17-06-2021, 11:08 PM
(This post was last modified: 17-06-2021, 11:13 PM by APLOVE15@. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अपडेट - २
ये तो आम बात है.....पर अक्सर मेरे साथ ऐसा नही होता...मेने उस तरफ ध्यान ना देकर आगे बढ़ना जारी रखा....उसने मुझे फिर से आवाज़ दी...पर मैं ना रुकी........इसकी इतनी हिम्मत कि वो मेरे सामने आकर मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया....
"अर्रे मेडम इस ग़रीब पर भी तो ध्यान दो....कब से एक गुज़ारिश कर रहा हूँ" दिल कर रहा था कि, अभी उसका मूह तोड़ दूं..पर फिलहाल इसकी ज़रूरत नही पड़ेगी....मेने नज़र उठा कर उसकी तरफ देखा, वो लड़का कॉलेज यूनिफॉर्म मे खड़ा था…मेने उसकी तरफ देखा और अपने चेहरे से अपना दुपट्टा हटा दिया......मुझे देखते ही उसकी आँखें फेल गये....और वो अपने पैर सर पर रख कर भागा....
चाहते हुए भी मैं अपनी हँसी ना रोक पे..चलो उस उल्लू की वजह से आज मैं कई दिनो बाद हँसी तो.....वरना मुझे कई बार लगता, कि मैं हंस भी सकती हूँ या नही....मेने अपने चेहरे को फिर से दुपट्टे से ढाका....और बस स्टॉप की ओर चल पड़ी.... जैसे ही बस स्टॉप के पास पहुँची, तो देखा कि बस आ गयी है.....मैं तेज कदमों से चलते हुए बस मे चढ़ गयी.....और सीट पर बैठ गयी...घर पहुँचने मे भी 30 मिनिट तो लग ही जाते है....मेने अपने बॅग से अपना मोबाइल फोन निकाला, और एअर फोन लगा कर सॉंग सुनने लगी...
विंडो से आ रही गरम हवा से बस मे बैठे हुए सब लोगो का बुरा हाल था...क्या मुसीबत है.....इतनी अच्छी नौकरी मिल गयी है कुछ महीनो बाद मैं अपने लिए स्कूटी खरीद लूँगी….स्कूटी क्यों मज़ाक कर रही है डॉली अपने आप से...घर का गुज़ारा और निकम्मे भाई के नशे के बाद कुछ बचेगा तो उसे संभाल लेना.. मैं अपने मन मे यही सब सपने लिए सोच रही थी…
क्यों नही ले सकती मैं स्कूटी मेने क्या ठेका ले रखा है, जो उस नाकमजाब इंसान का बोझ सारी उम्र मैं ही उठाती रहूं...ये सोचते-2 कब मेरी आँखें भीग गयी...उसका अहसास मुझे तब हुआ, जब बस मे खड़ी एक औरत को मेने अपनी तरफ देखते हुए पाया....मेने जल्दी से अपनी आँखें पोन्छि....और दूसरी तरफ फेस घुमा लिया.
और खुद को कोसने लगी....."हां अब तुझे ही ये सब बोझ उठाना होगा..क्योंकि तूने अपने लिए खुद ये रास्ता चुना है" और तू चाह कर भी अपने भाई को इग्नोर तो नही कर सकती....आख़िर है तो वो भाई ना" सोचते-2 कब रास्ता बीत गया पता नही चला....मेरा स्टॉप आ गया था.. मैं अपने स्टॉप पर उतरी, और उस रोड पर चलते हुए, अपने घर की तरफ चल पड़ी....10 मिनिट और चिलचिलाती धूप मे झुलसने के बाद मैं घर के बाहर पहुँची, और डोर बेल बजाई.....
"उफ्फ क्या मुसबीत है" ये भाभी भी ना सो गयी होगी....." मेने फिर से डोर बेल बजाई, तो थोड़ी देर बाद भाभी ने डोर खोला....और डोर से पीछे हट गयी...जैसे ही मैं घर के अंदर आई तो, उसने डोर बंद कर दिया…
भाभी : खाना लगाउ क्या दीदी .....और आपके कॉलेज का पहला दिन कैसा रहा….
मैं: बहुत बढ़िया भाभी…….
भाभी: तो सॅलरी कितनी फिक्स हुई तुम्हारी…..
मैं: पता नही भाभी अभी दो दिन बाद पता चलेगा…..(मेने भाभी से अपनी सॅलरी की बात छुपा ली….)
"हां भाभी खाना लगा दो…मैं ज़रा फ्रेश होकर आती हूँ…" और मैं अपने रूम की तरफ बढ़ने लगी..... तो अचानक से भैया के रूम में मुझे हलचल महसूस हुई.....मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया....मेने भाभी से पूछा...."भैया आज काम पर नही गये थे क्या"
भाभी: ओ गये थे पर शायद उनके ऑफीस मे स्ट्राइक हो गयी आज..
ये बंदा कब सुधरेगा....रोज नये बहाने होते है इसके पास ....मुझे तो शक है कि वो काम पर जाते है या नही....अब इनसे बहस करना रोज मेरे बस की बात नही है....वो कहते है ना भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फ़ायदा.. मैं मन मे बुदबुदाते हुए अपने रूम मे चली गयी....
हमारे घर मे सिर्फ़ तीन ही रूम थे….एक किचिन और बाहर गेट के पास बाथरूम और टाय्लेट था….मैं मम्मी पापा के दहनत के बाद से ही उनके रूम मे रहने लगी थी….अब मेरे रूम मे सिर्फ़ एक चारपाई थी…एक छोटा सा स्टडी टेबल और एक परुआना टीवी रूम भी छोटा सा था….मैने रूम मे पहुँचने के बाद, अपना पर्स रखा और घर पर पहनने वाले पुराने से सलवार कमीज़ लेकर बाथरूम की तरफ चली गयी…ताजे ठंडे पानी से नहाने के बाद मेरे जिस्म मे थोड़ी सी जान आई….और अपने रूम मे आए, तो देखा भाभी ने खाना डाल कर मेरी स्टडी टेबल पर रखा हुआ था….
इस सारी खिदमत का राज़ मे जानती थी, क्योंकि अब मुझे नोकारी जो मिल गयी थी…मेने बैठ कर खाना शुरू कर दिया….भाभी जाकर चारपाई पर बैठ गयी….” डॉली मैं क्या बोल रही थी, कि तू ना अच्छे से उस कॉलेज में सेट हो जा…सुना है बहुत अच्छा कॉलेज है….वहाँ टीचर्स को काफ़ी अच्छी सॅलरी मिल जाती है…”
मैं: (खाना खाते हुए) हां भाभी सही सुना है आप ने…
भाभी: तो फिर बस तू अपनी जगह पक्की कर ले वहाँ पर…एक बार जब तू सेट हो जाए तो, मेरे लिए भी वहाँ के प्रिन्सिपल से जॉब की बात कर लेना….
मैं: जॉब और आप…..आप पढ़ा लेंगी बच्चों को….?
भाभी: हां क्यों नही मैं कॉन सा पढ़ी लिखी नही हूँ….माना कि तुमसे थोडा कम पढ़ी लिखी हूँ….
मैं: भाभी वहाँ जॉब पाना इतना आसान काम नही है…मुझे लगता कि वो आपको वहाँ पर जॉब पर रखेंगे….
भाभी: क्यों नही रखेंगे….अच्छा एक बात बता तुम कॉन सी क्लास को पढ़ाती हो…
मैं: कॉन मैं….मैं तो 8थ से लेकर 12थ तक….पर आप क्यों पूछ रही हो….?
भाभी: देख भले ही मैं बड़ी क्लासस के बच्चों को ना पढ़ा सकूँ…पर छोटी क्लासस के बच्चों को तो आराम से पढ़ा सकती हूँ…वहाँ छोटी क्लासस है ना…?
मैं: हां है…वैसे भाभी कह तो तुम ठीक रही हो…छोटी क्लासस को पढ़ाना मुश्किल तो नही होगा आपके लिए….
भाभी: देख डॉली तुझे तेरे भैया को तो पता है…कुछ काम धंधा तो करते है नही…और मेरे बेचारे माँ बाप पता नही कब तक इस दुनिया मे है…देख मुझे ज़्यादा लालच नही है….अगर 5000-6000 भी मिल जाए तो क्या बुराई है…कम से कम कुछ तो घर के हालात सुधरेंगे…तुम अपने लिए और मैं अपने लिए कुछ तो पैसे जोड़ सकेंगे.
मैं सोचने लगी की, भाभी कह तो सही रही है….इंसान पैदा होते ही बुरा नही हो जाता…उसे बुरा बनाता है समाज और बुरा वक़्त…शायद भैया की वजह से ही भाभी का रवईया अभी तक मेरे साथ ठीक नही था…एक वजह और भी थी कि, भाभी ने मेरी दोबारा शादी करवाने के लिए बहुत कॉसिश की थी….पर मेरे अपने मन मे जो मर्दो के प्रति नफ़रत थी…उसके चलते शादी से मना कर दिया था….फिर शायद भाभी की ये सोच थी कि, मैं उन पर ज़बरदस्ती बोझ बन रही हूँ…
भाभी: क्या हुआ डॉली किस सोच मे डूबी हुई हो….?
मैं: कुछ नही भाभी…..मैं कॉसिश करूँगी कि आपको भी वहाँ जॉब मिल जाए….
भाभी: अर्रे इतनी भी जल्दी नही है…तुम्हारी भाभी इतनी भी लालची नही.. पहले तू खुद आपने आप को वहाँ पर बेस्ट टीचर साबित कर दे….ताकि वहाँ का प्रिन्सिपल तुम्हे मना ही ना कर सके….तब तक मैं भी कुछ प्रॅक्टीस कर लूँगी…
मैं: ठीक है भाभी….तो आज से आप शाम को जो छोटी क्लासस के बच्चे आते है. उनको ट्यूशन देना शुरू कर दो….आपको थोड़ा एक्सपीरियेन्स भी हो जाएगा…
भाभी: तूने ये बात ठीक कही डॉली…अच्छा अब तू खाना खा और आराम कर 5 बजे बच्चे भी आजाएँगे ...
आगे अगले अपडेट में...
ये तो आम बात है.....पर अक्सर मेरे साथ ऐसा नही होता...मेने उस तरफ ध्यान ना देकर आगे बढ़ना जारी रखा....उसने मुझे फिर से आवाज़ दी...पर मैं ना रुकी........इसकी इतनी हिम्मत कि वो मेरे सामने आकर मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया....
"अर्रे मेडम इस ग़रीब पर भी तो ध्यान दो....कब से एक गुज़ारिश कर रहा हूँ" दिल कर रहा था कि, अभी उसका मूह तोड़ दूं..पर फिलहाल इसकी ज़रूरत नही पड़ेगी....मेने नज़र उठा कर उसकी तरफ देखा, वो लड़का कॉलेज यूनिफॉर्म मे खड़ा था…मेने उसकी तरफ देखा और अपने चेहरे से अपना दुपट्टा हटा दिया......मुझे देखते ही उसकी आँखें फेल गये....और वो अपने पैर सर पर रख कर भागा....
चाहते हुए भी मैं अपनी हँसी ना रोक पे..चलो उस उल्लू की वजह से आज मैं कई दिनो बाद हँसी तो.....वरना मुझे कई बार लगता, कि मैं हंस भी सकती हूँ या नही....मेने अपने चेहरे को फिर से दुपट्टे से ढाका....और बस स्टॉप की ओर चल पड़ी.... जैसे ही बस स्टॉप के पास पहुँची, तो देखा कि बस आ गयी है.....मैं तेज कदमों से चलते हुए बस मे चढ़ गयी.....और सीट पर बैठ गयी...घर पहुँचने मे भी 30 मिनिट तो लग ही जाते है....मेने अपने बॅग से अपना मोबाइल फोन निकाला, और एअर फोन लगा कर सॉंग सुनने लगी...
विंडो से आ रही गरम हवा से बस मे बैठे हुए सब लोगो का बुरा हाल था...क्या मुसीबत है.....इतनी अच्छी नौकरी मिल गयी है कुछ महीनो बाद मैं अपने लिए स्कूटी खरीद लूँगी….स्कूटी क्यों मज़ाक कर रही है डॉली अपने आप से...घर का गुज़ारा और निकम्मे भाई के नशे के बाद कुछ बचेगा तो उसे संभाल लेना.. मैं अपने मन मे यही सब सपने लिए सोच रही थी…
क्यों नही ले सकती मैं स्कूटी मेने क्या ठेका ले रखा है, जो उस नाकमजाब इंसान का बोझ सारी उम्र मैं ही उठाती रहूं...ये सोचते-2 कब मेरी आँखें भीग गयी...उसका अहसास मुझे तब हुआ, जब बस मे खड़ी एक औरत को मेने अपनी तरफ देखते हुए पाया....मेने जल्दी से अपनी आँखें पोन्छि....और दूसरी तरफ फेस घुमा लिया.
और खुद को कोसने लगी....."हां अब तुझे ही ये सब बोझ उठाना होगा..क्योंकि तूने अपने लिए खुद ये रास्ता चुना है" और तू चाह कर भी अपने भाई को इग्नोर तो नही कर सकती....आख़िर है तो वो भाई ना" सोचते-2 कब रास्ता बीत गया पता नही चला....मेरा स्टॉप आ गया था.. मैं अपने स्टॉप पर उतरी, और उस रोड पर चलते हुए, अपने घर की तरफ चल पड़ी....10 मिनिट और चिलचिलाती धूप मे झुलसने के बाद मैं घर के बाहर पहुँची, और डोर बेल बजाई.....
"उफ्फ क्या मुसबीत है" ये भाभी भी ना सो गयी होगी....." मेने फिर से डोर बेल बजाई, तो थोड़ी देर बाद भाभी ने डोर खोला....और डोर से पीछे हट गयी...जैसे ही मैं घर के अंदर आई तो, उसने डोर बंद कर दिया…
भाभी : खाना लगाउ क्या दीदी .....और आपके कॉलेज का पहला दिन कैसा रहा….
मैं: बहुत बढ़िया भाभी…….
भाभी: तो सॅलरी कितनी फिक्स हुई तुम्हारी…..
मैं: पता नही भाभी अभी दो दिन बाद पता चलेगा…..(मेने भाभी से अपनी सॅलरी की बात छुपा ली….)
"हां भाभी खाना लगा दो…मैं ज़रा फ्रेश होकर आती हूँ…" और मैं अपने रूम की तरफ बढ़ने लगी..... तो अचानक से भैया के रूम में मुझे हलचल महसूस हुई.....मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया....मेने भाभी से पूछा...."भैया आज काम पर नही गये थे क्या"
भाभी: ओ गये थे पर शायद उनके ऑफीस मे स्ट्राइक हो गयी आज..
ये बंदा कब सुधरेगा....रोज नये बहाने होते है इसके पास ....मुझे तो शक है कि वो काम पर जाते है या नही....अब इनसे बहस करना रोज मेरे बस की बात नही है....वो कहते है ना भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फ़ायदा.. मैं मन मे बुदबुदाते हुए अपने रूम मे चली गयी....
हमारे घर मे सिर्फ़ तीन ही रूम थे….एक किचिन और बाहर गेट के पास बाथरूम और टाय्लेट था….मैं मम्मी पापा के दहनत के बाद से ही उनके रूम मे रहने लगी थी….अब मेरे रूम मे सिर्फ़ एक चारपाई थी…एक छोटा सा स्टडी टेबल और एक परुआना टीवी रूम भी छोटा सा था….मैने रूम मे पहुँचने के बाद, अपना पर्स रखा और घर पर पहनने वाले पुराने से सलवार कमीज़ लेकर बाथरूम की तरफ चली गयी…ताजे ठंडे पानी से नहाने के बाद मेरे जिस्म मे थोड़ी सी जान आई….और अपने रूम मे आए, तो देखा भाभी ने खाना डाल कर मेरी स्टडी टेबल पर रखा हुआ था….
इस सारी खिदमत का राज़ मे जानती थी, क्योंकि अब मुझे नोकारी जो मिल गयी थी…मेने बैठ कर खाना शुरू कर दिया….भाभी जाकर चारपाई पर बैठ गयी….” डॉली मैं क्या बोल रही थी, कि तू ना अच्छे से उस कॉलेज में सेट हो जा…सुना है बहुत अच्छा कॉलेज है….वहाँ टीचर्स को काफ़ी अच्छी सॅलरी मिल जाती है…”
मैं: (खाना खाते हुए) हां भाभी सही सुना है आप ने…
भाभी: तो फिर बस तू अपनी जगह पक्की कर ले वहाँ पर…एक बार जब तू सेट हो जाए तो, मेरे लिए भी वहाँ के प्रिन्सिपल से जॉब की बात कर लेना….
मैं: जॉब और आप…..आप पढ़ा लेंगी बच्चों को….?
भाभी: हां क्यों नही मैं कॉन सा पढ़ी लिखी नही हूँ….माना कि तुमसे थोडा कम पढ़ी लिखी हूँ….
मैं: भाभी वहाँ जॉब पाना इतना आसान काम नही है…मुझे लगता कि वो आपको वहाँ पर जॉब पर रखेंगे….
भाभी: क्यों नही रखेंगे….अच्छा एक बात बता तुम कॉन सी क्लास को पढ़ाती हो…
मैं: कॉन मैं….मैं तो 8थ से लेकर 12थ तक….पर आप क्यों पूछ रही हो….?
भाभी: देख भले ही मैं बड़ी क्लासस के बच्चों को ना पढ़ा सकूँ…पर छोटी क्लासस के बच्चों को तो आराम से पढ़ा सकती हूँ…वहाँ छोटी क्लासस है ना…?
मैं: हां है…वैसे भाभी कह तो तुम ठीक रही हो…छोटी क्लासस को पढ़ाना मुश्किल तो नही होगा आपके लिए….
भाभी: देख डॉली तुझे तेरे भैया को तो पता है…कुछ काम धंधा तो करते है नही…और मेरे बेचारे माँ बाप पता नही कब तक इस दुनिया मे है…देख मुझे ज़्यादा लालच नही है….अगर 5000-6000 भी मिल जाए तो क्या बुराई है…कम से कम कुछ तो घर के हालात सुधरेंगे…तुम अपने लिए और मैं अपने लिए कुछ तो पैसे जोड़ सकेंगे.
मैं सोचने लगी की, भाभी कह तो सही रही है….इंसान पैदा होते ही बुरा नही हो जाता…उसे बुरा बनाता है समाज और बुरा वक़्त…शायद भैया की वजह से ही भाभी का रवईया अभी तक मेरे साथ ठीक नही था…एक वजह और भी थी कि, भाभी ने मेरी दोबारा शादी करवाने के लिए बहुत कॉसिश की थी….पर मेरे अपने मन मे जो मर्दो के प्रति नफ़रत थी…उसके चलते शादी से मना कर दिया था….फिर शायद भाभी की ये सोच थी कि, मैं उन पर ज़बरदस्ती बोझ बन रही हूँ…
भाभी: क्या हुआ डॉली किस सोच मे डूबी हुई हो….?
मैं: कुछ नही भाभी…..मैं कॉसिश करूँगी कि आपको भी वहाँ जॉब मिल जाए….
भाभी: अर्रे इतनी भी जल्दी नही है…तुम्हारी भाभी इतनी भी लालची नही.. पहले तू खुद आपने आप को वहाँ पर बेस्ट टीचर साबित कर दे….ताकि वहाँ का प्रिन्सिपल तुम्हे मना ही ना कर सके….तब तक मैं भी कुछ प्रॅक्टीस कर लूँगी…
मैं: ठीक है भाभी….तो आज से आप शाम को जो छोटी क्लासस के बच्चे आते है. उनको ट्यूशन देना शुरू कर दो….आपको थोड़ा एक्सपीरियेन्स भी हो जाएगा…
भाभी: तूने ये बात ठीक कही डॉली…अच्छा अब तू खाना खा और आराम कर 5 बजे बच्चे भी आजाएँगे ...
आगे अगले अपडेट में...