12-04-2019, 01:36 AM
उसने कहा- नहीं, कल चलूँगा आज नहीं. मुझे अपना मनोबल बना कर तुम्हारे साथ चलना है.
अगले दिन हम दोनों घर पर आए तो मेरे पापा ने ही दरवाजा खोला और उसे देखकर पूछा- हेलो धीरज, कैसे हो? तुम्हारी अगली प्रमोशन हो गई या नहीं? मैं तो पूरी सिफारिश करके आया था।
उसने पूरे अदब से जवाब दिया और बोला- सर, आपकी मेहरबानी है. वो तो बहुत दिन पहले ही हो चुकी है।
पापा ने कहा- आओ आओ अंदर आकर बात करते हैं.
पापा ने उससे पूछा- और सुनाओ कैसे काम चल रहा है. अगर मेरे लायक कोई काम हो तो बताओ. मुझे खुशी होगी करने में तुम जैसे लायक लड़के के लिए!
इतने में मैं बोली धीरज को देखकर बोली- बोलो ना पापा से कि मेरी प्रमोशन तो अब आपके ही हाथ में है.
पापा कुछ समझ नहीं पाए और हैरानी से मुझे देखने लगे.
फिर उन्होंने धीरज से कहा- बोलो क्या बात है?
मगर धीरज अभी झिझक रहा था.
तब मैंने कहा- पापा, यह आपसे कुछ माँगने आया है.
पापा ने कहा- अब मैं क्या दे सकता हूँ सिवा इसके कि कम्पनी में कोई सिफारिश करनी हो तो!
मैंने कहा- नहीं पापा, यह आपकी लड़की का हाथ माँगने के लिए आया है.
यह सुन कर पापा ने मुझसे कहा- तो यही है वो … जिसके लिए तुम आज तक मेरा कहना नहीं मान रही थी?
फिर उन्होंने मेरी मां को आवाज़ लगा कर कहा- सुनाती हो … जल्दी से आओ यहाँ पर!
जब माँ आई तो पापा बोले- मुबारक हो, तुम्हाऱी इच्छा पूरी हो गई. इनसे मिलो!
धीरज की तरफ इशारा करते हुए बोले- ये हैं तुम्हारी बेटी की पसंद जिसके लिए इसने हमें इतना तंग किया है.
मेरे पापा ने धीरज से कहा- मेरी खुशनसीबी होगी अगर तुम जैसा लड़का मेरा दामाद बने तो. मगर यह रिश्ता तभी पक्का हो सकता है जब तुम्हारे माँ बाप इसके लिए राज़ी हों तो!
धीरज ने कहा- ठीक है, मैं कल या परसों ही बुलवा लेता हूँ. मगर सर, वो साधारण तरह से रहने वाले हैं, उन्हें आपके घर पर आने में कुछ झिझक हो सकती है.
मेरा पापा ने कहा- जब वो तुम्हारे पास आयें तब मुझे बताना, हम लोग उनसे मिलने के लिए आएँगे.
दो दिन बाद मेरे माँ बाप ने धीरज के मां बाप से मिल कर हमारा रिश्ता पक्का कर दिया.
अब धीरज जो मुझसे हमेशा दूरी बनाकर रखता था मेरे बहुत ही करीब आने लगा। जब भी हम लोग अकेले होते थे वो मेरे गालों को चूम लेता। धीरे धीरे गालों से अब वो मेरे होंठों को भी चूमने लगा। मैं भी उसका उसी तरह से जवाब देती।
एक दिन उसने मेरे मम्मों को कपड़ों के ऊपर से दबा दिया। जब मैंने कुछ विरोध किया तो “क्या करूँ अब ये बेईमान दिल नहीं मानता।” कहते हुए उसने अबकी बार मेरे उभारों को पूरी तरह से सहलाना शुरू कर दिया।
मैंने नारी सुलभ लज्जा दिखाते हुए उससे कहा- ये सब ठीक नहीं है, जो करना हो, शादी के बाद करना।
जवाब मिला- शादी में तो अभी एक महीना पड़ा है, तब तक कुछ तो करने की इजाजत दे दो।
अगले दिन हम दोनों घर पर आए तो मेरे पापा ने ही दरवाजा खोला और उसे देखकर पूछा- हेलो धीरज, कैसे हो? तुम्हारी अगली प्रमोशन हो गई या नहीं? मैं तो पूरी सिफारिश करके आया था।
उसने पूरे अदब से जवाब दिया और बोला- सर, आपकी मेहरबानी है. वो तो बहुत दिन पहले ही हो चुकी है।
पापा ने कहा- आओ आओ अंदर आकर बात करते हैं.
पापा ने उससे पूछा- और सुनाओ कैसे काम चल रहा है. अगर मेरे लायक कोई काम हो तो बताओ. मुझे खुशी होगी करने में तुम जैसे लायक लड़के के लिए!
इतने में मैं बोली धीरज को देखकर बोली- बोलो ना पापा से कि मेरी प्रमोशन तो अब आपके ही हाथ में है.
पापा कुछ समझ नहीं पाए और हैरानी से मुझे देखने लगे.
फिर उन्होंने धीरज से कहा- बोलो क्या बात है?
मगर धीरज अभी झिझक रहा था.
तब मैंने कहा- पापा, यह आपसे कुछ माँगने आया है.
पापा ने कहा- अब मैं क्या दे सकता हूँ सिवा इसके कि कम्पनी में कोई सिफारिश करनी हो तो!
मैंने कहा- नहीं पापा, यह आपकी लड़की का हाथ माँगने के लिए आया है.
यह सुन कर पापा ने मुझसे कहा- तो यही है वो … जिसके लिए तुम आज तक मेरा कहना नहीं मान रही थी?
फिर उन्होंने मेरी मां को आवाज़ लगा कर कहा- सुनाती हो … जल्दी से आओ यहाँ पर!
जब माँ आई तो पापा बोले- मुबारक हो, तुम्हाऱी इच्छा पूरी हो गई. इनसे मिलो!
धीरज की तरफ इशारा करते हुए बोले- ये हैं तुम्हारी बेटी की पसंद जिसके लिए इसने हमें इतना तंग किया है.
मेरे पापा ने धीरज से कहा- मेरी खुशनसीबी होगी अगर तुम जैसा लड़का मेरा दामाद बने तो. मगर यह रिश्ता तभी पक्का हो सकता है जब तुम्हारे माँ बाप इसके लिए राज़ी हों तो!
धीरज ने कहा- ठीक है, मैं कल या परसों ही बुलवा लेता हूँ. मगर सर, वो साधारण तरह से रहने वाले हैं, उन्हें आपके घर पर आने में कुछ झिझक हो सकती है.
मेरा पापा ने कहा- जब वो तुम्हारे पास आयें तब मुझे बताना, हम लोग उनसे मिलने के लिए आएँगे.
दो दिन बाद मेरे माँ बाप ने धीरज के मां बाप से मिल कर हमारा रिश्ता पक्का कर दिया.
अब धीरज जो मुझसे हमेशा दूरी बनाकर रखता था मेरे बहुत ही करीब आने लगा। जब भी हम लोग अकेले होते थे वो मेरे गालों को चूम लेता। धीरे धीरे गालों से अब वो मेरे होंठों को भी चूमने लगा। मैं भी उसका उसी तरह से जवाब देती।
एक दिन उसने मेरे मम्मों को कपड़ों के ऊपर से दबा दिया। जब मैंने कुछ विरोध किया तो “क्या करूँ अब ये बेईमान दिल नहीं मानता।” कहते हुए उसने अबकी बार मेरे उभारों को पूरी तरह से सहलाना शुरू कर दिया।
मैंने नारी सुलभ लज्जा दिखाते हुए उससे कहा- ये सब ठीक नहीं है, जो करना हो, शादी के बाद करना।
जवाब मिला- शादी में तो अभी एक महीना पड़ा है, तब तक कुछ तो करने की इजाजत दे दो।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.