19-06-2021, 11:09 PM
आदर्श एक सुदर्शन व्यक्तित्व वाला नवयुवक था। देखने में तो अपने बड़े भाई आदित्य से भी खूबसूरत था। जवानी अभी भी दूर थी – और उसका शरीर अभी भी भर रहा था। युवावस्था की तरुणाई, और आगे आने वाले समय की उत्तेजना से उसके मन में अपार उत्साह था। अपने बड़े भाई की असमय मृत्यु से उसको भी एक गहरा धक्का लगा था, लेकिन चूँकि वो उम्र में छोटा था, इसलिए उसके घाव जल्दी ही भर गए।
जब से उसकी शादी गौरी से तय हुई थी, वो और भी अधिक खुश रहने लगा। उसके लिए गौरी एक आदर्श महिला थी; आदर्श महिला, आदर्श मित्र, और आदर्श जीवनसाथी! उसने गौरी और आदित्य को साथ में देखा था, और उन दोनों का प्यार भी! इसीलिए उसको उम्मीद थी कि गौरी उसको भी उतना ही प्रेम कर सकेगी, जितना वो आदित्य को करती थी।
सगाई के बाद आदर्श गौरी को शादी वाले ही दिन देख सका। और उस दिन भी गौरी दुल्हन के लिबास में थी, और सर से पाँव तक ढँकी हुई थी। बस, सिन्दूर लगाते समय उसको गौरी की सूरत देखने को मिली। लेकिन उसको गौरी के मेहंदी से सजे हाथ, और पैर बखूबी दिख रहे थे। इस बीच में गौरी का शरीर भी भर गया था। वो अपने यौवन के चरमोत्कर्ष पर थी। कपड़ों में, और आँचल से ढके गौरी के उन्नत स्तनों को दर्शन में चूक नहीं हो सकती थी। तानपूरे के तुम्बे जैसे उसके नितम्ब! गौरी के शरीर की कल्पना मात्र से उसका छुन्नू खड़ा होने लगा था। नहीं छुन्नू नहीं, लंड... बड़े लड़के इसको लंड कहते हैं... छुन्नू तो नाउन अम्मा कहती थी, जब वो उसकी मालिश करती थीं। अब तो वो बड़ा हो गया है.. खैर, वो तो अच्छा हुआ कि उसने ढीली ढाली धोती पहनी हुई थी, नहीं तो बेईज्ज़ती हो जाती।
विवाह के दौरान जब भी उन दोनों के शरीर छूते, तो उसको रोमांच हो आता। उसको जल्द ही गौरी को अपने आलिंगन के पाश में बाँधने का मन होने लगा। उसके मन में उन दोनों की उम्र के अंतर का कभी भान तक नहीं हुआ। गौरी उसकी धर्मपत्नी थी, बस!
****
नवदम्पति का कमरा हवेली की पहली मंजिल पर, एकदम आखिरी छोर पर स्थित था। यह एक काफी बड़ा कमरा था – पूर्णतया सुसज्जित! नई नवेली जोड़ी के लिए बिलकुल आदर्श! वहां समुचित एकांत था; पलंग, झूला और कुर्सियों जैसे असबाब हर प्रकार का आनंद देने में सक्षम थे। उस तरफ लोग आते जाते भी नहीं थे। सन पचास के दशक में गाँव देहात में रौशनी करने के लिए लालटेन का प्रयोग होता था – और उस कमरे में ऐसी चार बड़ी लालटेन लगी हुई थीं। कमरे को विभिन्न प्रकार के फूलों से सजाया गया था, और लोबान, चन्दन और शतपुष्प को मिला कर धूप बनाया गया था, जिसके सुलगने से कमरा सुवासित हो रहा था।
गौरी वही सेज पर असहज सी बैठी हुई थी। यह सब नौटंकी अपने से आठ साल छोटे छोकरे के लिए! कहाँ भला वो भाभी भाभी करते हुए उसके आस पास मंडराता था, और कहाँ आज वो उसके शरीर पर अपना हक़ जमाना चाहता है!
उधर आदर्श की मनःस्थिति भी अलग थी – वो भी बहुत घबराया हुआ था। उसका दिल सामान्य से अधिक तेजी से धड़क रहा था। वो धीमे कदमो से चलता हुआ आ कर गौरी के समीप बैठ गया। लोगों ने उसको सुहागरात के बारे में बताया था – उन बातो की कल्पना मात्र से उसको सिहरन सी हो जाती थी। और आज वह सब कुछ करने का समय आ गया था। रोमांच से उसका शरीर कांप रहा था। उसका युवा शिश्न अपने गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों का वहन करने को पूरी तरह से तैयार था।
“मैं आपका घूंघट हटा दूं?” उत्तेजना के मारे उसकी आवाज़ फटी हुई जा रही थी।
गौरी ने कुछ न कहा, और आदर्श ने उसको मूक हामी समझ लिया। हिम्मत कर के, कांपते हाथों से जैसे तैसे उसने गौरी का घूंघट हटाया। लालटेन की पीली रोशनी में गौरी का चाँद सा मुखड़ा देख कर कुछ पलों के लिए वो खो सा गया।
गौरी की खूबसूरती देख उसके मुंह से खुद ब खुद निकला, “हे प्रभु! मुझे नहीं पता था की मेरी किस्मत इतनी अच्छी है।“
पिछली बार पांच बरस पहले उसने गौरी को देखा था। इतने समय में गौरी का रूप और अधिक निखर आया था। लालटेन के प्रकाश में उसका चेहरा किसी परी की भांति चमक रहा था। गले की नीली नसें साँस के आने जाने से हिल रही थीं, और उसका गोरा शरीर लालटेन की रोशनी में एक चाँदी की कटोरी जैसा दिपदिपा रहा था।
सचमुच, वो धरती का सबसे भाग्यशाली पुरुष था! उसका ह्रदय रोमांच में हिलोरें लेने लगा। उसकी नसों में रक्त उबलने लगा; जैसे एक हिंस्र पशु अपने सामने शिकार को देखकर मचलने लगता है, वैसा ही उसके मन में होने लगा। लेकिन उसने उस पशु पर लगाम कसी।
उसको कुछ याद आया। उसने अपने कुरते की जेब से सोने की करधनी निकाली।
“अम्मा ने ये आपके लिए दिया है।“ उसने गौरी को दिखाते हुए कहा।
“आपको पसंद आई? देखिए..?”
गौरी ने कुछ नहीं कहा।
“मैं आपको पहना दूं?”
फिर से कुछ नहीं! उसने थोड़ा जोखिम लेने का सोचा,
“पहनाने के लिए आपका आँचल हटाना पड़ेगा। हटा दूं?”
गौरी बस पहले की ही भांति चुप-चाप बैठी रही। न तो उसने कुछ कहा, और न ही कुछ किया। आदर्श ने कुछ और हिम्मत बटोरी और खुद ही पहल कर के गौरी के वस्त्र पुनर्व्यवस्थित करने लगा। गौरी ने न तो उसकी पहल का विरोध किया, और न ही उसकी मदद करने की कोई भी कोशिश करी। पहले के ही जैसी, बुत बनी बैठी रही। जैसे तैसे उसने गौरी का आँचल उसके सीने से हटा दिया। पहली बार उसको गौरी के आकर्षक स्तनों का आकार दिखाई दिया। उसकी चोली ने आकर्षक तरीके से दोनों स्तनों को हलके से दबाया हुआ था – जिससे देखने वाले को आनंद आना स्वाभाविक ही था। तेजी से साँस लेने और छोड़ने से वो तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे। आदर्श ऐसा कामुक दृश्य देख कर लगभग पागल हो गया! लेकिन फिर भी अपने पशु पर से उसकी लगाम अभी भी नहीं छूटी – कारण चाहे कुछ भी रहा हो।
अपने मन में उठने वाले इस विचार से उसका स्खलन होते होते बचा। खैर, उसने गौरी को करधनी पहना दी। समय लगा – लेकिन उसने अपनी धर्मपत्नी को पहली बार इतने अन्तरंग क्षणों में देखा और छुआ। वो खुश था।
“हो गया! अब मुझे दिखाइए तो, कि कैसा लगता है!”
उसकी हिम्मत बढ़ती ही जा रही थी। लेकिन फिर भी गौरी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। कुछ देर उसने उसके कुछ कहने और करने का इंतज़ार किया, और कुछ न होता देख कर थोड़ा सा अधीर हो गया। उसने गौरी के हाथ पकड़े और उसको बिस्तर से उतार कर ज़मीन पर खड़ा कर दिया।
“ह्म्म्म... अरे वाह! आप पर तो ये बहुत सुन्दर लग रहा है। लेकिन कहना पड़ेगा, कि यह सुन्दर इसलिए लग रहा है, क्योंकि आप पर है...”
उसने बहुत ही काव्यात्मक भाषा में गौरी के रूप की बढ़ाई कर डाली। सच में – गौरी सचमुच में किसी अप्सरा की भांति ही प्रतीत हो रही थी। वो अपनी सुध बुध खो कर कुछ देर उसकी सुन्दरता को निहारता रहा। उसकी हिम्मत अपने शिखर पर थी। उसने एक आखिरी प्रहार किया,
“ठीक से दिख नहीं रहा है..” कहते हुए उसने गौरी के लहँगे का नारा पकड़ कर खींचना शुरू कर दिया।
गौरी को आदर्श से ऐसी हिमाकत की उम्मीद नहीं थी। इसलिए वो इस प्रकार के प्रहार के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी। इस अचानक हुए हमले से वो भौंचक हो गई, और प्रतिक्रिया स्वरुप अपने बचाव में ज़मीन पर ही बैठ गई। बैठते हुए वो गुस्से से चीखी,
“नही... मुझे मत छुओ! मुझे छूने की हिम्मत भी मत करो! मैं तुम्हारे भाई को चाहती हूँ.. मेरे लिए वही मेरे पति हैं.. मैं तुमको अपना नहीं मान पाऊंगी.. कभी नहीं...” कहते हुए वो सुबकने और रोने लगी।
गौरी की इस एक बात ने आदर्श के सारे सपने चकनाचूर कर दिए। वो भी भौंचक हो कर पलंग के किनारे पर सर थाम कर बैठ गया। उसको समझ ही नहीं आया कि वो क्या करे! काफी देर वो यूँ ही सर पर हाथ धरे बैठा रहा; गौरी सुबकती रही। अंततः, वो धीरे से उठा, और भारी डग भरते हुए कमरे से बाहर निकल गया।
****
जब से उसकी शादी गौरी से तय हुई थी, वो और भी अधिक खुश रहने लगा। उसके लिए गौरी एक आदर्श महिला थी; आदर्श महिला, आदर्श मित्र, और आदर्श जीवनसाथी! उसने गौरी और आदित्य को साथ में देखा था, और उन दोनों का प्यार भी! इसीलिए उसको उम्मीद थी कि गौरी उसको भी उतना ही प्रेम कर सकेगी, जितना वो आदित्य को करती थी।
सगाई के बाद आदर्श गौरी को शादी वाले ही दिन देख सका। और उस दिन भी गौरी दुल्हन के लिबास में थी, और सर से पाँव तक ढँकी हुई थी। बस, सिन्दूर लगाते समय उसको गौरी की सूरत देखने को मिली। लेकिन उसको गौरी के मेहंदी से सजे हाथ, और पैर बखूबी दिख रहे थे। इस बीच में गौरी का शरीर भी भर गया था। वो अपने यौवन के चरमोत्कर्ष पर थी। कपड़ों में, और आँचल से ढके गौरी के उन्नत स्तनों को दर्शन में चूक नहीं हो सकती थी। तानपूरे के तुम्बे जैसे उसके नितम्ब! गौरी के शरीर की कल्पना मात्र से उसका छुन्नू खड़ा होने लगा था। नहीं छुन्नू नहीं, लंड... बड़े लड़के इसको लंड कहते हैं... छुन्नू तो नाउन अम्मा कहती थी, जब वो उसकी मालिश करती थीं। अब तो वो बड़ा हो गया है.. खैर, वो तो अच्छा हुआ कि उसने ढीली ढाली धोती पहनी हुई थी, नहीं तो बेईज्ज़ती हो जाती।
विवाह के दौरान जब भी उन दोनों के शरीर छूते, तो उसको रोमांच हो आता। उसको जल्द ही गौरी को अपने आलिंगन के पाश में बाँधने का मन होने लगा। उसके मन में उन दोनों की उम्र के अंतर का कभी भान तक नहीं हुआ। गौरी उसकी धर्मपत्नी थी, बस!
****
नवदम्पति का कमरा हवेली की पहली मंजिल पर, एकदम आखिरी छोर पर स्थित था। यह एक काफी बड़ा कमरा था – पूर्णतया सुसज्जित! नई नवेली जोड़ी के लिए बिलकुल आदर्श! वहां समुचित एकांत था; पलंग, झूला और कुर्सियों जैसे असबाब हर प्रकार का आनंद देने में सक्षम थे। उस तरफ लोग आते जाते भी नहीं थे। सन पचास के दशक में गाँव देहात में रौशनी करने के लिए लालटेन का प्रयोग होता था – और उस कमरे में ऐसी चार बड़ी लालटेन लगी हुई थीं। कमरे को विभिन्न प्रकार के फूलों से सजाया गया था, और लोबान, चन्दन और शतपुष्प को मिला कर धूप बनाया गया था, जिसके सुलगने से कमरा सुवासित हो रहा था।
गौरी वही सेज पर असहज सी बैठी हुई थी। यह सब नौटंकी अपने से आठ साल छोटे छोकरे के लिए! कहाँ भला वो भाभी भाभी करते हुए उसके आस पास मंडराता था, और कहाँ आज वो उसके शरीर पर अपना हक़ जमाना चाहता है!
उधर आदर्श की मनःस्थिति भी अलग थी – वो भी बहुत घबराया हुआ था। उसका दिल सामान्य से अधिक तेजी से धड़क रहा था। वो धीमे कदमो से चलता हुआ आ कर गौरी के समीप बैठ गया। लोगों ने उसको सुहागरात के बारे में बताया था – उन बातो की कल्पना मात्र से उसको सिहरन सी हो जाती थी। और आज वह सब कुछ करने का समय आ गया था। रोमांच से उसका शरीर कांप रहा था। उसका युवा शिश्न अपने गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों का वहन करने को पूरी तरह से तैयार था।
“मैं आपका घूंघट हटा दूं?” उत्तेजना के मारे उसकी आवाज़ फटी हुई जा रही थी।
गौरी ने कुछ न कहा, और आदर्श ने उसको मूक हामी समझ लिया। हिम्मत कर के, कांपते हाथों से जैसे तैसे उसने गौरी का घूंघट हटाया। लालटेन की पीली रोशनी में गौरी का चाँद सा मुखड़ा देख कर कुछ पलों के लिए वो खो सा गया।
गौरी की खूबसूरती देख उसके मुंह से खुद ब खुद निकला, “हे प्रभु! मुझे नहीं पता था की मेरी किस्मत इतनी अच्छी है।“
पिछली बार पांच बरस पहले उसने गौरी को देखा था। इतने समय में गौरी का रूप और अधिक निखर आया था। लालटेन के प्रकाश में उसका चेहरा किसी परी की भांति चमक रहा था। गले की नीली नसें साँस के आने जाने से हिल रही थीं, और उसका गोरा शरीर लालटेन की रोशनी में एक चाँदी की कटोरी जैसा दिपदिपा रहा था।
सचमुच, वो धरती का सबसे भाग्यशाली पुरुष था! उसका ह्रदय रोमांच में हिलोरें लेने लगा। उसकी नसों में रक्त उबलने लगा; जैसे एक हिंस्र पशु अपने सामने शिकार को देखकर मचलने लगता है, वैसा ही उसके मन में होने लगा। लेकिन उसने उस पशु पर लगाम कसी।
उसको कुछ याद आया। उसने अपने कुरते की जेब से सोने की करधनी निकाली।
“अम्मा ने ये आपके लिए दिया है।“ उसने गौरी को दिखाते हुए कहा।
“आपको पसंद आई? देखिए..?”
गौरी ने कुछ नहीं कहा।
“मैं आपको पहना दूं?”
फिर से कुछ नहीं! उसने थोड़ा जोखिम लेने का सोचा,
“पहनाने के लिए आपका आँचल हटाना पड़ेगा। हटा दूं?”
गौरी बस पहले की ही भांति चुप-चाप बैठी रही। न तो उसने कुछ कहा, और न ही कुछ किया। आदर्श ने कुछ और हिम्मत बटोरी और खुद ही पहल कर के गौरी के वस्त्र पुनर्व्यवस्थित करने लगा। गौरी ने न तो उसकी पहल का विरोध किया, और न ही उसकी मदद करने की कोई भी कोशिश करी। पहले के ही जैसी, बुत बनी बैठी रही। जैसे तैसे उसने गौरी का आँचल उसके सीने से हटा दिया। पहली बार उसको गौरी के आकर्षक स्तनों का आकार दिखाई दिया। उसकी चोली ने आकर्षक तरीके से दोनों स्तनों को हलके से दबाया हुआ था – जिससे देखने वाले को आनंद आना स्वाभाविक ही था। तेजी से साँस लेने और छोड़ने से वो तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे। आदर्श ऐसा कामुक दृश्य देख कर लगभग पागल हो गया! लेकिन फिर भी अपने पशु पर से उसकी लगाम अभी भी नहीं छूटी – कारण चाहे कुछ भी रहा हो।
अपने मन में उठने वाले इस विचार से उसका स्खलन होते होते बचा। खैर, उसने गौरी को करधनी पहना दी। समय लगा – लेकिन उसने अपनी धर्मपत्नी को पहली बार इतने अन्तरंग क्षणों में देखा और छुआ। वो खुश था।
“हो गया! अब मुझे दिखाइए तो, कि कैसा लगता है!”
उसकी हिम्मत बढ़ती ही जा रही थी। लेकिन फिर भी गौरी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। कुछ देर उसने उसके कुछ कहने और करने का इंतज़ार किया, और कुछ न होता देख कर थोड़ा सा अधीर हो गया। उसने गौरी के हाथ पकड़े और उसको बिस्तर से उतार कर ज़मीन पर खड़ा कर दिया।
“ह्म्म्म... अरे वाह! आप पर तो ये बहुत सुन्दर लग रहा है। लेकिन कहना पड़ेगा, कि यह सुन्दर इसलिए लग रहा है, क्योंकि आप पर है...”
उसने बहुत ही काव्यात्मक भाषा में गौरी के रूप की बढ़ाई कर डाली। सच में – गौरी सचमुच में किसी अप्सरा की भांति ही प्रतीत हो रही थी। वो अपनी सुध बुध खो कर कुछ देर उसकी सुन्दरता को निहारता रहा। उसकी हिम्मत अपने शिखर पर थी। उसने एक आखिरी प्रहार किया,
“ठीक से दिख नहीं रहा है..” कहते हुए उसने गौरी के लहँगे का नारा पकड़ कर खींचना शुरू कर दिया।
गौरी को आदर्श से ऐसी हिमाकत की उम्मीद नहीं थी। इसलिए वो इस प्रकार के प्रहार के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी। इस अचानक हुए हमले से वो भौंचक हो गई, और प्रतिक्रिया स्वरुप अपने बचाव में ज़मीन पर ही बैठ गई। बैठते हुए वो गुस्से से चीखी,
“नही... मुझे मत छुओ! मुझे छूने की हिम्मत भी मत करो! मैं तुम्हारे भाई को चाहती हूँ.. मेरे लिए वही मेरे पति हैं.. मैं तुमको अपना नहीं मान पाऊंगी.. कभी नहीं...” कहते हुए वो सुबकने और रोने लगी।
गौरी की इस एक बात ने आदर्श के सारे सपने चकनाचूर कर दिए। वो भी भौंचक हो कर पलंग के किनारे पर सर थाम कर बैठ गया। उसको समझ ही नहीं आया कि वो क्या करे! काफी देर वो यूँ ही सर पर हाथ धरे बैठा रहा; गौरी सुबकती रही। अंततः, वो धीरे से उठा, और भारी डग भरते हुए कमरे से बाहर निकल गया।
****