19-06-2021, 11:13 PM
एक दिन लक्ष्मी देवी ने गौरी को अपने पास बुलाया और कहा, “बिटिया, तुम हमारे बारे में क्या सोचती होगी!”
“किस बारे में अम्मा!”
“तू सोचती होगी कि तेरी सास कितनी निर्लज्ज है!”
“क्यों अम्मा! आप ऐसा क्यों कह रही हैं?”
“बिटिया – तुझसे क्या छुपा है? ये सब खेल, जो हम अब बुढ़ापे में खेल रहे हैं, वो तो सब जवानी के हैं! तुम दोनों के खेलने के लिए हैं! लेकिन तुम दोनों दिन भर काम काम और बस काम ही करते रहते हो.. तुम दोनों को एक दूसरे के लिए समय मिल भी पाता है या नहीं?”
गौरी सबसे झूठ बोल सकती थी, लेकिन अपनी माँ समान लक्ष्मी देवी से नहीं। उसने कुछ भी नहीं कहा। लक्ष्मी देवी को पहले ही संदेह था। यह बस निश्चित हो गया।
“तुम दोनों को समय नहीं मिल पाता?”
“नहीं अम्मा.. ऐसा नहीं है...”
“मतलब.. तुम दोनों...!”
गौरी ने अपना सर ‘न’ में हिलाया। लक्ष्मी देवी को उसके मन की बात समझ में आ रही थी।
“तुझे.. अभी तक यही लगता है की आदित्य तेरा पति है..?”
“माँ, ‘वो’ (उस समय शादी-शुदा लड़कियां अपने पति का नाम नहीं लेती थीं) बहुत ही अच्छे इंसान हैं। कोई भी लड़की उनको पा कर खुद को बहुत भाग्यशाली समझेगी। मुझे भी ऐसा ही लगता है। लेकिन.. लेकिन मैं कैसे भूल जाऊं! कैसे भूल जाऊं आदित्य को? उनकी यादें अभी तक ताज़ा हैं...”
लक्ष्मी देवी ने उसको बीच में ही टोक दिया,
“बिटिया, मैं तेरी बात समझती हूँ। ये भी समझती हूँ की अपने पहले प्यार को भुला पाना नामुमकिन है। लेकिन आदित्य तेरा अतीत था। आदर्श तेरा वर्तमान और भविष्य है। तनिक उसके बारे में भी सोच! और किसने कहा कि तू आदित्य को भूल जा? वो मेरा भी तो बेटा था.. है न? क्या मैं उसको भूल सकती हूँ? नहीं न! लेकिन, हम हमेशा अतीत में तो ठहरे नहीं रह सकते.. है न! और, वो अतीत तो तेरे जीवन का एक छोटा सा हिस्सा है। वो तेरा पूरा जीवन तो नहीं बन सकता। और, ये मत भूल कि आदर्श भी तो तेरी इस मूर्खता के कारण दुःख झेल रहा होगा! सोच! कैसी ज़िन्दगी है!”
गौरी कुछ बोल न सकी। बस सर झुकाए, अपनी सास की बातें सुनती रही।
“एक बात बोल मेरी बच्ची, तू कब तक इस तरह रहेगी? तू अभी जवान है! जवान शरीर की अपनी ज़रूरतें होती हैं। मैं खुद भी घर बार की देखभाल में ऐसी फंसी, और तेरे बाबूजी भी खेती बाड़ी में ऐसे फंसे, कि हम तो वह सब बातें भूल ही गए। लेकिन फिर तू आई, और तेरे कारण से हमको एक दूसरे के लिए समय मिल सका। और हमने हमारा खोया हुआ प्यार वापस पा लिया। जब हमको, इस उम्र में शारीरिक ज़रूरतें हैं, तो क्या तुझे नहीं हैं? क्या आदर्श को नहीं हैं? सोच बच्चे, अपने बारे में सोच! तुम दोनों अभी बहुत छोटे हो.. बहुत जवान हो!”
गौरी खामोशी से रो रही थी। आंसू बह रहे थे, लेकिन कोई आवाज़ नहीं।
“बिटिया, तुझे कभी जवानी का आनंद लेने का मन नहीं होता? हम्म? कैसी कमानी की तरह देह है! तेरा मन नहीं होता कि कोई इसकी कसावट ढीली कर दे? तेरा मन नहीं होता कि कोई इस देह को इस तरह मसले कि इसके पोर पोर से मीठा सा दर्द उठने लगे? तेरा मन नहीं होता कि कोई मर्द तेरे बदन को छुए? हम्म?”
“अम्मा! आप ऐसे मत कहिए..”
“लेकिन क्यों बेटी?”
“मैं कुछ नहीं कर सकती अम्मा.. कुछ नहीं!”
“मेरी बच्ची, जोड़े तो वहाँ, ऊपर बनते हैं.. स्वर्ग में! जब भोलेनाथ ने स्वयं आदर्श को तेरे लिए चुन लिया, तो तू इस सम्बन्ध को पूरा होने में क्यों विघ्न डाल रही है?”
गौरी कुछ कह नहीं पा रही थी। कुछ बातों पर तर्क वितर्क नहीं किया जा सकता! उससे सिर्फ कुतर्क निकल कर आता है! वो सिर्फ रो रही थी – पूरा शरीर हिचकियाँ ले रहा था। ऐसी प्यारी बिटिया की ऐसी हालत देख कर लक्ष्मी देवी का दिल भी पसीज गया। उनको समझ आ गया कि कुछ ज्यादा ही हो गया। उन्होंने लपक कर गौरी को अपने सीने में भींच लिया और उसके माथे को चूमा।
“मेरी प्यारी बिटिया.. मेरी गुड़िया.. मैं अपने दोनों बच्चों की खुशियाँ ही चाहती हूँ बस.. इसीलिए ऐसी हिमाकत की! मैंने पहले भी कहा था, आज भी वही बात दोहरा रही हूँ.. बस धीरज रखो। प्रभु सब ठीक करेंगे।“
गौरी अपनी अम्मा के गले से लिपटी, बहुत देर तक रोती रही।
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“किस बारे में अम्मा!”
“तू सोचती होगी कि तेरी सास कितनी निर्लज्ज है!”
“क्यों अम्मा! आप ऐसा क्यों कह रही हैं?”
“बिटिया – तुझसे क्या छुपा है? ये सब खेल, जो हम अब बुढ़ापे में खेल रहे हैं, वो तो सब जवानी के हैं! तुम दोनों के खेलने के लिए हैं! लेकिन तुम दोनों दिन भर काम काम और बस काम ही करते रहते हो.. तुम दोनों को एक दूसरे के लिए समय मिल भी पाता है या नहीं?”
गौरी सबसे झूठ बोल सकती थी, लेकिन अपनी माँ समान लक्ष्मी देवी से नहीं। उसने कुछ भी नहीं कहा। लक्ष्मी देवी को पहले ही संदेह था। यह बस निश्चित हो गया।
“तुम दोनों को समय नहीं मिल पाता?”
“नहीं अम्मा.. ऐसा नहीं है...”
“मतलब.. तुम दोनों...!”
गौरी ने अपना सर ‘न’ में हिलाया। लक्ष्मी देवी को उसके मन की बात समझ में आ रही थी।
“तुझे.. अभी तक यही लगता है की आदित्य तेरा पति है..?”
“माँ, ‘वो’ (उस समय शादी-शुदा लड़कियां अपने पति का नाम नहीं लेती थीं) बहुत ही अच्छे इंसान हैं। कोई भी लड़की उनको पा कर खुद को बहुत भाग्यशाली समझेगी। मुझे भी ऐसा ही लगता है। लेकिन.. लेकिन मैं कैसे भूल जाऊं! कैसे भूल जाऊं आदित्य को? उनकी यादें अभी तक ताज़ा हैं...”
लक्ष्मी देवी ने उसको बीच में ही टोक दिया,
“बिटिया, मैं तेरी बात समझती हूँ। ये भी समझती हूँ की अपने पहले प्यार को भुला पाना नामुमकिन है। लेकिन आदित्य तेरा अतीत था। आदर्श तेरा वर्तमान और भविष्य है। तनिक उसके बारे में भी सोच! और किसने कहा कि तू आदित्य को भूल जा? वो मेरा भी तो बेटा था.. है न? क्या मैं उसको भूल सकती हूँ? नहीं न! लेकिन, हम हमेशा अतीत में तो ठहरे नहीं रह सकते.. है न! और, वो अतीत तो तेरे जीवन का एक छोटा सा हिस्सा है। वो तेरा पूरा जीवन तो नहीं बन सकता। और, ये मत भूल कि आदर्श भी तो तेरी इस मूर्खता के कारण दुःख झेल रहा होगा! सोच! कैसी ज़िन्दगी है!”
गौरी कुछ बोल न सकी। बस सर झुकाए, अपनी सास की बातें सुनती रही।
“एक बात बोल मेरी बच्ची, तू कब तक इस तरह रहेगी? तू अभी जवान है! जवान शरीर की अपनी ज़रूरतें होती हैं। मैं खुद भी घर बार की देखभाल में ऐसी फंसी, और तेरे बाबूजी भी खेती बाड़ी में ऐसे फंसे, कि हम तो वह सब बातें भूल ही गए। लेकिन फिर तू आई, और तेरे कारण से हमको एक दूसरे के लिए समय मिल सका। और हमने हमारा खोया हुआ प्यार वापस पा लिया। जब हमको, इस उम्र में शारीरिक ज़रूरतें हैं, तो क्या तुझे नहीं हैं? क्या आदर्श को नहीं हैं? सोच बच्चे, अपने बारे में सोच! तुम दोनों अभी बहुत छोटे हो.. बहुत जवान हो!”
गौरी खामोशी से रो रही थी। आंसू बह रहे थे, लेकिन कोई आवाज़ नहीं।
“बिटिया, तुझे कभी जवानी का आनंद लेने का मन नहीं होता? हम्म? कैसी कमानी की तरह देह है! तेरा मन नहीं होता कि कोई इसकी कसावट ढीली कर दे? तेरा मन नहीं होता कि कोई इस देह को इस तरह मसले कि इसके पोर पोर से मीठा सा दर्द उठने लगे? तेरा मन नहीं होता कि कोई मर्द तेरे बदन को छुए? हम्म?”
“अम्मा! आप ऐसे मत कहिए..”
“लेकिन क्यों बेटी?”
“मैं कुछ नहीं कर सकती अम्मा.. कुछ नहीं!”
“मेरी बच्ची, जोड़े तो वहाँ, ऊपर बनते हैं.. स्वर्ग में! जब भोलेनाथ ने स्वयं आदर्श को तेरे लिए चुन लिया, तो तू इस सम्बन्ध को पूरा होने में क्यों विघ्न डाल रही है?”
गौरी कुछ कह नहीं पा रही थी। कुछ बातों पर तर्क वितर्क नहीं किया जा सकता! उससे सिर्फ कुतर्क निकल कर आता है! वो सिर्फ रो रही थी – पूरा शरीर हिचकियाँ ले रहा था। ऐसी प्यारी बिटिया की ऐसी हालत देख कर लक्ष्मी देवी का दिल भी पसीज गया। उनको समझ आ गया कि कुछ ज्यादा ही हो गया। उन्होंने लपक कर गौरी को अपने सीने में भींच लिया और उसके माथे को चूमा।
“मेरी प्यारी बिटिया.. मेरी गुड़िया.. मैं अपने दोनों बच्चों की खुशियाँ ही चाहती हूँ बस.. इसीलिए ऐसी हिमाकत की! मैंने पहले भी कहा था, आज भी वही बात दोहरा रही हूँ.. बस धीरज रखो। प्रभु सब ठीक करेंगे।“
गौरी अपनी अम्मा के गले से लिपटी, बहुत देर तक रोती रही।
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