19-06-2021, 11:06 PM
विवाह के दौरान जब जब भी आदर्श और गौरी के शरीर आपस में छूते, तो गौरी के मन में एक घृणा या कहिए, जुगुप्सा की अनुभूति हो जाती।
‘किसी और की पत्नी..’ ‘किसी और की पत्नी..’ बस यही ख़याल उसके मन को सालता जा रहा था।
‘जिसको मन से अपना पति माना, उसकी जगह किसी और को कैसे दे दूं? मन के मीत को ऐसे ही, किसी और से बदला जा सकता है क्या? कैसी शादी थी यह! हे भगवान्! यह तेरी कैसे लीला है? ये तू मेरी कैसी परीक्षा ले रहा है? क्या करूँ!’
गौरी की सहेलियाँ खुश थीं - उनके हिसाब से यह तो स्वर्ग में बनी हुई जोड़ी है!
‘हुँह! स्वर्ग में बनी जोड़ी! जिससे जोड़ी बनी थी, उसको तो वापस ही स्वर्ग में बुला लिया.. ओह आदित्य!’
वो सभी हंस रही थीं, गा रही थीं, खिलवाड़ कर रही थीं, हंसी मज़ाक कर रही थीं… उनमें से लगभग सारी अब तक तो माँ भी बन चुकी थीं। माँ बन चुकी थीं - एक महत्वपूर्ण घटना! या कहिए, सबसे महत्वपूर्ण घटना! क्या होगा अब! क्या वो कभी माँ बनेगी! ओह!
शादी के दौरान वो बस यंत्रवत महंत जी के कहे के अनुसार करती गई - न तो उसको कभी ऐसा रोमांच हुआ कि उसकी शादी हो रही है, और न ही अपने आने वाले वैवाहिक जीवन के लिए नरम गरम प्रत्याशा! शादी की रस्मे कब पूरी हो गईं, उसको पता ही नहीं चला। विवाह के बाद के खेलों में भी उसका मन नहीं लगा। मन क्या नहीं लगा, ये कहिए की उसको चिड़चिड़ाहट सी होने लगी। उसका मन हो रहा था कि सब गायब हो जाएँ, और उसको अकेला छोड़ दें - अपने आदित्य की यादों के साथ।
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अगली सुबह उसको विदा कर दिया गया। अब उसको अपने जीवन की एक नई यात्रा शुरू करनी थी जो उसने खुद नहीं चुनी। पिताजी के जाने के बाद तो अम्मा की हालत जैसे मरणासन्न ही हो गयी। वो तो जैसे गौरी के विवाह की ही राह देख रही थीं, और बस उसी उम्मीद में जी रही थीं। क्या होगा उनका उसके जाने के बाद? यह सब इतना बड़ा घर बार कौन सम्हालेगा! उनको कौन सम्हालेगा! वो बेचारी तो बस अब गई कि तब गई जैसी हालत में थी। गौरी का दिल बैठ गया – अम्मा को छोड़ कर जाना उसको सबसे अधिक दुःख दे गया। वो कुछ देर के लिए अपना ही दुःख भूल गई। विदा होते समय वो खूब रोई – फफक फफक कर रोई। न जाने अम्मा से गले लगने का मौका कभी मिलेगा भी या नहीं! सच में, उसकी डोली नहीं, उसकी अर्थी उठ रही थी।
देखने वालो को यही लगा कि जैसे सभी लड़कियों को होता है, वैसे ही मायके से बिछोह का दुःख हो रहा है गौरी को! लेकिन उसके मन का दुःख भला कोई क्या समझता? लेकिन, उसकी सास, लक्ष्मी ने उसकी मन की बात बखूबी समझी। यह भी समझी की गौरी को क्या साल रहा है! लक्ष्मी देवी गौरी को उसके जन्म से ही जानती थीं। क़रीब चालीस साल की ही थीं, लेकिन बड़े बेटे के जाने के ग़म ने उनको भी असमय बूढ़ा कर दिया था।
उन्होंने सभी आने जाने वालों को गौरी से दूर किया, यह कह कर कि बहू थक गई है, इसलिए अभी किसी से नहीं मिल सकती। और ऐसा कह कर उन्होंने गौरी को एक अलग, शांत कमरे में ले जाकर आराम से बैठाया। उन्होंने गौरी का गाल प्रेम से छुआ और कहा,
“बिटिया, तूने इस घर की बहू बनना स्वीकार कर के हमारा मान बढ़ा दिया.. सच में, तेरे आने से यह घर अब घर नहीं, मंदिर बन गया..”
गौरी को ऐसा सुनने की उम्मीद नहीं थी। उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे।
“आप क्या कह रही हैं अम्मा! सम्मान तो मेरा है। आपने मुझे एक घर की बहू बनने दिया, यह मेरे लिए इतना बड़ा सम्मान है, जिसके लिए मैं उम्र भर आपकी लौंडी बन कर रहूंगी।“
“बेटी, ऐसा न कह.. पहले मेरी पूरी बात सुन ले। जब मैंने दोनों ठाकुरों की प्रतिज्ञा सुनी तो मुझे लगा कि दोनों मज़ाक मज़ाक में यह बात कह गए। लेकिन जब मैंने पहली बार तुझे देखा, तो सच में मन में बस एक ही बात आई, कि क्यों न यह बिटिया मेरे घर आ जाए। तुझे तो मैंने हमेशा ही अपनी बहू, अपनी बेटी के ही रूप में देखा है।“
कुछ देर रुक कर उन्होंने आगे कहा, “... और, मुझे मालूम है कि तूने आदित्य को ही अपना पति माना है। यह बात मैंने जानती हूँ... लेकिन मैं क्या करती? तुझे इस घर में कैसे लाती? कैसे अपनी बेटी बनाती? मैं लालच में आ गयी बिटिया.. मुझे माफ़ कर दे!”
लक्ष्मी देवी ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए; उनके आँखों से भी आंसूं झरने लगे थे।
“मुझे मालूम है कि आदर्श भी तुझे सुखी रखेगा। हो सकता है कि आदित्य से भी अधिक! वो तुझे बहुत प्यार करता है बिटिया.. वो तेरी पूजा करता है। मेरी बस एक ही विनती है, थोड़ा धीरज रखना। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।“
“क्या कह रही हैं अम्मा! आप मुझसे विनती करेंगी? मुझसे? मैं आपकी बेटी हूँ अम्मा! मेरी जगह आपके पैरों में है। आप मुझे आदेश दीजिए!”
“बिटिया, मैंने तुझे जना नहीं है तो क्या? तू मेरी है.. मेरी बेटी! मेरी अपनी बेटी! अपने लालच में हमने तेरी परवाह नहीं करी, लेकिन हम सभी तुझे बहुत चाहते हैं। मेरी यह बात समझ ले बिटिया, और अपनी इस माँ को माफ़ कर दे?”
“अम्मा, माफ़ी जैसा कुछ नहीं है!” कह कर गौरी ने लक्ष्मी देवी को कस कर अपने गले से लगा लिया, “आपने मुझे बेटी कहा, और यही मेरे लिए सब कुछ है! .... और मुझे मालूम है कि यहाँ मुझे अपने मायके से भी अधिक प्यार मिलेगा।“
दोनों की स्त्रियाँ गले लग कर बहुत देर तक रोती रहीं, और एक दूसरे को मनाती रहीं।
‘किसी और की पत्नी..’ ‘किसी और की पत्नी..’ बस यही ख़याल उसके मन को सालता जा रहा था।
‘जिसको मन से अपना पति माना, उसकी जगह किसी और को कैसे दे दूं? मन के मीत को ऐसे ही, किसी और से बदला जा सकता है क्या? कैसी शादी थी यह! हे भगवान्! यह तेरी कैसे लीला है? ये तू मेरी कैसी परीक्षा ले रहा है? क्या करूँ!’
गौरी की सहेलियाँ खुश थीं - उनके हिसाब से यह तो स्वर्ग में बनी हुई जोड़ी है!
‘हुँह! स्वर्ग में बनी जोड़ी! जिससे जोड़ी बनी थी, उसको तो वापस ही स्वर्ग में बुला लिया.. ओह आदित्य!’
वो सभी हंस रही थीं, गा रही थीं, खिलवाड़ कर रही थीं, हंसी मज़ाक कर रही थीं… उनमें से लगभग सारी अब तक तो माँ भी बन चुकी थीं। माँ बन चुकी थीं - एक महत्वपूर्ण घटना! या कहिए, सबसे महत्वपूर्ण घटना! क्या होगा अब! क्या वो कभी माँ बनेगी! ओह!
शादी के दौरान वो बस यंत्रवत महंत जी के कहे के अनुसार करती गई - न तो उसको कभी ऐसा रोमांच हुआ कि उसकी शादी हो रही है, और न ही अपने आने वाले वैवाहिक जीवन के लिए नरम गरम प्रत्याशा! शादी की रस्मे कब पूरी हो गईं, उसको पता ही नहीं चला। विवाह के बाद के खेलों में भी उसका मन नहीं लगा। मन क्या नहीं लगा, ये कहिए की उसको चिड़चिड़ाहट सी होने लगी। उसका मन हो रहा था कि सब गायब हो जाएँ, और उसको अकेला छोड़ दें - अपने आदित्य की यादों के साथ।
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अगली सुबह उसको विदा कर दिया गया। अब उसको अपने जीवन की एक नई यात्रा शुरू करनी थी जो उसने खुद नहीं चुनी। पिताजी के जाने के बाद तो अम्मा की हालत जैसे मरणासन्न ही हो गयी। वो तो जैसे गौरी के विवाह की ही राह देख रही थीं, और बस उसी उम्मीद में जी रही थीं। क्या होगा उनका उसके जाने के बाद? यह सब इतना बड़ा घर बार कौन सम्हालेगा! उनको कौन सम्हालेगा! वो बेचारी तो बस अब गई कि तब गई जैसी हालत में थी। गौरी का दिल बैठ गया – अम्मा को छोड़ कर जाना उसको सबसे अधिक दुःख दे गया। वो कुछ देर के लिए अपना ही दुःख भूल गई। विदा होते समय वो खूब रोई – फफक फफक कर रोई। न जाने अम्मा से गले लगने का मौका कभी मिलेगा भी या नहीं! सच में, उसकी डोली नहीं, उसकी अर्थी उठ रही थी।
देखने वालो को यही लगा कि जैसे सभी लड़कियों को होता है, वैसे ही मायके से बिछोह का दुःख हो रहा है गौरी को! लेकिन उसके मन का दुःख भला कोई क्या समझता? लेकिन, उसकी सास, लक्ष्मी ने उसकी मन की बात बखूबी समझी। यह भी समझी की गौरी को क्या साल रहा है! लक्ष्मी देवी गौरी को उसके जन्म से ही जानती थीं। क़रीब चालीस साल की ही थीं, लेकिन बड़े बेटे के जाने के ग़म ने उनको भी असमय बूढ़ा कर दिया था।
उन्होंने सभी आने जाने वालों को गौरी से दूर किया, यह कह कर कि बहू थक गई है, इसलिए अभी किसी से नहीं मिल सकती। और ऐसा कह कर उन्होंने गौरी को एक अलग, शांत कमरे में ले जाकर आराम से बैठाया। उन्होंने गौरी का गाल प्रेम से छुआ और कहा,
“बिटिया, तूने इस घर की बहू बनना स्वीकार कर के हमारा मान बढ़ा दिया.. सच में, तेरे आने से यह घर अब घर नहीं, मंदिर बन गया..”
गौरी को ऐसा सुनने की उम्मीद नहीं थी। उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे।
“आप क्या कह रही हैं अम्मा! सम्मान तो मेरा है। आपने मुझे एक घर की बहू बनने दिया, यह मेरे लिए इतना बड़ा सम्मान है, जिसके लिए मैं उम्र भर आपकी लौंडी बन कर रहूंगी।“
“बेटी, ऐसा न कह.. पहले मेरी पूरी बात सुन ले। जब मैंने दोनों ठाकुरों की प्रतिज्ञा सुनी तो मुझे लगा कि दोनों मज़ाक मज़ाक में यह बात कह गए। लेकिन जब मैंने पहली बार तुझे देखा, तो सच में मन में बस एक ही बात आई, कि क्यों न यह बिटिया मेरे घर आ जाए। तुझे तो मैंने हमेशा ही अपनी बहू, अपनी बेटी के ही रूप में देखा है।“
कुछ देर रुक कर उन्होंने आगे कहा, “... और, मुझे मालूम है कि तूने आदित्य को ही अपना पति माना है। यह बात मैंने जानती हूँ... लेकिन मैं क्या करती? तुझे इस घर में कैसे लाती? कैसे अपनी बेटी बनाती? मैं लालच में आ गयी बिटिया.. मुझे माफ़ कर दे!”
लक्ष्मी देवी ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए; उनके आँखों से भी आंसूं झरने लगे थे।
“मुझे मालूम है कि आदर्श भी तुझे सुखी रखेगा। हो सकता है कि आदित्य से भी अधिक! वो तुझे बहुत प्यार करता है बिटिया.. वो तेरी पूजा करता है। मेरी बस एक ही विनती है, थोड़ा धीरज रखना। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।“
“क्या कह रही हैं अम्मा! आप मुझसे विनती करेंगी? मुझसे? मैं आपकी बेटी हूँ अम्मा! मेरी जगह आपके पैरों में है। आप मुझे आदेश दीजिए!”
“बिटिया, मैंने तुझे जना नहीं है तो क्या? तू मेरी है.. मेरी बेटी! मेरी अपनी बेटी! अपने लालच में हमने तेरी परवाह नहीं करी, लेकिन हम सभी तुझे बहुत चाहते हैं। मेरी यह बात समझ ले बिटिया, और अपनी इस माँ को माफ़ कर दे?”
“अम्मा, माफ़ी जैसा कुछ नहीं है!” कह कर गौरी ने लक्ष्मी देवी को कस कर अपने गले से लगा लिया, “आपने मुझे बेटी कहा, और यही मेरे लिए सब कुछ है! .... और मुझे मालूम है कि यहाँ मुझे अपने मायके से भी अधिक प्यार मिलेगा।“
दोनों की स्त्रियाँ गले लग कर बहुत देर तक रोती रहीं, और एक दूसरे को मनाती रहीं।