के सबसे परिपूर्ण, दोषरहित, सुन्दर और गोल स्तन उसके दर्शन के लिए निरावृत हो गए। आदर्श ने पूरी तसल्ली से गौरी के ऊर्ध्व भाग को निर्वस्त्र किया और थोड़ा पीछे हट कर गौरी को दृष्टि भर कर देखा। गौरी की शारीरिक गढ़न के लिए उसके स्तन बिलकुल ही उत्तम थे और अत्यंत आकर्षक थे। उसकी स्तनों की गोलाइयों का रंग साफ़ था, और चूचकों और उनके गिर्द गोल घेरों का रंग गहरा लाल गुलाबी था। गौरी के चूचक उत्तेजनावश खड़े हो गए थे। ऐसा लग रहा था कि कुछ देर ऐसे ही रहेंगे तो फट पड़ेंगे!
‘ये तो एकदम शहतूत के फलों जैसे हैं.. वो लाल शहतूत...!’ उनको देख कर आदर्श को सबसे पहला यही ख़याल आया।
आदर्श को अपने स्तनों को ऐसे अरमान और लालसा भरी दृष्टि से देखते हुए देख कर गौरी का दिल पसीज गया। उसका मन हुआ कि वो आदर्श को अपने सीने में भींच ले। लेकिन वो कुछ कर न सकी। बस, नज़रें झुकाए अपने पति की लोभी आँखों का स्पर्श अपने चूचकों पर महसूस करती रही। उसको आज पहली बार अपनी योनि से कुछ रिसता हुआ सा महसूस हुआ। आदर्श के चुस्त पाजामे के भीतर से अंगड़ाई लेता हुआ उसका छुन्नू गौरी देख पा रही थी.. आखिरकार एक बड़ा सा तम्बू जो बना हुआ था वहां पर!
“खड़ी हो..” आदर्श ने आज्ञा दी। गौरी ने तुरंत उसका पालन किया।
पलंग पर बैठे हुए ही आदर्श ने उसकी कमर से पकड़ कर अपनी ओर खींचा, और फर एक एक कर के उसके सारे वस्त्र उतारने शुरू कर दिए। गौरी ने चड्ढी नहीं पहनी थी क्योंकि उनमें वो अत्यंत असहज महसूस कर रही थी। बस कुछ ही क्षणों में गौरी नितांत नग्न आदर्श के सामने खड़ी थी। उसके शरीर पर जेवरात छोड़ कर अब कुछ भी नहीं बचा था।
वो वैसी ही, अनाड़ी की भांति नग्न खड़ी थी। उत्तेजना, शर्म, और घबराहट से उसकी हालत खराब थी। उधर आदर्श की भी कोई अच्छी हालत नहीं थी। अपनी पत्नी के इस दिव्या रूप को देख कर वो विस्मय और आदर से भर गया था – कितनी कम उम्र लग रही थी गौरी! बहुत ही कम! खुद उसकी उम्र के जितनी! गुड़िया जैसी! बहुत बहुत सुन्दर! बेहद सुन्दर!
बिना गौरी के चेहरे से दृष्टि हटाए, उसने पुनः उसको कमर से पकड़ कर अपनी ओर समेटा, और अपने आलिंगन में फिर से बाँध लिया।
‘कितना चिकना शरीर!’ गौरी के नितम्बों पर हाथ फिराते हुए उसने महसूस किया!
गौरी के चूचक इतने करीब देख कर उसको सहज ही उनको पीने की इच्छा जाग गई – वो जानता था, कि इनमें दूध तो नहीं है अभी.. लेकिन फिर भी ऐसे सुन्दर स्तनों को बिना चखे कैसे रहा जाय?
गौरी की जैसे तो मन मांगी मुराद पूरी हो गए जब आदर्श ने उसके चूचकों को बारी बारी से पीना शुरू कर दिया। बिलकुल किसी भोले बच्चे के समान। वहां तक तो सब ठीक था, लेकिन इस पूरी क्रिया का गौरी पर अजीब सा प्रभाव हो रहा था। उसका पूरा शरीर कांप रहा था और उससे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। उसके पैर पके हुए मांड के जैसे हो गए थे – लिजलिजे.. नहीं लिजलिजे नहीं, डांवाडोल!
‘यहाँ मुझसे खड़ा ही नहीं हुआ जा रहा है, वो ये मेरे भोले सजन, मुझे छोड़ ही नहीं रहे हैं!’
फिर एक समय आया जब उसका पूरा शरीर बुरी तरह से कांपने लगा, इतनी तेज कि आदर्श ने भी महसूस किया। उसके स्तन पीना छोड़ कर वो प्रश्नवाचक दृष्टि से गौरी को देखने लगा। गौरी आँखें बंद किये, सर पीछे ढलकाए, और मुँह से साँस लेती हुई किसी और ही दुनिया में प्रतीत हो रही थी। आदर्श को नहीं मालूम पड़ा, लेकिन गौरी को पता चला कि उसकी योनि से एक प्रबल स्राव हुआ है! लेकिन क्या स्राव हुआ है, वो समझ नहीं आया उसको। उसको लगा कि शायद पेशाब हुई है। उसको शर्म आई! उसका पति क्या सोचेगा! वो तो गनीमत है कि इतना कम हुआ! लेकिन इस पेशाब का अनुभव कितना भिन्न था... कितना.. आनंददायक! ऐसा आनंद, जैसा कभी नहीं महसूस हुआ!
आदर्श ने गौरी को पलंग पर लिटा दिया।
गौरी फिर से चुप!
“भगवान् के वास्ते गौरी! आप कुछ कहती क्यों नहीं..?”
गौरी ने ‘न’ में सर हिलाया।
“इसका क्या मतलब है?”
गौरी के लिए अपनी आवाज़ को पाना ही दूभर हो रहा था। वो कैसे इस अन्तरंग विषय पर बात करे! क्या आदर्श को नहीं मालूम, कि संसर्ग जैसे विषय पर लडकियाँ कुछ बोल नहीं पातीं! खैर, उसने जैसे तैसे तो तमाम हिम्मत बटोर कर कहा.. कहा क्या, बस एक अस्पष्ट फुसफुसाहट सी निकली,
“नहीं.. उन उनके दबाव में न्न्न्नहीं..”
आदर्श ने इतनी दबी हुई बात भी साफ़ सुनी। इस एक छोटे से वाक्य ने उसके जीवन को एक अलग ही दिशा प्रदान कर दी।
“क्या सच?” वो मुस्कुराया! विजय वाली मुस्कराहट नहीं.. चाहे जाने पर प्रसन्न होने वाली मुस्कराहट!
गौरी ने उसको मुस्कुराते हुए तो नहीं देखा – वो तो अपना सर अपने घुटनों में छुपाए बैठी हुई थी। लेकिन वो भी मुस्कुराई। उसने हलके से सहमति में सर हिलाया। इस एक छोटे से संकेत से आदर्श के शिश्न में जीवन का संचार हो गया। युवावस्था तो होती ही ऐसी है! पल पल भर में शिश्न संभोगरत को तैयार हो जाता है।
“गौरी.. आप तो हमारे दिल की रानी हो..”
कहते हुए वो गौरी के समीप पलंग पर बैठा, और उंगली से उसकी ठोढ़ी उठा कर उसके रसीले गुलाब से होंठों को चूम लिया।
गौरी भी आदर्श के लिए अपने में, अपने ह्रदय में उमड़ते घुमड़ते प्रेम के सागर में डूबने लगी; जब आदर्श ने उसको चूमा, तो उसके सब्र का बाँध भी टूट गया – उसने आदर्श के चुम्बन का समुचित उत्तर दिया। उसको नहीं मालूम था कि चुम्बन कैसा होता है, या कैसे करते हैं.. लेकिन फिर भी, उसने कोशिश करी। और फिर एक चुम्बन के बाद दूसरा चुम्बन के बाद तीसरा चुम्बन.. प्रेमी युगल जल्दी ही अपने चुम्बनों के आदान प्रदान में गिनती भूल गया।
जब वो एक दूसरे से अलग हुए, तो भावना की दीवार जिसके भीतर गौरी ने स्वयं को बंद कर रखा था, वो टूट गई, और आंसू के रूप में उसके गालों पर ढलक गई। आदर्श को समझ में नहीं आया कि गौरी दुखी है या प्रसन्न – लेकिन उसने उसको अपने प्रेममय आलिंगन में बाँध लिया।
प्रेममय आलिंगन तो था ही, लेकिन उस आलिंगन में दो युवा शरीर बंधे हुए थे। पहली बार दोनों विपरीत लिंग के संसर्ग में बंधे हुए थे। आदर्श को गौरी के स्तन अपने सीने पर दबते हुए महसूस हुए। गौरी को भी महसूस हुआ – ऐसे कोमल और अन्तरंग एहसास लडकियों से चूक नहीं सकते। उसने गौरी की आँखों में देखा, मानो उससे कुछ कहना चाहता हो.. लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। गौरी भी कुछ देर रुकी – उसको भी लगा कि आदर्श उससे कुछ कहना चाहता था, लेकिन जब उसने कुछ नहीं कहा, तो उसने आगे बढ़ कर एक बार फिर से आदर्श के होंठों को चूम लिया। हलके से ही सही, यह चुम्बन गौरी की पहल की निशानी था। दोनों प्रेमी पुनः अधर-रस-पान करने में लीन हो गए। जब तक दोनों का चुम्बन छूटा, तब तक दोनों की साँसें भारी हो चली थीं।
दोनों ने पुनः एक दूसरे की आँखों में देखा। तेज़ साँसों के साथ साथ गौरी के स्तन भी तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे। ऐसा मनोहारी दृश्य आदर्श की आँखों से बच नहीं सका – उसकी कौतूहल और उत्साह भरी दृष्टि मानों गौरी के स्तनों पर ही चिपक गई। गौरी को मालूम था कि वो क्या देख रहा है, लेकिन फिर भी सहज रूप से आदर्श की दृष्टि का पीछा करते हुए उसकी आँख अपने ही स्तनों पर चली गई। ऐसे देखे जाने पर गौरी को लगा जैसे आदर्श उसको आँखों से ही निर्वस्त्र कर रहा हो। गौरी को लगा जैसे आदर्श उसकी मूक बढ़ाई करा रहा हो.. वैसी अनुभूति जैसे खुद को बड़ी शिद्दत से चाहे जाने पर होती है। लेकिन साथ ही साथ उसको शर्म भी आई कि उसके वक्षस्थल को इस प्रकार की निर्लज्जता से देखा जा रहा है! लज्जा से उसका चेहरा पुनः लाल हो गया... अपनी योनि के भीतर उसको एक अपरिचित सी झुनझुनी महसूस हुई। शर्म के मारे, उसने अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया।
समय बस पास ही था! आदर्श से अब रहा नहीं जा रहा था। उसने आगे बढ़ कर गौरी की चोली के निचले किनारे को ऊपर की तरफ हलके से खींचा। यह इशारा उसने समझा।
“प्प्पीछे.. से..” उसने हलकी सी घबराहट के साथ कहा।
आदर्श को समझ आया कि चोली को खोलने के लिए पीछे देखना पड़ेगा – पीठ की तरफ उसको खोलने के लिए हुक थे, और उनको खोलना परिश्रम वाला काम था। खैर, अधीर और कांपते हाथों से उसने जल्दी ही सारे हुक अलग कर दिए, और उस वस्त्र को गौरी के शरीर से अलग कर दिया। अचानक ही गौरी को एक नग्न अनुभूति होने लगी – भले ही उसने अभी भी समुचित कपडे पहन रखे थे। लेकिन आदर्श को निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि उसका पुरस्कार तो अभी भी छुपा हुआ था।
‘ये क्या बला है!’ उसको समझ ही नहीं आया कि इस नए तरह के वस्त्र का क्या करना है!
लेकिन वो था बहुत रोचक – लक्ष्मी देवी ने गौरी को यह कह कर पहना दिया था कि यह गौरी की माप का था, लेकिन ऐसा था नहीं। दरअसल वो ब्रा कुछ छोटी थी, जिसके दबाव से उसका वक्ष-विदरण उठ कर सामने आ गया था।
‘क्या बात है..!’ आदर्श के मन में अनायास ही प्रसंशा छूटी।
आदर्श को यूँ संभ्रमित होते हुए देख कर गौरी ने ही उसकी मदद करी।
“ये.. सामने से..” फुसफुसाती हुई आवाज़ में उसने मार्ग दर्शाया – उसको अपनी ही कही हुई बात पर शर्म आ गई। वो दरअसल आदर्श को बता रही थी कि उसको निर्वस्त्र कैसे किया जाय..
आदर्श को बात समझ में आ गई। उसने ध्यान से देखा, तो सामने की तरफ हुक दिखाई दिए, जिनको खोलते ही दुनिया के सबसे परिपूर्ण, दोषरहित, सुन्दर और गोल स्तन उसके दर्शन के लिए निरावृत हो गए। आदर्श ने पूरी तसल्ली से गौरी के ऊर्ध्व भाग को निर्वस्त्र किया और थोड़ा पीछे हट कर गौरी को दृष्टि भर कर देखा। गौरी की शारीरिक गढ़न के लिए उसके स्तन बिलकुल ही उत्तम थे और अत्यंत आकर्षक थे। उसकी स्तनों की गोलाइयों का रंग साफ़ था, और चूचकों और उनके गिर्द गोल घेरों का रंग गहरा लाल गुलाबी था। गौरी के चूचक उत्तेजनावश खड़े हो गए थे। ऐसा लग रहा था कि कुछ देर ऐसे ही रहेंगे तो फट पड़ेंगे!
‘ये तो एकदम शहतूत के फलों जैसे हैं.. वो लाल शहतूत...!’ उनको देख कर आदर्श को सबसे पहला यही ख़याल आया।
आदर्श को अपने स्तनों को ऐसे अरमान और लालसा भरी दृष्टि से देखते हुए देख कर गौरी का दिल पसीज गया। उसका मन हुआ कि वो आदर्श को अपने सीने में भींच ले। लेकिन वो कुछ कर न सकी। बस, नज़रें झुकाए अपने पति की लोभी आँखों का स्पर्श अपने चूचकों पर महसूस करती रही। उसको आज पहली बार अपनी योनि से कुछ रिसता हुआ सा महसूस हुआ। आदर्श के चुस्त पाजामे के भीतर से अंगड़ाई लेता हुआ उसका छुन्नू गौरी देख पा रही थी.. आखिरकार एक बड़ा सा तम्बू जो बना हुआ था वहां पर!
“खड़ी हो..” आदर्श ने आज्ञा दी। गौरी ने तुरंत उसका पालन किया।
पलंग पर बैठे हुए ही आदर्श ने उसकी कमर से पकड़ कर अपनी ओर खींचा, और फर एक एक कर के उसके सारे वस्त्र उतारने शुरू कर दिए। गौरी ने चड्ढी नहीं पहनी थी क्योंकि उनमें वो अत्यंत असहज महसूस कर रही थी। बस कुछ ही क्षणों में गौरी नितांत नग्न आदर्श के सामने खड़ी थी। उसके शरीर पर जेवरात छोड़ कर अब कुछ भी नहीं बचा था।
वो वैसी ही, अनाड़ी की भांति नग्न खड़ी थी। उत्तेजना, शर्म, और घबराहट से उसकी हालत खराब थी। उधर आदर्श की भी कोई अच्छी हालत नहीं थी। अपनी पत्नी के इस दिव्या रूप को देख कर वो विस्मय और आदर से भर गया था – कितनी कम उम्र लग रही थी गौरी! बहुत ही कम! खुद उसकी उम्र के जितनी! गुड़िया जैसी! बहुत बहुत सुन्दर! बेहद सुन्दर!
बिना गौरी के चेहरे से दृष्टि हटाए, उसने पुनः उसको कमर से पकड़ कर अपनी ओर समेटा, और अपने आलिंगन में फिर से बाँध लिया।
‘कितना चिकना शरीर!’ गौरी के नितम्बों पर हाथ फिराते हुए उसने महसूस किया!
गौरी के चूचक इतने करीब देख कर उसको सहज ही उनको पीने की इच्छा जाग गई – वो जानता था, कि इनमें दूध तो नहीं है अभी.. लेकिन फिर भी ऐसे सुन्दर स्तनों को बिना चखे कैसे रहा जाय?
गौरी की जैसे तो मन मांगी मुराद पूरी हो गए जब आदर्श ने उसके चूचकों को बारी बारी से पीना शुरू कर दिया। बिलकुल किसी भोले बच्चे के समान। वहां तक तो सब ठीक था, लेकिन इस पूरी क्रिया का गौरी पर अजीब सा प्रभाव हो रहा था। उसका पूरा शरीर कांप रहा था और उससे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। उसके पैर पके हुए मांड के जैसे हो गए थे – लिजलिजे.. नहीं लिजलिजे नहीं, डांवाडोल!
‘यहाँ मुझसे खड़ा ही नहीं हुआ जा रहा है, वो ये मेरे भोले सजन, मुझे छोड़ ही नहीं रहे हैं!’
फिर एक समय आया जब उसका पूरा शरीर बुरी तरह से कांपने लगा, इतनी तेज कि आदर्श ने भी महसूस किया। उसके स्तन पीना छोड़ कर वो प्रश्नवाचक दृष्टि से गौरी को देखने लगा। गौरी आँखें बंद किये, सर पीछे ढलकाए, और मुँह से साँस लेती हुई किसी और ही दुनिया में प्रतीत हो रही थी। आदर्श को नहीं मालूम पड़ा, लेकिन गौरी को पता चला कि उसकी योनि से एक प्रबल स्राव हुआ है! लेकिन क्या स्राव हुआ है, वो समझ नहीं आया उसको। उसको लगा कि शायद पेशाब हुई है। उसको शर्म आई! उसका पति क्या सोचेगा! वो तो गनीमत है कि इतना कम हुआ! लेकिन इस पेशाब का अनुभव कितना भिन्न था... कितना.. आनंददायक! ऐसा आनंद, जैसा कभी नहीं महसूस हुआ!
आदर्श ने गौरी को पलंग पर लिटा दिया।