19-06-2021, 11:14 PM
इस घटना के कुछ दिनों के बाद गौरी की अम्मा उससे मिलने के लिए आईं। गौरी उनको देख कर घोर आश्चर्यचकित हुई। सबसे अधिक आश्चर्य उसको इस बात का हुआ कि उसकी अम्मा की हालत पहले से कहीं अधिक अच्छी लग रही थी। अच्छी क्या – वो तो पूरी तरह स्वस्थ लग रही थीं। कहाँ वो रुग्ण, मरणासन्न अम्मा, और कहाँ ये! उनको देख कर लग रहा था जैसे उनका पुराना स्वास्थ्य वापस लौट आया हो। चेहरे पर कान्ति देख कर तो यही लग रहा था। वो वहां अधिक रुक तो नहीं सकती थीं (बेटी के घर का पानी नहीं पिया जाता और न ही खाना खाया जाता है), लेकिन जितनी भी देर रहीं, बस अपने दामाद आदर्श के नाम की माला जपती रहीं। उन्होंने गौरी को बताया की कैसे आदर्श ने उनकी देखभाल का, और खेती बाड़ी की देखभाल का इंतजाम कर के रखा है। अपना बेटा भी क्या ऐसा करता! और तो और, दूर दूर तक आदर्श की चर्चा है! सभी उसका नाम इज्ज़त से लेते हैं। भगवान्! न जाने कौन से कर्म किया थे की ऐसा देवता जैसा दामाद मिला! ऐसा दामाद तो सभी को दे प्रभु! उन्होंने यह भी कहा कि गौरी सच में बहुत भाग्यवान है कि उसको आदर्श जैसा पति मिला। ऐसे ही आदर्श आदर्श रटते रटते वो वापस घर चली गईं।
इस घटना का गौरी पर गहरा प्रभाव हुआ। पहली बार उसने आदर्श को उसके गुणों के कारण समझा... और एक पुरुष के गुणों के कारण जाना। उसने बाद में आदर्श से पूछा की उसने उसको क्यों नहीं बताया कि वो उसकी अम्मा की देखभाल कर रहा है। इसके जवाब में आदर्श ने कहा, कि अम्मा तो उसकी खुद की अम्मा के ही तो जैसी हैं! और अपनी अम्मा की देखभाल के लिए उसको किसी से बताने या पूछने की क्या ज़रुरत?
गौरी को अब जा कर समझ आया की उसका पति सचमुच बहुत ही नेक है! उसको इस बात पर शक नहीं था – एक ही कमरे में सोते हुए भी आदर्श ने कभी भी उसको छूने की कोशिश नहीं करी। उसका मन तो करता ही होगा .. लेकिन उसने किया कभी नहीं! लेकिन उसने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया – हो सकता है कि उसके डर से आदर्श उससे दूर रहता हो! लेकिन आज अम्मा की बात ने शक के सारे बादल हटा दिए। उसका पति उसको तभी छुएगा, जब वो खुद उसको प्रेम करेगी!
****
“अम्मा, मुझसे गलती हो गई। बहुत बड़ी गलती हो गई, अम्मा! पाप हो गया! इसका प्रायश्चित कैसे करूँ?” गौरी ने लक्ष्मी देवी से कहा।
वो समझ गईं कि किस बारे में बात हो रही है।
“बिटिया, प्रेम में न कोई पाप होता है, और न कोई प्रायश्चित! सिर्फ प्रेम होता है। प्रेम – बिना शर्तों का! पूरी निष्ठा के साथ। तूने आदित्य से प्रेम किया था, और आदर्श ने तुझसे। अरे, वो तो तेरी पूजा करता है! सच बता, क्या उसने कभी भी तुझे छूने की भी कोशिश करी है? तुमने माना किया था न? अगर ये प्रेम नहीं है, तो क्या है? ... और मैं तुमको एक बात बताऊँ? तुम भी उसको चाहती हो.. बस तुमको अभी तक ये बात मालूम नहीं है।“
गौरी जानती थी, कि लक्ष्मी देवी सही कह रही थीं।
“लेकिन अम्मा, मैं उनसे अब आँखें भी कैसे मिला पाऊंगी?”
“क्यों”
“इतना सब कुछ हो गया...”
:क्या इतना कुछ हो गया? कुछ भी नहीं हुआ। तूने कुछ भी गलत नहीं किया – मैंने पहले भी तुमको कहा है। बस, आदर्श को पूरी निष्ठा से प्रेम कर.. बस, प्रेम कर..”
गौरी ने लक्ष्मी को कहा की काश, आदर्श ही पहल कर ले; क्योंकि वो कुछ कर नहीं पाएगी। उसका लज्जा भाव काफी बढ़ गया है, और अब उसकी हिम्मत लगभग ख़तम है। लेकिन लक्ष्मी देवी ने कहा कि आदर्श ऐसा कभी नहीं करेगा। वो गौरी से बहुत प्रेम करता है, और उसका प्रेम उसे ऐसा कुछ भी करने से रोक लेगा। पहल तो गौरी को ही करनी होगी। लेकिन गौरी के अन्दर अपराध-बोध घर कर गया था.. उसके लिए भी कुछ संभव नहीं था।
इस घटना का गौरी पर गहरा प्रभाव हुआ। पहली बार उसने आदर्श को उसके गुणों के कारण समझा... और एक पुरुष के गुणों के कारण जाना। उसने बाद में आदर्श से पूछा की उसने उसको क्यों नहीं बताया कि वो उसकी अम्मा की देखभाल कर रहा है। इसके जवाब में आदर्श ने कहा, कि अम्मा तो उसकी खुद की अम्मा के ही तो जैसी हैं! और अपनी अम्मा की देखभाल के लिए उसको किसी से बताने या पूछने की क्या ज़रुरत?
गौरी को अब जा कर समझ आया की उसका पति सचमुच बहुत ही नेक है! उसको इस बात पर शक नहीं था – एक ही कमरे में सोते हुए भी आदर्श ने कभी भी उसको छूने की कोशिश नहीं करी। उसका मन तो करता ही होगा .. लेकिन उसने किया कभी नहीं! लेकिन उसने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया – हो सकता है कि उसके डर से आदर्श उससे दूर रहता हो! लेकिन आज अम्मा की बात ने शक के सारे बादल हटा दिए। उसका पति उसको तभी छुएगा, जब वो खुद उसको प्रेम करेगी!
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“अम्मा, मुझसे गलती हो गई। बहुत बड़ी गलती हो गई, अम्मा! पाप हो गया! इसका प्रायश्चित कैसे करूँ?” गौरी ने लक्ष्मी देवी से कहा।
वो समझ गईं कि किस बारे में बात हो रही है।
“बिटिया, प्रेम में न कोई पाप होता है, और न कोई प्रायश्चित! सिर्फ प्रेम होता है। प्रेम – बिना शर्तों का! पूरी निष्ठा के साथ। तूने आदित्य से प्रेम किया था, और आदर्श ने तुझसे। अरे, वो तो तेरी पूजा करता है! सच बता, क्या उसने कभी भी तुझे छूने की भी कोशिश करी है? तुमने माना किया था न? अगर ये प्रेम नहीं है, तो क्या है? ... और मैं तुमको एक बात बताऊँ? तुम भी उसको चाहती हो.. बस तुमको अभी तक ये बात मालूम नहीं है।“
गौरी जानती थी, कि लक्ष्मी देवी सही कह रही थीं।
“लेकिन अम्मा, मैं उनसे अब आँखें भी कैसे मिला पाऊंगी?”
“क्यों”
“इतना सब कुछ हो गया...”
:क्या इतना कुछ हो गया? कुछ भी नहीं हुआ। तूने कुछ भी गलत नहीं किया – मैंने पहले भी तुमको कहा है। बस, आदर्श को पूरी निष्ठा से प्रेम कर.. बस, प्रेम कर..”
गौरी ने लक्ष्मी को कहा की काश, आदर्श ही पहल कर ले; क्योंकि वो कुछ कर नहीं पाएगी। उसका लज्जा भाव काफी बढ़ गया है, और अब उसकी हिम्मत लगभग ख़तम है। लेकिन लक्ष्मी देवी ने कहा कि आदर्श ऐसा कभी नहीं करेगा। वो गौरी से बहुत प्रेम करता है, और उसका प्रेम उसे ऐसा कुछ भी करने से रोक लेगा। पहल तो गौरी को ही करनी होगी। लेकिन गौरी के अन्दर अपराध-बोध घर कर गया था.. उसके लिए भी कुछ संभव नहीं था।