19-06-2021, 11:19 PM
कुछ दिनों बाद –
“बिटिया, क्या तुम दोनों ने.. मेरा मतलब, सम्भोग करना शुरू किया?” लक्ष्मी देवी ने खुलेआम उससे पूछ लिया।
गौरी ने शर्म से सर झुका कर ‘न’ में सर हिलाया।
“मुझे मालूम था। मुझे मालूम था कि कुछ नहीं हुआ होगा। तुम दोनों ही बेकार हो – तुम भी, और तेरा पति भी! बस! अब बहुत हो गया! अब मैं इसको और घिसटने नहीं दूंगी। अगर मैं ऐसे ही इंतज़ार करती रही, तो बिना अपने पोते पोतियों का मुँह देखे ही चल बसूँगी...” उन्होंने कुछ क्षण रुक कर कुछ सोचा और आगे कहा, “ठीक है.. अब मैं जैसा कहती हूँ, ठीक वैसा ही कर! इसको अपनी अम्मा का आदेश मान। जा, और जा कर नहा कर आ.. फिर सारी बाते बताऊंगी..”
‘नहा कर..!’ गौरी को समझ नहीं आया, लेकिन अम्मा की बात नकारने की उसकी फितरत नहीं थी। जब वो नहा धो कर बाहर आई, तो लक्ष्मी देवी एक नौकरानी के साथ जेवर, और नए कपडे – लहँगा-चोली, और.. और.. ये क्या है? गौरी को अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ, जब उसने कपड़ों के बीच में विदेशी चड्ढी, और ब्रा देखी। ‘ये कहाँ से आई!’
“तेरे बाबूजी ने मंगवाया था.. वो क्या नाम है.. हाँ, अमरीका से! तेरा सीना भी मेरे जितना लगता है, तो.. तुझको भी दुरुस्त आएगा। और..” लक्ष्मी देवी ने दबी आवाज़ में मुस्कुराते हुए आगे कहा, “ये सामने से खुलता है..”
गौरी का चेहरा शर्म से चुकंदर के जैसा लाल लाल हो गया।
“तू समझ रही है न बिटिया रानी? आज तेरी सुहागरात है। कल जब तू उस कमरे से बाहर निकले न, तो कुमारी नहीं रहनी चाहिए। न तू, और न ही आदर्श! चल.. अब जल्दी से तुझे तैयार कर देती हूँ! आदर्श भी आने वाला होगा..”
****
इसको सुहागरात नहीं, सुहाग-शाम कहना अधिक मुनासिब होगा!
शाम के करीब पांच बजे होंगे, लेकिन लक्ष्मी देवी ने जिद कर के दोनों को उनके कमरे में भेज दिया। उन्होंने गौरी को बिस्तर पर बैठाया, उसका माथा चूमा, और निकलने से पहले उन दोनों से कहा,
“एक बात और... जब तुम दोनों कल इस कमरे से बाहर निकलो, तो मैं तुम दोनों को पूरी तरह से नंगा देखना चाहती हूँ.. समझे? पूरे नंगे.. तुम दोनों को..” और यह कह कर उन्होंने दरवाज़े का पल्ला लगा दिया।
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“बिटिया, क्या तुम दोनों ने.. मेरा मतलब, सम्भोग करना शुरू किया?” लक्ष्मी देवी ने खुलेआम उससे पूछ लिया।
गौरी ने शर्म से सर झुका कर ‘न’ में सर हिलाया।
“मुझे मालूम था। मुझे मालूम था कि कुछ नहीं हुआ होगा। तुम दोनों ही बेकार हो – तुम भी, और तेरा पति भी! बस! अब बहुत हो गया! अब मैं इसको और घिसटने नहीं दूंगी। अगर मैं ऐसे ही इंतज़ार करती रही, तो बिना अपने पोते पोतियों का मुँह देखे ही चल बसूँगी...” उन्होंने कुछ क्षण रुक कर कुछ सोचा और आगे कहा, “ठीक है.. अब मैं जैसा कहती हूँ, ठीक वैसा ही कर! इसको अपनी अम्मा का आदेश मान। जा, और जा कर नहा कर आ.. फिर सारी बाते बताऊंगी..”
‘नहा कर..!’ गौरी को समझ नहीं आया, लेकिन अम्मा की बात नकारने की उसकी फितरत नहीं थी। जब वो नहा धो कर बाहर आई, तो लक्ष्मी देवी एक नौकरानी के साथ जेवर, और नए कपडे – लहँगा-चोली, और.. और.. ये क्या है? गौरी को अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ, जब उसने कपड़ों के बीच में विदेशी चड्ढी, और ब्रा देखी। ‘ये कहाँ से आई!’
“तेरे बाबूजी ने मंगवाया था.. वो क्या नाम है.. हाँ, अमरीका से! तेरा सीना भी मेरे जितना लगता है, तो.. तुझको भी दुरुस्त आएगा। और..” लक्ष्मी देवी ने दबी आवाज़ में मुस्कुराते हुए आगे कहा, “ये सामने से खुलता है..”
गौरी का चेहरा शर्म से चुकंदर के जैसा लाल लाल हो गया।
“तू समझ रही है न बिटिया रानी? आज तेरी सुहागरात है। कल जब तू उस कमरे से बाहर निकले न, तो कुमारी नहीं रहनी चाहिए। न तू, और न ही आदर्श! चल.. अब जल्दी से तुझे तैयार कर देती हूँ! आदर्श भी आने वाला होगा..”
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इसको सुहागरात नहीं, सुहाग-शाम कहना अधिक मुनासिब होगा!
शाम के करीब पांच बजे होंगे, लेकिन लक्ष्मी देवी ने जिद कर के दोनों को उनके कमरे में भेज दिया। उन्होंने गौरी को बिस्तर पर बैठाया, उसका माथा चूमा, और निकलने से पहले उन दोनों से कहा,
“एक बात और... जब तुम दोनों कल इस कमरे से बाहर निकलो, तो मैं तुम दोनों को पूरी तरह से नंगा देखना चाहती हूँ.. समझे? पूरे नंगे.. तुम दोनों को..” और यह कह कर उन्होंने दरवाज़े का पल्ला लगा दिया।
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